सौर पंचांग का आरंभ मेष संक्रांति से होता है. सूर्य जब मीन राशि से निकल कर मेष राशि में प्रवेश करता है, तो मेष संक्रांति होती है. जिस तरह से मीन राशि में सूर्य का होना सौर कैलेंडर का आखिरी महीना होता है उसी तरह से मेष में सूर्य का गमन सौर पंचांग का आरंभ समय होता है. सौर कैलेंडर में बारह महीने होते हैं और इसे आप बारह राशियों के नाम से भी जाना जाता है. संक्रांति तिथि का बहुत ही विशेष महत्व है इस समय पर सूर्य देव अपनी राशि बदलते हैं.
चैत्र मास में सूर्य के मेष में जाने का समय मेष संक्रांति के नाम से मनाया जाता है. मेष संक्रांति समत पर श्रद्धालु पवित्र गंगा समेत अन्य पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाते हैं. इसके साथ ही पूजा-पाठ, जप-तप कर दान-पुण्य करते हैं. इसके अलावा संक्रांति तिथि पर पितरों का तर्पण भी किया जाता है. धार्मिक मान्यता है कि संक्रांति तिथि पर सूर्य देव की पूजा करने से सभी तरह के शारीरिक और मानसिक कष्ट दूर हो जाते हैं.
मेष संक्रांति सौर वर्ष का आरंभ
वैदिक ज्योतिष के अनुसार मेष संक्रांति के पहले दिन से सौर पंचांग का नया साल शुरू होता है. भारत के विभिन्न सौर पंचांग जैसे ओडिया पंचांग, तमिल पंचांग, मलयालम पंचांग और बंगाली पंचांग में मेष संक्रांति के पहले दिन को नए साल का पहला दिन माना जाता है. ओडिशा में हिंदू आधी रात से पहले मेष संक्रांति मनाते हैं, इसलिए संक्रांति के पहले दिन को नए साल के पहले दिन के रूप में मनाया जाता है. मेष संक्रांति को पना संक्रांति के रूप में मनाया जाता है.
मेष संक्रांति के विभिन्न नाम
सौर महीनों के बारह नाम इस प्रकार हैं- मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, कुंभ, मकर और मीन. मेष संक्रांति को तमिलनाडु में पुथांडु , केरल में विशु, बंगाल में नबा बर्ष या पोहला बोइशाख, असम में बिहु और पंजाब में वैशाखी के नाम से मनाया जाता है. मेष संक्रांति पर सूर्य देव की पूजा करने से विशेष लाभ मिलता है. इस दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए. गायत्री मंत्र का जाप करना चाहिए इसके बाद ब्राह्मण को दान दे. इस दिन गेहूं, गुड़ और चांदी की वस्तुएं दान करना शुभ होता है. मेष संक्रांति के दिन स्नान आदि से निवृत्त होकर लाल वस्त्र धारण करें. तांबे के बर्तन या लोटे में जल, साबुत चावल और लाल फूल डालकर सूर्य देव को जल अर्पित करें. सूर्य देव की स्तुति करने से सभी प्रकार की उन्नति होती है. यश, कीर्ति और समृद्धि की प्राप्ति होती है.
मेष संरांति स्नान-दान का विशेष उत्सव
अप्रैल माह मध्य को मेष संक्रांति का उत्सव मनाया जाता है. सूर्य के राशि परिवर्तन को संक्रांति कहते हैं इस दिन सूर्य को जल चढ़ाने की परंपरा, रोग-कष्ट दूर होते हैं. हर संक्रांति का अपना महत्व होता है. अलग-अलग वार और नक्षत्र के अनुसार संक्रांति का फल होता है. सूर्य के मेष राशि में आने को मेष संक्रांति कहते हैं. 14 अप्रैल के करीब को सूर्य मीन राशि से निकलकर मेष राशि में प्रवेश करते हैं. संक्रांति के दिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्य की पूजा और जल चढ़ाने से शारीरिक परेशानियां दूर होती हैं. परिवार के किसी भी सदस्य को कोई परेशानी या बीमारी नहीं होती. भगवान सूर्य के आशीर्वाद से कई तरह के दोष भी दूर होते हैं. इससे मान-सम्मान में भी वृद्धि होती है. इस दिन खाद्य पदार्थ, वस्त्र और गरीबों को दान करने से दोगुना पुण्य मिलता है.
ज्योतिष अनुसार मेष संक्रांति
ज्योतिष अनुसार सूर्य मेष राशि में उच्च का होता है, मेष मंगल की राशि है और मेष राशि में सूर्य का उच्चतम उच्च बिंदु अश्विनी में 10 डिग्री पर होता है, जो केतु का नक्षत्र है. मेष और अश्विनी आकाश में राशि चक्र के शुरुआती बिंदु हैं और ऊर्जा और नई शुरुआत का संकेत देते हैं. मंगल शक्ति है, सूर्य आत्मा है और केतु आत्मा की प्राप्ति है. जब ये ऊर्जाएं मिलती हैं तो यह उच्च और तीव्र मात्रा में ऊर्जा को छोड़ती है. मेष राशि में सूर्य शरीर में पित्त प्रवृत्ति बनाता है जिससे एसिडिटी, अपच, निर्जलीकरण, उच्च रक्तचाप, नेत्र समस्या, निराशा, असहिष्णुता और अत्यधिक पसीना आ सकता है. करियर की बात कि जाए तो आप राजनीति, सरकार, रक्षा और चिकित्सा के क्षेत्र में अनुकूल परिणाम दिखाई देते हैं. व्यापार में ऊनी कपड़े, लकड़ी, इमारती लकड़ी, प्राकृतिक उत्पाद, तांबा, सोना, जंगल में शिकार, और आग और लाल कपड़ों से संबंधित किसी भी चीज़ का अच्छा प्रभाव देखने को मिलता है.
ज्योतिष शास्त्र में मेष संक्रांति पर तीर्थ स्नान करने से सूर्य को सभी ग्रहों का पिता माना जाता है. सूर्य के उत्तरायण और दक्षिणायन होने से मौसम और ऋतुएं बदलती हैं.
मेष संक्रांति लाभ
हिंदू धर्म में संक्रांति का बहुत महत्व है. इसीलिए इसे संक्रांति पर्व कहा जाता है. संक्रांति पर्व पर सूर्योदय से पहले स्नान और खास तौर पर गंगा स्नान का बहुत महत्व है. शास्त्रों में कहा गया है कि जो व्यक्ति संक्रांति पर्व पर पवित्र स्नान करता है, उसे ब्रह्म लोक की प्राप्ति होती है. देवी पुराण में कहा गया है कि जो व्यक्ति संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता, वह रोगों से परेशान रहता है. संक्रांति के दिन दान और पुण्य करने की परंपरा सदियों से चली आ रही है. मेष संक्रांति से गर्मी बढ़ जाती है. मेष संक्रांति को बहुत खास माना जाता है. क्योंकि इस समय सूर्य की रोशनी धरती पर अधिक समय तक रहती है. इसलिए गर्मी का मौसम शुरू हो जाता है. इस महीने में जल दान करने का महत्व पुराणों में बताया गया है. ऐसा करने से मिलने वाला पुण्य कभी समाप्त नहीं होता