होलिका दहन समय 13 मार्च 2025 | Holika Dahan 13 March, 2025 | Holika Dahan 2025

होलिका दहन प्रदोष व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा के दिन भ्रद्रारहित काल में होलिका दहन किया जाता हैं ऎसा धर्म सिंधु में निहित है. यदि प्रदोष के समय भद्रा व्याप्त हो और भद्रा निशीथकाल अर्थात अर्ध रात्रि से पूर्व ही समाप्त हो रही हो तो भद्रा के पश्चात तथा आधी रात से पूर्व ही होलिका दहन किया जाना चाहिए ऎसा शास्त्रों में बताया गया है. लेकिन यदि भद्रा आधी रात से पहले समाप्त न हो और अगले दिन की सुबह तक व्याप्त हो और अगले दिन पुर्णिमा प्रदोषव्यापिनी भी नहीं हो तो ऎसी स्थिति में पहले दिन ही भद्रा का मुख छोड़कर प्रदोषकल में होलिका दहन कर लेना उचित होता है.

इस वर्ष 13 मार्च, 2025 को होलिका दहन किया जा सकेगा. भद्रा के मुख का त्याग करके निशा मुख में होली का पूजन करना शुभफलदायक सिद्ध होता है, ज्योतिष शास्त्र के अनुसार भी पर्व-त्योहारों को मुहूर्त शुद्धि के अनुसार मनाना शुभ एवं कल्याणकारी है.विधिवत रुप से होलिका का पूजन करने के बाद होलिका का दहन किया जाता है. होलिका दहन सदैव भद्रा समय के बाद ही किया जाता है. इसलिये दहन करने से भद्रा का विचार कर लेना चाहिए.

ऎसा माना जाता है कि भद्रा समय में होलिका का दहन करने से क्षेत्र विशेष में अशुभ घटनाएं होने की सम्भावना बढ जाती है. इसके अलावा चतुर्दशी तिथि, प्रतिपदा में भी होलिका का दहन नहीं किया जाता है. तथा सूर्यास्त से पहले कभी भी होलिका दहन नहीं करना चाहिए. होलिका दहन करने समय मुहूर्त आदि का ध्यान रखना शुभ माना जाता है

होलिका पूजन करने के लिये होली से आठ  दिन पहले होलिका दहन वाले स्थान को गंगाजल से शुद्ध कर उसमें सूखे उपले, सूखी लकडी, सूखी घास को इकट्ठा कर लेते हैं जिस दिन यह कार्य किया जाता है, उस दिन को होलाष्टक प्रारम्भ का दिन भी कहा जाता है. जिस गांव, क्षेत्र या मौहल्ले के चौराहे पर पर यह होली का डंडा स्थापित किया जाता है. होली का डंडा स्थापित होने के बाद संबन्धित क्षेत्र में होलिका दहन होने तक कोई शुभ कार्य संपन्न नहीं किया जाता है.

होलाष्टक से लेकर होलिका दहन के दिन तक प्रतिदिन इसमें कुछ लकडियां डाली जाती है. इस प्रकार होलिका दहन के दिन तक यह लकडियों का बडा ढेर बन जाता है व इस दिन से होली के रंग फिजाओं में बिखरने लगते है. अर्थात होली की शुरुआत हो जाती है. बच्चे और बडे इस दिन से हल्की फुलकी होली खेलनी प्रारम्भ कर देते है.

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महाशिवरात्रि व्रत 2025 | Maha Shivaratri Fast 2025 | Mahashivratri Vrat | Mahashivratri Festival 2025

महाशिव रात्रि अर्थात कल्याणकारी रात्रि. फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी तिथि को किया जाने वाला महाशिवरात्रि का पर्व इसी को दर्शाता है. इस शिवरात्रि का शास्त्रों में बहुत माहात्म्य माना है. मान्यता है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को भगवान शिव ज्योतिर्मय लिंग स्वरूप में प्रकट हुए थे इसलिए इसे महाशिवरात्रि कहा जाता है. शिवरात्रि के व्रत के बारे में भिन्न-भिन्न मत हैं.

फाल्गुन महाशिवरात्रि उत्सव | Phalgun Maha Shivratri Festival

फाल्गुन का महीना वसंत के आगमन को दर्शाता है, फाल्गुन माह का स्वागत प्रकृति भी करने लगती हैं और देवताओं के रथ सजने लगते हैं. वैसे तो यह पर्व संपूर्ण भारत में मनाया जाता है किंतु हिमाचल के मंडी में मनाया जाने वाला महा शिवरात्रि का त्यौहार लोकोत्सव एवं दर्शनिय होता है है. फाल्गुन मास में प्रारंभ होने वाले इस उत्सव में देवी-देताओं का दर्शन करने हेतु दूर दूर से लोग आकर एकाकार होते हैं. इस समय का प्रमुख आकर्षण मेले और उनमें शामिल होने वाली शोभायात्राएं होती हैं.

