विष्णु सप्तमी 2024 | Vishnu Saptami 2024 | Vishnu Saptami Vrat

विष्णु सप्तमी व्रत मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष कि सप्तमी तिथि के दिन किया जाता है. इस वर्ष विष्णु सप्तमी 07 दिसंबर 2024 को मनाई जानी है. भारतीय संस्कृति में ,मार्गशीर्ष मास का अपना एक विशेष महत्व होता है, इस मास में सांसारिक विषयों से ध्यान हटाकर आध्यात्मिक से रिश्ता जोडा जाता है. आत्मा का नियंत्रक ग्रह सूर्य धर्म के कारक होकर आध्यात्मिक उन्नति में सहायक होते हैं.

मार्गशीर्ष मास की हर तिथि अपना विशिष्ट आध्यात्मिक महत्व रखती है. ऐसा माना जाता है कि विष्णु सप्तमी के दिन उपवास रखकर भगवान विष्णु का पूजन करने से समस्त कार्य सफल होते हैं. विष्णु पुराण में शुक्लपक्ष की विष्णु सप्तमी तिथि को आरोग्यदायिनी कहा गया है. इस तिथि में सूर्यनारायण का पूजन करने से रोग-मुक्ति मिलती है.

विष्णु सप्तमी पूजन | Vishnu Saptami Pujan

सप्तमी का व्रत अपना विशेष महत्व रखता है. सप्तमी का व्रत करने वाले को प्रात:काल में स्नान और नित्यक्रम क्रियाओं से निवृत होकर, स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. इसके बाद प्रात:काल में श्री विष्णु और भगवान शिव की पूजा अर्चना करनी चाहिए. और सप्तमी व्रत का संकल्प लेना चाहिए. निराहार व्रत कर, दोपहर को चौक पूरकर चंदन, अक्षत, धूप, दीप, नैवेध, सुपारी तथा नारियल आदि से फिर से शिव- पार्वती की पूजा करनी चाहिए.

सप्तमी तिथि के व्रत में नैवेद्ध के रुप में खीर-पूरी तथा गुड के पुए बनाये जाते है. रक्षा की कामना करते हुए भगवान भोलेनाथ को लाळ रंगा का डोरा अर्पित किया जाता है. श्री भोलेनाथ को यह डोरा समर्पित करने के बाद इसे स्वयं धारण कर इस व्रत की कथा सुननी चाहिए. व्रत की कथा सुनने के बाद सांय काल में भगवान विष्णु की पूजा धूप, दीप, फल, फूल और सुगन्ध से करते हुए नैवैध का भोग भगवान को लगाना चाहिए. और भगवान कि आरती करनी चाहिए.

विष्णु सप्तमी महत्व | Significance of Vishnu Saptami

भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं सर्वव्यापक भगवान श्री विष्णु समस्त संसार में व्याप्त हैं कण-कण में उन्हीं का वास है उन्हीं से जीवन का संचार संभव हो पाता है संपूर्ण विश्व श्री विष्णु की शक्ति से ही संचालित है वे निर्गुण, निराकार तथा सगुण साकार सभी रूपों में व्याप्त हैं. विष्णु भगवान का स्वरूप बहुत ही विशाल एवं विस्तृत है उनके रूप को वेदों पुराणों में बहुत ही सुंदर तरीके से दर्शाया गया है भक्तों द्वारा उनके रूप का वर्णन तो देखते ही बनता है.

शेषनाग पर विराजमान भगवान विष्णु अपने चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण किए होते हैं पिताम्बर को धारण किए हुए उनकी आभा से समस्त लोक प्रकाशमान हैं, कौस्तुभमणि को धारण करने वाले, कमल नेत्र वाले भगवान श्री विष्णु देवी लक्ष्मी के साथ बैकुंठ धाम में निवास करते हैं. भगवान श्री विष्णु ही परमार्थ तत्व हैं तथा ब्रह्मा एवं शिव सहित समस्त सृष्टि के आदि कारण हैं.

अत: विष्णु सप्तमी व्रत करते हुए जो भी प्रभु विष्णु का ध्यान मन करता है वह समस्त भव सागरों को पार करके विष्णु धाम को पाता है. भगवान श्री विष्णु अत्यन्त दयालु तथा जीवों पर करुणा-वृष्टि करने वाले हैं उनकी शरण में जाकर श्री विष्णु के नामों का कीर्तन, स्मरण, दर्शन, वन्दन, श्रवण तथा उनका पूजन करने से समस्त पाप-ताप नष्ट हो जाते हैं. “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” महामंत्र के जाप से सभी के कष्ट दूर होते हैं उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होती है.

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मोक्षदा एकादशी 2024 | Mokshda Ekadashi 2024 | Mokshada Ekadasi Vrat

मार्गशीर्ष मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को मोक्षदा एकादशी के रुप में जाना जाता है. वर्ष 2024 में मोक्षदा एकादशी 11 दिसंबर को मनाई जाएगी. मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी अनेकों पापों को नष्ट करने वाली है. मोक्षदा एकादशी को दक्षिण भारत में वैकुण्ठ एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने महाभारत के प्रारम्भ होने से पूर्व अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था.

इस दिन श्री कृष्ण व गीता का पूजन शुभ फलदायक होता है. ब्राह्राण भोजन कराकर दान आदि कार्य करने से विशेष फल प्राप्त होते है. यह एकादशी मोक्षदा के नाम से प्रसिद्ध है. इस दिन भगवान श्री दामोदर की पूजा, धूप, दीप नैवेद्ध आदि से भक्ति पूर्वक करनी चाहिए.

मोक्षदा एकादशी पूजन | Moksha Ekadashi Pujan

व्रत के दिन स्नान करने के बाद ही मंदिर में पूजा करने के लिये जाना चाहिए. मंदिर या घर में श्री विष्णु पाठ करना चाहिए और भगवान के सामने व्रत का संकल्प लेना चाहिए. इस व्रत का समापन द्वादशी तिथि के दिन ब्राह्माणों को दान-दक्षिणा देने के बाद ही होता है. व्रत की रात्रि में जागरण करने से व्रत से मिलने वाले शुभ फलों में वृद्धि होती है. मोक्षदा एकादशी व्रत को करने से व्यक्ति के पूर्वज जो नरक में चले गये है, उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति होती है.

मोक्षदा एकादशी महत्व |Significance of Moksha Ekadashi

इसकी कथा इस प्रकार है. प्राचीन गोकुल नगर में वैखानस नाम का एक राजा राज्य करता था. उसके राज्य में चारों वेदों के ज्ञाता ब्राह्माण रहते थे. एक रात्रि को स्वप्न में राजा ने अपने पिता को नर्क मे पडा देखा, अपने पिता को इस प्रकार देख कर उसे बहुत दु:ख हुआ.

वह ब्राह्माणों के सामने अपनी स्वप्न के बारे कहता है कि पिता को इस प्रकार देख कर मुझे सभी ऎश्वर्य व्यर्थ महसूस हो रही है. आप लोग मुझे किसी प्रकार का उपाय बताएं, जिससे मेरे पिता को मुक्ति प्राप्त हो सके. राजा के ऎसे वचन सुनकर ब्राह्माण कहते हैं कि हे राजन, यहां समीप ही एक भूत-भविष्य के ज्ञाता एक “पर्वत” नाम के मुनि है. आप उनके पास जाईए, वही आपको इसके बारे में बतायेगें.

राजा ऎसा सुनकर मुनि के आश्रम पर गए़ उस आश्रम में अनेकों मुनि शान्त होकर तपस्या कर रहे थे. राजा ने जाकर ऋषि को प्रणाम करके सारी बत उन्हें बताई राजा की बात सुनकर मुनि ने आंखे बंद कर ली और कुछ देर बाद मुनि बोले कि आपके पिता ने अपने पिछले जन्म में एक दुष्कर्म किया था. उसी पाप कर्म के फल से तुम्हारा पिता नर्क में गए है.

यह सुनकर राजा ने अपने पिता के उद्वार की प्रार्थना ऋषि से की. मुनि राजा की विनती पर बोले की मार्गशीर्ष मसके शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है. उस एकादशि का आप उपवास करें. उस एकादशी के पुन्य के प्रभाव से ही आपके पिता को मुक्ति मिलेगी. मुनि के वचनों को सुनकर उसने अपने परिवार सहित मोक्षदा एकादशी का उपवास किया. उस उपवास के पुण्य को राजा ने अपने पिता को दे दिया. उस पुन्य के प्रभाव से राजा के पिता को मुक्ति मिल गई और वह स्वर्ग में जाते हुए अपने पुत्र से बोले, हे पुत्र तुम्हारा कल्याण हों, यह कहकर वे स्वर्ग चले गए.

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दत्तात्रेय जयंती 2024 | Dattatreya Jayanti 2024 | Dattatreya Jayanti | Lord Dattatreya

मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को दत्तात्रेय जयंती के रूप में भी मनाई जाती है. इस वर्ष 15 दिसंबर 2024 को मनाई जाएगी. मान्यता अनुसार इस दिन भगवान दत्तात्रेय का जन्म हुआ था. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार भगवान दत्तात्रेय को ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों का स्वरूप माना जाता है. दत्तात्रेय में ईश्वर एवं गुरु दोनों रूप समाहित हैं जिस कारण इन्हें श्री गुरुदेवदत्त भी कहा जाता है.

मान्यता अनुसार दत्तात्रेय का जन्म मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को प्रदोषकाल में हुआ था. श्रीमद्भगावत ग्रंथों के अनुसार दत्तात्रेय जी ने चौबीस गुरुओं से शिक्षा प्राप्त की थी. भगवान दत्त के नाम पर दत्त संप्रदाय का उदय हुआ  दक्षिण भारत में इनके अनेक प्रसिद्ध मंदिर भी हैं. मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा को भगवान दत्तात्रेय के निमित्त व्रत करने एवं उनके दर्शन-पूजन करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं.

दत्तात्रेय स्वरूप | Dattatreya Appearance

दत्तात्रेय जयन्ती प्रतिवर्ष मार्गशीर्ष माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है. दत्तात्रेय के संबंध में प्रचलित है कि इनके तीन सिर हैं और छ: भुजाएँ हैं. इनके भीतर ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों का ही संयुक्त रुप से अंश मौजूद है. इस दिन दत्तात्रेय जी के बालरुप की पूजा की जाती है. धर्म ग्रंथों के अनुसार एक बार तीनों देवियों पार्वती, लक्ष्मी तथा सावित्री जी को अपने पतिव्रत धर्म पर बहुत घमण्ड होता है अत: नारद जी को जब इनके घमण्ड के बारे में पता चला तो वह इनका घमण्ड चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों की परीक्षा लेते हैं जिसके परिणाम स्वरूप दत्तात्रेय का प्रादुर्भाव होता है.

दत्तात्रेय जयंती कथा | Dattatreya Jayanti Katha

नारद जी देवियों का गर्व चूर करने के लिए बारी-बारी से तीनों देवियों के पास जाते हैं और देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करते हैं. लगे. देवी ईर्ष्या से भर उठी और नारद जी के जाने के पश्चात भगवान शंकर से अनुसूया का सतीत्व भंग करने की जिद करने लगी. सर्वप्रथम नारद जी पार्वती जी के पास पहुंचे और अत्रि ऋषि की पत्नी देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म का गुणगान करने लगे.

देवीयों को सती अनुसूया की प्रशंसा सुनना कतई भी रास नहीं आया. घमण्ड के कारण वह जलने-भुनने लगी. नारद जी के चले जाने के बाद वह देवी अनुसूया के पतिव्रत धर्म को भंग करने की बात करने लगी. ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश तीनों को अपनी पत्नियो के सामने हार माननी पडी़ और वह तीनों ही देवी अनुसूया की कुटिया के सामने एक साथ भिखारी के वेश में जाकर खडे़ हो गए. जब देवी अनुसूया इन्हें भिक्षा देने लगी तब इन्होंने भिक्षा लेने से मना कर दिया और भोजन करने की इच्छा प्रकट की.

देवी अनुसूया ने अतिथि सत्कार को अपना धर्म मानते हुए उनकी बात मान ली और उनके लिए प्रेम भाव से भोजन की थाली परोस लाई. लेकिन तीनों देवों ने भोजन करने से इन्कार करते हुए कहा कि जब तक आप नग्न होकर भोजन नहीं परोसेगी तब तक हम भोजन नहीं करेगें. देवी अनुसूया यह सुनते ही पहले तो स्तब्ध रह गई और गुस्से से भर उठी. लेकिन अपने पतिव्रत धर्म के बल पर उन्होंने तीनो की मंशा जान ली.

उसके बाद देवी ने ऋषि अत्रि के चरणों का जल तीनों देवों पर छिड़क दिया. जल छिड़कते ही तीनों ने बालरुप धारण कर लिया. बालरुप में तीनों को भरपेट भोजन कराया. देवी अनुसूया उन्हें पालने में लिटाकर अपने प्रेम तथा वात्सल्य से उन्हें पालने लगी. धीरे-धीरे दिन बीतने लगे. जब काफी दिन बीतने पर भी ब्रह्मा, विष्णु तथा महेश घर नही लौटे तब तीनों देवियों को अपने पतियों की चिन्ता सताने लगी.

देवियों को अपनी भूल पर पछतावा होने लगा. वह तीनों ही माता अनुसूया से क्षमा मांगने लगी. तीनों ने उनके पतिव्रत धर्म के समक्ष अपना सिर झुकाया. माता अनुसूया ने कहा कि इन तीनों ने मेरा दूध पीया है, इसलिए इन्हें बालरुप में ही रहना ही होगा. यह सुनकर तीनों देवों ने अपने – अपने अंश को मिलाकर एक नया अंश पैदा किया. इसका नाम दत्तात्रेय रखा गया. इनके तीन सिर तथा छ: हाथ बने. तीनों देवों को एकसाथ बालरुप में दत्तात्रेय के अंश में पाने के बाद माता अनुसूया ने अपने पति अत्रि ऋषि के चरणों का जल तीनों देवो पर छिड़का और उन्हें पूर्ववत रुप प्रदान कर दिया.

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मार्गशीर्ष अमावस 2024 | Margashirsha Amavasya | Margashirsha Amavasya 2024

मार्गशीर्ष का महीना श्रद्धा एवं भक्ति से पूर्ण होता है. मार्गशीर्ष अमावस इस वर्ष 01 दिसंबर 2024 को रहेगी. इस माह में श्रीकृष्ण भक्ति का विशेष महत्व होता है और पितरों की पूजा भी कि जाती है इस दिन पितर पूजा द्वारा पितरों को शांति मिलती है और पितर दोष का निवारण भी होता है. मार्गशीर्ष अमावस्या तिथि प्रत्येक धर्म कार्य के लिए अक्षय फल देने वाली बतायी गयी है. पर पितरों की शान्ति के लिये अमावस्या व्रत पूजन का विशेष महत्व है. जो लोग अपने पितरों की मोक्ष प्राप्ति, सदगति के लिये कुछ करना चाहते है उन्हें इस माह की अमावस्या को उपवास रख, पूजन कार्य करना चाहिए.

शास्त्रों के अनुसार देवों से पहले पितरों को प्रसन्न करना चाहिए. जिन व्यक्तियों की कुण्डली में पितृ दोष हो, संतान हीन योग बन रहा हो या फिर नवम भाव में राहू नीच के होकर स्थित हो, उन व्यक्तियों को यह उपवास अवश्य रखना चाहिए. इस उपवास को करने से मनोवांछित उद्देश्य़ की प्राप्ति होती है. विष्णु पुराण के अनुसार श्रद्धा भाव से अमावस्या का उपवास रखने से पितृगण ही तृप्त नहीं होते, अपितु ब्रह्मा, इंद्र, रुद्र, अश्विनी कुमार, सूर्य, अग्नि, पशु-पक्षी और समस्त भूत प्राणी भी तृप्त होकर प्रसन्न होते हैं.

गीता में स्वयं भगवान ने कहा है कि महीनों मे ‘मैं मार्गशीर्ष माह हूँ’ तथा सत युग में देवों ने मार्ग-शीर्ष मास की प्रथम तिथि को ही वर्ष का प्रारम्भ किया था. मार्गशीर्ष अमावस के दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व बताया गया है. स्नान के समय नमो नारायणाय या गायत्री मंत्र का उच्चारण करना फलदायी होता है.  मार्गशीर्ष माह में पूरे महीने प्रात:काल समय में भजन मण्डलियाँ, भजन, कीर्तन करती हुई निकलती हैं.

मार्गशीर्ष अमावस महत्व | Margashirsha Amavasya Significance

जिस प्रकार कार्तिक ,माघ, वैशाख आदि महीने गंगा स्नान के लिए अति शुभ एवं उत्तम माने गए हैं. उसी प्रकार मार्गशीर्ष माह में भी गंगा स्नान का विशेष फल प्राप्त होता है. मार्गशीर्ष माह की अमावस का आध्यात्मिक महत्व खूब रहा है. जिस दिन मार्गशिर्ष माह में अमावस तिथि हो, उस दिन स्नान दान और तर्पण का विशेष महत्व रहता है. अमावस तिथि के दिन व्रत करते हुए श्रीसत्यनारायण भगवान की पूजा और कथा की जाती है जो अमोघ फलदायी होती है. इस दिन नदियों या सरोवरों में स्नान करने तथा साम‌र्थ्य के अनुसार दान करने से सभी पाप क्षय हो जाते हैं तथा पुण्य कि प्राप्ति होती है.

अगहन माह | Agahan Maas

समस्त महिनों में मार्गशीर्ष श्रीकृष्ण का ही स्वरूप है. मार्गशीर्ष माह के संदर्भ में कहा गया है कि इस माह का संबंध मृगशिरा नक्षत्र से होता है. ज्योतिष अनुसार इस माह की पूर्णिमा मृगशिरा नक्षत्र से युक्त होती है जिस कारण से इस मास को मार्गशीर्ष मास कहा जाता है. इसके अतिरिक्त इस महीने को मगसर, अगहन या अग्रहायण माह भी कहा जाता है. मार्गशीर्ष के महीने में स्नान एवं दान का विशेष महत्व होता है. श्रीकृष्ण ने गोपियां को मार्गशीर्ष माह की महत्ता बताई थी तथा उन्होंने कहा था कि मार्गशीर्ष के महीने में यमुना स्नान से मैं सहज ही प्राप्त हो जाता हूँ अत: इस माह में नदी स्नान का विशेष महत्व माना गया है.

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पौष संक्रांति 2024 | Poush Sankranti 2024 | Poush sankranti puja

पौष संक्रांति पर सूर्य  धनु राशि में प्रवेश करेंगे. पौष संक्रांति पर सूर्य  धनु राशि में प्रवेश करेंगे. पौष संक्रांति का आरंभ 16 दिसंबर 2024, को होगी.

हिन्दुओं के पवित्र पौष माह में आने वाली संक्रांति के दिन गंगा-यमुना स्नान का बहुत महत्व होता है. पौष संक्रांति पर चारों ओर वातावरण भक्तिमय होता है. श्रद्धालु व भक्त जन प्रात:काल ही नदी व तालाबों में स्नान करने पहुंच जाते हैं. श्रद्धालु स्नान करते हुए सूर्य देव को अर्घ्य देते हैं.

मान्यता है कि ऐसा करने से स्वयं की शुद्धि होती है, साथ ही पुण्य का लाभ भी मिलता है. इस दिन गायत्री महामंत्र का श्रद्धा से उच्चारण किया जाना चाहिए तथा सूर्य मंत्र का जाप भी करना उत्तम होता है. इससे बुद्धि और विवेक की प्राप्ति होती है. संक्रांति का आरंभ सूर्य की परिक्रमा से किया जाता है. सूर्य जिस राशि में प्रवेश कर्ता है उसी दिन को  संक्रांति कहते हैं. संक्रांति के दिन मिष्ठा बनाकर भगवान को भोग लगाया जाता है ओर यह भोग प्रसाद रुप में परिवार के सभी सदस्यों में बांटा जाता है.

 

पौष संक्रांति पूजन | Poush Sankranti Pujan

पौष संक्रांति के अवसर पर भगवान सत्यनारायण जी कि कथा की जाती है, भगवान विष्णु की पूजा में केले के पत्ते व फल, पंचामृत, सुपारी, पान, तिल,  मोली, रोली, कुमकुम, दूर्वा का उपयोग किया जाता है. सत्यनारायण की पूजा के लिए दूध, शहद, केला, गंगाजल, तुलसी पत्ता, मेवा मिलाकर पंचामृत तैयार किया जाता है, इसके साथ ही साथ प्रसाद बनाया जाता है और भोग लगता है. सत्य-नारायण की कथा के बाद उनका पूजन होता है, इसके बाद देवी लक्ष्मी, महादेव और ब्रह्मा जी की आरती कि जाती है और चरणामृत लेकर प्रसाद बांटा जाता है.

 

पौष संक्रांति महत्व | Paush Sankranti Importance

पौष संक्रांति के पावन पर्व पर गंगा समेत अनेक पवित्र नदियों में स्नान किया जाता है. हरिद्वार समेत अनेक स्थानों पर लोग आस्था की डुबकी लगाते हैं और पापों से मुक्त होते हैं. पौष संक्रांति के स्नान पर पुण्य की कामना से स्नान का बहुत महत्व होता है. इस अवसर पर किए गए दान का अमोघ फल प्राप्त होता है, यह एक बहुत पवित्र अवसर माना जाता है जो सभी संकटों को दूर करके मनोकामनाओं की पूर्ति करता है.

पौष संक्रान्ति, के दिन तीर्थस्नान, जप-पाठ, दान आदि का विशेष महत्व रहता है. संक्रान्ति, पूर्णिमा और चन्द्र ग्रहण तीनों ही समय में यथा शक्ति दान कार्य करने चाहिए. जो जन तीर्थ स्थलों में नहीं जा पाएं, उन्हें अपने घर में ही स्नान, दान कार्य कर लेने चाहिए. इसके अतिरिक्त इस मास में विष्णु के सहस्त्र नामों का पाठ भी करना चाहिए संक्रांति तथा एकादशी तिथि, अमावस्या तिथि और पूर्णिमा के दिन ब्राह्माणों को भोजन तथा फल, वस्त्र, मिष्ठानादि का दक्षिणा सहित यथाशक्ति दान कर, एक समय भोजन करना चाहिए. इस प्रकार नियम पूर्वक यह धर्म कार्य करने से विशेष पुण्य फलों की प्राप्ति होती है.

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उत्पन्ना एकादशी 2024 | Utpanna Ekadashi 2024 | Utpanna Ekadasi Vrat

मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष के दिन उत्पन्ना एकादशी का व्रत किया जाता है. वर्ष 2024 के दिन उत्पन्ना एकादशी व्रत 26 नवंबर का रहेगा . यह व्रत पूर्ण नियम, श्रद्धा व विश्वास के साथ रखा जाता है, इसे व्रत के प्रभावस्वरूप धर्म एवं मोक्ष फलों की प्राप्ति होती है. मान्यता है कि इस व्रत के फलस्वरुप मिलने वाले फल अश्वमेघ यज्ञ, कठिन तपस्या, तीर्थों में स्नान-दान आदि से मिलने वाले फलों से भी अधिक होते है.

