कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन नाग चतुर्थी का उत्सव मनाया जाता है. लोक मान्यताओं में इस दिन नाग देवता की पूजा की जाती है. कार्तिक महीने में शुक्ल पक्ष के चौथे दिन को नाग चतुर्थी जिसे नागुला चविथी के नाग से भी जाना जाता है. यह नाग पंचमी से पहले का दिन होता है. नाग का अर्थ है साँप और चतुर्थी का अर्थ है चंद्र महीने का चौथा दिन. दक्षिण भारत में इस पर्व को बहुत ही भक्ति भाव के साथ मनाया जाता है. तमिल महीने के अनुसार मध्य नवंबर से मध्य दिसंबर में नाग चतुर्थी मनाते हैं, जो दिवाली के बाद आती है. इस दिन मुख्य रुप से प्रमुख सर्पों की पूजा की जाती है जिनमें से महत्वपूर्ण साँप : अनंत, वासुकी, शेष, पद्मनाभ, कंबला, धृतराष्ट्र, शंखपाल, तक्षक और कालिया का आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है.
नागुल चतुर्थी धूमधाम से मनाई गई. दक्षिण भारतीय परिवारों के लोगों ने सुबह नाग के टीले पर जाकर अपने स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना की. इस दौरान नाग को अंडे चढ़ाए गए. बच्चों ने पटाखे फोड़कर जश्न मनाया. उन्होंने प्रार्थना की कि उन्हें पूरे साल नाग देवता के दर्शन न हों. नागुल चतुर्थी दक्षिण भारत का एक प्रमुख त्योहार है.
नागुला चविथी पूजा मुहूर्त
मंगलवार 5 नवम्बर, 2024 को नागुला चविथी मनाएंगे इस दिन मुहूर्त का समय सुबह 10:59 से 01:10 तक रहेगा.
चविथी तिथि प्रारम्भ – नवम्बर 04, 2024 को 11:24 पी एम बजे
चविथी तिथि समाप्त – नवम्बर 06, 2024 को 12:16 ए एम बजे
नागुल चतुर्थी धूमधाम से मनाई गई. दक्षिण भारतीय परिवारों के लोगों ने सुबह नाग के टीले पर जाकर अपने स्वास्थ्य के लिए प्रार्थना करते हैं. इस दौरान नाग देव कई वस्तुएं अर्पित की जाती हैं.
नागुल चतुर्थी दक्षिण भारत का एक प्रमुख त्योहार है. बड़ी संख्या में दक्षिण भारतीय परिवार हर साल इसे धूमधाम से मनाते हैं. पूजा स्थल पर पुष्प, चंदन, बंदन और गुलाल लगाकर आरती की जाती है. दूध और अन्य पूजन सामग्री से नाग को प्रसन्न किया जाता है. दिवाली के पांचवें दिन चतुर्थी को दक्षिण भारत में नाग की पूजा की जाती है. नाग देवता से आशीर्वाद मांगा जाता है कि साल भर घर में खुशहाली बनी रहे और किसी को स्वास्थ्य संबंधी कोई परेशानी न हो. यह भी कामना की जाती है कि साल भर सांप दिखाई न दें. मान्यता है कि वे टीले के अंदर सुरक्षित रहें. सांप के बाहर निकलने पर खतरा रहता है. इसी कामना के साथ शहर में नागुल चतुर्थी मनाई जाती है.
नाग चतुर्थी पूजा
नाग चतुर्थी का व्रत महिलाएँ अपने जीवनसाथी और बच्चों की खुशहाली और दीर्घायु के लिए करती हैं. इस शुभ दिन पर नाग देवताओं की पूजा करने से जन्म कुंडली में नाग ग्रह, राहु और केतु के कारण होने वाले किसी भी कष्ट को कम किया जा सकता है. लोग परिवार के कल्याण, समृद्धि और धन के लिए नाग देवताओं का आशीर्वाद लेने के लिए भी प्रार्थना करते हैं. नाग चतुर्थी के त्यौहार के दौरान, भक्त नाग देवताओं की पूजा करते हैं और दूध चढ़ाते हैं. महिलाएँ अपनी प्रार्थनाएँ अर्पित करने के लिए पूरे दिन व्रत रखती हैं. इस दिन मूर्तियों को पानी और दूध से नहलाते हैं. मूर्तियों पर हल्दी और कुमकुम लगाते हैं. आरती उतारते हैं साँप देवताओं या नाग देवताओं की पूजा करते हैं.
नाग चतुर्थी पूजन लाभ
नागुला चविथी के पूजन से जहां हर प्रकार के दोष दूर होते हैं वहीं नाग चतुर्थी पर राहु और केतु की पूजा करने से जन्म कुंडली पर उनके नकारात्मक प्रभाव कम हो सकते हैं. इस दिन देवी दुर्गा की पूजा करने से सांपों के कष्ट दूर हो सकते हैं नाग देवताओं की पूजा करने से पैतृक दोशः भी दूर होते हैं सर्प दोष भी शांत होता है. अच्छे स्वास्थ्य, धन, संतान का आशीर्वाद मिलता है.
अविवाहित महिलाएं व्रत रखती हैं और उपयुक्त जीवनसाथी पाने के लिए सांपों को दूध पिलाती हैं.
श्री सर्प सूक्त स्तोत्र पाठ
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा शेषनाग परोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखाद्य:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
कद्रवेयश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखाद्य।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
पृथिव्यां चैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
ग्रामे वा यदि वारण्ये ये सर्पप्रचरन्ति।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
समुद्रतीरे ये सर्पाये सर्पा जंलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।
रसातलेषु ये सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीतो मम सर्वदा।।