महाशिवरात्रि व्रत-पूजन नियम | Rituals to Worship On Maha Shivratri

सर्वसाधारण मान्यता के अनुसार जब प्रदोष काल रात्रि का आंरभ एवं अर्द्धरात्रि के समय चतुर्दशी तिथि रहे तो उसी दिन शिव रात्रि का व्रत किया जाना चाहिए. कुछ के अनुसार यह व्रत प्रातः काल से चतुर्दशी तिथि रहते रात्रि पर्यंत तक करना चाहिए व रात्रि के चारों प्रहरों में भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए. इस विधि से किए गए व्रत द्वारा पुण्य कर्मों का अनुमोदन हो जाता है और भगवान शिव की अनुकंपा प्राप्त होती है.

जीवन पर्यंत इस विधि से श्रद्धा-विश्वास पूर्वक व्रत का आचरण करने से भगवान शिव की कृपा से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. जो लोग इस विधि से व्रत करने में असमर्थ हों वे रात्रि के आरंभ में तथा अर्द्धरात्रि में भगवान शिव का पूजन करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं तथा इस विधि से व्रत करने में असमर्थ हों तो पूरे दिन व्रत करके सायंकाल में भगवान शंकर की यथाशक्ति पूजा अर्चना करके व्रत पूर्ण कर सकते हैं.

महाशिवरात्रि पूजन | Maha Shivratri Pujan

महाशिवरात्रि की रात्रि महा सिद्धिदायी होती है. इस समय में किए गए दान पुण्य, शिवलिंग की पूजा, स्थापना का विशेष फल प्राप्त होता है. पारद अथवा स्फटिक शिवलिंग की पूजा एवं स्थापना सिद्धिदायक मानी गई है इसके नित्य पूजन और दर्शन से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं. पारद शिव लिंग की पूजा अर्चना करने से आरोग्य की प्राप्ति होती है और स्फटिक शिवलिंग द्वारा धन, यश मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है.

महाशिवरात्रि में शिवलिंग पूजा | Maha Shivratri – Worshipping the Shivalinga

सर्वप्रथम गंगाजल जल से शिवलिंग को स्नान कराएं तथा दूध, दही, घी, मधु, शक्कर से स्नान कराकर उन पर चंदन लगाना चाहिए फिर फूल, बिल्वपत्र अर्पित करें, धूप और दीप से पूजन करते हुए शिव मंत्रों से जप प्रारंभ करके नित्य एक माला जप करनी चाहिए. नमः शिवाय तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात्। त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम् उर्वारुकमिव बंधनान्मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्।

नित्य काम्य रुप में पूर्ण होता है, फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी को, अर्धरात्रि के समय शिव लिंग का प्रादुर्भाव हुआ था. इस कारण यह महाशिव रात्रि मानी जाती है. सिद्धांत रूप में सूर्योदय से सूर्योदय पर्यंत रहने वाली चतुर्दशी अर्धरात्रि व्यापिनी ग्राह्य होती है. यदि यह शिव रात्रि त्रयोदशी चतुर्दशी अमावस्या के स्पर्श की हो, तो और भी महत्वपूर्ण हो जाती है. इस विधि से व्रत करने से भी भगवान शिव की कृपा से जीवन में सुख, ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है.

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सीता जयंती 2025 | Sita Jayanti, Janki Jayanti

सीता जयंती का उत्सव संपूर्ण भारत में उत्साह व श्राद्धा के साथ मनाया जाएगा. यह पर्व माँ सीता के जन्म दिवस के रुप में जाना जाता है. वैशाख मास के शुक्लपक्ष की नवमी तिथि को भी जानकी-जयंती के रूप में मनाया जाता है, परंतु भारत के कुछ क्षेत्रों में फाल्गुन मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी को सीता-जयंती के रूप में भी मनाने की परंपरा रही है.

इस तथ्य का उदघाटन निर्णयसिंधु से भी प्राप्त होता है जिसके अनुसार फाल्गुन माह की कृष्ण पक्ष के दिन सीता जी का जन्म हुआ था इसीलिए इस तिथि को सीताष्टमी के नाम से भी संबोद्धित किया जाता है. सीता शक्ति, इच्छा-शक्ति तथा ज्ञान-शक्ति तीनों रूपों में प्रकट होती हैं वह परमात्मा की शक्ति स्वरूपा हैं.

सीता जयंती का पौराणिक संदर्भ | Historical Significance of Sita Jayanti

सीता माँ का चरित्र सभी के लिये मार्गदर्शक रहा है और आज भी प्रासंगिक है. सीता उपनिषद जो कि अथर्ववेदीय शाखा से संबंधित उपनिषद है जिसमें सीता जी की महिमा एवं उनके स्वरूप को व्यक्त किया गया है. इसमें सीता को शाश्वत शक्ति का आधार बताया गया है तथा उन्हें ही प्रकृति में परिलक्षित होते हुए देखा गया है. सीता जी को प्रकृति का स्वरूप कहा गया है तथा योगमाया रूप में स्थापित किया गया है.

सीता जी ही प्रकृति हैं वही प्रणव और उसका कारक भी हैं. शब्द का अर्थ अक्षरब्रह्म की शक्ति के रूप में हुआ है यह नाम साक्षात ‘योगमाया’ का है. देवी सीता जी को भगवान श्रीराम का साथ प्राप्त है, जिस कारण वह विश्वकल्याणकारी हैं. सीता जी जग माता हैं और श्री राम को जगत-पिता बताया गया है एकमात्र सत्य यही है कि श्रीराम ही बहुरूपिणीमाया को स्वीकार कर विश्वरूप में भासित हो रहे हैं और सीता जी ही वही योगमाया है.

