शिव वास और इसके नियम

शिव वास अपने नाम के अनुरुप भगवान शिव के निवास स्थान की स्थिति को बताता है. शिव वास की स्थिति को जानकर भगवान शिव के रुद्राभिषेक को करना शुभफल देने वाला होता है. शिव वास के नियमों के द्वारा जान सकते हैं कि अनुष्ठान के समय भगवान शिव कहां निवास कर रहे हैं क्योंकि जब उनके निवास के समय की स्थिति अनुकूल होती है तभी शुभ फल प्राप्त होते हैं. शिव वास से ही सुनिश्चित होता है कि किया जाने वाले पूजन, अभिषेक, अनुष्ठान शुभ होगा या अशुभ. इसके अलावा किस समय शिव वास पर विचार जरूरी नहीं होता है.आइए जानते हैं शिव वास की गणना नियम, लाभ और विशेष विचार महत्व है.

शिव वास क्या है?
शिव वास का अर्थ है भगवान शिव का निवास स्थान यानी किसी तिथि विशेष पर भगवान शिव कहां स्थित हैं. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार शिव पूजा, रुद्राभिषेक, महामृत्युंजय मंत्र का जाप या किसी विशेष कार्य के लिए किए जाने वाले अनुष्ठान से पहले शिव वास विचार जरूरी होता है. भगवान शिव पूरे महीने में अलग-अलग स्थानों पर निवास करते हैं. इसी के आधार पर यह पता चलता है कि भगवान इस समय क्या कर रहे हैं और उनकी पूजा करने के लिए यह समय उचित है या नहीं.

भगवान शिव के निवास स्थान को जानने के लिए शिव वास नियम के बारे में ध्यान देने की जरुरत होती है. शास्त्रों में इसका का पता लगाने के लिए महर्षि नारद ने शिव वास की गणना के लिए शिव वास सूत्र की रचना की थी. इसके अनुसार शिव वास जानने के लिए सबसे पहले तिथि पर ध्यान दें, शुक्ल पक्ष में प्रथम तिथि से पूर्णिमा तक की तिथि को 1 से 15 का मान दें और कृष्ण पक्ष में प्रतिपदा से अमावस्या तक की तिथि को 16 से 30 का मान दें. इसके बाद जिस तिथि को शिव वास देखना है, उसे दो से गुणा करें, फिर गुणनफल में 5 जोड़ें और अंत में 7 से भाग दें. बचा हुआ परिणाम आपको शिव वास के बारे में बताएगा. इस सूत्र का विचार कु8छ इस प्रकार है:

तिथिं च द्विगुणि कृत्वा पुन: पंच समन्वितम्.
सप्तभिष्ठुरेद्भागं शेषं शिव वास उच्यते.
एके कैलाश वासंधितिये गौरीनिधौ.
तृतीया वृषभारूढ़ा चतुर्थे च सभा स्थित.
पंचमे भोजने चैव क्रीड़ायनतुसआत्मके
शून्येश्माशंके चैव शिववास वास संचययोजयते.

शिव के निवास का फल

अगर शेष एक आए तो शिव कैलाश में निवास करेंगे और इस समय पूजा का फल शुभ होगा.
अगर शेष दो आए तो शिव गौरी पार्श्व में निवास करेंगे और इसका फल सुख और धन होगा.
अगर शेष तीन आए तो शिव वृषारूढ़ में निवास करेंगे और इसका फल मनोवांछित सफलता, लक्ष्मी प्राप्ति होगी.
अगर शेष चार आए तो शिव सभा में निवास करेंगे और इसका फल दुख देता है.
अगर शेष पांच आए तो शिव भोजन पर निवास करेंगे और इसका फल भक्त के लिए कष्टकारी हो सकता है.
अगर शेष छह आता है तो शिव खेल रहे होंगे और इससे कष्ट हो सकता है.
अगर संतुलन शून्य हो तो श्मशान में शिव का वास होगा और मृत्यु हो सकती है.

शिव वास गणना नियम?
शिव वास गणना नियम के अनुसार शुक्ल पक्ष की द्वितीया, पंचमी, षष्ठी, नवमी, द्वादशी और त्रयोदशी तिथियां तथा कृष्ण पक्ष की प्रतिपदा, चतुर्थी, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, द्वादशी तिथियां शुभ रहती हैं. इन तिथियों पर किए गए अनुष्ठान फलदायी सिद्ध होते हैं. साथ ही निस्वार्थ पूजा, महाशिवरात्रि, श्रावण मास, तीर्थ स्थानों या ज्योतिर्लिंगों में शिव के दर्शन करना आवश्यक नहीं है.

रुद्राभिषेक मुहूर्त शिववास तिथि और उसका प्रभाव
कुछ तिथियां शिववास मुहूर्त के अनुसार लिखी गई हैं. मासिक शिवरात्रि भी शुक्ल पक्ष त्रयोदशी को होती है जिसे प्रदोष व्रत कहते हैं और इसमें रुद्राभिषेक का विधान माना गया है. त्रयोदशी तिथि भगवान शिव को समर्पित है. महाशिवरात्रि और श्रावण मास में तिथि या मुहूर्त देखने की आवश्यकता नहीं होती, इसलिए पूरे समय में रुद्राभिषेक किया जा सकता है.

तिथि शिववास फल तिथि शिववास प्रभाव
प्रथमा शमशान मृत्युतुल्य प्रथमा गौरी सानिध्य सुखप्रद
द्वितीया गौरी सानिध्य सुखप्रद द्वितीया सभायां संताप
तृतीया सभायां संताप तृतीया क्रीडायां कष्ट एवं दुःख
चतुर्थी क्रीडायां कष्ट एवं दुःख चतुर्थी कैलाश पर सुखप्रद
पंचमी कैलाश पर सुखप्रद पंचमी वृषारूढ अभीष्टसिद्धि
षष्ठी वृषारूढ अभीष्टसिद्धि षष्ठी भोजन पीड़ा
सप्तमी भोजन पीड़ा सप्तमी शमशान मृत्युतुल्य
अष्टमी शमशान मृत्युतुल्य अष्टमी गौरी सानिध्य सुखप्रद
नवमी गौरी सानिध्य सुखप्रद नवमी सभायां संताप
दशमी सभायां संताप दशमी क्रीडायां कष्ट एवं दुःख
एकादशी क्रीडायां कष्ट एवं दुःख एकादशी कैलाश पर सुखप्रद
द्वादशी कैलाश पर सुखप्रद द्वादशी वृषारूढ अभीष्टसिद्धि
त्रयोदशी वृषारूढ अभीष्टसिद्धि त्रयोदशी भोजन पीड़ा
चतुर्दशी भोजन पीड़ा चतुर्दशी शमशान मृत्युतुल्य
पूर्णिमा शमशान मृत्युतुल्य अमावस्या गौरी सानिध्य सुखप्रद

कैलाश लभते सौख्यं गौर्य च सुख संपदाः. वृषभेऽभिष्ठ सिद्धिः स्यात् सभयं सन्तपकारिणी.
भोजने च भवेत् पीड़ा कृपायां कष्टमेव च. श्मशान मृत्यु है, ज्ञान फल है और विचार हैं.

This entry was posted in Fast, Festivals, Hindu Gods, Muhurta, Puja and Rituals. Bookmark the permalink.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *