इस दिन से शुरु होंगे चैत्र नवरात्र 2025

चैत्र शुक्ल पक्ष के नवरात्रों का आरंभ वर्ष 30 मार्च 2025 के दिन से होगा. इसी दिन से हिंदु नवसंवत्सर का आरंभ भी होता है. चैत्र मास के नवरात्र को ‘वार्षिक नवरात्र’ कहा जाता है. इन दिनों नवरात्र में शास्त्रों के अनुसार कन्या या कुमारी पूजन किया जाता है. कुमारी पूजन में दस वर्ष तक की कन्याओं का विधान है. नवरात्रि के पावन अवसर पर अष्टमी तथा नवमी के दिन कुमारी कन्याओं का पूजन किया जाता है.

नौ दिनों तक चलने नवरात्र पर्व में माँ दुर्गा के नौ रूपों क्रमशः शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धदात्री देवी की पूजा का विधान है. नवरात्र के इन प्रमुख नौ दिनों में लोग नियमित रूप से पूजा पाठ और व्रत का पालन करते हैं. दुर्गा पूजा के नौ दिन तक देवी दुर्गा का पूजन, दुर्गा सप्तशती का पाठ  इत्यादि धार्मिक किर्या पौराणिक कथाओं में शक्ति की अराधना का महत्व व्यक्त किया गया है. इसी आधार पर आज भी माँ दुर्गा जी की पूजा संपूर्ण भारत वर्ष में बहुत हर्षोउल्लास के साथ की जाती है. वर्ष में दो बार की जाने वाली दुर्गा पूजा एक चैत्र माह में और दूसरा आश्विन माह में की जाती है.

घट स्थापना मुहूर्त समय

चैत्र नवरात्र पूजन का आरंभ घट स्थापना से शुरू हो जाता है. शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत हो कर संकल्प किया जाता है. व्रत का संकल्प लेने के पश्चात मिटटी की वेदी बनाकर जौ बौया जाता है. इसी वेदी पर घट स्थापित किया जाता है. घट के ऊपर कुल देवी की प्रतिमा स्थापित कर उसका पूजन किया जाता है. तथा “दुर्गा सप्तशती” का पाठ किया जाता है. पाठ पूजन के समय दीप अखंड जलता रहना चाहिए. इस वर्ष घट स्थापना 05 बजकर 20 मिनट से लेकर 09 बजकर 32 मिनट तक रहेगा.

दुर्गा पूजा के साथ इन दिनों में तंत्र और मंत्र के कार्य भी किये जाते है. बिना मंत्र के कोई भी साधाना अपूर्ण मानी जाती है. शास्त्रों के अनुसार हर व्यक्ति को सुख -शान्ति पाने के लिये किसी न किसी ग्रह की उपासना करनी ही चाहिए. माता के इन नौ दिनों में ग्रहों की शान्ति करना विशेष लाभ देता है. इन दिनों में मंत्र जाप करने से मनोकामना शीघ्र पूरी होती है. नवरात्रे के पहले दिन माता दुर्गा के कलश की स्थापना कर पूजा प्रारम्भ की जाती है. 

तंत्र-मंत्र में रुचि रखने वाले व्यक्तियों के लिये यह समय ओर भी अधिक उपयुक्त रहता है. गृहस्थ व्यक्ति भी इन दिनों में माता की पूजा आराधना कर अपनी आन्तरिक शक्तियों को जाग्रत करते है. इन दिनों में साधकों के साधन का फल व्यर्थ नहीं जाता है. मां अपने भक्तों को उनकी साधना के अनुसार फल देती है. इन दिनों में दान पुण्य का भी बहुत महत्व कहा गया है.

चैत्र नवरात्र तिथि | Chaitra Navratri Dates

Posted in Fast, Festivals, Hindu Gods, Hindu Rituals, Puja and Rituals | Tagged , , | Leave a comment

गणगौर तृतीया पर्व 2025

गणगौर तृतीया पर्व का आयोजन शिव एवं शक्ति स्वरूपा पार्वती की असीम कृपा प्राप्त करने हेतु किया जाता है. यह व्रत चैत्र शुक्ल तृतीया को किया जाता है. इस वर्ष 31 मार्च  2025 को सोमवार के दिन किया जाएगा.

गणगौरी उत्सव स्त्रियों के द्वारा किया जाता है. धर्मशास्त्रों में इसे गौरी उत्सव, गौरी तृतीया, ईश्वर गौरी, दोलनोत्सव के नाम से भी जाना जाता है. चैत्रशुक्लतृतीयायां गौरीमीश्वरसंयुताम् |  सम्पूज्य दोलोत्सवं कुर्यात् ||

गणगौरी पूजन विधि | Rituals to Perform Gangauri Puja

सामान्यत: इस पर्व को तीज के दिन मनाया जाता है, इस व्रत को करने के लिए प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व प्रतिदिन की नित्यक्रियाओं से निवृत होने के बाद, साफ-सुन्दर वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद पूजा स्थल में गंगा जल छिडकर शुद्ध करना चाहिए. घर के एक शुद्ध और एकान्त स्थान में पवित्र मिट्टी से 24 अंगूल चौडी और 24 अंगूल लम्बी अर्थात चौकोर वेदी बनाकर, केसर चन्दन तथा कपूर से उस पर चौक पूरा जाता है और बीच में देवी तथा शिव मूर्ति की स्थापना करके उसे फूलों से, फलों से, दूब से और रोली आदि से उसका पूजन किया जाता है. पूजन में मां गौरी के दस रुपों की पूजा की जाती है. मां गौरी के दस रूपों में गौरी, उमा, लतिका, सुभागा, भगमालिनी, मनोकामना, भवानी, कामदा, भोग वर्द्विनी और अम्बिका हैं.

शक्ति के सभी रुपों की पूर्ण श्रद्धा और विश्वास से पूजा करनी चाहिए. इस व्रत को करने वाली स्त्रियों को दिन में केवल एक बार ही दूध पीकर इस व्रत को करना चाहिए. इस व्रत को करने से उपवासक के घर में संतान, सुख और समृद्धि की वृद्धि होती है. इस व्रत में लकडी की बनी हुई अथवा किसी धातु की बनी हुई शिव-पार्वती की मूर्तियों को स्नान कराने का विधान है. प्रतिमाओं को सुन्दर वस्त्र और आभूषणों से सजाया जाता है. इसके पश्चात उनका श्रद्वा भक्ति से गंध पुष्पादि से पूजन किया जाता है. देवी-देवताओं को झूले में अथवा सिंहासन में झुलाने का भी विधि-विधान है.

गणगौर व्रत महत्व | Significance of Gangauri Fast

एक बार महादेव पार्वती वन में गए चलते-चलते गहरे वन में पहुंच गए तो पार्वती जी ने कहा-भगवान, मुझे प्यास लगी है. महादेव ने कहा, देवी देखो उस तरफ पक्षी उड रहे है. वहां जरूर ही पानी होगा. पार्वती वहां गई. वहां एक नदी बह रही थी. पार्वती ने पानी की अंजली भरी तो दुब का गुच्छा आया, और दूसरी बार अंजली भरी तो टेसू के फूल, तीसरी बार अंजली भरने पर ढोकला नामक फल आया. इस बात से पार्वती जी के मन में कई तरह के विचार उठे पर उनकी समझ में कुछ नहीं आया. महादेव जी ने बताया कि, आज चैत्र माह की तीज है. सारी महिलायें, अपने सुहाग के लिये ” गौरी उत्सव” करती हैं. गौरी जौ को चढाए हुए दूब, फूल और अन्य सामग्री नदी में बहकर आ रहे है.

पार्वती जी ने महादेव जी से विनती की, कि हे स्वामी, दो दिन के लिये, आप मेरे माता-पिता का नगर बनवा दें, जिससे सारी स्त्रियां यहीं आकर गणगौरी के व्रत उत्सव को करें, और मैं खुद ही उनको सुहाग बढाने वाला आशिर्वाद दूं महादेव जी ने अपनी शक्ति से ऎसा ही किया. थोडी देर में स्त्रियों का झुण्ड आया तो पार्वती जी को चिन्ता हुई, और महादेव जी के पास जाकर कहने लगी. प्रभु, में तो पहले ही वरदान दे चुकी, अब आप दया करके इन स्त्रियों को अपनी तरफ से सौभाग्य का वरदान दें, पार्वती के कहने से महादेव जी ने उन्हें, सौभाग्य का वरदान दिया.

Posted in Fast, Festivals, Hindu Gods, Hindu Rituals, Puja and Rituals | Tagged , , | Leave a comment

गजेन्द्र मोक्ष स्त्रोत | Gajendra Moksha Stotra | Gajendra Stotra

श्रीमद्भागवत के अष्टम स्कंध के तीसरे अध्याय में गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र दिया गया है. इसमें कुल तैतीस श्लोक हैं इस स्त्रोत में ग्राह के साथ गजेन्द्र के युद्ध का वर्णन किया गया है, जिसमें गजेन्द्र ने ग्राह के मुख से छूटने के लिए श्री हरि की स्तुति की थी और प्रभ श्री हरि ने गजेन्द्र की पुकार सुनकर उसे ग्राह से मुक्त करवाया. गजेन्द्र मोक्ष का माहात्म्य बतलाते हुए कहा गया है कि इसको समस्त पापों का नाशक, साधक कहा गया है.

इसका प्रतिदिन स्मरण करने से व्यक्ति के संकट दूर होते हैं तथा मुक्ति का मार्ग प्रशस्त होता है. यह एक ऎसा स्त्रोत है जो व्यक्ति को घोर संकट से भी उबारदेता है. इस स्त्रोत पाठ को करने से पूर्व अपनी समस्या का स्मरण करते हुए उससे मुक्ति की कामना हेतु गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ आरंभ करना चाहिए भगवान विष्णु जी के सम्मुख दिप प्रज्जवलित करके इस स्त्रोत का जाप आरंभ करें. सच्चे मन एवं श्रद्धा से किया गजेन्द्र मोक्ष का पाठ सभी संकटों को दूर करने वाला होता है.

श्री शुक उवाच | Sri Shukra Uvach

एवं व्यवसितो बुद्धया समाधाय मनो ह्रदि।

जजाप परमं जाप्यं प्राग्जन्मन्यनुशिक्षितम् ॥1॥

गजेन्द्र उवाच | Gajendra Uvach

ॐ नमो भगवते तस्मै यत एतच्चिदात्मकम् ।

पुरुषायादिबीजाय परेशायाभिधीमहि॥2॥

यस्मिन्निदं यतश्चेदं येनेदं य इदं स्वयम्|

योऽस्मातपरस्माच्च परस्तं प्रपद्ये स्वयम्भुवम्।।३।।

यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं क्वचिद्विभातं क्व च तत्तिरोहितम्।

