सौभाग्य पंचमी | Saubhagya Panchami | Saubhagya Panchami 2024

सौभाग्य पंचमी जीवन में सुख और सौभाग्य की वृद्धि करती है इसलिए कार्तिक शुक्ल पक्ष कि पंचमी को सौभाग्य पंचमी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष 06 नवंबर 2024 के दिन सौभाग्य पंचमी पर्व संपन्न किया जाएगा. इस दिन भगवान शिव की पूजा सभी सांसारिक कामनाओं का पूरा कर परिवार में सुख-शांति लाती है तथा श्री गणेश पूजन समस्त विघ्नों का नाश कर काराबोर को समृद्ध और प्रगत्ति प्रदान करता है.

जीवन में बेहतर और सुखी जीवन का सूत्र सभी की चाह है. इसलिए हर व्यक्ति कार्यक्षेत्र के साथ पारिवारिक सुख-समृद्धि की कामना रखता है. अत: यह सौभाग्य पंचमी पर्व सुख-शांति और खुशहाल जीवन की ऐसी इच्छाओं को पूरा करने की भरपूर ऊर्जा प्राप्त करने का शुभ अवसर होता है.

इच्छाओं की पूर्ति का पर्व कार्तिक शुक्ल पंचमी, सौभाग्य पंचमी व लाभ पंचमी के रूप में भी मनाई जाती है. यह शुभ तिथि दीवाली पर्व का ही एक हिस्सा कही जाती है कुछ स्थानों पर दीपावली के दिन से नववर्ष की शुरुआत के साथ ही सौभाग्य पंचमी को व्यापार व कारोबार में तरक्की और विस्तार के लिए भी बहुत ही शुभ माना जाता है. सौभाग्य पंचमी पर शुभ व लाभ की कामना के साथ भगवान गणेश का स्मरण कर की जाती है.

सौभाग्य पंचमी पूजन | Saubhagya Panchami Pujan

सौभाग्य पंचमी पूजन के दिन प्रात: काल स्नान इत्यादि से निवृत होकर सूर्य को जलाभिषेक करना चाहिए. तत्पश्चात शुभ मुहूर्त में विग्रह में भगवान शिव व गणेश जी की प्रतिमाओं को स्थापित करना चाहिए. संभव हो सके तो श्री गणेश जी को सुपारी पर मौली लपेटकर चावल के अष्टदल पर विराजित करना चाहिए. भगवान गणेश जी को  चंदन, सिंदूर, अक्षत, फूल, दूर्वा से पूजना चाहिए तथा भगवान आशुतोष को भस्म, बिल्वपत्र, धतुरा, सफेद वस्त्र अर्पित कर पूजन करना चाहिए. गणेश को मोदक व शिव को दूध के सफेद पकवानों का भोग लगाना चाहिए.

निम्न मंत्रों से श्री गणेश व शिव का स्मरण व जाप करना चाहिए. गणेश मंत्र – लम्बोदरं महाकायं गजवक्त्रं चतुर्भुजम्। आवाहयाम्यहं देवं गणेशं सिद्धिदायकम्।।, शिव मंत्र – त्रिनेत्राय नमस्तुभ्यं उमादेहार्धधारिणे। त्रिशूलधारिणे तुभ्यं भूतानां पतये नम:।। इसके पश्चात  मंत्र स्मरण के बाद भगवान गणेश व शिव की धूप, दीप व आरती करनी चाहिए. द्वार के दोनों ओर स्वस्तिक का निर्माण करें तथा भगवान को अर्पित प्रसाद समस्त लोगों में वितरित करें व स्वयं भी ग्रहण करें.

सौभाग्य पंचमी महत्व | Significance of Saubhagya Panchami

सौभगय पंचमी के शुभ अवसर पर विशेष मंत्र जाप द्वारा भगवान श्री गणेश का आवाहन करते हैं जिससे शुभ फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है. कार्यक्षेत्र, नौकरी और कारोबार में समृद्धि की कामना की पूर्ति होती है. इस दिन गणेश के साथ भगवान शिव का स्मरण शुभफलदायी होता है. सुख-सौभाग्य और मंगल कामना को लेकर किया जाने वाला सौभगय पंचमी का व्रत सभी की इच्छाओं को पूर्ण करता है. इस दिन भगवान के दर्शन व पूजा कर व्रत कथा का श्रवण करते हैं.

सौभगय  पंचमी के अवसर पर मंदिरों में विषेष पूजा अर्चना की जाती है गणेश मंदिरों में विशेष धार्मिक अनुष्ठान संपन्न होते हैं. लाभ पंचमी श्रद्धापूर्वक मनाई जाती है. पंचमी के अवसर पर लोगों ने घरों में भी प्रथम आराध्य देव गजानंद गणपति का आह्वान किया जाता है. भगवान गणेश की विधिवत पूजा अर्चना की और घर परिवार में सुख समृद्धि की मंगल कामना की जाती है.  इस अवसर पर गणपति मंदिरों में भगवान गणेश की मनमोहक झांकी सजाई जाती है जिसे देखने के लिए दिनभर श्रद्धालुओं की भीड़ लगी रहती हैं. रात को भजन संध्या का आयोजन होता है.

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गोपाष्टमी पर्व | Gopashtami Festival | Gopashtami Festival 2024

09 नवम्बर 2024, के दिन गौपाष्टमी का उत्सव मनाया जाएगा. इस दिन प्रात: काल में गौओं को स्नान आदि कराया जाता है तथा इस दिन बछडे़ सहित गाय की पूजा करने का विधान है. प्रात:काल में ही धूप-दीप, गंध, पुष्प, अक्षत, रोली, गुड़, जलेबी, वस्त्र तथा जल से गाय का पूजन किया जाता है और आरती उतारी जाती है. इस दिन कई व्यक्ति ग्वालों को भी उपहार आदि देकर उनका भी पूजन करते हैं.

