चंपा षष्ठी 2024 - इस दिन होता है मार्तण्ड शिव का पूजन
मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी “चंपा षष्ठी” नाम से भी मनाई जाती है. मान्यता है की चंपा षष्ठी का पर्व भगवान शिव के एक अवतार खंडोवा को समर्पित है. खंडोवा या खंडोबा को अन्य कई नामों से भी पुकारा जाता है. इसमें से खंडेराया, मल्हारी, मार्तण्ड आदि नाम बहुत प्रसिद्ध हैं.
चंपा षष्ठी और खंडोवा मान्यता और महत्व
भगवान शिव के एक अवतार खंडोवा देव को महाराष्ट्र और कर्नाटक की ओर रहने वाले लोगों के मध्य कुल देवता के रुप में पूजा जाता है. इनकी पूजा हर वर्ग के लोगों द्वारा की जाती है. इनके यहां न कोई गरीब है न ही कोई अमीर है. सभी लोग समान रुप से देव पूजा करते हैं. इस के अलावा कुछ लोगों द्वारा खंडोबा को स्कंद का अवतार भी समझा जाता है, तो कुछ के अनुसार यह शिव अथवा उनके भैरव रूप का अवतार माने जाते हैं. कुछ अन्य विचारकों के अनुसार खंडोबा के संबंध में यह भी कहा जाता है कि वह एक वीर यौद्धा थे और उन्हें देवता का रुप मान लिया गया था. ऎसे बहुत से विचार खंडोबा के बारे में मिलते हैं.
अलग-अलग विचार और मान्यताओं के इस संदर्भ में एक बात तो महत्वपूर्ण रुप से सिद्ध हो ही जाती है की खंडोबा का स्थान सभी लोगों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है. उन्ही के लिए इस तिथि के दिन भिन्न भिन्न रुप में उत्सवों का आयोजन होता है.
चंपा षष्ठी पूजन विधि
चंपा षष्ठी के पूजन का उत्सव देश के पूना और महाराष्ट्र क्षेत्रों में अधिक होता है. इस स्थान पर जेजुरी स्थान में खंडोबा मंदिर में चंपा षष्ठी का उत्सव बहुत धूमधाम के साथ मनाया जाता है. इस दिन हल्दी, फल सब्जियां इत्यादि खंडोबा देव को अर्पित की जाती हैं. यहां मेले का आयोजन भी होता है. मार्गशीर्ष माह के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को भगवान शिव का पूजन होता है. इस दिन भगवान शिव के मार्तण्ड रुप की पूजा होती है.
मार्तण्ड रुप एक अत्यंत उग्र रुप भी है जिसे भैरव नाम से भी पुकारा जाता है. इस दिन प्रात:काल समय भगवान शिव का अभिषेक होता है. भगवान के समक्ष दीपक, पुष्प, बेल पत्र, अक्षत, गंध इत्यादि से पूजा की जाती है. भगवान शिव के अवतार को किसानों से भी जोड़ा जाता है. इस लिए इस समय पर कृषक अपने साधनों का पूजन भी करते हैं. भगवान शिव के साथ ही कार्तिकेय का पूजन भी होता है. षष्ठी तिथि वैसे भी स्कंद(कार्तिकेय) भगवान को समर्पित है. इसलिए इस पर्व को षष्ठी पर्व भी कहा जाता है. इस दिन भगवान की पूजा और व्रत किया जाता है.
चंपा षष्ठी पौराणिक कथा
चंपा षष्ठी का दिन खंडोबा से जुड़ा हुआ है. यह कथा भगवान शिव से जुड़ी है. खंडोबा के सेवक के रूप में “बाध्या” और “मुरली” का उल्लेख मिलता है. बाध्या के बारे में कहा जाता है कि वह खंडोबा के कुत्ते का नाम था. मुरली जो खंडोबा की उपासिका और कोई देवदासी थी. दक्षिण में बाध्या और मुरली नाम के खंडोबा के उपासकों का दो वर्ग रहे हैं. इन लोगों को घुमंतु प्रजाती का कहा जाता है. यह अपना जीवन बंजारों की तरह व्यतीत करते हैं.
