संधि पूजा देवी दुर्गा के निमित्त किया जाने वाला विशेष अनुष्ठान होता है. इसे विशेष रुप से नवरात्रि के दौरान किया जाता है. शास्त्रों के अनुसार भगवान श्री राम जी द्वारा किया गया था संधि पूजन.
संधि पूजा द्वारा देवी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. जिसके प्रभाव से भक्तों के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं. इस समय के दौरान देवी को विभिन्न तरीकों से अनुष्ठान भी किए जाते हैं. भक्ति के साथ किया गया संधि पूजन समस्त प्रकार के कल्याण को प्रदान किया.
संधि पूजा कब होता है
नवरात्रि पर्व के दौरान संधि पूजा का विशेष महत्व है और संधि पूजा इस समय की जाती है जब अष्टमी तिथि समाप्त होती है और नवमी तिथि शुरू होती है. शास्त्रों की मान्यताओं के अनुसार, इसी मुहूर्त में देवी चामुंडा चंड और मुंड नामक राक्षसों का वध करने के लिए प्रकट हुई थीं. संधि पूजा दो घटी यानी करीब 48 मिनट तक चलती है. संधि पूजा का मुहूर्त दिन में कभी भी पड़ सकता है और संधि पूजा उसी समय की जाती है. संधि पूजा अष्टमी के अंत और नवमी की शुरुआत में की जाती है. इस दिन भक्त देवी चामुंडा के रूप की पूजा करते हैं.
संधि पूजा कथा
संधि पूजा से संबंधित कई आख्यान मौजूद है जिसमें पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार, देवी ने संधि काल के दौरान चंड और मुंड नामक राक्षसों का वध किया था. संधि पूजा दुर्गा पूजा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. यह त्योहार आमतौर पर पश्चिम बंगाल में मनाया जाता है. संधि पूजा अष्टमी के अंत और नवमी की शुरुआत में की जाती है. इस दिन भक्त देवी चामुंडा के रूप की पूजा करते हैं. पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के अनुसार, देवी ने संधि काल के दौरान चंड और मुंड नामक राक्षसों का वध किया था. तभी से देवी के भक्त इसे त्यौहार के रूप में मनाने लगे.
संधि पूजा विधान
संधि पूजा बहुत धूमधाम और भव्यता के साथ की जाती है.संधि पूजा के दिन मां दुर्गा के सामने 108 दीये जलाए जाते हैं. इस दिन मां दुर्गा को 108 कमल के फूल, 108 बिल्व पत्र, आभूषण, पारंपरिक वस्त्र, गुड़हल के फूल, कच्चे चावल और अनाज, एक लाल रंग का फल और माला चढ़ाई जाती है. संधि पूजा मंत्र का जाप करते हुए मां दुर्गा को सभी चीजें चढ़ाई जाती हैं. संधि पूजा के दिन मां दुर्गा के सामने कुम्हडा़ और खीरे की बलि भी देते हैं. इसके बाद मां दुर्गा के मंत्रों का जाप किया जाता है और उनकी आरती की जाती है. संधि पूजा सभी जगहों पर अलग-अलग तरीके से की जाती है.
संधि पूजा करते समय हमेशा ध्यान रखें कि यह पूजा तभी शुरू होनी चाहिए जब संधिक्षण शुरू हो. संधि पूजा का शुभ समय किसी भी स्थिति में और किसी भी समय आ सकता है. और यह पूजा उसी समय ही की जानी चाहिए. कई जगहों पर संधि पूजा पर बड़े-बड़े पंडाल सजाए जाते हैं और ढोल-नगाड़ों के साथ मां दुर्गा की पूजा की जाती है. संधि पूजा को बहुत ही पूजनीय त्योहार माना जाता है क्योंकि यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है.
संधि पूजा महत्व
हिंदू धर्म में संधि पूजा को बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है. संधि पूजा नवरात्रि पर्व के दौरान मनाई जाती है. यह पूजा एक विशेष समय पर की जाती है, यानी संधि पूजा उस समय की जाती है जब अष्टमी तिथि समाप्त होती है और नवमी तिथि शुरू होती है. अष्टमी तिथि के अंत के दौरान अंतिम 24 मिनट और नवमी तिथि के दौरान पहले 24 मिनट मिलकर संधिक्षण बनाते हैं, यानी यही वह समय है जब मां दुर्गा ने देवी चामुंडा का अवतार लिया और चंड और मुंड नामक राक्षसों का वध किया.
संधि पूजा कब मनाई जाती है- हिंदू कैलेंडर के अनुसार चैत्र नवरात्रि संधि पूजा चैत्र माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है और शरद नवरात्रि संधि पूजा आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है. संधि पूजा क्यों मनाई जाती है मान्यताओं के अनुसार संधि पूजा का विशेष महत्व है. हिंदू पौराणिक कथाओं में बताया गया है कि जब मां दुर्गा राक्षस महिषासुर से युद्ध कर रही थीं, तब महिषासुर के सहयोगी चंड और मुंड ने मां दुर्गा पर पीछे से हमला किया, पीछे से किए गए हमले के कारण मां दुर्गा को बहुत गुस्सा आया और गुस्से के कारण उनके चेहरे का रंग नीला पड़ गया.
तब देवी ने क्रोधित होकर अपनी तीसरी आंख खोली और चामुंडा अवतार लिया. मां दुर्गा ने चामुंडा अवतार लिया और दोनों दुष्ट राक्षसों का वध किया. तब से, इस दिन मां दुर्गा के उग्र अवतार चामुंडा के रूप में संधि पूजा की जाती है.