कंद षष्ठी – छह दिवसीय उत्सव

कंद षष्ठी –  छह दिवसीय उत्सव 

कंद षष्ठी भारत के दक्षिण भाग में धूमधाम से मनाया जाने वाला पर्व है जो भगवान मुरुगन को समर्पित है. कंद षष्ठी को स्कंद षष्ठी के नाम से भी जाना जाता है. कंद षष्ठी, जिसे कंदा षष्ठी व्रतम के नाम से भी जाना जाता है, भगवान कार्तिकेय के पूजन का विशेष समय माना गया है. यह एक महत्वपूर्ण अनुष्ठान है और तमिल महीने अप्पासी के दौरान होता है। यह पर्व कार्तिक माह में मनाया जाता है जो लगभग छह दिनों तक चलता है. इस अवधि के दौरान, भक्त अपने भगवान का पूजन करते हैं और विभिन्न प्रकार के उपवास करते हैं. 

कंद षष्ठी के दौरान मनाए जाने वाले सामान्य रीति-रिवाजों का पालन करते हुए भक्त अपने प्रभु को पूजते हैं. इस दिन से जुड़े अनुष्ठान आध्यात्मिक प्रथाओं पर केंद्रित होते हैं, जिसमें भक्त अक्सर शास्त्रों का पाठ करते हैं और स्कंद मंदिरों में जाते हैं. उपवास की रीति-रिवाज़ अलग-अलग हैं, कुछ भक्त दोपहर या रात में एक बार भोजन करते हैं, जबकि अन्य खुद को फलों और जूस तक सीमित रखते हैं. कई लोगों के लिए, स्कंद षष्ठी शरीर को शुद्ध करने का एक अवसर है, कुछ भक्त पूरे समय केवल पानी, नारियल पानी या फलों के जूस का सेवन करना पसंद करते हैं.

छठे दिन उपवास समाप्त होता है, जो तमिलनाडु के थूथुकुडी जिले में प्रसिद्ध तिरुचेंदूर मुरुगन मंदिर के लिए एक महत्वपूर्ण दिन है, जो 7 नवंबर को समुद्र तट पर भव्य सूरा सम्हारम राक्षस का प्रतीकात्मक अंत का आयोजन किया जाता है.अगले दिन, 8 नवंबर को, तिरुकल्याणम दिव्य विवाह होता है लाखों भक्तों के समुद्र के सामने स्थित मंदिर में समारोह देखने और आध्यात्मिक उत्सव में भाग लेने के लिए आते हैं.

कंद षष्ठी व्रत पूजा मुहूर्त  

स्कन्द षष्ठी बृहस्पतिवार, नवम्बर 7, 2024 को

कन्द षष्ठी व्रत प्रारम्भ शनिवार, नवम्बर 2, 2024 को

सुब्रहमन्य षष्ठी शुक्रवार, दिसम्बर 6, 2024 को

षष्टी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 07, 2024 को 12:41 ए एम बजे

षष्टी तिथि समाप्त – नवम्बर 08, 2024 को 12:34 ए एम बजे

कंद षष्ठी पौराणिक महत्व 

भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र कार्तिकेय को दक्षिण भारत में मुरुगन या अयप्पा के नाम से जाना जाता है. शास्त्रों के अनुसार, भगवान कार्तिकेय ने स्कंद षष्ठी के दिन तारकासुर नामक राक्षस का वध किया था, इसलिए इस दिन भगवान कार्तिकेय की पूजा करने से जीवन में उच्च योग गुणों की प्राप्ति होती है. स्कंद षष्ठी के दौरान, भक्त छह दिनों का उपवास रखते हैं जो कार्तिक या पिरथमाई के चंद्र महीने के पहले दिन से शुरू होता है और छठे दिन समाप्त होता है जिसे सोरसम्हारम दिवस के रूप में जाना जाता है. स्कंद षष्ठी का दिन चंद्र मास त्योहार कार्तिक महीने के छठे दिन पड़ता है. यह त्योहार तमिल कैलेंडर के अयिप्पासी या कार्तिकई महीने में पड़ता है.