वाल्मीकि रामायण में तथा वेद-उपनिषदों में सीता के स्वरूप का विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है. ऋग्वेद में एक स्तुति के अनुसार कह अगया है कि असुरों का नाश करने वाली सीता जी आप हमारा कल्याण करें. गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरितमानस में सीताजी को संसार की उत्पत्ति, पालन तथा संहार करने वाली माता कहते हुए नमस्कार करते हैं, एक पुत्री, पुत्रवधू, पत्‍‌नी और मां के रूप में उनका आदर्श रूप सभी के लिए पूजनीय रहा है.

सीता जयंती पूजन | Sita Jayanti Puja

सीता जयंती के उपलक्ष्य पर भक्तगण माता की उपासना करते हैं. परम्परागत ढंग से श्रद्धा पूर्वक पूजन अर्चन किया जाता है. सीता जी की विधि-विधान पूर्वक आराधना की जाती है. इस दिन व्रत का भी नियम बताया गया है जिसे करने हेतु व्रतधारी को व्रत से जुडे सभी नियमों का पालन करना चाहिए. सुबह स्नान आदि से निवृत होकर माता सीता व श्री राम जी की पूजा उपासना करनी चाहिए. पूजन में चावल, जौ, तिल आदि का प्रयोग करना चाहिए.

इस व्रत को करने से सौभाग्य सुख व संतान की प्राप्त होती है, माँ सीता लक्ष्मी का हैं इसकारण इनके निमित्त किया गया व्रत परिवर में सुख-समृ्द्धि और धन कि वृद्धि करने वाला होता है. एक अन्य मत के अनुसार माता का जन्म क्योंकि भूमि से हुआ था, इसलिए वे अन्नपूर्णा कहलाती है. माता जानकी का व्रत करने से उपावसक में त्याग, शील, ममता और समर्पण जैसे गुण आते है.

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गौरी तृतीया व्रत 2025 | Gauri Tritiya Fast 2025 | Gauri Tritiya | Gauri Tritiya Pooja

शक्तिरूपा पार्वती की कृपा प्राप्त करने हेतु सौभाग्य वृद्धिदायक गौरी तृतीया व्रत करने का विचार शास्त्रों में बताया गया है. इस वर्ष यह व्रत 31 मार्च, 2025 को किया जाना है. माघ मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन इस व्रत को किया जाता है. शुक्ल तृतीया को किया जाने वाला यह व्रत शिव एवं देवी पार्वती की असीम कृपा प्राप्त करने के लिए किया जाता है.

विभिन्न कष्टों से मुक्ति एवं जीवन में सफलता का मार्ग प्रशस्त करने के लिए इस व्रत की महिमा का बखान पूर्ण रुप से प्राप्त होता है. इस व्रत का उद्धापन कर देना चाहिए. देवी गौरी सभी की मनोकामना पूर्ण करें.

गौरी तृतीया कथा | Gauri Tritiya Katha

गौरी तृतीया शास्त्रों के कथन अनुसार इस व्रत और उपवास के नियमों को अपनाने से सौभाग्य की प्राप्ति होती है स्त्रियों को दांपत्य सुख व संतान सुख की प्राप्ती कराता है. प्राप्त होता है. गौरी तृतीया व्रत की महिमा के संबंध में पुराणों  में उल्लेख प्राप्त होता है जिसके द्वारा यह स्पष्ट होता है कि दक्ष को पुत्री रुप में सती की प्राप्ति होती है. सती माता ने भगवान शिव को पाने हेतु जो तप और जप किया उसका फल उन्हें प्राप्त हुआ.

माता सती के अनेकों नाम हैं जिसमें से गौरी भी उन्हीं का एक नाम है. शुक्लपक्ष की तृतीया तिथि को भगवान शंकर के साथ देवी सती विवाह हुआ था अतः माघ शुक्ल तृतीया के दिन उत्तम सौभाग्य की कृपा प्राप्त करने के लिए यह व्रत किया जाता है. यह व्रत सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाला है,

गौरी तृतीया पूजा विधि | Rituals To Perform Gauri Tritiya Puja

इस दिन प्रातःकाल स्नान आदि कर देवी सती के साथ-साथ भगवान शंकर का पूजन करना चाहिए. पंचगव्य तथा चंदन निर्मित जल से देवी सती और भगवान शिव की प्रतिमा को स्नान कराना चाहिए. धूप, दीप, नैवेद्य तथा नाना प्रकार के फल अर्पित कर पूजा करनी चाहिए. इस दिन इन व्रत का संकल्प सहित प्रारम्भ करना चाहिए.

पूजन में श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, लौंग, पान, चावल, सुपारी, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढाते हैं. गौरी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी लगाते है. श्रंगार की वस्तुओं से माता को सजाया जाता हैं. शिव-पार्वती की मूर्तियों का विधिवत पूजन करके गौरी तृतीया कि कथा सुनी जाती है तथा गौरी माता को सुहाग की सामग्री अर्पण कि जाती है.

