प्रदोष तिथि के दिन सोमवार का दिन पड़ने पर सोम प्रदोष व्रत कहलाता है. सोम प्रदोष व्रत के दिन प्रात:काल समय भगवान शिव का पूजन होता है. प्रत्येक माह की दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि को प्रदोष व्रत करने का विधान रहा है. ऎसे में हर एक प्रदोष समय किसी न किसी दिन के पड़ने पर प्रदोष व्रत को उस दिन के साथ जोड़ दिया जाता है.
2024 में कब होगा सोम प्रदोष व्रत
20 मई 2024
सोम प्रदोष व्रत करने से संपूर्ण कामनाएं पूरी होती हैं. व्यक्ति के सभी कार्य भी पूरे होते हैं. सोम प्रदोष व्रत के समय भक्त को भगवान शिव का संपूर्ण विधि विधान से पूजन करने समस्त कार्य सिद्ध होते हैं. शास्त्रों में प्रदोष व्रत को सर्वसुख प्रदान करने के अलावा परम कल्याणकारी व्रत कहा गया है. इस व्रत में भक्ति एवं शुद्ध चित्त के साथ पूजा अर्चना करनी चाहिए. सोमवार के दिन प्रदोष व्रत होने पर सुबह-सवेरे ब्रह्म मुहूर्त समय जागना चाहिये. के बाद स्नान इत्यादि अपने नित्य कार्यों से मुक्त होकर भगवान शिव का ध्यान करना चाहिये.
सोम प्रदोष व्रत कथा
सोमवार के दिन प्रदोष व्रत करने के साथ ही प्रदोष व्रत की कथा को सुनना भी बहुत ही शुभदायक होता है. सोम प्रदोष कथा को पढ़ने व सुनने से व्रत का फल बढ़ जाता है. सोम प्रदोष व्रत के विषय में कुछ पौराणिक कथाओं का उल्लेख प्राप्त होता है. जिसमें से एक कथा यहां दी जा रह है जो इस प्रकार है.
प्राचीन समय की बात है एक नगर में एक विधवा ब्राह्मण स्त्री निवास करती थी, उसके पति का स्वर्गवास बहुत पहले ही हो गया था. वह अकेली ही अपने पुत्र के साथ रहती और उनका अन्य कोई आश्रयदाता नहीं था. उसके पास पेट भरने के लिए भी कोई साधन या काम नहीं था. इसलिए वह भीक्षा द्वारा ही अपना और अपनी संतान का पालन करती थी. वह नियमित रुप से प्रातः काल समय ही अपने पुत्र के साथ भीख मांगने निकल पड़ती थी. भिक्षाटन ही उसके लिए एक मात्र विकल्प रह गया था और इसी से वह खुद का और अपने बेटे का पेट पालती थी.
अपनी इसी दिनचर्या में एक दिन भिक्षाटन के लिए निकली ब्राह्मणी, जब अपने घर की और वापस लौट रही होती है तो उस समय मार्ग में उसे एक बालक दिखाई पड़ता है. वह बालक घायल होता है और दर्द से तड़प रहा होता है. उस बालक को देख कर ब्राह्मणी के मन में दया आती है और वह उस बालक को अपने साथ घर ले आती है. उस बालका खूब ध्यान रखती है और अपनी सामर्थ्य अनुसार उसका उपचार भी करती है.
वह बालक विदर्भ देश का राजकुमार होता है. उसके शत्रुओं ने उसके देश पर हमला कर दिया होता है.शत्रु उसके राज्य को अपने अधिकार में लेकर उसके पिता को बंदी बना लेते हैं. किसी तरह राजकुमार बच निकलता है और दर-दर भटकने लगता है. इसी बीच ब्रह्मणी से उसकी भेंट होती है और वह उस ब्राह्मणी और उसके पुत्र के साथ रहने लगता है.
राजकुमार बिना अपनी पहचान बताए वहां लम्बे समय तक रहता है. एक बार एक अंशुमति नामक गंधर्व कन्या की दृष्टि उस राजकुमार पर पड़ती है. उस राजकुमार के रुप सौंदर्य व गुणों पर वह गंधर्व कन्या मोहित हो जाती है और उससे विवाह करने का निश्चय कर लेती है.