यह उपवास, उपवासक का मन निर्मल करता है, शरीर को स्वस्थ करता है, हृदय शुद्ध करता है तथा भक्त को सदमार्ग की ओर प्रेरित करता है. व्रत का पुण्य जीव का उद्धार करता है. एकादशी के व्रतों में उत्पन्ना एकादशी व्रत को मुख्य स्थान प्राप्त है. इस दिन भगवान श्री विष्णु जी की पूजा करने का विधान है. इस दिन ब्रह्रा मुहूर्त समय में भगवान का पुष्प, धूप, दीप, अक्षत से पूजन करना चाहिए. इस व्रत में केवल फलों का ही भोग लगाया जाता है.

उपवास में तामसिक वस्तुओं का सेवन करना निषेध माना जाता है. वस्तुओं में मांस, मदिरा, प्याज व मसूर दाल है. ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए व्रत का संकल्प करना चाहिए. प्रात:काल समस्त दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर स्नान करने के पश्चात सूर्य देव को जलअर्पण करके भगवान विष्णु जी का ध्यान करना चाहिए. इसके पश्चात धूप, दीप, नैवेद्ध से भगवान का पूजन करना चाहिए.

रात्री समय दीपदान करना चाहिए यह सत्कर्म भक्ति पूर्वक करने चाहिए. उस रात को नींद का त्याग करना चाहिए और रात्रि में भजन सत्संग आदि शुभ कर्म करने चाहिए. उस दिन श्रद्वापूर्वक ब्राह्माणों को दक्षिणा देनी चाहिए और प्रभु से अपनी गलतियों की क्षमा मांगनी चाहिए. और अगर संभव हों, तो इस मास के दोनों पक्षों की एकादशी के व्रतों को करना चाहिए.

उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा | Utpanna Ekadasi Vrat Katha

सतयुग में एक महा भयंकर दैत्य मुर हुआ करता था. दैत्य  मुर ने इन्द्र आदि देवताओं पर विजय प्राप्त कर उन्हें, उनके स्थान से भगा दिया. तब इन्द्र तथा अन्य देवता क्षीर सागर भगवान श्री विष्णु के पास जाते हैं. देवताओं सहित सभी ने श्री विष्णु जी से दैत्य के अत्याचारों से मुक्त होने के लिये विनती की. इन्द्र देव के वचन सुनकर भगवान श्री विष्णु बोले -देवताओं मै तुम्हारे शत्रुओं का शीघ्र ही संकार करूंगा.

जब दैत्यों ने भगवान श्री विष्णु जी को युद्ध भूमि में देखा तो उन पर अस्त्रों-शस्त्रों का प्रहार करने लगे. भगवान श्री विष्णु मुर को मारने के लिये जिन-जिन शास्त्रों का प्रयोग करते वे सभी उसके तेज से नष्ट होकर उस पर पुष्पों के समान गिरने लगे़ भगवान श्री विष्णु उस दैत्य के साथ सहस्त्र वर्षों तक युद्ध करते रहे़ परन्तु उस दैत्य को न जीत सके. अंत में विष्णु जी शान्त होकर विश्राम करने की इच्छा से बद्रियाकाश्रम में एक लम्बी गुफा में वे शयन करने के लिये चले गये.

दैत्य भी उस गुफा में चला गया, कि आज मैं श्री विष्णु को मार कर अपने सभी शत्रुओं पर विजय प्राप्त कर लूंगा. उस समय गुफा में एक अत्यन्त सुन्दर कन्या उत्पन्न हुई़ और दैत्य के सामने आकर युद्ध करने लगी. दोनों में देर तक युद्ध हुआ. उस कन्या ने उसको धक्का मारकर मूर्छित कर दिया और उठने पर उस दैत्य का सिर काट दिया और वह दैत्य मृत्यु को प्राप्त हुआ.

उसी समय श्री विष्णु जी की निद्रा टूटी तो उस दैत्य को किसने मारा वे ऎसा विचार करने लगे. इस पर उक्त कन्या ने उन्हें कहा कि दैत्य आपको मारने के लिये तैयार था. तब मैने आपके शरीर से उत्पन्न होकर इसका वध किया है. भगवान श्री विष्णु ने उस कन्या का नाम एकादशी रखा क्योकि वह एकादशी के दिन श्री विष्णु के शरीर से उत्पन्न हुई थी इसलिए इस दिन को उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है.

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भैरवाष्टमी पूजा 2024 | Bhairav Ashtami Puja | Kaal Bhairav Ashtami

इस वर्ष 23 नवंबर, 2024 के दिन भैरवाष्टमी मनाई जाएगी. काल भैरव अष्टमी तंत्र साधना के लिए अति उत्तम मानी जाती है. कहते हैं कि भगवान का ही एक रुप है भैरव साधना भक्त के सभी संकटों को दूर करने वाली होती है. यह अत्यंत कठिन साधनाओं में से एक होती है जिसमें मन की सात्विकता और एकाग्रता का पूरा ख्याल रखना होता है. पौराणिक मान्यताओं के आधार स्वरूप मार्गशीर्ष कृष्ष्ण पक्ष अष्टमी के दिन भगवान शिव, भैरव रूप में प्रकट हुए थे अत: इसी उपलक्ष्य में इस तिथि को व्रत व पूजा का विशेष विधान है.

भैरवाष्टमी या कालाष्टमी के दिन पूजा उपासना द्वारा सभी शत्रुओं और पापी शक्तियों का नाश होता है और सभी प्रकार के पाप, ताप एवं कष्ट दूर हो जाते हैं. भैरवाष्टमी के दिन व्रत एवं षोड्षोपचार पूजन करना अत्यंत शुभ एवं फलदायक माना जाता है. इस दिन श्री कालभैरव जी का दर्शन-पूजन शुभ फल देने वाला होता है.

भैरव जी की पूजा उपासना मनोवांछित फल देने वाली होती है. यह दिन साधक भैरव जी की पूजा अर्चना करके तंत्र-मंत्र की विद्याओं को पाने में समर्थ होता है. यही सृष्टि की रचना, पालन और संहारक हैं. इनका आश्रय प्राप्त करके भक्त निर्भय हो जाता है तथा सभी कष्टों से मुक्त रहता है.

भैरवाष्टमी पूजन | Bhairav Ashtami Pujan

भगवान शिव के इस रुप की उपासना षोड्षोपचार पूजन सहित करनी चाहिए. रात्री समय जागरण करना चाहिए व इनके मंत्रों का जाप करते रहना चाहिए. भजन कीर्तन करते हुए भैरव कथा व आरती की जाती है. इनकी प्रसन्नता हेतु इस दिन काले कुत्ते को भोजन कराना शुभ माना जाता है. मान्यता अनुसार इस दिन भैरव जी की पूजा व व्रत करने से समस्त विघ्न समाप्त हो जाते हैं, भूत, पिशाच एवं काल भी दूर रहता है.

भैरव उपासना क्रूर ग्रहों के प्रभाव को समाप्त करती है. भैरव देव जी के राजस, तामस एवं सात्विक तीनों प्रकार के साधना तंत्र प्राप्त होते हैं. भैरव साधना स्तंभन, वशीकरण, उच्चाटन और सम्मोहन जैसी तांत्रिक क्रियाओं के दुष्प्रभाव को नष्ट करने के लिए कि जाती है. इनकी साधना करने से सभी प्रकार की तांत्रिक क्रियाओं के प्रभाव नष्ट हो जाते हैं

भैरव साधना महत्व | Importance of Bhairav Sadhana

इन्हीं से भय का नाश होता है और इन्हीं में त्रिशक्ति समाहित हैं. हिंदू देवताओं में भैरव जी का बहुत ही महत्व है यह दिशाओं के रकक्षक और काशी के संरक्षक कहे जाते हैं. कहते हैं कि भगवान शिव से ही भैरव जी की उत्पत्ति हुई. यह कई रुपों में विराजमान हैं बटुक भैरव और काल भैरव यही हैं. इन्हें रुद्र, क्रोध, उन्मत्त, कपाली, भीषण और संहारक भी कहा जाता है. भैरव को भैरवनाथ भी कहा जाता है और नाथ सम्प्रदाय में इनकी पूजा का विशेष महत्व रहा है.

भैरव आराधना से शत्रु से मुक्ति, संकट, कोर्ट-कचहरी के मुकदमों में विजय प्राप्त होती है, व्यक्ति में साहस का संचार होता है. इनकी आराधना से ही शनि का प्रकोप शांत होता है, रविवार और मंगलवार के दिन इनकी पूजा बहुत फलदायी है. भैरव साधना और आराधना से पूर्व अनैतिक कृत्य आदि से दूर रहना चाहिए पवित्र होकर ही सात्विक आराधना की जाती है तभी फलदायक होती है. भैरव तंत्र में भैरव पद या भैरवी पद प्राप्त करने के लिए भगवान शिव ने देवी के समक्ष अनेक विधियों का उल्लेख किया जिनके माध्यम से उक्त अवस्था को प्राप्त हुआ जा सकता है.

भैरव जी शिव और दुर्गा के भक्त हैं व इनका चरित्र बहुत ही सौम्य, सात्विक और साहसिक माना गया है न की डर उत्पन्न करने वाला इनका कार्य है सुरक्षा करना और कमजोरों को साहस देना व समाज को सही मार्ग देना. काशी में स्थित भैरव मंदिर सर्वश्रेष्ठ स्थान पाता है. इसके अलावा शक्तिपीठों के पास स्थित भैरव मंदिरों का महत्व माना गया है माना जाता है कि इन्हें स्वयं भगवान शिव ने स्थापित किया था.

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सौभाग्य सुंदरी व्रत 2024 | Saubhagya Sundari Fast | Saubhagya Sundari Vrat

सौभाग्य सुंदरी व्रत सुहागिन का त्यौहार रहा है यह व्रत सौभाग्य की कामना व संतान सुख की प्राप्ति हेतु किया जाता है. यह व्रत सौभाग्यवती स्त्रियों के लिए अखण्ड सौभाग्य का वरदान होता है और उन्हें संतान का सुख देना वाला होता है. इस व्रत को करने से विवाहित स्त्रियों के सौभाग्य में वृद्धि होती है. दांपत्य दोष, विवाह न होना या देर होना तथा मंगली दोष को दूर करने वाला होता है.

सौभाग्य सुंदरी व्रत स्त्रियों के लिए मंगलकारी होता है. इसी दिन माता सती ने अपनी कठोर साधना और तपस्या द्वरा अभगवान शिव को पाने का संकल्प किया था जिसके फलस्वरूप भगवान शिव उन्हें पति रूप में प्राप्त होते हैं. इसी प्रकार अपने पुर्नजन्म पार्वती रुप में भी उन्होंने पुन: शिव को पति रूप में पाने के लिए घोर साधना कि कठिन परीक्षा को सफलता से पूर्ण कर लेने पर ही प्रभु ने उन्हें पुन: वरण किया और शिव-पार्वती का विवाह संपन्न हुआ इसलिए माँ पार्वती की भांति स्वयं के लिए उत्तम वर का चयन करने हेतु सौभाग्य सुंदरी व्रत की पौराणिक महत्ता परिलक्षित होती है. इस व्रत के प्रभाव से अखंड सौभाग्यवती होने का आशिर्वाद प्राप्त होता है.

सौभाग्य सुंदरी पूजा | Saubhagya Sundari Puja

सौभाग्य सुंदरी पूजन में माता गौरी और शिव भंगवान की पूजा कि जाती है साथ ही उनके समस्त परिवार का पूजन होता है. पूजन सामग्री में फूलों की माला, फल, भोग के लिए लड्डू, पान, सुपारी, इलायची, लोंग तथा सोलह श्रंगार की वस्तुएं, जिन्में लाल साडी़, चूडियां, बिंदी, कुमकुम, मेंहदी, आलता, पायल रखते हैं इसके अतिरिक्त सूखे मेवे, सात प्रकार के अनाज रखे जाते हैं. व्रत का आरंभ करने वाली महिला प्रात:काल उठकर समस्त दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर का संकल्प सहित प्रारम्भ करती हैं.

भगवान शिव और माता पार्वती की मूर्ति या फोटो को लाल रंग के कपडे से लिपेट कर, लकडी की चौकी पर रखा जाता है. इसके बाद एक दीया भगवान के सम्मुख प्रज्ज्वलीत किया जाता है. सर्वप्रथम श्री गणेश जी का पूजन किया जाता है. पूजन में श्री गणेश पर जल, रोली, मौली, चन्दन, सिन्दूर, सुपारी, लोंग, पान,चावल, फूल, इलायची, बेलपत्र, फल, मेवा और दक्षिणा चढाते हैं.

इसके पश्चात नौ ग्रहों की पूजा की जाती है. अब समस्त शिव परिवार का पूजन होता है देवी के सम्मुख सभी सौभाग्य की वस्तुएं अर्पण कि जाती हैं. देवी की प्रतिमा को जल, दूध, दही से स्नान करा, वस्त्र आदि पहनाकर रोली, चन्दन, सिन्दुर, मेंहन्दी लगाते है. श्रंगार की सोलह वस्तुओं से माता को सजाया जाता हैं. फिर मेवे, सुपारी, लौग, मेंहदी, चूडियां चढाते है.पूजा संपन्न होने के उपरांत ब्राह्माण को दान व दक्षिणा दी जाती है.

सौभाग्य सुंदरी महत्व | Rituals To Worship For Saubhagya Sundari Fast

इस दिन महिलाएं मनोनुकूल पति और पुत्र प्राप्ति के लिए इस व्रत को करती हैं. महिलाएं इस दिन तिल मिश्रित जल से शिव-पार्वती को स्नान करा कर यथोचित वस्त्र-स्वर्णाभूषण आदि से पूजा करते हुए मंत्र जाप करती हैं. व माँ से प्रार्थना की जाति है कि हे माता आप मेरे पापों का नाश करें मुझे सौभाग्य प्रदान करें और मुझे सर्वसिद्धियां प्रदान करें. व्रत व्यक्ति के सुख- सौभाग्य में वृद्धि करता है. सौभाग्य से जुडे होने के कारण इस व्रत को विवाहित महिलाएं और नवविवाहित महिलाएं करती है.

इस उपवास को करने का उद्धेश्य अपने पति व संतान के लम्बे व सुखी जीवन की कामना करना है.जिन महिलाओं की कुण्डली में वैवाहिक सुख में कमी या विवाह के बाद अलगाव जैसे अशुभ योग बन रहे हों, उन महिलाओं को भी यह व्रत विशेष रुप से करना चाहिए. इस व्रत के विषय में यह मान्यता है, कि यह उपवास नियम अनुसार किया जायें तो वैवाहिक सुख को बढाता है, तथा दांम्पत्य जीवन को सुखमय बनाये रखने में सहयोग करता है.

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छठ महोत्सव 2024 | Chhath Festival 2024 | Chhath Puja

छठ का त्यौहार सूर्योपासना का पर्व होता है. छठ का त्यौहार सूर्य की आराधना का पर्व है, प्रात:काल में सूर्य की पहली किरण और सायंकाल में सूर्य की अंतिम किरण को अघ्र्य देकर दोनों का नमन किया जाता है. सूर्य षष्ठी व्रत होने के कारण इसे छठ कहा गया है, सुख-स्मृद्धि तथा मनोकामनाओं की पूर्ति का यह त्यौहार सभी समान रूप से मनाते हैं. प्राचीन धार्मिक संदर्भ में यदि इस पर दृष्टि डालें तो पाएंगे कि छठ पूजा का आरंभ महाभारत काल के समय से देखा जा सकता है. छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए भगवान सूर्य की आराधना कि जाती है तथा गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर के किनारे पानी में खड़े होकर यह पूजा संपन्न कि जाती है.

छठ पूजा तिथि | Chhath Worship Dates

छठ पूजा चार दिनों का अत्यंत कठिन और महत्वपूर्ण महापर्व होता है. इसका आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है और समाप्ति कार्तिक शुक्ल सप्तमी को होती है इस लम्बे अंतराल में व्रतधारी पानी भी ग्रहण नहीं करता. बिहार और उत्तर प्रदेश के पूर्वी इलाकों में छठ पर्व पूर्ण श्रद्धा के साथ मनाया जाता है. छठ त्यौहार के समय बाजारों में जमकर खरीदारी होती है लोग इसके लिए खासकर फल, गन्ना, डाली और सूप आदि जमकर खरीदते हैं.

छठ पूजा व्रत आरंभ

नहाय खाय – 05 नवंबर 2024
खरना । लोहंडा – 06 नवंबर 2024
सांझा अर्घ्य- 07 नवंबर 2024
सूर्योदय अर्घ्य – 08 नवंबर 2024

छठ पूजन | Chhath Pujan

छठ पूजा का आरंभ कार्तिक शुक्ल चतुर्थी से होता है तथा कार्तिक शुक्ल सप्तमी को इसका समापन्न होता है. प्रथम दिन कार्तिक शुक्ल चतुर्थी ‘नहाय-खाय’ के रूप में मनाया जाता है नहाए-खाए के दूसरे दिन कार्तिक शुक्ल पंचमी को खरना किया जाता है. पंचमी को दिनभर खरना का व्रत रखने वाले व्रती शाम के समय गुड़ से बनी खीर, रोटी और फल का सेवन प्रसाद रूप में करते हैं.

व्रती 36 घंटे का निर्जला व्रत करते हैं व्रत समाप्त होने के बाद ही व्रती अन्न और जल ग्रहण करते हैं. खरना पूजन से ही घर में देवी षष्ठी का आगमन हो जाता है. इस प्रकार भगवान सूर्य के इस पावन पर्व में शक्ति व ब्रह्मा दोनों की उपासना का फल एक साथ प्राप्त होता है. षष्ठी के दिन घर के समीप ही की सी नदी या जलाशय के किनारे पर एकत्रित होकर पर अस्ताचलगामी और दूसरे दिन उदीयमान सूर्य को अर्ध्य समर्पित कर पर्व की समाप्ति होती है.

छठ पर्व महत्व | Chhath Worship

छठ पूजा का आयोजन बिहार व पूर्वी उत्तर प्रदेश के अतिरिक्त देश के कोने-कोने में देखा जा सकता है.  देश-विदेशों में रहने वाले लोग भी इस पर्व को बहुत धूम धाम से मनाते हैं. मान्यता अनुसार सूर्य देव और छठी मइया भाई-बहन है, छठ व्रत नियम तथा निष्ठा से किया जाता है  भक्ति-भाव से किए गए इस व्रत द्वारा नि:संतान को संतान सुख प्राप्त होता है. इसे करने से धन-धान्य की प्राप्ति होती है तथा जीवन सुख-समृद्धि से परिपूर्ण रहता है. छठ के दौरान लोग सूर्य देव की पूजा करतें हैं , इसके लिए जल में खड़े होकर कमर तक पानी में डूबे लोग, दीप प्रज्ज्वलित किए नाना प्रसाद से पूरित सूप उगते और डूबते सूर्य को अर्ध्य देते हैं और छठी मैया के गीत गाए जाते हैं.

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कूष्माण्डा नवमी | Kushmanda Navami | Kushmanda Navami Festival

कूष्माण्डा नवमी सिद्धि प्रदान करने वाली होती है. इसके पूजन से समस्त रोग-शोक दूर हो जाते हैं भक्त को दैवीय आशिर्वाद प्राप्त होता है. कूष्माण्डा नवमी पूजा आयु में वृद्धि करने वाली और व्यक्ति को मान सम्मान और यश प्रदान करती है. या देवी सर्वभू‍तेषु माँ कूष्माण्डा रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।। का मंत्र माता के स्वरूप को दर्शाता है. सर्वत्र विराजमान और कूष्माण्डा के रूप में देवी भक्त के समस्त पापों का नाश करती हैं.  मंद मुस्कान से सृष्टि को उत्पन्न करने के कारण देवी को यह नाम प्राप्त होता है. जिस प्रकार फूल में अण्ड का जन्म होता है उसी प्रकार कुसुम अर्थात फूल के समान मां की हंसी से सृष्टि में ब्रह्मण्ड का जन्म हुआ अत: यह देवी कूष्माण्डा के रूप में विख्यात हुई.

कूष्माण्डा नवमी पूजन | Rituals For Kushmanda Navami Puja

दुर्गा का चौथा रुप हैं देवी कूष्माण्डा इस दिन पवित्र और शांत मन से कूष्माण्डा देवी का ध्यान करने से आत्मिक संतुष्टि प्राप्त होती है. यही सृष्टि की आदिशक्ति है. इनका निवास सूर्य मण्डल के भीतर माना जाता है.  सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति इन्ही में है, इनके शरीर की कान्ति और प्रभा देदीप्यमान है. अष्टभुजा में धनुष-बाण, कमण्डल, कमल, कलश, चक्र व गदा धारण किए हुए हैं. यह सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली हैं, सिंह पर सवारा माता दुष्टों का नाश करती हुई निर्बलों को भय मुक्त करती हैं.

जो साधक कुण्डलिनी जागृत करने की इच्छा रखता है उसे माता कूष्माण्डा की सभी प्रकार से विधिवत पूजा करनी चाहिए और साधना में बैठना चाहिए. इस प्रकार जो साधक प्रयास करते हैं उन्हें भगवती कूष्माण्डा सफलता प्रदान करती हैं जिससे व्यक्ति सभी प्रकार के भय से मुक्त हो जाता है और मां का अनुग्रह प्राप्त करता है.

इस दिन देवी कूष्माण्डा की पूजा विधि शुरू करने से पहले हाथों में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर इस मंत्र का ध्यान करें “सुरासम्पूर्णकलशं रूधिराप्लुतमेव च. दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्माण्डा शुभदास्तु मे. द्वारा स्मरण करें. देवी की पूजा के पश्चात महादेव और परम पिता की पूजा करनी चाहिए. श्री हरि की पूजा देवी लक्ष्मी के साथ ही करनी चाहिए.

स्तोत्र पाठ | Strotra Path

दुर्गतिनाशिनी त्वंहि दरिद्रादि विनाशनीम्।
जयंदा धनदा कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
जगतमाता जगतकत्री जगदाधार रूपणीम्।
चराचरेश्वरी कूष्माण्डे प्रणमाम्यहम्॥
त्रैलोक्यसुन्दरी त्वंहिदुःख शोक निवारिणीम्।
परमानन्दमयी, कूष्माण्डे प्रणमाभ्यहम्॥

कवच | Kawach

हंसरै में शिर पातु कूष्माण्डे भवनाशिनीम्।
हसलकरीं नेत्रेच, हसरौश्च ललाटकम्॥
कौमारी पातु सर्वगात्रे, वाराही उत्तरे तथा,पूर्वे पातु वैष्णवी इन्द्राणी दक्षिणे मम।
दिगिव्दिक्षु सर्वत्रेव कूं बीजं सर्वदावतु॥

इस प्रकार आरती के पश्चात सभी को माता का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए.  इस दिन भोग में दही, हलवा बनाना श्रेयस्कर होता है. फल, सूखे मेवे और सौभाग्य का सामान माता को भेंट करना चाहिए पूजा पश्चात माँ और मनवांछित फलों की प्राप्ति होती है. फल, फूल, दूध, अगरबत्ती लेकर मां कूष्माण्डा की पूजा की जाती है. कूष्माण्डा नवमी में मंदिरों में श्रद्धालुओं को तांता लगना शुरू हो जाता है. श्रद्धालु नतमस्तक होते हैं संकीर्तन मंडली भजन दुर्गा स्तुति पाठ किया जाता है. सच्चे मन से मां कूष्माण्डा की पूजा करने वाले को बल, बुद्धि व विद्या की बढ़ोतरी होती है व रोगों से छुटकारा मिलता है.

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