पार्वती का पूजन एवं व्रत रखने से सुखों में वृद्धि होती है. विधिपूर्वक अनुष्ठान करके भक्ति के साथ पूजन करके व्रत की समाप्ति के समय दान करें. इस व्रत का जो स्त्री इस प्रकार उत्तम व्रत का अनुष्ठान करती है, उसकी कामनाएं पूर्ण होती हैं. निष्काम भाव से इस व्रत को करने से नित्यपद की प्राप्ति होती है.

गौरी तृतीया व्रत फल | Gauri Tritiya Fast Results

यह व्रत स्त्रियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है. पावन तिथि स्त्रियों के लिए सौभाग्यदायिनी मानी जाती है. सुहागिन स्त्रियां पति की दीर्घायु और अखण्ड सौभाग्य की कामना के लिए इस दिन आस्था के साथ व्रत करती हैं. अविवाहित कन्याएं भी मनोवांछित वर की प्राप्ति हेतु इस व्रत को करती देखी जा सकती हैं.

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दान पुण्य की माघ पूर्णिमा 2025

12 फरवरी 2025 के दिन माघ पूर्णिमा का उत्सव मनाया जाएगा. ब्रह्मवैवर्तपुराण में उल्लेख है कि माघी पूर्णिमा पर भगवान विष्णु गंगाजल में निवास करते हैं अत: इस पावन समय गंगाजल का स्पर्शमात्र भी स्वर्ग की प्राप्ति देता है। इसी प्रकार पुराणों में मान्यता है कि भगवान विष्णु व्रत, उपवास, दान से भी उतने प्रसन्न नहीं होते, जितना अधिक प्रसन्न माघ स्नान करने से होते हैं.

इस दिन किए गए यज्ञ, तप तथा दान का विशेष महत्व होता है. भगवान विष्णु की पूजा कि जाती है, भोजन, वस्त्र, गुड, कपास, घी, लड्डु, फल, अन्न आदि का दान करना पुण्यदायक माना जाता है. माघ पूर्णिमा में प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व किसी पवित्र नदी या घर पर ही स्नान करके भगवान मधुसूदन की पूजा करनी चाहिए. माघ मास में काले तिलों से हवन और पितरों का तर्पण करना चाहिए तिल के दान का इस माह में विशेष महत्त्व माना गया है.

माघ पूर्णिमा को माघी पूर्णिमा के नाम से भी संबोधित किया जाता है. इस अवसर पर गंगा में स्नान करने से पाप एंव संताप का नाश होता है तथा मन एवं आत्मा को शुद्वता प्राप्त होती है. इस दिन किया गया महास्नान समस्त रोगों को शांत करने वाला है. इस समय ओम नमः भगवते वासुदेवाय नमः का जाप करते हुए स्नान व दान करना चाहिए.

माघ पूर्णिमा पूजन | Magh Purnima Pujan

माघ पूर्णिमा के अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी कि कथा की जाती है भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल,  मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है. सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद  केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है, इसके साथ ही साथ आटे को भून कर उसमें चीनी मिलाकर चूरमे का प्रसाद बनाया जाता है और इस का भोग लगता है. सत्यनारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है, इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती कि जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद सभी को दिया जाता है.

माघ पूर्णिमा में गंगा स्नान | Ganga Snan on Magh Purnima

माघ माह में स्नान, दान, धर्म-कर्म का विशेष महत्व होता है. इस माह की प्रत्येक तिथि फलदायक मानी गई है. शास्त्रों के अनुसार माघ के महीने में किसी भी नदी के जल में स्नान को गंगा स्नान करने के समान माना गया है. माघ माह में स्नान का सबसे अधिक महत्व प्रयाग के संगम तीर्थ का होता है .

माघ पूर्णिमा में मेलों का आयोजन | Fairs during Magh Purnima

प्रतिवर्ष माघ माह के समय प्रयाग में मेला लगता है जो कल्पवास कहलाता है प्रयाग में इस अवधि में कल्पवास बिताने की परंपरा सदियों से चली आ रही है जिसका समापन माघी पूर्णिमा के स्नान के साथ होता है. इस दौरान देश के सभी भागों से आए अनेक श्रद्धालु यहां संगम क्षेत्र में स्नान कर धर्म कर्म के कार्य करते हैं यह कल्पवास पूरे माघ माह तक चलता है जो माघ माह की पूर्णिमा को संपन्न होता है. माघ पूर्णिमा के दिन श्रद्धालु स्नान, दान, पूजा-पाठ, यज्ञ आदि करते हैं.  माघ पूर्णिमा के दिन स्नान करने वाले पर भगवान विष्णु कि असीम कृपा रहती है. सुख-सौभाग्य, धन-संतान कि प्राप्ति होती है माघ स्नान पुण्यशाली होता है.

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बसंत पंचमी 2025 : क्यों मनाई जाती है बसंत पंचमी

माघ शुक्ल पंचमी 02 फरवरी 2025 के दिन बसंत पंचमी पूजन संपन्न होगा. इस शुभ दिन सभी शिक्षण संस्थानों में विद्या की देवी सरस्वती जी की पूजा कि जाती है. सरस्वती को कला की भी देवी माना जाता है अत: कला क्षेत्र से जुड़े लोग भी माता सरस्वती की विधिवत पूजा करते हैं. साथ ही साथ पुस्तक एवं कलम की पूजा भी करते हैं.

सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की देवी का स्थान प्राप्त है इनकी उपासना से सभी को बुद्धि एवं ज्ञान की प्रप्ति होती है, देवी सरस्वती जीवन की जड़ता एवं अज्ञानता को दूर करके उसमें प्रकाश का संचार करती हैं तथा व्यक्ति को योग्य होने का आशिर्वाद प्रदान करती हैं वेद पुराणों में देवी सरस्वती के महत्व का विस्तृत वर्णन प्राप्त होता है.

ऋग्वेद में देवी सरस्वती नदी की देवी कही गई हैं. सरस्वती जी का जन्म ब्रह्मा के मुख से हुआ था यह वाणी एवं विद्या की अधिष्ठात्री देवी है वसंत पंचमी के दिन विद्या की देवी सरस्वती के पूजन का विधान है.सरस्वती को साहित्य, संगीत, कला की देवी माना जाता है

सरस्वती देवी पूजन | Goddess Saraswati Worship

वसंत पंचमी के दिन को मां सरस्वती के जन्म उत्सव के रूप में पूरे भारत वर्ष में बडी़ धूम-धाम के साथ मनाया जाता है मनाया जाता है. इस दिन को अबूझ मुहूर्त के नाम से भी जाना जाता है यह दिन बहुत ही शुभ माना जाता है. विद्या की देवी मां सरस्वती का यह दिन सभी के लिए महत्वपूर्ण होता है. इस दिन कोई भी नया काम प्रारम्भ करना शुभ माना जाता है.

वसंत पंचमी के दिन सर्वप्रथम गणेश का पूजन किया जाता है तत्पश्चात मां सरस्वती का पूजन किया जाता है वसंत पंचमी के दिन मां सरस्वती के भोग में विशेष रूप से चावलों का भोग प्रसाद रूप में उपयोग किया जाता है. इस दिन मां सरस्वती का पूजन करने से सभी को मां सरस्वती के आर्शीवाद के साथ सकारात्मक बुद्धि की भी प्राप्ति होती है.

विद्या की देवी सरस्वती की पूजा की जाती है तथा इस दिन बच्चों को प्रथम अक्षर लिखना सिखाया जाता है, इसी के साथ पितृ तर्पण एवं कामदेव की पूजा का विधान भी है , पीले या वासंती रंग के वस्त्रों को हना जाता है सभी विद्या संस्थाओं में गायन और वादन सहित कई सांस्कृतिक कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाते हैं जो मां सरस्वती को अर्पित किए जाते हैं. इस दिन सरस्वती पूजा का विशेष और वृहद आयोजन करते हैं.

सरस्वती वंदना | Goddess Saraswati Prayer

विद्या की देवी सरस्वती कुन्द फूल, चंद्रमा, हिम एवं सफेद मोती के हार जैसी गौर वर्ण मनमोहक छवि के जैसी हैं तथा जो श्वेत वस्त्र धारण किए हैं जिनके हाथों में वीणा-दण्ड है, जो  श्वेत कमलों पर विराजित हैं एवं ब्रह्मा, विष्णु, शंकर आदि देवताओं द्वारा सदा पूज्य हैं, वही देवी सरस्वती हमारी जड़ता एवं अज्ञानता को दूर कर हमारी रक्षा करें.

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अचला भानू सप्तमी 2025 : कथा और पूजा विधि

माघ माह की शुक्ल पक्ष की सप्तमी को सूर्य सप्तमी, अचला सप्तमी, रथ आरोग्य सप्तमी इत्यादि नामों से जानी जाती है. विशेषकर जब यह सप्तमी रविवार के दिन हो तो इसे अचला भानू सप्तमी के नाम से पुकारा जाता है और इस दिन पड़ने के कारण इसका महत्व और भी अधिक बढ़ जाता है. 04 फरवरी 2025 में यह व्रत किया जाएगा.

अचला सप्तमी पौराणिक आधार | Achla Saptami Mythological Basis

शास्त्रों में सूर्य को आरोग्यदायक कहा गया है इनकी उपासना से रोग मुक्ति का उपाय बताया जाता है. माघ मास की शुक्ल पक्ष की सप्तमी से संबंधित कथा का उल्लेख ग्रंथों में मिलता है. कथा के अनुसार श्रीकृष्ण के पुत्र शाम्ब को अपने शारीरिक बल और सौष्ठव पर बहुत अधिक अभिमान हो गया था. अपने इसी अभिमान के मद में उन्होंने दुर्वसा ऋषि का अपमान कर दिया और शाम्ब की धृष्ठता को देखकर उन्हों ने शाम्ब को कुष्ठ होने का श्राप दे दिया.

तब भगवान श्रीकृष्ण ने शाम्ब को सूर्य भगवान की उपासना करने के लिए कहा. शाम्ब ने आज्ञा मानकर सूर्य भगवान की आराधना करनी आरम्भ कर दी जिसके फलस्वरूप उन्हें अपने कष्ट से मुक्ति प्राप्त हो सकी इसलिए इस सप्तमी को सके दिन सूर्य भगवान की आराधना जो श्रद्धालु विधिवत तरीके से करते हैं उन्हें आरोग्य, पुत्र और धन की प्राप्ति होती है.

अचला सप्तमी सूर्य उपासना पर्व | Achla Saptami Sun’s Worship

सूर्य को प्राचीन ग्रंथों में आरोग्यकारक माना गया है, इस दिन श्रद्धालुओं द्वारा भगवान सूर्य का व्रत रखा जाता है. सूर्य की रोशनी के बिना संसार में कुछ भी नहीं होगा. इस सप्तमी को जो भी सूर्य देव की उपासना तथा व्रत करते हैं उनके सभी रोग ठीक हो जाते हैं. वर्तमान समय में भी सूर्य चिकित्सा का उपयोग आयुर्वेदिक और प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति में किया जाता है.

शारीरिक कमजोरी, हड्डियों की कमजोरी या जोडो़ में दर्द जैसी परेशानियों में भगवान सूर्य की आराधना करने से रोग से मुक्ति मिलने की संभावना बनती है. सूर्य की ओर मुख करके सूर्य स्तुति करने से शारीरिक चर्मरोग आदि नष्ट हो जाते हैं. पुत्र प्राप्ति के लिए भी इस व्रत का महत्व माना गया है. इस व्रत को श्रद्धा तथा विश्वास से रखने पर पिता-पुत्र में प्रेम बना रहता है.

भानू सप्तमी पूजन | Bhanu Saptami Worship

इस दिन  किसी जलाशय, नदी, नहर में सूर्योदय से पूर्व स्नान करना चाहिए.  स्नान करने के बाद उगते हुए सूर्य की आराधना करनी चाहिए.  भगवान सूर्य को जलाशय, नदी अथवा नहर के समीप खडे़ होकर भगवान सूर्य को अर्ध्य देना चाहिए. दीप दान विशेष महत्व रखता है इसके अतिरिक्त कपूर, धूप, लाल पुष्प इत्यादि से भगवान सूर्य का पूजन करना चाहिए. इस दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार गरीबों तथा ब्राह्मणों को दान देना चाहिए.

एक अन्य मत से इस दिन प्रात:काल सूर्योदय से पहले उठकर बहते हुए जल में स्नान करना चाहिए. स्नान करते समय अपने सिर पर बदर वृक्ष और अर्क पौधे की सात-सात पत्तियाँ रखकर स्नान करना चाहिए. स्नान करने के पश्चात सात प्रकार के फलों, चावल, तिल, दूर्वा, चंदन आदि को जल में मिलाकर उगते हुए भगवान सूर्य को जल देना चाहिए. “ऊँ घृणि सूर्याय नम:”  अथवा “ऊँ सूर्याय नम:” सूर्य मंत्र का जाप करना चाहिए. इसके अतिरिक्त आदित्य हृदय स्तोत्र” का पाठ करने से शुभ फलों की प्राप्ति संभव होती है.

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षटतिला एकादशी व्रत कथा 2025

षट्तिला एकादशी का व्रत 25 जनवरी, 2025 के दिन रखा जाएगा. प्रतिवर्ष माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी को षटतिला एकादशी का व्रत रखा जाता है. अपने नाम के अनुरूप यह व्रत तिलों से जुडा हुआ है, तिल का महत्व तो सर्वव्यापक है और हिन्दु धर्म में यह बहुत पवित्र माने जाते हैं पूजा में इनका विशेष महत्व होता है.


षट्तिला एकादशी के दिन तिलों का छ: प्रकार से उपयोग किया जाता है. जिसमें तिल से स्नान करना, तिल का उबटन लगाना, तिल से हवन करना, तिल से तर्पण करना, तिल का भोजन करना और तिलों का दान करना इसलिए इसे षटतिला एकादशी व्रत कहा जाता है. जो भी व्यक्ति इस षटतिला एकादशी के व्रत को करता है उसे तिलों से भरा घडा़ भी ब्राह्मण को दान करना चाहिए. जितने तिलों का दान वह करेगा उतने ही ह्जार वर्ष तक वह स्वर्गलोक में रहेगा.


षटतिला एकादशी व्रत का महत्व | Significance of Shattila Ekadashi

माघ माह की कृष्ण पक्ष की एकादशी को व्रत रखना चाहिए. इससे मनुष्य के सभी पाप समाप्त हो जाएंगें तथा उसे स्वर्ग की प्राप्ति होगी. जो व्यक्ति श्रद्धा भाव से षटतिला एकादशी का व्रत रखते हैं, उनके सभी पापों का नाश होता है. इसलिए माघ मास में पूरे माह व्यक्ति को अपनी समस्त इन्द्रियों पर काबू रखना चाहिए. काम, क्रोध, अहंकार, बुराई तथा चुगली का त्याग कर भगवान की शरण में जाना चाहिए.


षटतिला एकादशी व्रत विधि | Shattila Ekadashi Fast Method

एक बार दालभ्य ऋषि ने पुलस्त्य ऋषि से पूछा कि मनुष्य कौन सा दान अथवा पुण्य कर्म करे जिससे इनके सभी पापों का नाश हो. तब पुलस्त्य ऋषि ने कहा कि हे ऋषिवर माघ मास लगते ही मनुष्य को सुबह स्नान आदि करके शुद्ध रहना चाहिए. व्यक्ति पुष्य नक्षत्र में तिल तथा कपास को गोबर में मिलाकर उसके 108 कण्डे बनाकर रख लें. माघ मास की षटतिला एकादशी को सुबह स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करें. व्रत करने का संकल्प करके भगवान विष्णु जी का ध्यान करना चाहिए. यदि व्रत आदि में किसी प्रकार की भूल हो जाए तब भगवान कृष्ण जी से क्षमा याचना करनी चाहिए.