सोरसम्हारम कंद षष्ठी के दौरान छह दिवसीय त्योहार का अंतिम और सबसे महत्वपूर्ण दिन है. ऐसा माना जाता है कि भगवान मुरुगन ने सूरासंहारम के दिन ही राक्षस सूरापदमन को युद्ध में हराया था. इसीलिए दुनिया को बुराई पर अच्छाई की जीत का संदेश देने के लिए हर साल सूरासंहारम का त्योहार मनाया जाता है. सूरासंहारम व्रत उस दिन मनाया जाता है जब षष्ठी तिथि और पंचमी तिथि एक साथ आती हैं. यही कारण है कि ज़्यादातर मंदिर पंचमी तिथि को कंद षष्ठी मनाते हैं, जब षष्ठी तिथि पंचमी तिथि को सूर्यास्त से पहले शुरू होती है. कंद षष्ठी उत्सव तिरुचेंदूर मुरुगन मंदिर में सबसे ज़्यादा लोकप्रिय है. कार्तिक महीने के पहले दिन से शुरू होने वाला छह दिवसीय उत्सव सूरासंहारम के दिन समाप्त होता है. सूरासंहारम के अगले दिन थिरु कल्याणम मनाया जाता है.

स्कंद षष्ठी उत्सव के आखिरी दिन सूरासंहारम से पहले कई समारोह होते हैं. इस दिन विशेष पूजा की जाती है और मुरुगन देवता का अभिषेक किया जाता है. कंद षष्ठी त्यौहार मुख्य रूप से तमिल हिंदुओं द्वारा मनाया जाता है. सोरासम्हारम त्यौहार को सुरनपोरु भी कहा जाता है. शास्त्रों के अनुसार षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी के रूप में मनाया जाता है. षष्ठी तिथि भगवान स्कंद की जन्म तिथि है. भगवान स्कंद की षष्ठी तिथि दक्षिण भारत में बड़े उत्साह के साथ मनाई जाती है. 

स्कंद षष्ठी के दिन भक्त पूरी श्रद्धा से पूजा करते हैं. इस दिन व्रत भी रखा जाता है. भक्त केवल फलाहार ग्रहण करते हैं. भगवान स्कंद देवता की पूजा की जाती है. भगवान स्कंद को कार्तिकेय, मुरुगन और सुब्रह्मण्यम आदि कई अन्य नामों से भी पुकारा जाता है. इस पर्व को विशेष रूप से मनाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है.  

कंद षष्ठी पूजा नियम

कंद षष्ठी के दिन स्नान करके स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. भगवान स्कंद के नामों का स्मरण और जाप करना चाहिए. पूजा स्थल पर स्कंद भगवान की प्रतिमा या चित्र स्थापित करना चाहिए. इसके साथ ही भगवान शिव, माता गौरी, भगवान गणेश की प्रतिमा या चित्र भी रखना चाहिए. भगवान कार्तिकेय को तिलक लगाना चाहिए. अक्षत, हल्दी और चंदन अर्पित करना चाहिए. भगवान के समक्ष कलश स्थापित करना चाहिए और उस पर नारियल भी रखना चाहिए. भगवान को पंचामृत, फल, मेवा, फूल आदि अर्पित करना चाहिए. भगवान के समक्ष घी का दीपक जलाना चाहिए. भगवान को सुगंध और पुष्प अर्पित करने चाहिए. स्कंद षष्ठी महात्म्य का पाठ करना चाहिए. स्कंद भगवान की आरती करनी चाहिए और भोग लगाना चाहिए. प्रसाद स्वयं भी खाना चाहिए और सभी में भी बांटना चाहिए. 

कंद षष्ठी पूजा से दुख दूर होते हैं. इससे जीवन में दरिद्रता समाप्त होती है. इस दिन व्रत रखने से पापों से मुक्ति मिलती है. जो व्यक्ति पूरे नियम और अनुष्ठान के साथ इस व्रत को करता है, उसे सफलता अवश्य मिलती है. कार्यों में सफलता मिलती है. रुके हुए काम फिर से शुरू होते हैं. किसी भी तरह की बीमारी या समस्या जो लंबे समय से परेशान कर रही हो, वह भी समाप्त हो जाती है. षष्ठी पूजा में अखंड दीया जलाने से जीवन में मौजूद नकारात्मकता भी शांत होती है. स्कंद षष्ठी महात्म्य का पाठ करने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है. संतान सुख के लिए भी यह व्रत किया जाता है, इस व्रत से सफलता, सुख और समृद्धि की प्राप्ति होती है.  

This entry was posted in Fast, Festivals, Hindu Gods, Hindu Maas, Puja and Rituals and tagged , , , . Bookmark the permalink.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *