आषाढ़ माह स्कंद षष्ठी 2024

इस वर्ष आषाढ़, शुक्ल षष्ठी को 12 जुलाई, 2024,  शुक्रवार के दिन स्कंद षष्ठी का त्यौहार मनाया जाएगा. स्कंद षष्ठी के दिन भगवान स्कंद की पूजा की जाती है. भगवान स्कंद सभी प्रकार के कष्टों को दूर करने वाले होते हैं.

स्कन्द षष्ठी पूजा मुहूर्त समय

  • स्कंद षष्ठी प्रारम्भ - 11 जुलाई को 10:05 को
  • स्कंद षष्ठी समाप्त - 12 जुलाई 12:33 को

    स्कंद षष्ठी तिथि को "कन्द षष्ठी" के नाम से भी पुकारा जाता है. भगवान कार्तिकेय का संबंध इस तिथि के साथ बहुत अधिक जुड़ा है. स्कंद भगवान के जन्म का समय षष्ठी तिथि से जोड़ा गया है. संपूर्ण भारत में ही स्कंद पूजा का बहुत महत्व रहा है पर दक्षिण भारत में स्कंद षष्ठी का पर्व और भी अधिक गहराई लिए होता है. मान्यता एवं कथाओं अनुसार भगवान का संबंध दक्षिण से बहुत गहरा रहा है, जिसके पिछे एक कथा अत्यंत ही प्रचलित रही है.

    स्कंद षष्ठी महात्म्य

    आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि के दिन स्कंद भगवान का पूजन व्रत इत्यादि रखने से त्रिदेवों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. इस व्रत के प्रभाव से संतान का सुख प्राप्त होता है. संतान को कोई कष्ट है तो इस दिन व्रत रखने और स्कंद भगवान का पूजन करने से सभी कष्ट दूर हो जाते हैं. स्कंद भगवान के पूजन के साथ ही भगवान शिव और माता पार्वती का पूजान भी किया जाना चाहिए.

    स्कंद षष्ठी पूजा द्वारा सफलता, सुख-समृद्धि प्राप्त होती है. हर दु:ख का निवारण हो जाता है, दरिद्रता मिट जाती है. इस व्रत को करने से क्रोध, लोभ, अहंकार, काम जैसी नकारात्मक चीजें जीवन से समाप्त होती हैं.

    भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र स्कंद को गणेश जी का बड़ा भाई माना गया है. जिस प्रकार चतुर्थी तिथि इनके भाई गणेश से संबंधित है उसी प्रकार षष्ठी स्कंद से जुड़ी है. इन दोनों की पूजा में 1 दिन का अंतर आता है जिसमें पंचमी तिथि आती है.

    स्कंद के लिए महीने की षष्ठी तिथि के लिए व्रत करने का भी विधान बताया गया है. स्कंद भगवान को कुमार भी कहा जाता है क्योंकि इनका यही स्वरुप सदैव बना रहता है. संपूर्ण भारत में ये त्यौहार हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. स्कंद भगवान का पूजन दिशाओं की शुभता है. वास्तु दोष भी समाप्त होते हैं. नकारात्मक ऊर्जा दूर होती है.

    स्कंद भगवान कथा

    स्कंद षष्ठी के पर्व पर भगवान स्कंद की जन्म कथा को पढ़ा और सुना जाता है. इसके साथ ही भगवान की अन्य कथाओं को भी इस दिन पर सुना जाता है. प्राचीन ग्रंथों के अनुसार एक बार ऋषि नारद मुनि एक फल लेकर कैलाश गए दोनों गणेश और स्कंद मे फल को लेकर बहस हुई जिस कारण प्रतियोगिताा आरंभ होती है. कि जो पृथ्वी के तीन चक्कर सबसे पहले लगा लेगा उसे ही फल प्राप्त होगा. ऎसे में स्कंद अपने वाहन मोर पर बैठ कर यात्रा शुरू करते हैं वहीं दूसरी ओर गणेश जी ने अपने अपने माता-पिता देवी पार्वती और शिव के के चक्कर लगाकर फल को प्राप्त कर लेते हैं. जब स्कंद आते हैं तो उन्हें इस बात का पता चलता है कि ये सही निर्णय नहीं था. क्रोधित होकर वह उस स्थान से नाराज होकर दक्षिण की ओर चले जाते हैं.

