भाद्रपद माह में गणेश महोत्सव का ऎतिहासिक और पौराणिक महत्व

गणेश उत्सव का पर्व भादो माह में मनाया जाने वाला एक विशेष त्यौहार है.  यह उत्सव भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी से प्रारंभ होकर अनंत चतुर्दशी तक चलता है. गणेशोत्सव का त्यौहार उत्साह और आस्था के साथ मनाया जाता है. इस समय पर भगवान गणेश की स्थापना का विशेष आयोजन होता है और अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान गणेश की मूर्ति का विधि-विधान से विसर्जन कर दिया जाता है. इस तरह से हर वर्ष बप्पा के आगमन से लेकर उनकी विदाई तक का संपुर्ण दस दिवसीय यह उत्सव भक्तों के भीतर आस्था एवं जोश को भर देने वाला होता है. 

भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की गणेश चतुर्थी के अवसर पर भगवान गणेश की भव्य मूर्ति स्थापित कर पूजा-अर्चना शुरू हो जाती है. इस 10 दिनों तक चलने वाले धार्मिक अनुष्ठान की शुरुआत गणेश प्रतिमा की स्थापना के साथ होती है. घर हों या गलि मुह्ह्ले या बड़े बड़े भव्य पंडाल सभी में गणेश जी की प्रतिमाओं को स्थापित किया जाने का विधान प्राचीन काल से ही चल आ रहा है. 

गणेश उत्सव का पौराणिक महत्व 

नारद पुराण के अनुसार पार्थिव गणेश की स्थापना भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को बताई गई है इस दिन गंगाजल, पान, फूल, दूर्वा आदि से पूजा की जाती है. भगवान गणेश को दूब चढ़ाने से वह शीघ्र प्रसन्न होते हैं. भगवान को लड्डुओं का भोग लगाना चाहिए, श्रीगणेश स्त्रोत का पाठ करना चाहिए, श्रीगणेश मंत्र का जाप करना चाहिए . गणपति आदिदेव हैं, वे अपने भक्तों के सभी कष्टों को दूर कर उन्हें मुक्त कर देते हैं. गणों के स्वामी होने के कारण उन्हें गणपति कहा जाता है. प्रथम पूज्य देव के रूप में वे अपने भक्तों के रक्षक हैं. उनके बारह नामों- एकदंत, सुमुख, लंबोदर, विनायक, कपिल, गजकर्णक, विकट, विघ्न-नाश, धूम्रकेतु, गणाध्यक्ष, भालचंद्र और गजानन तथा गणेश का स्मरण सुख और शांति प्रदान करता है. 

सांस्कृतिक एवं पारंपरिक रूप से भक्त भक्ति भाव के साथ गणपति की स्थापना करते हैं. इस मौके पर भक्तों का उत्साह देखते ही बनता है. ऐसा माना जाता है कि अगर इन दस दिनों में भगवान गणेश की भक्ति और विधि-विधान से पूजा की जाए तो व्यक्ति की सभी बाधाएं समाप्त हो जाती हैं और भगवान गणेश सौभाग्य, समृद्धि और खुशियां प्रदान करते हैं. वैदिक मंत्रोच्चार के साथ भगवान गणेश की मूर्ति स्थापित की गई. गणेश महोत्सव के दौरान धार्मिक अनुष्ठान और रंगारंग कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है.

 गणेश चतुर्थी ऎतिहासिक घटना क्रम

अंग्रेजों ने इतने कठोर कानून बनाएं जिसके चलते सभा एवं कोई आयोजन कर पाना असंभव हो गया. इन कानूनों के कारण लोग एक साथ एक जगह पर एकत्रित नहीं हो पाते थे. समूह बनाकर कोई कार्य या प्रदर्शन नहीं कर सकते थे. और यदि कोई अंग्रेज अधिकारी उन्हें एक साथ देख लेता तो उसे इतनी कड़ी सजा दी जाती थी. अब आजादी के नायकों ने इस डर को भारतीयों में से निकालने के लिए एक बार पुन: गणेश उत्सव की शुरुआत की क्योंकि धार्मिक गतिविधियों का विरोध अंग्रेज सरकार के लिए भी आसान नहीं हो सकता था.  लोगों में अंग्रेजों का डर खत्म करने और इस कानून का विरोध करने के लिए लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव की दोबारा शुरुआत की. और इसकी शुरुआत पुणे के शनिवारवाड़ा में गणेश उत्सव के आयोजन से हुई. लगभग 1894 के बाद इसे सामूहिक रूप से मनाया जाने लगा. हजारों लोगों की भीड़ जुटी ब्रिटिश पुलिस कानून के अनुसार पुलिस केवल किसी राजनीतिक समारोह में एकत्र हुई भीड़ को ही गिरफ्तार कर सकती है, किसी धार्मिक समारोह में एकत्र हुई भीड़ को नहीं.

इस प्रकार पुणे के शनिवारवाड़ा में गणपति उत्सव मनाया गया. इस उत्सव का एक उद्देशय यह भी था कि भारत को अंग्रेजों से आज़ाद कराया जा सके. गणपति जी हमें इतनी शक्ति दें कि हम आजादी ला सकें. इसके बाद, गणपति उत्सव धीरे-धीरे पुणे के पास के बड़े शहरों जैसे अहमदनगर, मुंबई, नागपुर आदि में फैल गया. उत्सव में लाखों लोगों की भीड़ जुटती थी और आमंत्रित नेता उनमें देशभक्ति की भावना जगाते थे. इस प्रकार का प्रयास सफल रहा और लोगों के मन में देश के प्रति भावनाएं जागी और इस पर्व ने स्वतंत्रता आंदोलन में लोगों को एकजुट करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.  

शिवाजी काल समय में गणेश उत्सव 

गणेश उत्सव अपनी पौराणिकता के साथ साथ इतिहास की विशेष घटनाओं और बदलावों के साथ भी जुड़ा हुआ पर्व है. प्राचीन भारत में सातवाहन राज्य एवं चालुक्य राजवंशों जैसे अन्य राजवंशों ने भी इस पर्व को मनाया है जिसका उल्ल्खे साक्ष्यों में प्राप्त होता है. गणेश उत्सव मनाने का उल्लेख काफी पुराने समय से जुड़ता है मराठा शासक छत्रपति शिवाजी महाराज ने गणेश उत्सव को राष्ट्रीय धर्म और संस्कृति से जोड़कर एक अलग रंग देने का कार्य करते हैं. यह इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को दर्शाता है जिसे आज भी उसी रंग में मौजूद देखा जा सकता है. शिवाजी महाराज के बाद मराठा शासकों ने गणेश उत्सव को बड़े पैमाने पर मनाना जारी रखा. ब्रिटिश काल में यह त्योहार केवल हिंदू घरों तक ही सीमित था लेकिन फिर आजादी के नायकों ने इसे आगे बढ़ाने में योगदान दिया. लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने गणेश उत्सव को फिर से शुरू किया और गणपति उत्सव का मुख्य उद्देश्य स्वतंत्रता प्राप्त करना था. बन गया. इस प्रकार गणेश उत्सव का त्यौहार न केवल पौराणिक बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी बहुत महत्वपूर्ण रहा है.

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