हिन्दू धर्म अनुसार आश्विन माह के कृष्ण पक्ष को श्राद्ध पक्ष के रूप में मनाया जाता है. श्राद्ध संस्कार का वर्णन हिंदु धर्म के अनेक धार्मिक ग्रंथों में किया गया है. श्राद्ध पक्ष को महालय और पितृ पक्ष के नाम से भी जाना जाता है. श्राद्ध का अर्थ अपने देवताओं, पितरों, परिवार, वंश के प्रति श्रद्धा प्रकट करना होता है. प्रतिवर्ष श्राद्ध को भाद्रपद माह की पूर्णिमा से लेकर आश्विन माह की अमावस्या तक मनाया जाता है. पूर्णिमा का श्राद्ध पहला और अमावस्या का श्राद्ध अंतिम होता है. जिस हिन्दु माह की तिथि के अनुसार व्यक्ति मृत्यु पाता है उसी तिथि के दिन उसका श्राद्ध मनाया जाता है. आश्विन कृष्ण पक्ष के 15 दिन श्राद्ध के दिन रहते हैं. जिस व्यक्ति की तिथि याद ना रहे तब उसके लिए अमावस्या के दिन उसका श्राद्ध करने का विधान होता है.
हिंदू धर्म में स्पष्ट रूप से बताया गया है कि जो स्वजन अपने शरीर को छोड़कर चले जाते हैं. वह चाहे किसी भी रूप में अथवा किसी भी लोक में हों, श्राद्ध पक्ष के समय पृथ्वी पर आते हैं तथा उनकी तृप्ति के लिए श्रद्धा के साथ जो शुभ संकल्प और तर्पण किया जाता है, वह श्राद्ध कहलाता है अत: मान्यता है कि पितृ पक्ष में हम जो भी पितरों के नाम से तर्पण करते हैं उसे हमारे पितर सूक्ष्म रूप में आकर अवश्य ग्रहण करते हैं.
2024 में श्राद्ध की तिथियाँ | 2024 Dates of Sharaddh
श्राद्ध | दिनाँक | दिन |
---|---|---|
पूर्णिमा | 17 सितंबर | मंगलवार |
प्रतिपदा | 18 सितंबर | बुधवार |
द्वितीया | 19 सितंबर | बृहस्पतिवार |
तृतीया | 20 सितंबर | शुक्रवार |
चतुर्थी | 21 सितंबर | शनिवार |
पंचमी | 22 सितंबर | रविवार |
षष्ठी | 23 सितंबर | सोमवार |
सप्तमी | 24 सितंबर | मंगलवार |
अष्टमी | 25 सितंबर | बुधवार |
नवमी | 26 सितंबर | बृहस्पतिवार |
दशमी | 27 सितंबर | शुक्रवार |
एकादशी | 28 सितंबर | शनिवार |
(मघा श्राद्ध) | 29 सितंबर | रविवार |
द्वादशी | 11 सितंबर | सोमवार |
त्रयोदशी | 12 सितंबर | मंगलवार |
चतुर्दशी | 13 अक्टूबर | बुधवार |
अमावस्या | 14 अक्टूबर | बृहस्पतिवार |
श्राद्ध का महत्व | Significance Of Shraddh
हिन्दु धर्म में श्राद्ध का अत्यधिक महत्व माना गया है. ऎसी मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष में पितर पृथ्वी लोक पर आते हैं और अपने हिस्से का भाग अवश्य किसी ना किसी रुप में ग्रहण करते हैं. सभी पितर इस समय अपने वंशजों के द्वार पर आकर अपने हिस्से का भोजन सूक्ष्म रुप में ग्रहण करते हैं. भोजन में जो भी खिलाया जाता है वह पितरों तक पहुंच ही जाता है. यहाँ पितरों से अभिप्राय ऎसे सभी पूर्वजों से है जो अब हमारे साथ नहीं है लेकिन श्राद्ध के समय वह हमारे साथ जुड़ जाते हैं और हम उनकी आत्मा की शांति के लिए अपनी सामर्थ्यानुसार उनका श्राद्ध कर के अपनी श्रद्धा को उनके प्रति प्रकट करते हैं.