अविद्धदृक् साक्ष्युभयं तदीक्षते स आत्ममूलोऽवतु मां परात्परः।।४।।

कालेन पञ्चत्वमितेषु कृत्स्नशो लोकेषु पालेषु च सर्वहेतुषु।

तमस्तदाऽसीद् गहनं गभीरं यस्तस्य पारेऽभिविराजते विभुः।।५।।

न यस्य देवा ऋषयः पदं विदुर्जन्तुः पुनः कोऽर्हति गन्तुमीरितुम्।

यथा नटस्याकृतिभिर्विचेष्टतो दुरत्ययानुक्रमणः स मावतु।।६।।

दिदृक्षवो यस्य पदं सुमंगलं विमुक्तसंगा मुनयः सुसाधवः।

चरन्त्यलोकव्रतमव्रणं वने भुतात्मभूताः सुह्रदः स मे गतिः।।७।।

न विद्यते यस्य च जन्म कर्म वा न नामरुपे गुणदोष एव वा।

तथापि लोकाप्ययसम्भवाय यः स्वमायया यः तान्यनुकालमृच्छति।।८।।

तस्मै नमः परेशाय ब्रह्मणेऽनन्तशक्तये।

अरुपायोरुरुपाय नम आश्चर्यकर्मणे।।९।।

नम आत्मप्रदीपाय साक्षिणे परमात्मने।

नमो गिरां विदूराय मनसश्चेतसामपि।।१०।।

सत्त्वेन प्रतिलभ्याय नैष्कर्म्येण विपश्विता

नमः कैवल्यनाथाय निर्वाणसुखसंविदे।।११।।

नमः शान्ताय घोराय मूढाय गुणधर्मिणे।

निर्विशेषाय साम्याय नमो ज्ञानघनाय च।।१२।।

क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं सर्वाध्यक्षाय साक्षिणे।

पुरुषायात्ममूलाय मूलप्रकृतये नमः।।१३।।

सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे सर्वप्रत्ययहेतवे।

असताच्छाययोक्ताय सदाभासाय ते नमः।।१४।।

नमो नमस्तेऽखिलकारणाय निष्कारणायाद्भुतकारणाय।

सर्वागमाम्नायमहार्णवाय नमोऽपवर्गाय परायणाय।।१५।।

गुणारणिच्छन्नचिदुष्मपाय तत्क्षोभविस्फूर्जितमानसाय।

नैष्कर्म्यभावेन विवर्जितागमस्वयंप्रकाशाय नमस्करोमि।।१६।।

मादृक्प्रपन्नपशुपाशविमोक्षणाय मुक्ताय भूरिकरुणाय नमोऽलयाय।

स्वांशेन सर्वतनुभृन्मनसि प्रतीतप्रत्यग्दृशे भगवते बृहते नमस्ते।।१७।।

आत्मात्मजाप्तगृहवित्तजनेषु सक्तैर्दुष्प्रापणाय गुणसंगविवर्जिताय।

मुक्तात्मभिः स्वह्रदये परिभाविताय ज्ञानात्मने भगवते नम ईश्वराय।।१८।।

यं धर्मकामार्थविमुक्तिकामा भजन्त इष्टां गतिमाप्नुवन्ति।

किं त्वाशिषो रात्यपि देहमव्ययं करोतु मेऽदभ्रदयो विमोक्षणम्।।१९।।

एकान्तिनो यस्य न कञ्चनार्थं वाञ्छन्ति ये वै भगवत्प्रपन्नाः।

अत्यद्भुतं तच्चरितं सुमंगलं गायन्त आनन्दसमुद्रमग्नाः।।२०।।

तमक्षरं ब्रह्म परं परेशमव्यक्तमाध्यात्मिकयोगगम्यम्।

अतीन्द्रियं सूक्ष्ममिवातिदूरमनन्तमाद्यं परिपूर्णमीडे।।२१।।

यस्य ब्रह्मादयो देवा वेदा लोकाश्चराचराः।

नामरुपविभेदेन फलव्या च कलया कृताः।।२२।।

यथार्चिषोऽग्नेः सवितुर्गभस्तयो निर्यान्ति संयान्त्यसकृत् स्वरोचिषः।

तथा यतोऽयं गुणसम्प्रवाहो बुद्धिर्मनः खानि शरीरसर्गाः।।२३।।

स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यङ् न स्त्री न षण्ढो न पुमान् न जन्तुः।

नायं गुणः कर्म न सन्न चासन् निषेधशेषो जयतादशेषः।।२४।।

जिजीविषे नाहमिहामुया किमन्तर्बहिश्चावृतयेभयोन्या।

इच्छामि कालेन न यस्य विप्लवस्तस्यात्मलोकावरणस्य मोक्षम्।।२५।।

सोऽहं विश्वसृजं विश्वमविश्वं विश्ववेदसम्।

विश्वात्मानमजं ब्रह्म प्रणतोऽस्मि परं पदम्।।२६।।

योगरन्धितकर्माणो ह्रदि योगविभाविते।

योगिनो यं प्रपश्यन्ति योगेशं तं नतोऽस्म्यहम्।।२७।।

नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेगशक्तित्रयायाखिलधीगुणाय।

प्रपन्नपालाय दुरन्तशक्तये कदिन्द्रियाणामनवाप्यवर्त्मने।।२८।।

नायं वेद स्वमात्मानं यच्छक्त्याहंधिया हतम्।

तं दुरत्ययामाहात्म्यं भगवन्तमितोऽस्म्यहम्।।२९।।

श्री शुक उवाच | Shri Shuk Uvach

एवं गजेन्द्रमुपवर्णितनिर्विशेषं ब्रह्मादयो विविधलिंगभिदाभिमानाः।

नैते यदोपससृपुर्निखिलात्मकत्वात् तत्राखिलामरमयो हरिराविरासीत्।।३०।।

तं तद्वदार्त्तमुपलभ्य जगन्निवासः स्तोत्रं निशम्य दिविजैः सह संस्तुवद्भिः।

छन्दोमयेन गरुडेन समुह्यमानश्चक्रायुधोऽभ्यगमदाशु यतो गजेन्द्रः।।३१।।

सोऽन्तस्सरस्युरुबलेन गृहीत आर्त्तो दृष्ट्वा गरुत्मति हरिं ख उपात्तचक्रम्।

उत्क्षिप्य साम्बुजकरं गिरमाह कृच्छ्रान्नारायणाखिलगुरो भगवन् नमस्ते।।३२।।

तं वीक्ष्य पीडितमजः सहसावतीर्य सग्राहमाशु सरसः कृपयोज्जहार।

ग्राहाद् विपाटितमुखादरिणा गजेन्द्रं सम्पश्यतां हरिमूमुचदुस्त्रियाणाम्।।३३।।

Posted in Stotra | Tagged , , , , | Leave a comment

सती अनुसूया जयंती 2025| Sati Anusuiya Jayanti | Anusuiya Jayanti 2025

17 अप्रैल 2025 को सती अनुसूया जयंती मनाई जाएगी. अनुसूया जी का स्थान पतिव्रता स्त्रियों श्रेणी में सर्वोपरी रहा है. दक्ष प्रजापति की चौबीस कन्याओं में से एक थी अनुसूया जो मन से पवित्र एवं निश्छल प्रेम की परिभाषा थीं इन्हें सती साध्वी रूप में तथा एक आदर्श नारी के रूप में जाना जाता है. अत्यन्त उच्च कुल में जन्म होने पर भी इनके मन में कोई अंह का भाव नहीं था.

इनका संपूर्ण जीवन ही एक आदर्श रहा है. पौराणिक तथ्यों के आधार की यदि बात की जाए तो माता सीता जी भी इनके तेज से बहुत प्रभावित हुई थी तथा उनसे प्राप्त भेंट को सहर्ष स्वीकार करते हुए नमन किया. अनुसूया जी का विवाह ब्रह्मा जी के मानस पुत्र परम तपस्वी महर्षि अत्रि जी के साथ हुआ था. अपने सेवा तथा समर्पित प्रेम से इन्होंने अपने पति धर्म का सदैव पालन किया.

सती अनुसूया पौराणिक कथा | Sati Anusuiya Legends

सती अनसूइया के संबंध कुछ पौराणिक मान्यताओं को देखा जा सकता है जिसके अनुसार कहा जाता है कि देवी अनसुया बहुत पतिव्रता थी जिस कारण उनकी ख्याती तीनों लोकों में फैल गई थी. उनके इस सती धर्म को देखकर देवी पार्वती, लक्ष्मी जी और देवी सरस्वती जी के मन में द्वेष का भाव जागृत हो गया था. जिस कारण उन्होंने अनसूइया कि सच्चाई एवं पतीव्रता के धर्म की परिक्षा लेने की ठानी तथा अपने पतियों शिव, विष्णु और ब्रह्मा जी को अनसूया के पास परीक्षा लेने के लिए भेजना चाहा.

भगवानों ने देवीयों को समझाने का पूर्ण प्रयास किया किंतु जब देवियां नहीं मानी तो विवश होकर तीनो देवता ऋषि के आश्रम पहुँचे. वहां जाकर देवों ने सधुओं का वेश धारण कर लिया और आश्रम के द्वार पर भोजन की मांग करने लगे. जब देवी अनसूया उन्हें भोजन देने लगी तो उन्होंने देवी के सामने एक शर्त रखी की वह तीनों तभी यह भोजन स्वीकार करेंगे जब देवी निर्वस्त्र होकर उन्हें भोजन परोसेंगी. इस पर देवी चिंता में डूब गई वह ऎसा कैसे कर सकती हैं. अत: देवी ने आंखे मूंद कर पति को याद किया इस पर उन्हें दिव्य दृष्टि प्राप्त हुई तथा साधुओं के वेश में उपस्थित देवों को उन्होंने पहचान लिया. तब देवी अनसूया ने कहा की जो वह साधु चाहते हैं वह ज़रूर पूरा होगा किंतु इसके लिए साधुओं को शिशु रूप लेकर उनके पुत्र बनना होगा.

इस बात को सुनकर त्रिदेव शिशु रूप में बदल गए जिसके फलस्वरूप माता अनसूइया ने देवों को भोजन करवाया. इस तरह तीनों देव माता के पुत्र बन कर रहने लगे. इस पर अधिक समय बीत जाने के पश्चात भी त्रिदेव देवलोक नहीं पहुँचे तो पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती जी चिंतित एवं दुखी हो गई इस पर तीनों देवियों ने सती अनसूइया के समक्ष क्षमा मांगी एवं अपने पतियों को बाल रूप से मूल रूप में लाने की प्रार्थना की ऐस पर माता अनसूया ने त्रिदेवों को उनका रूप प्रदान किया और तभी से वह मां सती अनसूइया के नाम से प्रसिद्ध हुई.

सती अनसूइया जयंती महत्व | Sati Anusuiya Jayanti Importance

माँ अनुसूया के दर्शन पाकर सभी लोग धन्य हो जाते हैं इसकी पवित्रता सभी के मन में समा जाती हैं सभी स्त्रियां मां सती अनसूया से पतिव्रता होने का आशिर्वाद पाने की कामना करती हैं. प्रति वर्ष सती अनसूइया जी जयंती का आयोजन किया जाता है. इस उत्सव के समय मेलों का भी आयोजन होता है. रामायण में इनके जीवन के विषय में बताया गया है जिसके अनुसार वनवास काल में जब राम, सीता और लक्ष्मण जब महर्षि अत्रि के आश्रम में जाते हैं तो अनुसूया जी ने सीता जी को पतिव्रत धर्म की शिक्षा दी थी. सती अनसूइया जी भारतीय सभ्यता का उज्जवल स्वरूप भी है.

Posted in Hindu Rituals, Jayanti, Puja and Rituals, Saints And Sages | Tagged , , , , | Leave a comment

संकटनाशनस्त्रोतम् | Sankatnashan Strotram | Sankatnashan Stotra

गणेश जी की महिमा अपने आप में अनूठी है.  हाथी के मस्तक वाले अपने वाहन मूषक पर सवार विघ्नहर्ता श्री गणेश  ऋद्धि-सिद्धि के दाता हैं. किसी भी कार्य को आरंभ करने से पूर्व इनकी अराधना कार्य को निर्विघ्न संपन्न होने का आशिर्वाद देती है.

नारद उवाच | Naarad Uvacha

प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम्
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायु: कामार्थसिद्धये।।

प्रतमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयं कृष्णपिगडांक्षं गजवक्त्रं चतुर्थकम् ।।

लम्बोदरं पत्रचमं च षष्ठं विकटमेव च ।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूमवर्णं तथाष्टमम्।।

नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।।
एकादशं गणपतिं द्वादशं तु गजाननम्।।

द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं य: पठेन्नर: ।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम्।।

विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम्।।

जपेद्नणपतिस्त्रोतं षड्भिर्मासै: फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशय:।।

अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा य: समर्पयेत्।
तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादत:।।

अर्थात :- नारदजी कहते हैं सर्वप्रथम मस्तक झुकाकर गौरीपुत्र विनायकदेवको प्रणाम करके प्रतिदिन आयु अभिष्ट मनोरथ और धन आदि प्रयोजनोंकी सिद्धिके लिये भक्तावास गणेशजी का स्मरण करें. पहलानाम वक्रतुण्ड है दूसरा एकदन्त है, तीसरा कृष्णपिडगांक्ष है, चौथा गजवक्त्र है, पंचम लम्बोदर, छठा विकट, सातवां विघ्नराजेन्द्र, आठवां धूम्रवण, नवम भालचंद्र, दसवां विनायक, गयारहवां गणपति और बारहवां नाम गजानन है. जो व्यक्ति प्रात:काल, दोपहर तथा संध्यासमय प्रतिदिन इन बारह नामों का पाठ करता है उसे विघ्नका भय नही रहता. इन नामों का स्मरण करने से व्यक्ति को सिद्धियों की प्राप्ति होती है. इन नामों के जप से विद्या, धन, संतान एवं मोक्ष जैसे फलों की प्राप्ति होती है. इस गणपतिस्त्रोत का नित्य पाठ करने से भक्त को अभीष्ट फलों की प्राप्ति होती है. एक वर्ष तक जप करने से भक्त को सिद्धि की प्राप्ति होती है.

समस्त विघ्नों के विनाशक देवाधिदेव मांगल्य कार्यों में प्रधान प्रथम पूज्य गणपति जी का पूजन एवं स्त्रोत पाठ करने से समस्त कष्टों से का निवारण होता है. गजानन, गौरी पुत्र, महेश पुत्र, एकदंत, वक्रतुंड, विनायक, लंबोदर, भालचंद्र अनेक नामों से पूजनीय श्री गणेश की आराधना देवों को भी प्रसन्न करने वाली होती है. प्रतिदिन सूर्य उपासना उपरांत श्री गणेश जी का पूजन सिद्धि दायक होता है.

साधक जन्म-जन्मांतर के चक्र से मुक्ति की कामना को पूर्ण करने में सहायक होता है. पुराणों के अनुसार  नवग्रह तथा नक्षत्र एवं राशियों में इन्हीं का अंश विद्यमान है. इन्हें पूजने वाला सुख-संपदा, ऋद्धि, राज्य सुख एवं समस्त सुखों को पाता है. मानसिक रोगों, काम, क्रोध, मोह, मद, प्रमाद, दुराग्रह राग-द्वेष, छल, कपट इत्यादि रजोगुण और तमोगुण से मुक्ति मिलती है  बुद्धि, धैर्य और आत्मज्ञान ही गणेश जी से प्राप्त होते हैं. लंबी आयु एवं आरोग्य की प्राप्ति में सहायक होता है.

गणेश जी को निश्छल भक्त की भक्ति अतिशयप्रिय हैं. गणेश जी के जन्म से जुड़ी अनेक कहानियां मिलती हैं, जिनमें श्री गणेश जी के अनेक महान कार्यों एवं कृपा दृष्टी का उल्लेख प्राप्त होता है. हाथी के मस्तक वाले, ज्ञानी और विघ्नहर्ता श्री गणेश का वाहन मूषक पर सवार ऋद्धि-सिद्धि के दाता हैं. ऊँ गं गणपतये नमः का जाप तथा उक्त स्त्रोत का पाठ आरंभ करने से पूर्व संकल्प और विधि विधान के साथ स्वच्छतापूर्वक एवं शांत शुद्ध मन से आसन ग्रहण करते हुए आरंभ करना चाहिए ऎसा करने से श्री गणेश जी प्रसन्न होते हैं.

Posted in Puja and Rituals, Remedies, Stotra | Tagged , , , , | Leave a comment

शीतला अष्टमी व्रत 2025 | Sheetla Ashtami Fast 2025 | Sheetla Ashtami Festival 2025 | Sheetala Ashtami Vrat

शीतलाष्टमी का पर्व होली के सम्पन्न होने के कुछ दिन पश्चात मनाया जाता है. देवी शीतला की पूजा चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि से आरंभ होती है. शीतला अष्टमी पर्व 22 मार्च 2025 दिन मनाई जाएगी. शीतला अष्टमी पर्व के दिन शीतला माता का व्रत एवं पूजन किया जाता है. शीतला अष्टमी के दिन शीतला माँ की पूजा अर्चना में बासी ठंडा खाना ही माता को भोग लगया जाता है जिसे बसौडा़ कहा जाता हैं और यही बासा भोजन प्रसाद रूप में खाया जाता है तथा यही नैवेद्य के रूप में समर्पित सभी भक्तों के बीच प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है.

रोगों से मुक्ति दिलाता शीतलाष्टमी व्रत | Sheetla Ashtami Fast Eliminates Diseases

स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना स्तोत्र को शीतलाष्टक के नाम से व्यक्त किया गया है. मान्यता है कि शीतलाष्टक स्तोत्र की रचना स्वयं भगवान शिव जी ने लोक कल्याण हेतु की थी. शीतला माता एक प्रमुख हिन्दू देवी के रूप में पूजी जाती है. अनेक धर्म ग्रंथों में शीतला देवी के संदर्भ में वर्णित है, स्कंद पुराण में शीतला माता के विषय में विस्तार पूर्वक वर्णन किया गया है, जिसके अनुसार देवी शीतला चेचक जैसे रोग कि देवी हैं, यह हाथों में कलश, सूप, मार्जन(झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण किए होती हैं तथा गर्दभ की सवारी किए यह अभय मुद्रा में विराजमान हैं.

शीतला अष्टमी पूजन | Sheetla Ashtami Worship

शीतलाष्टमी के एक दिन पूर्व देवी को भोग लगाने के लिए बासी खाने का भोग ‘बसौड़ा’ उपयोग में लाया जाता है. अष्टमी के दिन बासी वस्तुओं का नैवेद्य शीतला माता को अर्पित किया जाता है. इस दिन व्रत-उपवास किया जाता है तथा माता की कथा का श्रवण होता है. कथा समाप्त होने पर मां की पूजा अर्चना होती है तथा शीतलाष्टक को पढा़ जाता है, शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा को दर्शाता है, साथ ही साथ शीतला माता की वंदना उपरांत उनके मंत्र का उच्चारण किया जाता है.

पूजा को विधि विधान के साथ पूर्ण करने पर सभी भक्तों के बीच मां के प्रसाद बसौडा़ को बांटा जाता है, संपूर्ण उत्तर भारत में शीतलाष्टमी त्यौहार, बसौड़ा के नाम से भी विख्यात है. मान्यता के अनुसार इस व्रत को करने से देवी प्रसन्‍न होती हैं और व्रती के कुल में समस्त शीतलाजनित दोष दूर हो जाते हैं, ज्वर, चेचक, नेत्र विकार आदी रोग दूर होते हैं.

शीतला अष्टमी महत्व | Importance of Sheetla Ashtami

शीतला माता की पूजा के दिन घर में चूल्हा नहीं जलाया जाता. चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ और आषाढ के कृष्ण पक्ष की अष्टमी शीतला देवी की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित होती है। इसलिए यह दिन शीतलाष्टमी के नाम से विख्यात है. आज के समय में शीतला माता की पूजा स्वच्छता की प्रेरणा देने के कारण महत्वपूर्ण है.

देवी शीतला की पूजा से पर्यावरण को स्वच्छ व सुरक्षित रखने की प्रेरणा प्राप्त होती है तथा ऋतु परिवर्तन होने के संकेत मौसम में कई प्रकार के बदलाव लाते हैं और इन बदलावों से बचने के लिए साफ सफाई का पूर्ण ध्यान रखना होता है और इसी संदर्भ में शीतला माता की पूजा से हमें स्वच्छता की प्रेरणा मिलती है. अत: शीतला माता की पूजा का विधान पूर्णत: महत्वपूर्ण एवं सामयिक है.

Posted in Fast, Festivals, Hindu Gods, Hindu Rituals, Puja and Rituals | Tagged , , | Leave a comment

श्री लक्ष्मी पंचमी 2025 | Sri Laxmi Panchami | Lakshmi Panchami Vrat | Lakshmi Panchami Festival

श्री लक्ष्मी पंचमी व्रत चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की पंचमी को किया जाता है. वर्ष 2025 में यह व्रत 2 अप्रैल के दिन किया जाएगा. इस दिन माँ लक्ष्मी जी की आराधना से मनोवांछित फलों की प्राप्ति होती है तथा साधक को श्री का आशिर्वाद मिलता है. इस दिन धन की अधिष्ठाती देवी महालक्ष्मी की प्रसन्नता के लिए भक्तों को व्रत रखकर रात्रि में माता लक्ष्मी का विधिपूर्वक पूजन करना चाहिए।

शास्त्रों में देवी लक्ष्मी जी के स्वरुप को अत्यंत सुंदर और प्रभावि रुप से दर्शाया गया है. देवी लक्ष्मी की पूजा, दरिद्रता को दूर करने में सहायक होती है. देवी लक्ष्मी को वैभव की अधिष्ठात्री देवी कहा जाता है. जीवन में धन की दिक्कत,  नौकरी या व्यवसाय में असफलता या खर्चों से आर्थिक तंगी से परेशान होने पर देवी लक्ष्मी की विशेष मंत्र से उपासना द्वारा माता लक्ष्मी की कृपा को प्राप्त किया जा सकता है.

श्री पंचमी के दिन देवी के अनेक स्त्रोतों जैसे कनकधारा स्त्रोत, लक्ष्मी स्तोत्र, लक्ष्मी सुक्त का पाठ करना चाहिए. मान्यता है कि लक्ष्मी पंचमी पर की गई आराधना द्वारा लक्ष्मी का स्थाईत्व प्राप्त होता है तथा आराधना कभी निष्फल नहीं होती. भक्तों की सच्ची श्रद्धा एवं निष्ठा भाव से की गई भक्ति श्रद्घालुओं को लाभ प्रदान करने वाली होती है.

श्री लक्ष्मी पंचमी पूजन | Sri Laxmi Panchami Worship

धन-संपदा व समृद्घि की प्राप्ति के लिए श्री लक्ष्मी पंचमी का पूजन किया जाता है. लक्ष्मी जी को धन-सम्पत्ति की अधिष्ठात्री देवी के रूप में पूजा जाता है. लक्ष्मी जी जिस पर भी अपनी कृपा दृष्टि डालती हैं वह दरिद्र, दुर्बल, कृपण, के रूपों से मुक्त हो जाता है, समस्त देवी शक्तियों के मूल में लक्ष्मी ही हैं जो सर्वोत्कृष्ट पराशक्ति हैं.

श्री लक्ष्मी उपासना विधि | Sri Laxmi Worship Procedure

श्री लक्ष्मी पंचमी व्रत को विधि को आरंभ करने से पूर्व सर्वप्रथम प्रात:काल में स्नान आदि कार्यो से निवृत होकर, व्रत का संकल्प लिया जाता है. व्रत का संकल्प लेते समय मंत्र का उच्चारण किया जाता है.

पूजा के दौरान माता का विग्रह सजाकर उसमें माता की प्रतिमा की स्थापना की जाती है. श्री लक्ष्मी को पंचामृत से स्नान कराया जाता है तत्पश्चात उनका विभिन्न प्रकार से पूजन किया जाता है.

पूजन सामग्री में चन्दन, ताल, पत्र, पुष्प माला, अक्षत, दूर्वा, लाल सूत, सुपारी, नारियल तथा नाना प्रकार के भोग रखे जाते है. इसके बाद व्रत करने वाले उपवासक को ब्रह्माणों को भोजन कराया जाता है और दान- दक्षिणा दी जाती है व इस प्रकार यह व्रत पूरा होता है. जो इस व्रत को करता है, उसे अष्ट लक्ष्मी की प्राप्ति होती है. इस व्रत को लगातार करने से विशेष शुभ फल प्राप्त होते है. इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए. केवल फल, दूध, मिठाई का सेवन किया जा सकता है.

समस्त धन संपदा की अधिष्ठात्री देवी कोमलता की प्रतीक हैं, लक्ष्मी परमात्मा की एक शक्ति हैं वह सत, रज और तम रूपा तीन शक्तियों में से एक हैं. महालक्ष्मी प्रवर्तक शक्ति हैं जीवों में लोभ, आकर्षण, आसक्ति उत्पन्न करती हैं धन, सम्पत्ति लक्ष्मी का भौतिक रूप है. लक्ष्मी जी का नित्य पूजन, आरती कष्टों से मुक्ति प्रदान करती है.

Posted in Fast, Festivals, Hindu Gods, Hindu Rituals, Puja and Rituals | Tagged , , | Leave a comment

पापमोचनी एकादशी का महत्व | Importance of Paapmochani Ekadasi | Paap Mochini Ekadashi 2025

पाप मोचनी एकादशी व्रत चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है. वर्ष 2025 में पापमोचनी एकादशी व्रत 25 मार्च के दिन किया जायेगा. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी पापों को नष्ट करने वाली होती है. स्वयं भगवान श्री कृष्ण ने इसके फल एवं प्रभाव को अर्जुन के समक्ष प्रस्तुत किया था.