रात्रि में गोबर के कंडों से हवन करना चाहिए. रात भर जागरण करके भगवान का भजन करना चाहिए. अगले दिन भगवान का भजन-पूजन करने के पश्चात खिचडी़ का भोग लगाना चाहिए. व्यक्ति इस प्रार्थना को ऎसे भी बोल सकते हैं कि हे प्रभु आप दीनों को शरण देने वाले हैं. संसार के सागर में फंसे हुए लोगों का उद्धार करने वाले हैं.  इसके बाद व्यक्ति को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए. ब्राह्मण को जल से भरा घडा़, छाता, जूते तथा वस्त्र देने चाहिए.


भगवान विष्णु ने नारद जी को एक सत्य घटना से अवगत कराया और नारदजी को एक षटतिला एकादशी के व्रत का महत्व बताया. इस प्रकार सभी मनुष्यों को लालच का त्याग करना चाहिए. किसी प्रकार का लोभ नहीं करना चाहिए. षटतिला एकादशी के दिन तिल के साथ अन्य अन्नादि का भी दान करना चाहिए. इससे मनुष्य का सौभाग्य बली होगा. कष्ट तथा दरिद्रता दूर होगी. विधिवत तरीके से व्रत रखने से स्वर्ग लोक की प्राप्ति होगी.

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माघ मौनी अमावस्या 2025 : क्या है इस अमावस्या में मौन रहने का अर्थ

28 जनवरी 2025 को मौनी अमावस्या का उत्सव मनाया जाएगा. मौनी अमावस्या के दिन सूर्य तथा चन्द्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं इसलिए यह दिन एक संपूर्ण शक्ति से भरा हुआ और पावन अवसर बन जाता है इस दिन मनु ऋषि का जन्म भी माना जाता है. इसलिए भी इस अमावस्या को मौनी अमावस्या कहा जाता है. मकर राशि, सूर्य तथा चन्द्रमा का योग इसी दिन होता है अत: इस अमावस्या का महत्व और बढ़ जाता है. इस दिन पवित्र नदियों व तीर्थ स्थलों में स्नान करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है.


मौनी अमावस्या पर मौन व्रत महत्व | Significance of Maun Fast on Mauni Amavasya

इस दिन व्यक्ति विशेष को मौन व्रत रखने का भी विधान रहा है. इस व्रत का अर्थ है कि व्यक्ति को अपनी इन्द्रियों को अपने वश में रखना चाहिए. धीरे-धीरे अपनी वाणी को संयत करके अपने वश में करना ही मौन व्रत है. कई लोग इस दिन से मौन व्रत रखने का प्रण करते हैं. वह व्यक्ति विशेष पर निर्भर करता है कि कितने समय के लिए वह मौन व्रत रखना चाहता है. कई व्यक्ति एक दिन, कोई एक महीना और कोई व्यक्ति एक वर्ष तक मौन व्रत धारण करने का संकल्प कर सकता है.


इस दिन मौन व्रत धारण करके ही स्नान करना चाहिए. वाणी को नियंत्रित करने के लिए यह शुभ दिन होता है. मौनी अमावस्या को स्नान आदि करने के बाद मौन व्रत रखकर एकांत स्थल पर जाप आदि करना चाहिए. इससे चित्त की शुद्धि होती है. आत्मा का परमात्मा से मिलन होता है. मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति स्नान तथा जप आदि के बाद हवन, दान आदि कर सकता है. ऎसा करने से पापों का नाश होता है. इस दिन गंगा स्नान करने से अश्वमेघ यज्ञ करने के समान फल मिलता समान है.


माघ मास की अमावस्या तिथि और पूर्णिमा तिथि दोनों का ही महत्व   इस मास में होता है. इस मास में यह दो तिथियाँ पर्व के समान मानी जाती हैं. समुद्र मंथन के समय देवताओं और असुरों के मध्य संघर्ष में जहाँ-जहाँ अमृत गिरा था उन स्थानों पर स्नान करना पुण्य कर्म माना जाता है.


मौनी अमावस्या महात्म्य | Significance of Mauni Amavasya

मौनी अमावस्या के दिन व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान, पुण्य तथा जाप करने चाहिए. यदि किसी व्यक्ति की सामर्थ्य त्रिवेणी के संगम अथवा अन्य किसी तीर्थ स्थान पर जाने की नहीं है तब उसे अपने घर में ही प्रात: काल उठकर दैनिक कर्मों से निवृत होकर स्नान आदि करना चाहिए अथवा घर के समीप किसी भी नदी या नहर में स्नान कर सकते हैं. पुराणों के अनुसार इस दिन सभी नदियों का जल गंगाजल के समान हो जाता है. स्नान करते हुए मौन धारण करें और जाप करने तक मौन व्रत का पालन करें.