गोपाष्टमी के शुभ अवसर पर गौशाला में गोसंवर्धन हेतु गौ पूजन का आयोजन किया जाता है. गौमाता पूजन कार्यक्रम में सभी लोग परिवार सहित उपस्थित होकर पूजा अर्चना करते हैं. गोपाष्टमी की पूजा विधि पूर्वक विध्दान पंडितों द्वारा संपन्न की जाती है. बाद में सभी प्रसाद वितरण किया जाता है. सभी लोग गौ माता का पूजन कर उसके वैज्ञानिक तथा आध्यात्मिक महत्व को समझ गौ रक्षा व गौ संवर्धन का संकल्प करते हैं.

शास्त्रों में गोपाष्टमी पर्व पर गायों की विशेष पूजा करने का विधान निर्मित किया गया है. इसलिए कार्तिक माह की शुक्लपक्ष कि अष्टमी तिथि को प्रात:काल गौओं को स्नान कराकर उन्हें सुसज्जित करके गन्ध पुष्पादि से उनका पूजन करना चाहिए. इसके पश्चात यदि संभव हो तो गायों के साथ कुछ दूर तक चलना चाहिए कहते हैं ऎसा करने से प्रगत्ति के मार्ग प्रशस्त होते हैं. गायों को भोजन कराना चाहिए तथा उनकी चरण को मस्तक पर लगाना चाहिए. ऐसा करने से सौभाग्य की वृध्दि होती है.

गोपाष्टमी पौराणिक कथा | Ancient Story of Gopashtami

एक पौराणिक कथा अनुसार बालक कृष्ण ने माँ यशोदा से गायों की सेवा करनी की इच्छा व्यक्त की कृष्ण कहते हैं कि माँ मुझे गाय चराने की अनुमति मिलनी चाहिए उनके कहने पर शांडिल्य ऋषि द्वारा अच्छा समय देखकर उन्हें भी गाय चराने ले जाने दिया जो समय निकाला गया वह गोपाष्टमी का शुभ दिन था बलक कृष्ण ने गायों की पूजा करते हैं, प्रदक्षिणा करते हुए साष्टांग प्रणाम करते हैं.

गोपाष्टमी के अवसर पर गऊशालाओं व गाय पालकों के यहां जाकर गायों की पूजा अर्चना कि जाती है इसके लिए दीपक, गुड़, केला, लडडू, फूल माला, गंगाजल इत्यादि वस्तुओं से इनकी पूजा की जाती है. महिलाएं गऊओं से पहले श्री कृष्ण की पूजा कर गऊओं को तिलक लगाती हैं. गायों को हरा चारा, गुड़ इत्यादि खिलाया जाता है तथा सुख-समृद्धि की कामना कि जाती है.

गोपाष्टमी पर कृष्ण पूजन | Worshipping Lord Krishna On Gopashtami

गोपाष्टमी पर गऊओं की पूजा भगवान श्री कृष्ण को बेहद प्रिय है तथा इनमें सभी देवताओं का वास माना जाता है. कईं स्थानों पर गोपाष्टमी के अवसर पर गायों की उपस्थिति में प्रभातफेरी सत्संग संपन्न होते हैं.  गोपाष्टमी पर्व के उपलक्ष्य में जगह-जगह अन्नकूट भंडारे का आयोजन किया जाता है. भंडारे में श्रद्धालुओं ने अन्नकूट का प्रसाद ग्रहण करते हैं. वहीं गोपाष्टमी पर्व की पूर्व संध्या पर शहर के कई मंदिरों में सत्संग-भजन का आयोजन भी किया जाता है. मंदिर में गोपाष्टमी के उपलक्ष्य में रात्रि कीर्तन में श्रद्धालुओं ने भक्ति रचनाओं का रसपान करते हैं. इस मौके पर प्रवचन एवं भजन संध्या में उपस्थित श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है.गो सेवा से जीवन धन्य हो जाता है तथा मनुष्य सदैव सुखी रहता है.

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कार्तिक मास में तुलसी पूजा | Tulsi Puja in Kartik Month | Tulsi Pooja 2024

प्रत्येक मास की अपनी एक मुख्य विशिष्टता होती है, इसी तरह कार्तिक माह में तुलसी पूजा का महात्मय पुराणों में वर्णित किया गया है. इसी के द्वारा इस बात को समझ जा सकता है कि इस माह में तुलसी पूजन पवित्रता व शुद्धता का प्रमाण बनता है. शास्त्रों में कार्तिक मास को श्रेष्ठ मास माना गया है, स्कंद पुराण में इसकी महिमा का गायन करते हुए कहा गया है मासानांकार्तिक: श्रेष्ठोदेवानांमधुसूदन:। तीर्थ नारायणाख्यंहि त्रितयंदुर्लभंकलौ। अर्थात मासों में कार्तिक, देवों में भगवान विष्णु और तीर्थो में बदरिकाश्रम श्रेष्ठ स्थान पाता है.

तुलसी आस्था एवं श्रद्धा की प्रतीक है यह औषधीय गुणों से युक्त है  तुलसी में जल अर्पित करना एवं सायंकाल तुलसी के नीचे दीप जलाना अत्यंत श्रेष्ठ माना जाता है. तुलसी में साक्षात लक्ष्मी का निवास माना गया है  अत: कार्तिक मास में तुलसी के समीप दीपक जलाने से व्यक्ति को लक्ष्मी की प्राप्ती होती है,

तुलसी पूजन महत्व | Importance of Tulsi Worship

कार्तिक मास के समान कोई भी माह नहीं है पुराणों में वर्णित है कि यह माह धर्म, अर्थ, काम एवं मोक्ष को देने वाला है और इस समय पर तुलसी पूजा विशेष फलदायी होती है. कार्तिक मास में तुलसी पूजा करने से पाप नष्ट होते हैं. मान्यता है कि इस मास में जो व्यक्ति  तुलसी के समक्ष दीपक जलाता है उसे सर्व सुख प्राप्त होते हैं. इस मास में भगवान विष्णु एवं तुलसी के निकट दीपक जलाने से अमिट फल प्राप्त होते हैं. इस मास में की गई भगवान विष्णु एवं तुलसी उपासना असीमित फलदायीहोती है.

तुलसी के पौधे में चमत्कारिक गुण मौजूद होते हैं. प्रत्येक आध्यात्मिक कार्य में तुलसी की उपस्थिति बनी रहती है. सारे माहों में कार्तिक माह में तुलसी पूजन विशेष रुप से शुभ माना गया है. वैष्णव विधि-विधानों में तुलसी विवाह तथा तुलसी पूजन एक मुख्य त्यौहार माना गया है. कार्तिक माह में सुबह स्नान आदि से निवृत होकर तांबे के बर्तन में जल भरकर तुलसी के पौधे को जल दिया जाता है. संध्या समय में तुलसी के चरणों में दीपक जलाया जाता है. कार्तिक के पूरे माह यह क्रम चलता है. इस माह की पूर्णिमा तिथि को दीपदान की पूर्णाहुति होती है.

तुलसी पौराणिक महत्व | Tulsi Puranic Importance

ग्रंथों में कार्तिक माह को तुलसी की जन्म तिथि समय माना गया है. इसलिए इस माह में तुलसी पूजन का बडा़ ही महत्व होता है. तुलसी के जन्म के विषय में अनेक पौराणिक कथाएं मिलती हैं. इसमें जालंधर राक्षस तथा उसकी पत्नी वृंदा की कथा प्रमुख मानी गई है. पद्मपुराण में जालंधर तथा वृंदा की कथा दी गई है. बाद में वृंदा तुलसी रुप में जन्म लेती है. भगवान विष्णु की प्रिय सेविका बनती है.

अपने सतीत्व तथा पतिव्रत धर्म के कारण ही वृंदा “विष्णुप्रिया” बनती है. भगवान विष्णु भी उसकी वंदना करते हैं. ऎसा माना जाता है कि वृंदा के नाम पर ही श्रीकृष्ण भगवान की लीलाभूमि का नाम “वृंदावन” पडा़ है. कई मतानुसार आदिकाल में वृंदावन में तुलसी अर्थात वृंदा के वन थे. तुलसी के सभी नामों में वृंदा तथा विष्णुप्रिया नाम अधिक विशेष माने जाते हैं. शालिग्राम रुप में भगवान विष्णु तुलसी जी के चरणों में रहते हैं. उनके मस्तक पर तुलसीदल चढ़ता है.

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दिवाली पौराणिक महत्व | Mythological Significance of Diwali | Importance of Diwali Festival

तमसो मा ज्योतिर्गमय का संदेश देने वाली दिवाली हर्षोल्लास के साथ लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश, कुबेर इत्यादि की पूजा की जाती है. दीवाली का त्योहार न केवल भारत में, बल्कि विदेशों में भी मनाया जाता है. माना जाता है कि इस दिन भगवान राम चौदह वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या आते हैं. इस खुशी में अयोध्या वासियों ने चारों तरफ दीप जलाकर खुशी मनाई थीं.

पुराणों में उल्लेख है कि दीपावली की अर्ध रात्रि में लक्ष्मी जी घरों में विचरण करती हैं इसीलिए लक्ष्मी के स्वागत के लिए घरों को सभी प्रकार से साफ, शुद्ध और सुंदर रीति से सजाया जाता है. माना जाता है कि दीपावली की अमावस्या से पितरों की रात प्रारंभ होती है. इसलिए इस दिन दीप जलाने की परंपरा है. कुबेर यंत्र, कुबेर भगवान का आशुफलकारी हैं. इसकी उपासना से मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं, कुबेर पूजन नवरात्र, धनतेरस, दीपावली या अन्य किसी शुभ-मुहूर्त्त में किया जा सकता है.

दीवाली की शाम को लक्ष्मी जी के पूजन की तैयारी शाम से शुरू हो जाती है. शुभ मुहूर्त में लक्ष्मी गणेश की मूर्तियां स्थापित की जाती हैं. गणेश जी बाईं तरफ विराजमान होते हैं. लक्ष्मी की पूजा पूर्व दिशा में मुंह करके विधि-विधान से की जाती हैं. घी के दीये जलाकर श्री सूक्त, लक्ष्मी सूक्त और पुरुष सूक्त का पाठ किया जाता है।. घर के हर कोने में दीपक रखे जाते हैं.

मिठाई आदि का भोग लगाकर पूरा परिवार अपने से बड़ों का आशीर्वाद लेता है. दीवाली की रात में चौपड़ खेलते हैं. दीवाली के दिन तांत्रिक अपने मंत्रों की सिद्धि के लिए विशेष पूजा करते हैं. दीपावली के दिन बेसन का उबटन लगाकर सुबह जल्दी स्नान करने का रिवाज है. लोग नारियल की जटाओं के ढेर जलाकर प्रकाश करते हैं ताकि उनके पुरखे उस उजाले में स्वर्ग की ओर जा सकें.

दीवाली के दिन रात को आतिशबाजी की जाती है, दीवाली के दिन जैन धर्म के भगवान महावीर का निर्वाण दिवस भी मनाया जाता है, इस दिन कुबेर जयंती का भी आयोजन किया जाता है. यमराज को प्रसन्न करने के लिए आज के दिन कुछ लोग व्रत रखते हैं और दीपदान करते हैं. दीपदान धनतेरस से अमावस्या तक करना माना गया है. आज के दिन श्रीहरि की पूजा की जाती है. नरक चतुर्दशी को ही छोटी दीवाली मनाई जाती है.

दीपदान महत्व | Importance of Deep Daan

हिंदुओं के महत्वपूर्ण त्यौहार दीवाली का आरंभ धन त्रयोदशी के शुभ दिन से हो जाता है. इस समय हिंदुओं के पंच दिवसीय उत्सव प्रारंभ हो जाते हैं जो क्रमश: धनतेरस से शुरू हो कर नरक चतुर्दशी या छोटी दीपावली फिर दीवाली, गोवर्धन और भाईदूज तक उत्साह के साथ मनाए जाते हैं. पौराणिक मान्यताओं अनुसार धनतेरस के दिन ही भगवान धन्वंतरि जी का प्रकाट्य हुआ था, दिन संध्या समय घर के बाहर मुख्य द्वार पर और आंगन में दीप जलाए जाते हैं.

यमदेव की पूजा करने तथा उनके नाम से दीया घर की देहरी पर रखने की एक अन्य कथा है जिसके अनुसार प्राचीन समय में हेम नामक राजा थे, राजा हेम को संतान रूप में पुत्र रत्न की प्राप्ति होती है. वह अपने पुत्र की कुंडली बनवाते हैं तब उन्हें ज्योतिषियों से ज्ञात होता है कि जिस दिन उनके पुत्र का विवाह होगा उसके ठीक चार दिन के बाद उनका पुत्र मृत्यु को प्राप्त होगा. इस बात को सुन राजा दुख से व्याकुल हो जाते हैं.

कुछ समय पश्चात जब राजा अपने पुत्र का विवाह करने जाता है तो राजा की पुत्रवधू को इस बात का पता चलता है और वह निश्चय करती है कि वह पति को अकाल मृत्यु के प्रकोप से अवश्य बचाएगी.  राजकुमारी विवाह के चौथे दिन पति के कमरे के बाहर गहनों एवं सोने-चांदी के सिक्कों का ढेर बनाकर लगा देती है तथा स्वयं रात भर अपने पति को जगाए रखने के लिए उन्हें कहानी सुनाने लगती है.

मध्य रात्रि जब यम रूपी सांप उसके पति को डसने के लिए आता है तो वह उन स्वर्ण चांदी के आभूषणों के पहाड़ को पार नहीं कर पाता तथा वहां बैठकर राजकुमारी का गाना सुनने लगाता है. ऐसे सारी रात बीत जाती है और सांप प्रात: काल समय उसके पति के प्राण लिए बिना वापस चला जाता है. इस प्रकार राजकुमारी अपने पति के प्राणों की रक्षा करती है मान्यता है की तभी से लोग घर की सुख-समृद्धि के लिए धनतेरस के दिन अपने घर के बाहर यम के नाम का दीया निकालते हैं और यम से प्रार्थना करते हैं कि वह उन्हें अकाल मृत्यु के भय से मुक्त करें.

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भाई दूज 2024 | Bhai Dooj 2024 | Yama Dwitiya | Bhai Dooj Festival

हिन्दू पंचांग अनुसार कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज एवं यम द्वितीया के रूप में मनाते हैं.  भाई दूज का यह त्यौहार विशेष रूप से भाई और बहन के मध्य स्थापित प्रगाढ़ संबंधों को दर्शाता है. राखी के बाद आने वाला यह पर दूसरा पवित्र बंधन सचमुच में केवल भाई और बहन के प्रेम का प्रतीक है.

पौराणिक महत्व द्वारा इसका स्वरूप और भी अधिक प्रमाणिक होता है. यम देव के लिए उनकी बहन यमुना द्वारा प्रकट किए गए प्रेम भाव एवं सम्मान का प्रतीक यह भाई दूज आज तक हमारे हृदय में बसा हुआ है. जिसे पूजकर समस्त बहनें अपने भाईयों के सुखद जीवन की कामना करती हैं तथा अपने स्नेह को उनके समक्ष प्रस्तुत कर पातीं है.

03 नवंबर, 2024 कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया तिथि के लिये भाई दूज का पर्व बडी धूमधाम से मनाया जायेगा. भाई दूज को यम द्वितीया के नाम से भी जाना जाता है. भाई दूज पर्व भाईयों के प्रति बहनों के श्रद्धा व विश्वास का पर्व है. इस पर्व को बहनें अपने भाईयों के माथे पर तिलक लगा कर मनाती है. और भगवान से अपने भाइय़ों की लम्बी आयु की कामना करती है.

भैया दूज – यम द्वितीया | Bhaiya Dooj – Yama Dwitiya

हिन्दू समाज में भाई -बहन के स्नेह व सौहार्द का प्रतीक यह पर्व दीपावली दो दिन बाद मनाया जाता है. यह दिन क्योकि यम द्वितीया भी कहलाता है. इसलिये इस पर्व पर यम देव की पूजा भी की जाती है. एक मान्यता के अनुसार इस दिन जो यम देव की उपासना करता है, उसे असमय मृत्यु का भय नहीं रहता है.

हिन्दूओं के बाकी त्यौहारों कि तरह यह त्यौहार भी परम्पराओं से जुडा हुआ है. इस दिन बहनें अपने भाई को तिलक लगाकर, उपहार देकर उसकी लम्बी आयु की कामना करती हे. बदले में भाई अपनी बहन कि रक्षा का वचज देता है. इस दिन भाई का अपनी बहन के घर भोजन करना विशेष रुप से शुभ होता है.

भैया दूज का पौराणिक महत्व | Historical Significance of Bhaiya Dooj

भाई दूज के संदर्भ में एक कथा प्रचलित है. कथा अनुसार जब यमपुरी के स्वामी यमराज को अपनी बहन यमुना से मिले बहुत समय व्यतीत हो जाता हैं तब वह बहन से मिलने की इच्छा से उसके पास आते हैं. यमुना जी  भाई यम को अचानक इतने दिनों के उपरांत देखती हैं तो बहुत प्रसन्न होती हैं तथा उनका खूब आदर सत्कार करती हैं. बहन यमुना के इस स्नेह भरे मिलन से तथा उसके द्वारा किए गए सेवा भाव से प्रसन्न हो यमराज उन्हें वर मांगने को कहते हैं. यमुना जी उनसे कहती हैं कि वह सभी प्राणियों को अपने भय से मुक्त कर दें.

यम उनके इस कथन को सुन कर सोच में पड़ जाते हैं और कहते हैं कि ऐसा होना तो असंभव है. यदि सभी मेरे भय से मुक्त हो मृत्यु से वंचित हो गए तो पृथ्वी इन सभी को कैसे सह सकेगी. सृष्टि संकट से घिर जाएगी. अत: तुम कुछ और वर मांग लो इस पर यमुना उन्हें कहती हैं कि आप मुझे यह आशीर्वाद प्रदान करें कि इस शुभ दिन को जो भी भाई-बहन यमुना में स्नान कर इस पर्व को मनाएंगे, वह अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो जाएंगे.

इस पर प्रसन्न होकर यमराज ने यमुना को वरदान दिया कि जो व्यक्ति इस दिन यमुना में स्नान करके भाई-बहन के इस पवित्र पर्व को मनाएगा, वह अकाल-मृत्यु तथा मेरे भय से मुक्त हो जाएगा. तभी से इस दिन को यम द्वितीया और भाई दूज के रूप में मनाया जाने लगा. जो भी कोई मां यमुना के जल मे स्नान करता है वह आकाल म्रत्यु के भय से मुक्त होता है और मोक्ष को प्राप्त करता है. अत: इस दिन यमुना तट पर यम की पूजा करने का विधान भी है.

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श्वेतार्क गणेश साधना | Shwetark Ganesha Sadhana

हिन्दू धर्म में भगवान गणेश को अनेक रूप में पूजा जाता है इनमें से ही एक श्वेतार्क गणपति भी हैं. धार्मिक लोक मान्यताओं में धन, सुख-सौभाग्य समृद्धि ऐश्वर्य और प्रसन्नता के लिए श्वेतार्क के गणेश की मूर्ति शुभ फल देने वाली मानी जाती है. श्वेतार्क के गणेश आक के पौधे की जड़ में बनी प्राकृतिक बनावट रुप में प्राप्त होते हैं. इस पौधे की एक दुर्लभ जाति सफेद श्वेतार्क होती है जिसमें सफेद पत्ते और फूल पाए जाते हैं  इसी सफेद श्वेतरक की जड़ की बाहरी परत को कुछ दिनों तक पानी में भिगोने के बाद निकाला जाता है तब इस जड़ में भगवान गणेश की मूरत दिखाई देती है.

इसकी जड़ में सूंड जैसा आकार तो अक्सर देखा जा सकता है. भगवान श्री गणेश जी को ऋद्धि-सिद्धि व बुद्धि के दाता माना जाता है. इसी प्रकार श्वेतार्क नामक जड़ श्री गणेश जी का रुप मानी जाती है. श्वेतार्क सौभाग्यदायक व प्रसिद्धि प्रदान करने वाली मानी जाती है. श्वेतार्क की जड़ को तंत्र प्रयोग एवं सुख-समृद्धि हेतु बहुत उपयोगी मानी जाती है. गुरू पुष्य नक्षत्र में इस जड़ का उपयोग बहुत ही शुभ होता है. यह पौधा भगवान गणेश के स्वरुप होने के कारण धार्मिक आस्था को ओर गहरा करता है.

श्वेतार्क गणेश पूजन | Shwetark Ganesha Pujan

श्वेतार्क गणपति की प्रतिमा को पूर्व दिशा की तरफ ही स्थापित करना चाहिए तथा श्वेत आक की जड़ की माला से यह गणेश मंत्रों का जप करने से सर्वकामना सिद्ध होती है. श्वेतार्क गणेश पूजन में लाल वस्त्र, लाल आसान, लाल पुष्प, लाल चंदन, मूंगा अथवा रूद्राक्ष की माला का प्रयोग करनी चाहिए.  नेवैद्य में लड्डू अर्पित करने चाहिए. “ऊँ वक्रतुण्डाय हुम्” मंत्र का जप करते हुए श्रद्धा व भक्ति भाव के साथ श्वेतार्क की पूजा कि जानी चाहिए पूजा के प्रभावस्वरुप प्रत्यक्ष रूप से इसके शुभ फलों की प्राप्ति संभव हो पाती है.

तन्त्र शास्त्र में भी श्वेतार्क गणपति की पूजा का विशेष विधान बताया गया है. तन्त्र शास्त्र  अनुसार घर में इस प्रतिमा को स्थापित करने से ऋद्धि-सिद्धि  कि प्राप्ति होती है. इस प्रतिमा का नित्य पूजन करने से भक्त को धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा लक्ष्मी जी का निवास होता है. इसके पूजन द्वारा शत्रु भय समाप्त हो जाता है. श्वेतार्क प्रतिमा के सामने नित्य गणपति जी का मन्त्र जाप करने से गणश जी  का आशिर्वाद प्राप्त होता है तथा उनकी कृपा बनी रहती है.

श्वेतार्क गणेश महत्व | Significance of Shwetark Ganesha

दीपावली के दिन लक्ष्मी पूजन के साथ ही श्वेतार्क गणेश जी का पूजन व अथर्वशिर्ष का पाठ करने से बंधन दूर होते हैं और कार्यों में आई रुकावटें स्वत: ही दूर हो जाती हैं. धन की प्राप्ति हेतु श्वेतरक की प्रतिमा को दीपावली की रात्रि में षडोषोपचार पूजन करना चाहिए. श्वेतार्क गणेश साधना अनेकों प्रकार की जटिलतम साधनाओं में सर्वाधिक सरल एवं सुरक्षित साधना है .

श्वेतार्क गणपति समस्त प्रकार के विघ्नों के नाश के लिए सर्वपूजनीय है. श्वेतार्क गणपति की विधिवत स्थापना और पूजन से समस्त कार्य साधानाएं आदि शीघ्र निर्विघ्न संपन्न होते हैं. श्वेतार्क-गणेश के सम्मुख मन्त्र का प्रतिदिन 10 माला ‘जप’ करना चाहिए तथा “ॐ नमो हस्ति-मुखाय लम्बोदराय उच्छिष्ट-महात्मने आं क्रों ह्रीं क्लीं ह्रीं हुं घे घे उच्छिष्टाय स्वाहा” साधना से सभी इष्ट-कार्य सिद्ध होते हैं.

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गोवत्स द्वादशी | Govatsa Dwadashi | Govatsa Dwadashi 2024

गोवत्स द्वादशी व्रत कार्तिक माह की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाया जाता है. इस दिन गायों तथा उनके बछडो़ की सेवा की जाती है. सुबह नित्यकर्म से निवृत होकर गाय तथा बछडे़ का पूजन किया जाता है. इस वर्ष यह पर्व 28 अक्टूबर, 2024 को मनाया जाएगा. इस व्रत में प्रदोषव्यापिनी तिथि को ग्रहण किया जाता है. यदि घर के आसपास भी गाय और बछडा़ नहीं मिले तब गीली मिट्टी से गाय तथा बछडे़ को बनाए और उनकी पूजा कि जाती है. इस व्रत में गाय के दूध से बनी खाद्य वस्तुओं का उपयोग वर्जित होता है.

गौ भगवान श्रीकृष्ण को प्रिय हैं. गौ पृथ्वीका प्रतीक है, गौमाता में सभी देवताओंके तत्त्व निहित होते हैं.  इसीलिए कहा जाता है कि, गौ में समस्त देवी-देवता वास करते हैं. इनसे प्राप्त होनेवाले पदार्थों जैसे दूध, घी में सभी देवताओंके तत्त्व संग्रहित रहते हैं जिन्हें पूजन व हवन इत्यादि में उपयोग किया जाता है. पंचगव्य मिश्रण पूजाविधिमें शुद्धिकरण हेतु महत्त्वपूर्ण माना गया है. इस दिन ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए पृथ्वी पर शयन करना चाहिए. शुद्ध मन से प्रभु विष्णु व भगवान शिव की पूजा करनी चाहिए. इस व्रत के प्रभाव से साधक को सभी सुखों की प्राप्ती होती है.

गोवत्स द्वादशी पूजन | Govatsa Dwadashi Pujan

गोवत्स द्वादशी के दिन प्रात:काल पवित्र नई या सरोवर अथवा घर पर ही विधिपूर्वक स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र धारण किए जाते हैं. व्रत का संकल्प किया जाता है. इस दिन व्रत में एक समय ही भोजन किया जाने का विधान होता है. इस दिन गाय को बछडे़ सहित स्नान कराते हैं. फिर उन दोनों को नया वस्त्र ओढा़या जाता है. दोनों के गले में फूलों की माला पहनाते हैं. दोनों के माथे पर चंदन का तिलक करते हैं.तांबे के पात्र में सुगंध, अक्षत, तिल, जल तथा फूलों को मिलाकर दिए गए मंत्र का उच्चारण करते हुए गौ का प्रक्षालन करना चाहिए. मंत्र है –

क्षीरोदार्णवसम्भूते सुरासुरनमस्कृते|
सर्वदेवमये मातर्गृहाणार्घ्य नमो नम:||

इस विधि को करने के बाद गाय को उड़द से बने भोज्य पदार्थ खिलाने चाहिए और निम्न मंत्र का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करनी चाहिए. मंत्र है –

सुरभि त्वं जगन्मातर्देवी विष्णुपदे स्थिता |
सर्वदेवमये ग्रासं मया दत्तमिमं ग्रस ||
तत: सर्वमये देवि सर्वदेवैरलड्कृते |
मातर्ममाभिलाषितं सफलं कुरु नन्दिनी ||

पूजन करने के बाद गोवत्स की कथा सुनी जाती है. सारा दिन व्रत रखकर रात्रि में अपने इष्टदेव तथा गौमाता की आरती की जाती है. उसके बाद भोजन ग्रहण किया जाता है.

गोवत्स द्वादशी महत्व | Significance of Govatsa Dwadashi

गोवत्स द्वादशी के विषय में कई पौराणिक आख्यान मौजूद है एक कथा अनुसार राजा उत्तानपाद ने पृथ्वी पर इस व्रत को आरंभ किया उनकी पत्नी सुनीति ने इस व्रत को किया और उन्हें इस व्रत के प्रभव से बालक ध्रुव की प्राप्ति हुई. अत: निसंतान दम्पतियों को इस व्रत को अवश्य करना चाहिए. संतान सुख की कामना रखने वालों के लिए यह व्रत शुभ फल दायक होता है. गोवत्स द्वादशी के दिन किए जाने वाले कर्मों में सात्त्विक गुणों का होना अनिवार्य है. इस दिन गायमाता के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु गौका पूजन किया जाता है. गौ पूजन करने वाले भक्त श्री विष्णु का आशिर्वाद प्राप्त होता है.

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स्कंद षष्ठी | Skanda Shashti Vrat 2024 | Skanda Sashti Fast

आषाढ़ शुक्ल पक्ष और कार्तिक मास कृष्णपक्ष की षष्ठी का उल्लेख स्कन्द-षष्ठी के नाम से किया जाता है. पुराणों के अनुसार षष्ठी तिथि को कार्तिकेय भगवान का जन्म हुआ था इसलिए इस दिन स्कन्द भगवान की पूजा का विशेष महत्व है, पंचमी से युक्त षष्ठी तिथि को व्रत के श्रेष्ठ माना गया है व्रती को पंचमी से ही उपवास करना आरंभ करना चाहिए और षष्ठी को भी उपवास रखते हुए स्कन्द भगवान की पूजा का विधान है.

इस व्रत की प्राचीनता एवं प्रामाणिकता स्वयं परिलक्षित होती है. इस कारण यह व्रत श्रद्धाभाव से मनाया जाने वाले पर्व का रूप धारण करता है. स्कंद षष्ठी के संबंध में मान्यता है कि राजा शर्याति और भार्गव ऋषि च्यवन का भी ऐतिहासिक कथानक जुड़ा है कहते हैं कि स्कंद षष्ठी की उपासना से च्यवन ऋषि को आँखों की ज्योति प्राप्त हुई.

ब्रह्मवैवर्तपुराण में बताया गया है कि स्कंद षष्ठी की कृपा से प्रियव्रत का मृत शिशु जीवित हो जाता है. स्कन्द षष्ठी पूजा की पौरांणिक परम्परा जुड़ी है, भगवान शिव के तेज से उत्पन्न बालक स्कन्द की छह कृतिकाओं ने स्तनपान करा रक्षा की थी इनके छह मुख हैं और उन्हें कार्तिकेय नाम से पुकारा जाने लगा. पुराण व उपनिषद में इनकी महिमा का उल्लेख मिलता है.

स्कंद षष्ठी पूजन | Skanda Shashti Worship

स्कंद षष्ठी इस अवसर पर शंकर-पार्वती को पूजा जाता है. मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना की जाती है.इसमें स्कंद देव स्थापना करके पूजा की जाती है तथा अखंड दीपक जलाए जाते हैं. भक्तों द्वारा स्कंद षष्ठी महात्म्य का नित्य पाठ किया करते हैं. भगवान को स्नान, पूजा, नए वस्त्र पहनाए जाते हैं.  इस दिन भगवान को भोग लगाते हैं, विशेष कार्य की सिद्धि के लिए इस समय कि गई पूजा-अर्चना विशेष फलदायी होती है. इस में साधक तंत्र साधना भी करते हैं, इस में मांस, शराब, प्याज, लहसुन का त्याग करना चाहिए और ब्रह्मचार्य का संयम रखना आवश्यक होता है.