खंडोबा के विषय में कई मत प्रचलित रहे हैं. इस संबंध में पूजा और मतों में यह भी कहा जाता है कि खंडोबा की उपासना कर्णाटक से महाराष्ट्र में आई है. खंडोबा देव को महाराष्ट्र और कर्णाटक के बीच एक सांस्कृतिक संबंध के प्रतीक के रुप में भी देखा जाता है. कर्णाटक में खंडोबा को मल्लारी, मल्लारि मार्तंड, मैलार आदि नाम से पुकारा जाता है.
इस संदर्भ में वहां की कुछ कथाओं से ज्ञात होता है कि मणिचूल पर्वत पर ऋर्षि तपस्या में लीन होते हैं. उस स्थान पर मणि और मल्ल नामक दैत्यों ने बहुत उत्पात मचाया. उस स्थान को उन्होंने पूरी तरह से नष्ट कर दिया है. दैत्यों के उपद्रव से परेशान होकर ऋषियों की तपस्या भंग हो जाती है.
दैत्यों से परेशान ऋषिगण देवताओं से अपनी सहायता की मांग करते हैं. देवता भी उन दैत्यों को हरा नही पाते हैं क्योंकि ब्रह्मा जी के मिले वरदान से उन दैत्यों की रक्षा होती है. सभी ऋषि गण और देवता ब्रह्मा जी के पास जाते हैं. ब्र्ह्मा जी उन्हें बताते है कि मणि और मल्ल दोनों को अमरता का वरदान प्राप्त है. उस वरदान के प्रभाव के चलते कोई भी उन्हें मार नहीं सकता है.
तब देवता, दैत्यों के अंत के लिए सभी भगवान शिव के पास जाते हैं. भगवान शिव दैत्यों के नाश के लिए मार्तंड का रूप धारण करते हैं. कार्तिकेय को साथ लेकर वह भैरव रुप में मणि और मल्ल से युद्ध करते हैं. दैत्यों पर विजय प्राप्त करते हैं. मणि और मल्ल्हा भगवान के बड़े भक्त थे. इस लिए अत्मसमर्पण समय पर एक ने भगवान के पास घोड़े के रुप में रहने का वरदान मांगा और दूसरे ने अपने नाम से ही भगवान को पूजे जाने का वर मांगा था.
इस कथा में लौकिक और परा लौकिक शक्तियों का संगम रहा है. मार्तंड भैरव ने मणि को अपने साथ अश्व के रूप में रहने का वरदान दिया. मल्ल दैत्य के नाम पर अपने को मल्लारि नाम दिया. ऋषि भयमुक्त होकर रहने लगे. आज भी मल्लारि मैलार कथा इन स्थानों में प्रचलित है.
चंपा षष्ठी पर्व महत्व
चंपा षष्ठी का दिन अत्यंत ही शुभदायक होता है. मार्तण्ड भगवान सूर्य का भी एक नाम है अत: इस दिन सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नान किया जाता है. सूर्यदेव को नमस्कार किया जाता है और सूर्य पूजा भी की जाती है. शिव का ध्यान किया जाता है. शिवलिंग की पूजा की जाती है. शिवलिंग पर दूध और गंगाजल चढ़ाया जाता है. इस दिन भगवान को चंपा के फूल चढ़ाए जाते हैं. भूमि पर शयन किया जाता है. मान्यता है की इस दिन भगवान पूजा और व्रत करने से पाप नष्ट हो जाते हैं. परेशानियों का अंत होता है. जीवन में सुख-शांति प्राप्त होती है. चंपा षष्ठी का प्रारंभ कैसे हुआ और इसकी क्या मान्यताएं हैं इसके बारे में भिन्न भिन्न प्रकार के मत प्रचलित हैं.
इस दिन किया गया पूजा पाठ और दान, मोक्ष की भी प्राप्ति कराने में सहायक होता है. चंपा षष्ठी की कथाओं को स्कंद षष्ठी से जोड़ा जाता है और कहीं खंडोबा देव से तो कहीं षष्ठी तिथि से जोड़ा जाता है. भारत के अनेक स्थानों पर इस दिन को अलग-अलग नामों से पूजा जाता है.