द्वादशी का व्रत हर माह की कृष्ण और शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को रखा जाता है. पंचांग के अनुसार आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को पद्मनाभ द्वादशी के नाम से जाना जाता है. इस बार ये व्रत 14 अक्टूबर को रखा जाएगा. एकादशी तिथि जगत के पालनहार भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी को समर्पित है. आश्विन मास की द्वादशी के दिन श्री हरि और माता लक्ष्मी की पूजा करने का विधान है.
पद्मनाभ द्वादशी के दिन कलश स्थापना कर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए. पद्मनाभ द्वादशी श्री हरि का स्मरण और भजन कर कीर्तन करते रहना चाहिए. साथ ही आस्था के अनुसार गरीब लोगों को विशेष चीजें दान करनी चाहिए. इस एकादशी को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. आइए इस लेख में जानते हैं द्वादशी के दिन पूजा-पाठ और व्रत करने से साधक को मिलने वाले लाभों के बारे में.
पद्मनाभ द्वादशी और पौराणिक महत्व
श्री विष्णु भगवान को नारायण, हरि के साथ अनेक अनंत नामों से पुकारा जाता है. धार्मिक ग्रंथों में भगवान विष्णु के तीन प्रमुख स्वरूपों में से एक हैं. ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना की. शिव जी को संहारक माना जाता है. भगवान विष्णु को सृष्टि का रक्षक कहा जाता है.
मूलतः त्रिदेव एक ही हैं. भगवान विष्णु ने धर्म की स्थापना के लिए मत्स्य, कूर्म, वराह, नरसिंह, वामन, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध का अवतार लिया और अब वे कल्कि का अवतार लेंगे. विष्णु पुराण के अनुसार भगवान विष्णु के अनंत नाम हैं, जिनमें से उन्हें पद्मनाभस्वामी भी कहा जाता है.
दक्षिण भारत में विशेष रूप से पद्मनाभस्वामी स्वरूप की पूजा की जाती है. भगवान विष्णु के पद्मनाभस्वामी में पद्म का अर्थ कमल होता है. नाभ का अर्थ नाभि और स्वामी का अर्थ भगवान और स्वामी होता है इसलिए उनका शाब्दिक अर्थ है कमल नाभि वाले भगवान. पौराणिक कथा के अनुसार भगवान विष्णु क्षीर सागर में शेषनाग का ध्यान कर रहे थे. तभी उनकी नाभि से एक कमल का फूल खिल गया और उस कमल से भगवान ब्रह्मा का जन्म हुआ. इसी कारण भगवान विष्णु को पद्मनाभ कहा जाता है.
पद्मनाभ द्वादशी पूजा विधि
पद्मनाभ द्वादशी हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है. यह दिन भगवान विष्णु के पद्मनाभ स्वरूप की पूजा के लिए समर्पित है. इस पावन तिथि पर भगवान विष्णु का आशीर्वाद पाने और जीवन में सुख-समृद्धि लाने के लिए विशेष पूजा-अनुष्ठान किए जाते हैं. कमल को पवित्रता, ज्ञान और सुंदरता का प्रतीक माना जाता है. भगवान विष्णु इन सभी गुणों के स्वामी हैं. इसीलिए भगवान विष्णु को पद्मनाभ कहा जाता है.
पद्मनाभस्वामी नाम केरल के तिरुवनंतपुरम में स्थित भगवान विष्णु के प्रसिद्ध पद्मनाभस्वामी मंदिर से भी जुड़ा है. इस मंदिर में भगवान विष्णु शेषनाग पर लेटे हुए कमल के फूल पर विराजमान हैं. हिंदू पंचांग के अनुसार यह तिथि शुक्ल पक्ष की द्वादशी तिथि को पड़ती है. इस दिन भक्त भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करते हैं और उनका आशीर्वाद प्राप्त करते हैं.
पद्मनाभ द्वादशी लाभ
हिंदू धर्म में पद्मनाभ द्वादशी का विशेष महत्व है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से कई लाभ मिलते हैं. पद्मनाभ द्वादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से उनकी कृपा प्राप्त होती है. भगवान विष्णु अपने भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें जीवन में सफलता प्रदान करते हैं. पद्मनाभ द्वादशी के दिन भगवान विष्णु का व्रत और पूजा करने से व्यक्ति के पिछले जन्म के पाप नष्ट हो जाते हैं. इससे आत्मिक शुद्धि और मन की शांति मिलती है.
पद्मनाभ द्वादशी के दिन सच्चे मन से भगवान विष्णु की पूजा करने से मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पद्मनाभ द्वादशी के दिन विधिपूर्वक पूजा करने और नियमों का पालन करने से मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त होता है.इसके अलावा, पद्मनाभ द्वादशी के दिन दान-पुण्य करने से भी विशेष फल मिलता है. गरीबों और जरूरतमंदों की मदद करने से भगवान विष्णु प्रसन्न होते हैं और जीवन में सुख-समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं.
पद्मनाभ द्वादशी पूजा विधि
पद्मनाभ द्वादशी के पावन दिन भगवान विष्णु की कृपा पाने के लिए विधि-विधान से पूजा करना जरूरी है. पद्मनाभ द्वादशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र धारण करने चाहिए. पूजा स्थल को साफ करके गंगाजल से शुद्ध करना चाहिए. पूजा में एक चौकी या आसन पर लाल कपड़ा बिछा कर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करना चाहिए. भगवान विष्णु के साथ देवी लक्ष्मी और देवी सरस्वती की मूर्ति या चित्र भी रखना चाहिए,
पूजा में भगवान विष्णु का पंचामृत से स्नान कराना चाहिए. भगवान विष्णु को वस्त्र, चंदन का तिलक, तुलसी की माला और सुगंधित फूल चढ़ाने चाहिए. तुलसी के पत्तों के साथ भोग अर्पित करना चाहिए. द्वादशी के दिन “ॐ नमो नारायणाय” मंत्र का जाप करना विशेष फलदायी होता है. “विष्णु सहस्रनाम” का पाठ भी करना चहिए. द्वादशी के दिन कई भक्त उपवास भी रखते हैं और इस दिन केवल फलाहार किया जाता है. अगले दिन यानी सूर्योदय के बाद त्रयोदशी तिथि को उपवास तोड़ा जाता है.