इस दिन व्यक्ति प्रण करें कि वह झूठ, छल-कपट आदि की बातें नहीं करेगें. इस दिन से व्यक्ति को सभी बेकार की बातों से दूर रहकर अपने मन को सबल बनाने की कोशिश करनी चाहिए. इससे मन शांत रहता है और शांत मन शरीर को सबल बनाता है. इसके बाद व्यक्ति को इस दिन ब्रह्मदेव तथा गायत्री का जाप अथवा पाठ करना चाहिए. मंत्रोच्चारण के साथ अथवा श्रद्धा-भक्ति के साथ दान करना चाहिए. दान में गाय, स्वर्ण, छाता, वस्त्र, बिस्तर तथा अन्य उपयोगी वस्तुएं अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान करनी चाहिए.

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माघ स्नान 2025: माघ स्नान महत्व

कहा गया है कि त्रिदेव माघ मास में प्रयागराज के लिए यमुना के संगम पर गमन करते हैं तथा इलाहबाद के प्रयाग में माघ मास के दौरान स्नान करने दस हज़ार अश्वमेध यज्ञ करने के समान फल प्राप्त होता है. माघ मास में ब्रह्म मूहुर्त्त समय गंगाजी अथवा पवित्र नदियों में स्नान करना उत्तम होता है. माघ मास का स्नान पौष शुक्ल एकादशी अथवा पूर्णिमा से आरम्भ कर माघ शुक्ल द्वादशी या पूर्णिमा को समाप्त हो जाता है. जब सूर्य माघ मास में मकर राशि पर स्थित होता है तब समस्त व्यक्तियों को इस समय व्रत व दान तप का  आचरण करना चाहिए. सबसे महान पुण्य प्रदाता माघ स्नान गंगा तथा यमुना के संगम स्थल का माना जाता है.

माघ स्नान और कल्पवास | Magh Snan and Kalpvas

माघ स्नान दिन सूर्य तथा चन्द्रमा गोचरवश मकर राशि में आते हैं. मकर राशि, सूर्य तथा चन्द्रमा का योग इसी दिन होता है. इस माह के दौरान हरिद्वार, नासिक, उज्जैन व इलाहाबाद इत्यादि के संगम पर स्नान करने से पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. माघ मास में ‘कल्पवास’ का विशेष महत्त्व माना गया है. माघ माह समय में संगम के तट पर निवास को ‘कल्पवास’ कहा जाता है.

वेद, मंत्र व यज्ञ आदि कर्म ही ‘कल्प’ कहे जाते हैं. पौराणिक ग्रंथों में माघ माह समय, संगम के तट पर निवास कल्पवास के नाम से जाना जाता है. यह कल्पवास पौष शुक्ल एकादशी से आरम्भ होकर माघ शुक्ल द्वादशी पर्यन्त तक रहता है, संयम, अहिंसा एवं श्रद्धा ही कल्पवास का मूल आधार होता है.

माघ स्नान मेला | Magh Snan Fair

माघ माह में माघ स्नान के उपलक्ष्य पर मेलों का आयोजन होता है. भारत के विभिन्न धर्म नगरियों जैसे कि प्रयाग, उत्तरकाशी, हरिद्वार इत्यादि स्थलों में माघ मेला बहुत प्रसिद्ध होता है. कहते हैं, माघ के धार्मिक अनुष्ठान के फलस्वरूप प्रतिष्ठानपुरी के नरेश पुरुरवा को अपनी कुरूपता से मुक्ति मिली थी तथा गौतम ऋषि द्वारा अभिशप्त इंद्र को भी माघ स्नान के महाम्त्य से ही श्राप से मुक्ति मिली थी.

यह सर्वाधिक महत्वपूर्ण धार्मिक एवं सांस्कृतिक मेला होता है. मकर संक्रांति के दिन माघ महीने में यह मेला आयोजित होता है. भारत के सभी प्रमुख तीर्थ स्थलों में इसे बहुत श्रद्धा भाव के साथ मनाया जाता है. धार्मिक गतिविधियों, सांस्कृतिक कार्यक्रमों का समायोजन इस मेले के दौरान देखने को मिलता है.

त्रिवेणी के संगम पर स्नान करने से व्यक्ति के अंदर स्थित पापों का नाश होता है, व्यक्ति को इस दिन मौन व्रत धारण करके ही स्नान करना चाहिए क्योंकि यह समय वाणी को नियंत्रित करने के लिए यह शुभ दिन होता है.

व्यक्ति को स्नान तथा जप आदि के पश्चात हवन, दान आदि करना चाहिए ऎसा करने से पापों का नाश होता है.  त्रिवेणी के संगम में माघ स्नान करने से सौ हजार राजसूय यज्ञ के बराबर फल की प्राप्ति होती है. माघ माह की अमावस्या तिथि और पूर्णिमा तिथि दोनों का ही महत्व माना गया है. यह दो तिथियाँ पर्व के समान मानी जाती हैं.

इन दिनों व्यक्ति को अपनी सामर्थ्य के अनुसार दान, पुण्य तथा जाप करने चाहिए. यदि किसी व्यक्ति की सामर्थ्य त्रिवेणी के संगम अथवा अन्य किसी तीर्थ स्थान पर जाने की नहीं है तब उसे अपने घर में ही प्रात: काल उठकर दैनिक कर्मों से निवृत होकर स्नान आदि करना चाहिए अथवा घर के समीप किसी भी नदी या नहर में स्नान कर सकते हैं. पुराणों के अनुसार इस दिन सभी नदियों का जल गंगाजल के समान हो जाता है.

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