स्कंद कथा | Skanda Story

कार्तिकेय की जन्म कथा के विषय में पुराणों में ज्ञात होता है कि जब दैत्यों का अत्याचार ओर आतंक फैल जाता है और देवताओं को पराजय का समाना करना पड़ता है जिस कारण सभी देवता भगवान ब्रह्मा जी के पास पहुंचते हैं और अपनी रक्षार्थ उनसे प्रार्थना करते हैं ब्रह्मा उनके दुख का जानकर उनसे कहते हैं कि तारक का अंत भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है परंतु सती के अंत के पश्चात भगवान शिव गहन साधना में लीन हुए रहते हैं.

इंद्र और अन्य देव भगवान शिव के पास जाते हैं, तब भगवान शिव उनकी पुकार सुनकर पार्वती से विवाह करते हैं. शुभ घड़ी और शुभ मुहूर्त में शिव जी और पार्वती का विवाह हो जाता है. इस प्रकार कार्तिकेय का जन्म होता है और कार्तिकेय तारकासुर का वध करके देवों को उनका स्थान प्रदान करते हैं.

स्कंद षष्ठी महत्व | Skanda Shashti Importance

स्कंद शक्ति के अधिदेव हैं, देवताओं ने इन्हें अपना सेनापतित्व प्रदान किया मयूरा पर आसीन देवसेनापति कुमार कार्तिक की आराधना दक्षिण भारत मे सबसे ज्यादा होती है, यहां पर यह मुरुगन नाम से विख्यात हैं . प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन सभी कुछ इनकी कृपा से सम्पन्न  होते हैं.  स्कन्द पुराण के मूल उपदेष्टा कुमार कार्तिकेय ही हैं तथा यह पुराण सभी पुराणों में सबसे विशाल है.

स्कंद भगवान हिंदु धर्म के प्रमुख देवों मे से एक हैं, स्कंद को कार्तिकेय और मुरुगन नामों से भी पुकारा जाता है. दक्षिण भारत में पूजे जाने वाले प्रमुख देवताओं में से एक भगवान कार्तिकेय शिव पार्वती के पुत्र हैं, कार्तिकेय भगवान  के अधिकतर भक्त तमिल हिन्दू हैं. इनकी पूजा मुख्यत: भारत के दक्षिणी राज्यों और विशेषकर तमिलनाडु में होती है. भगवान स्कंद के सबसे प्रसिद्ध मंदिर तमिलनाडू में ही स्थित हैं.

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बैकुण्ठ चतुर्दशी 2024 | Vaikunth Chaturdashi | Vaikunth Chaudas | Vaikunth Chaturdashi Vrat

कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को बैकुण्ठ चतुर्दशी के नाम से जाना जाता है. इस वर्ष यह व्रत, 14 नवम्बर 2024 को रखा जाएगा. इस शुभ दिन के उपलक्ष्य में भगवान शिव तथा विष्णु की पूजा की जाती है. इसके साथ ही व्रत का पारण किया जाता है. यह बैकुण्ठ चौदस के नाम से भी जानी जाती है. इस दिन श्रद्धालुजन व्रत रखते हैं. यह व्रत कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी के दिन मनाया जाता है. इस चतुर्दशी के दिन यह व्रत भगवान शिव तथा विष्णु जी की पूजा करके मनाया जाता है.

वैकुण्ठ चतुर्दशी की पूजा | Baikunth Chaturdashi Puja

बैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु की विधिवत रुप से पूजा – अर्चना कि जाती है. धूप-दीप, चन्दन तथा पुष्पों से भगवान का पूजन तथा आरती कि जाती है. भगवत गीता व श्री सुक्त का पाठ किया जाता है तथा भगवान विष्णु की कमल पुष्पों के साथ पूजा करते हैं. श्री विष्णु का ध्यान व कथा श्रवण करने से समस्त पापों का नाश होता है. विष्णु जी के मंत्र जाप तथा स्तोत्र पाठ करने से बैकुण्ठ धाम की प्राप्ति होती है.

वैकुण्ठ चतुर्दशी पौराणिक महत्व | Methodological Importance of Baikunth Chaturdashi

एक बार नारद जी भगवान श्री विष्णु से सरल भक्ति कर मुक्ति पा सकने का मार्ग पूछते हैं. नारद जी के कथन सुनकर श्री विष्णु जी कहते हैं कि हे नारद, कार्तिक शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को जो नर-नारी व्रत का पालन करते हैं और श्रद्धा – भक्ति से मेरी पूजा करते हैं उनके लिए स्वर्ग के द्वार खुल जाते हैं  अत: भगवान श्री हरि कार्तिक चतुर्दशी को स्वर्ग के द्वार खुला रखने का आदेश देते हैं. भगवान विष्णु कहते हैं कि इस दिन जो भी भक्त मेरा पूजन करता है वह बैकुण्ठ धाम को प्राप्त करता है.

बैकुण्ठ चतुर्दशी व्रत का विशेष महात्म्य है इस दिन स्नानादि से निवृत्त होकर व्रत करना चाहिए शास्त्रों की मान्यता है कि जो एक हजार कमल पुष्पों से भगवान श्री हरि विष्णु का पूजन कर शिव की पूजा अर्चना करते हैं, वह भव-बंधनों से मुक्त होकर बैकुण्ठ धाम पाते हैं. मान्यता है कि कमल से पूजन करने पर भगवान को समग्र आनंद प्राप्त होता है तथा भक्त को शुभ फलों की प्राप्ति होती है. बैकुण्ठ चतुर्दशी को व्रत कर तारों की छांव में सरोवर, नदी इत्यादि के तट पर 14 दीपक जलाने चाहिए. बैकुण्ठाधिपति भगवान विष्णु को स्नान कराकर विधि विधान से भगवान श्री विष्णु पूजा अर्चना करनी चाहिए तथा उन्हें तुलसी पत्ते अर्पित करते हुए भोग लगाना चाहिए.