अंशुमति, राजकुमार के समक्ष अपने प्रेम का इजहार करती है. राजकुमार को अपने माता-पिता से मिलवाने के लिए बुलाती है. अंशुमति के माता-पिता को राजकुमार पसंद आ जाता है. कुछ दिनों बाद अंशुमति के माता-पिता को भगवान शिव स्वप्न में आकर उन्हें बेटी के विवाह करने का आदेश देते हैं. गंधर्व दंपति अपनी पुत्री के राजकुमार से विवाह की अनुमति प्रदान करते हैं. राजकुमार का अंशुमति के साथ विवाह संपन्न होता है.
गरीब ब्राह्मणी सदैव ही प्रदोष व्रत करने का नियम पालन करती थी. उसके इस प्रदोष व्रत के प्रभाव से गंधर्व राज की सहायता से राजकुमार अपने राज्य को पुन: प्राप्त करने के लिए निकल पड़ता है और शत्रुओं पर हमला करने उन्हें अपने राज्य से निकल देता है. राजकुमार को अपना राज्य पुन: प्राप्त होता है. अपने राज्य को पा लेने के बाद वह वहां का राजा बनता है और ब्राह्मणी के पुत्र को अपना राजमंत्रि नियुक्त करता है. प्रदोष व्रत के माहात्म्य से जैसे राजकुमार और ब्राह्मण-पुत्र के दिन फिरे, वैसे ही शंकर भगवान अपने सभी भक्तों के दिन भी फेरते हैं.
सोम प्रदोष व्रत से पाएं चंद्र ग्रह की शुभता
नव ग्रहों में चंद्रमा को एक महत्वपूर्ण एवं शीतलता से युक्त ग्रह माना गया है. चंद्रमा हमारे शरीर और मन मस्तिष्क पर प्रभावशाली रुप से असर डालता है. अगर किसी व्यक्ति की कुण्डली में चंद्रमा शुभ फल नहीं दे रहा है या निर्बल है, शुभ नहीं है, तो इस स्थिति में सोम प्रदोष व्रत अत्यंत ही प्रभावशाली उपाय होता है. चंद्र ग्रह की शांति में इस सोम प्रदोष व्रत का प्रभाव अवश्य फलिभूत होता है.
सोम प्रदोष व्रत उद्यापन विधि
सोम प्रदोष व्रत के बारे में धर्म शास्त्रों में बहुत कुछ लिखा गया है. इस व्रत की महिमा और इसे कैसे किया जाए इन सभी को लेकर पौराणिक धर्म शास्त्रों में कई नियम और विधान लिखे गए हैं. शिवपुराण व स्कंद पुराण इत्यादि में भी इसके बारे में विस्तार से वर्णन प्राप्त होता है. इस व्रत के विधान में 11 या 26 प्रदोष व्रत करने के उपरांत इस व्रत का उद्यापन किया जा सकता है. व्रत के बाद उद्यापन के एक दिन पहले यानी प्रदोष व्रत से पूर्व द्वादशी तिथि के दिन से ही इस का आरंभ शुरु कर देना चाहिये. गणेश भगवान का पूजन करना चाहिये. षोडशोपचार विधि से पूजन करते हुए भगवान शिव का व माता पार्वती का पूजन व रात्रि जागरण किया जाता है.
त्रयोदशी प्रदोष दिन में उद्यापन के दिन सुबह सूर्योदय से पूर्व उठ कर स्नान इत्यादि के पश्चात साफ स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिये. चौकी पर लाल वस्त्र बिछा कर भगवान शिव व माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित करनी चाहिये. विधि-विधान से पूजा करनी चाहिये और सोम प्रदोष व्रत की कथा पढ़नी व सुननी चाहिये. इसके पश्चात भगवान की आरती पश्चात भोग लगाना चाहिये. भोग को सभी में बांटना चाहिये. सामर्थ्य अनुसार एक, पांच या सात ब्राह्मणों को भोजन करा कर दान दक्षिणा प्रदान करनी चाहिये. इसके बाद परिवार समेत भोग खुद भी ग्रहण करना चाहिये.