पापमोचनी एकादशी व्रत साधक को उसके सभी पापों से मुक्त कर उसके लिये मोक्ष के मार्ग खोलती है. इस एकादशी के दिन भगवान विष्णु जी का पूजन करना चाहिए. अगर कोई व्यक्ति इस पूजा को षोडशोपचार के रुप में करने पर व्रत के शुभ फलों में वृद्धि होती है.

पापमोचनी एकादशी पौराणिक महत्व | Methodological Importance of Paap Mochini Ekadashi

कथा के अनुसार भगवान अर्जुन से कहते हैं, राजा मान्धाता ने एक समय में लोमश ऋषि से जब पूछा कि प्रभु यह बताएं कि मनुष्य जो जाने अनजाने पाप कर्म करता है उससे कैसे मुक्त हो सकता है. राजा मान्धाता के इस प्रश्न के जवाब में लोमश ऋषि ने राजा को एक कहानी सुनाई कि चैत्ररथ नामक सुन्दर वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी ऋषि तपस्या में लीन थे.

इस वन में एक दिन मंजुघोषा नामक अप्सरा की नज़र ऋषि पर पड़ी तो वह उन पर मोहित हो गयी और उन्हें अपनी ओर आकर्षित करने हेतु यत्न करने लगी. कामदेव भी उस समय उधर से गुजर रहे थे कि उनकी नज़र अप्सरा पर गयी और वह उसकी मनोभावना को समझते हुए उसकी सहायता करने लगे. अप्सरा अपने यत्न में सफल हुई और ऋषि कामपीड़ित हो गये.

काम के वश में होकर ऋषि शिव की तपस्या का व्रत भूल गये और अप्सरा के साथ रमण करने लगे. कई वर्षों के बाद जब उनकी चेतना जगी तो उन्हें एहसास हुआ कि वह शिव की तपस्या से विरत हो चुके हैं उन्हें तब उस अप्सरा पर बहुत क्रोध हुआ और तपस्या भंग करने का दोषी जानकर ऋषि ने अप्सरा को पिशाचनी होने का श्राप दे दिया. श्राप से दु:खी होकर वह ऋषि के पैरों पर गिर पड़ी और श्राप से मुक्ति के लिए अनुनय करने लगी.

अप्सरा की याचना से द्रवित हो मेधावी ऋषि ने उसे विधि सहित चैत्र कृष्ण एकादशी का व्रत करने के लिए कहा भोग में निमग्न रहने के कारण ऋषि का तेज भी लोप हो गया था अत: ऋषि ने भी इस एकादशी का व्रत किया जिससे उनका पाप नष्ट हो गया. उधर अप्सरा भी इस व्रत के प्रभाव से पिशाच योनि से मुक्त हो गयी और उसे सुन्दर रूप प्राप्त हुआ व स्वर्ग के लिए प्रस्थान कर गयी.

पाप मोचनी एकादशी व्रत विधि | Paap Mochini Ekadashi Fast Procedure

पाप मोचनी एकादशी के विषय में भविष्योत्तर पुराण में विस्तार से वर्णन किया गया है. इस व्रत में भगवान विष्णु के चतुर्भुज रूप की पूजा की जाती है, व्रती दशमी तिथि को एक बार सात्विक भोजन करे और मन से भोग विलास की भावना को निकालकर भगवान विष्णु की पूजा अर्चना करनी चाहिए. एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करना चाहिए संकल्प के उपरान्त षोड्षोपचार सहित श्री विष्णु की पूजा करें.

पूजा के पश्चात भगवान के समक्ष बैठकर भग्वद् कथा का पाठ अथवा श्रवण करना चाहिए. एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है अत: रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें. द्वादशी के दिन प्रात: स्नान करके विष्णु भगवान की पूजा करें फिर ब्रह्मणों को भोजन करवाकर दक्षिणा सहित विदा करें पश्चात स्वयं भोजन ग्रहण करना चाहिए.

Posted in Ekadashi, Fast, Festivals, Hindu Gods, Hindu Rituals, Puja and Rituals | Tagged , , , | Leave a comment

विजया एकादशी पर करें विजय की प्राप्ति | Attain Victory on the Festivals of Vijaya Ekadashi

फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को विजया एकादशी के रूप में मनाया जाता है. यह एकादशी विजय की प्राप्ति को सशक्त करने में सहायक बनती है। तभी तो प्रभु राम जी ने भी इस व्रत को धारण करके अपने विजय को पूर्ण रूप से प्राप्त किया था. एकादशी व्रत करने से व्यक्ति के शुभ फलों में वृद्धि होती है तथा अशुभता का नाश होता है.

विजया एकादशी व्रत 24 फरवरी 2025 को किया जाएगा. विजया एकादशी व्रत करने से साधक को व्रत से संबन्धित मनोवांछित फल की प्राप्ति करता है. सभी एकादशी अपने नाम के अनुरुप फल देती है.

विजया एकादशी पौराणिक महत्व | Historical Significance of Vijaya Ekadashi

विजया एकादशी का पौराणिक महत्व श्री राम जी से जुडा़ हुआ है जिसके अनुसार विजया एकादशी के दिन भगवान श्री राम लंका पर चढाई करने के लिये समुद्र तट पर पहुंचे. समुद्र तट पर पहुंच कर भगवान श्री राम ने देखा की सामने विशाल समुद्र है और उनकी पत्नी देवी सीता रावण कैद में है. इस पर भगवान श्री राम ने समुद्र देवता से मार्ग देने की प्रार्थना की. परन्तु समुद्र ने जब श्री राम को लंका जाने का मार्ग नहीं दिया तो भगवान श्री राम ने ऋषि गणों से इसका उपाय पूछा.

ऋषियों में भगवान राम को बताया की प्रत्येक शुभ कार्य को शुरु करने से पहले व्रत और अनुष्ठान कार्य किये जाते है. व्रत और अनुष्ठान कार्य करने से कार्यसिद्धि की प्राप्ति होती है. और सभी कार्य सफल होते है. हे भगवान आप भी फाल्गुण मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का व्रत विधिपूर्वक किजिए. भगवान श्री राम ने ऋषियों के कहे अनुसार व्रत किया, व्रत के प्रभाव से समुद्र ने प्रभु राम को मार्ग प्रदान किया और यह व्रत रावण पर विजय प्रदान कराने में मददगार बना. तभी से इस व्रत की महिमा का गुणगान आज भी सर्वमान्य रहा है और विजय प्राप्ति के लिये जन साधारण द्वारा किया जाता है.

विजया एकादशी पूजा विधि | Rituals to Perform Vijaya Ekadashi Puja

विजया एकादशी व्रत के विषय में यह मान्यता है, कि एकादशी व्रत करने से स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्नदान और गौदान से अधिक पुण्य फलों की प्राप्ति होती है. एकादशी व्रत के दिन भगवान नारायण की पूजा की जाती है. व्रत पूजन में धूप, दीप, नैवेध, नारियल का प्रयोग किया जाता है. विजया एकादशी व्रत में सात धान्य घट स्थापना की जाती है. सात धान्यों में गेंहूं, उड्द, मूंग, चना, जौ, चावल और मसूर है. इसके ऊपर श्री विष्णु जी की मूर्ति रखी जाती है. इस व्रत को करने वाले व्यक्ति को पूरे दिन व्रत करने के बाद रात्रि में विष्णु पाठ करते हुए जागरण करना चाहिए.

व्रत से पहले की रात्रि में सात्विक भोजन करना चाहिए और रात्रि भोजन के बाद कुछ नहीं लेना चाहिए. एकादशी व्रत 24 घंटों के लिये किया जाता है. व्रत का समापन द्वादशी तिथि के प्रात:काल में अन्न से भरा घडा ब्राह्माण को दिया जाता है. यह व्रत करने से दु:ख दूरे होते है. और अपने नाम के अनुसार विजया एकादशी व्यक्ति को जीवन के कठिन परिस्थितियों में विजय दिलाती है. समग्र कार्यो में विजय दिलाने वाली विजया एकादशी की कथा इस प्रकार है.

Posted in Ekadashi, Fast, Festivals, Hindu Gods, Hindu Rituals, Puja and Rituals | Tagged , , , , , , , | Leave a comment

आंवला एकादशी पर करें आंवला के वृक्ष की पूजा 2025| Worship Amla Tree on the day of Amla Ekadashi 2025

विष्णु पुराण के अनुसार एक बार भगवान विष्णु के मुख से चन्दमा के समान प्रकाशिए बिन्दू प्रकट होकर पृथ्वी पर गिरा. उसी बिन्दू से आमलक अर्थात आंवले के महान पेड की उत्पति हुई. भगवान विष्णु के मुख से प्रकट होने वाले आंवले के वृक्ष को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है. इस फल के महत्व के विषय में कहा गया है, कि इस फल के स्मरणमात्र से रोग एवं ताप का नाश होता है तथा शुभ फलों की प्राप्ति होती है. यह फल भगवान विष्णु जी को अत्यधिक प्रिय है. इस फल को खाने से तीन गुना शुभ फलों की प्राप्ति होती है.

आंवला एकादशी पूजा | Amla Ekadashi Worship

आंवला एकादशी अर्थात आमलकी एकादशी इसी नाम से जाना जाता है यह एकादशी व्रत. फाल्गुन शुक्ल पक्ष की एकादशी को किया जाने वाला यह व्रत व्यक्ति को रोगों से मुक्ति दिलाने वाला होता है. इस व्रत में आंवले के वृक्ष की पूजा करने का विधि-विधान है. आंवला एकादशी का व्रत 10 मार्च 2025 को रखा जाना है.

इस व्रत के विषय में कहा जाता है, कि यह एकादशी समस्त पापों का नाश करने वाली है. इस व्रत में आंवले के पेड का पूजन किया जाता है. आंवले के वृक्ष के विषय में यह मत है, कि इसकी उत्पति भगवान श्री विष्णु के मुख से हुई है.

आंवला एकादशी कथा | Amla Ekadashi Story

प्राचीन काल में एक नगर था उस राज्य में सभी सुखी थे और भक्ति भाव से श्री विष्णु जी की पूजा एवं आराधना किया करते थे. राजा और प्रजा दोनों मिलकर एकादशी व्रत करते थे. एक बार एकादशी व्रत करने के समय सभी जन मंदिर में जागरण कर रहे थे. रात्रि के समय एक शिकारी आया जो भूखा था, वह लगभग सभी पापों का भागी था. मंदिर में अधिक लोग होने के कारण शिकारी को भोजन चुराने का अवसर न मिल सका और उस शिकारी को वह रात्रि जागरण करते हुए बितानी पडी. प्रात:काल होने पर सब जन अपने घर चले गए और शिकारी भी अपने घर चला गया.

कुछ समय बीतने के बाद शिकारी कि किसी कारणवश मृत्यु हो गई. उस शिकारी ने अनजाने में ही सही आमलकी एकादशी व्रत किया था, इस वजह से उसे कर्मों में शुभ फल प्राप्त हुआ और उसका जन्म एक राजा के यहां हुआ. वह एक बार वह शिकार को गया और डाकूओं के चंगुल में फंस गया. डाकू उसे मारने के लिए शस्त्र का प्रहार करने लगे. किंतु डाकूओं के शस्त्र स्वंय डाकूओं पर ही वार करने लगे. सभी डाकूओं को मृत्यु प्राप्त हुई जब राजा ने पूछा की इस प्रकार मेरी रक्षा करने वाला कौन है.

इसके जवाब में भविष्यवाणी हुई की तेरी रक्षा श्री विष्णु जी कर रहे है. यह कृपा आपके आमलकी एकादशी व्रत करने के प्रभावस्वरुप हुई है. यह सुनकर राजा ने नमन करते हुए स्वयं को प्रभु के चरणों में समर्पित कर दिया और उन्हीं की भक्ति करते हुए मोक्ष को प्राप्त किया. इस प्रकार जो भी जन प्रभु नारायण जी की उपासना करते हुए एकादशी व्रत का पालन करते हैं उनके समस्त पापों का नाश होता है तथा परमपद की प्राप्ति होती है.

Posted in Ekadashi, Fast, Festivals, Hindu Rituals, Puja and Rituals | Tagged , , | 1 Comment