बैकुण्ठ चौदस का महत्व | Importance of Baikunth Chaturdashi

कार्तिक शुक्ल चतुर्दशी भगवान विष्णु तथा शिव जी के “ऎक्य” का प्रतीक है. प्राचीन मतानुसार एक बार विष्णु जी काशी में शिव भगवान को एक हजार स्वर्ण कमल के पुष्प चढा़ने का संकल्प करते हैं. जब अनुष्ठान का समय आता है, तब शिव भगवान, विष्णु जी की परीक्षा लेने के लिए एक स्वर्ण पुष्प कम कर देते हैं. पुष्प कम होने पर विष्णु जी अपने “कमल नयन” नाम और “पुण्डरी काक्ष” नाम को स्मरण करके अपना एक नेत्र चढा़ने को तैयार होते हैं.

भगवान शिव उनकी यह भक्ति देखकर प्रकट होते हैं. वह भगवान शिव का हाथ पकड़ लेते हैं और कहते हैं कि तुम्हारे स्वरुप वाली कार्तिक मास की इस शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी “बैकुण्ठ चौदस” के नाम से जानी जाएगी.

भगवान शिव, इसी बैकुण्ठ चतुर्दशी को करोडो़ सूर्यों की कांति के समान वाला सुदर्शन चक्र, विष्णु जी को प्रदान करते हैं. इस दिन स्वर्ग के द्वार खुले रहते हैं.

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राशि अनुसार करें दीवाली पूजन | Perform Diwali Puja According To Your Sun Sign

दीवाली के दिन राशि के अनुसार पूजन करने से सुख व समृद्धि की प्राप्ति होती है दीवाली का मुहूर्त्त शुभ व अबूझ मुहूर्तों में आता है अत: इस दिन किसी राशि के अनुरूप साधना व मंत्र जाप करने से शीघ्र सफलता प्राप्त होती है व शुभ फलों की प्राप्ति होती है.

मेष राशि | Perform Diwali puja according to Aries Sign

मेष राशि के जातकों को दीवाली रात्रि समय लाल चंदन व केसर के साथ देवी का पूजन करना चाहिए. श्वेतार्क गणपति को चोला चढा़कर उनका पंचोपचार से पूजन करके उन्हें अपनी तिजोरी अथवा गल्ले के स्थान पर रखते हैं तो समृद्धि में वृद्धि होती है और आकस्मिक धनहानि के योग भी समाप्त होते हैं.

वृषभ राशि | Perform Diwali puja according to Taurus Sign

दीवाली की रात्रि में गाय के घी से निर्मित ज्योत जलाएं तथा लक्ष्मी पूजन के समय कमलगट्टे की माला लक्ष्मी जी को अर्पित करें ऎसा करने से धन लाभ के योग बनेंगे व सुख की प्राप्ति होगी.

मिथुन राशि | Perform Diwali puja according to Gemini Sign

दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजन के समय जटायुक्त नारियल का उपयोग करें व माता को यह नारियल अर्पित करें ऎसा करने से मनोकामना पूर्ण होती है.

कर्क राशि | Perform Diwali puja according to Cancer Sign

कर्क राशि वालों को आर्थिक क्षेत्र में सफलता पाने के लिए दीवाली पूजन में पीले चंदन और केसर का उपयोग करना चाहिए. साथ ही भगवान विष्णु को त्रिकोण आकृति में बना पीले रंग का झंडा भेंट करें. इससे भाग्य में वृद्धि होगी व आपको कर्ज से मुक्ति प्राप्त होगी.

सिंह राशि | Perform Diwali puja according to Leo Sign

दीवाली के दिन रात्रि समय घर के मुख्य द्वार पर घी के दीपक चलाएं. इससे आपकी आर्थिक स्थिति में सुधार होगा व समृद्धि प्राप्त होगी.

कन्या राशि | Perform Diwali puja according to Virgo Sign

दिवाली के दिन कन्या राशि वालों को पूजा के समय श्री यंत्र का पूजन करना चाहिए व लक्ष्मी सहस्त्रनाम का पाठ करना चाहिए.

तुला राशि | Perform Diwali puja according to Libra Sign

तुला राशि के लिए मां लक्ष्मी की साधना विशेष फल देने वाली है. माँ लक्ष्मी के मंत्रो का जप करें साधक को समस्त नवैध सामग्री देवी के चरणों में निवेदित करनी चहिए.

वृश्चिक राशि | Perform Diwali puja according to Scorpio Sign

इस राशि के लोगों को मां लक्ष्मी जी को कमल के पुष्प अर्पित करने चाहिए साथ ही श्री सुक्त का पाठ तथा लक्ष्मी मंत्र जाप करना चाहिए लक्ष्मी जी की उपासना श्रेष्ठ फल प्रदान करती है.  धनतेरस के दिन संध्या समय धर के मुख्य द्वार पर तेल के दीपक में काली गुंजा डालकर उसे प्रज्जवलित करने से आर्थिक स्थिति अनुकूल बनी रहती है.

धनु राशि | Perform Diwali puja according to Sagittarius Sign

धनु राशि के जातकों को माता को पान का पत्ता भेंट करना चाहिए. पान के पत्ते पर रोली से लक्ष्मी मंत्र लिखकर उसे माँ लक्ष्मी को अर्पित करने से सुख व सौभाग्य की प्राप्ति होती है.  साधक के भय और विघ्न नष्ट हो जाते हैं.

मकर राशि | Perform Diwali puja according to Capricorn Sign

मकर राशि के जातकों को दीवाली वाले दिन पूजन के उपरांत श्री फल को लाल वस्त्र में बांधकर अपनी तिजोरी में रखना चाहिए.

कुंभ राशि | Perform Diwali puja according to Aquarius Sign

कुंभ राशि के जातकों को दीवाली वाले दिन देवी का जागरण करना चाहिए तथा गणेश जी को सिंदूर अर्पित करना चाहिए.

मीन राशि | Perform Diwali puja according to Pisces Sign

मीन राशि के लोगों को माँ लक्ष्मी के मंदिर में सुगंधित धूप एवं अगरबत्ती का दान करना चाहिए. इस प्रकार राशि अनुसार पूजन एवं उपाय करने से शुभ एवं लाभ की प्राप्ति होती है व माँ लक्ष्मी का आशिर्वाद प्राप्त होता है.

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