    इसी कथा का एक दूसरा रुप इस प्रकार प्राप्त होता है की गणेश और स्कंद में से कौन श्रेष्ठ होगा और किसे भगवान शिव व माता पार्वती का सामीप्य प्राप्त होगा तो इसी प्रकार प्रतियोगिता आरंभ होती है और पृथ्वी के चक्कर लगाने के लिए स्कंद निकल पड़्ते हैं वहीं गणेश अपने वाहन मूषक के कारण इस प्रतियोगिता को जीत नहीं सकते थे क्योंकि मोर की उडा़न उनके मूषक की चाल से कई अधिक तीव्र होती है. ऎसे में वह अपनी बुद्धि का उपयोग करके भगवान शिव और पार्वती के ही चारों ओर चक्कर लगा लेते हैं. ऎसे में गणेश इस प्रतियोगिता में जीत जाते हैं. स्कंद इस बात को नही मानते तब गणेश कहते हैं की उनकी पृ्थ्वी एवं सृष्टि तो उनके माता-पिता ही हैं ऎसे में यदि उनके चक्कर लगा लिया जाए तो संपुर्ण पृथ्वी का चक्कर स्वयं ही पूर्ण हो जाता है. इस पर स्कंद असंतुष्ट एवं क्रोधित हो कर वहां से चले जाते हैं. इसी मान्यता के आधार पर कहा जाता है की दक्षिण भारत में स्कंद देव का पूजन बहुत ही बड़े स्तर पर होता है.

    स्कंद देव और तारकासुर संग्राम

    भगवान स्कंद का जन्म एक विशेष घटना को पूर्ण करने हेतु होता है. तारकासुर, एक अत्यंत ही शक्तिशालि दैत्य था. उसने देवों का राज्य प्राप्त करने उन पर विजय प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की और अपनी इस तपस्या के बल पर उसने ब्रह्मा जी से आशीर्वाद प्राप्त किया की वह किसी अन्य के हाथों न मारा जाए केवल शिव पुत्र ही उसका वध कर पाए.

    तारकासुर की शक्ति बहुत बढ़ जाती है और वह देवों को उन्के स्थान से निष्कासित कर देता है और उन पर अत्याचार करने लगता है. देव अपनी इस दशा से छुटकारा पाने के लिए ब्रह्मा जी की शरण जाते हैं पर ब्रह्मा उन्हें बताते हैं कि उसकी मृत्यु केवल भगवान शिव के पुत्र द्वारा ही संभव है इसलिए तुम सभी देवों को भगवान शिव से प्रार्थना करनी चाहिए. अत: में देवों के प्रयास द्वारा भगवन शिव का विवाह देवी पार्वती से होता है और स्कंद की उत्पत्ति होती है.

    स्कंद को देवताओं का सेनापति बनाया जाता है और एक बहुत ही बड़ा युद्ध देवताओं और असुरों के मध्य आरंभ होता है जिसमें स्कंद देव

    तारकासुर का वध करके देवताओं को उनका स्थान पुन: प्रदान करवाते हैं.

    स्कंद देव क्यों कहलाते हैं कुमार

    स्कंद भगवान को बाल रुप एवं युवा रूप में पुजा जाता है. कार्तिकेय को देवताओ से सदेव युवा रहने का वरदान प्राप्त हुआ था इसलिए वह कुमार भी कहलाते हैं. स्वामी कार्तिकेय सेनाधिपति भी हैं इसलिए किसी भी युद्ध एवं लड़ाई में विजय प्राप्ति के लिए भी इनकी पूजा करना शुभदायक होता है. सैन्यशक्ति की प्रतिष्ठा, विजय, व्यवस्था, अनुशासन इन्हीं से प्राप्त होते हैं.

    स्कंद षष्ठी पूजा और व्रत के नियम

    स्कंद षष्ठी पर स्कंद भगवान समेत उनके परिवार का भी पूजन होता है. भगवान शिव, पार्वती, गणेश समेत सभी को पूजा में स्थान देना चाहिए. मंदिर में स्कंद भगवान की स्थापना करनी चाहिए. स्कंद भगवान के समक्ष अखंड दीपक भी जलाए जाने चाहिए. स्कंद भगवान को स्नान करवाया जाता है. इस दिन स्कंद भगवान को केसर, दूध, मौसमी फल, मेवा इत्यादि अर्पित करना चाहिए. पूजा कथा के पश्चात प्रसाद का वितरण करना चाहिए.