श्रावण पुत्रदा एकादशी : कुंडली के पंचम भाव को बनाती है शुभ
व्रत त्यौहारों का मनाया जाना सनातन परंपरा में किसी न किसी कारण के शुभ फलों को देने वाला होता है. व्रत त्यौहारों का संबंध ज्योतिष के साथ जुड़ा हुआ माना गया है. ज्योतिष अनुसार कुछ विशेष भावों की शुभता में व्रत एवं पर्व बेहद विशेष भुमिका का निर्धारण करते हैं. इसी में एक पर्व है जिसे सावन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन मनाया जाता है.
इस एकादशी को संतान सुख के लिए बेहद उत्तम माना गया है. इस एकादशी के शुभ फलों में पुत्र संतति, वंश वृद्धि के साथ अनेक प्रकार के दोषों की शांति संभव होती है. तो चलिये जान लेते हैं कि कैसे सावन माह की ये एकादशी देती है विशेष फल और कैसे ज्योतिष अनुसार कुंडली के भाव फल होते हैं जागृत.
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ज्योतिष अनुसार पुत्रदा एकादशी महत्व
ज्योतिष अनुसार जब कुंडली में किसी भाव के फलों की प्राप्ति में बाधाएं होती हैम तब उस स्थिति में किस जाने वाले उपाय बेहद कारगर सिद्ध होते हैं. जन्म कुंडली का पंचम भाव संतान सुख से जुड़ा हुआ है. जब कुंडली में इस भाव की स्थिति कमजोर होती है. भाव के कमजोर होने पर अनुकूल परिणाम मिलने में देरी का सामना करना पड़ता है. इस स्थिति से बचाव के लिए श्रावण पुत्रदा एकादशी बेहद कारगर सिद्ध होती है. भविष्य पुराण में इस दिन के महत्व के बारे में बताया गया है, श्रावण पुत्रदा एकादशी दिन बहुत ही शुभ होता है इस दिन व्रत रखने एवं पूजा द्वारा संतान से संबंधित कष्ट दूर होते हैं.
श्रावण पुत्रदा एकादशी 2024 तिथि और समय
श्रावण पुत्रदा एकादशी की तिथि 16 अगस्त 2024 (शुक्रवार) है
श्रावण पुत्रदा एकादशी तिथि प्रारंभ – 15 अगस्त, 2024 (गुरुवार) को सुबह 10:26 बजे
श्रावण पुत्रदा एकादशी तिथि समाप्त – 16 अगस्त, 2024 (शुक्रवार) को सुबह 09:39 बजे
श्रावण पुत्रदा एकादशी क्या है?
श्रावण पुत्रदा एकादशी 2024 इस साल की 24 एकादशियों में से एक है. यह एकादशी हर साल श्रावण मास में शुक्ल पक्ष के 11वें दिन आती है. श्रावण पुत्रदा एकादशी को पवित्रोपना एकादशी और पवित्रा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है. साल में दो उत्तरदा एकादशी होती हैं, एक पौष मास (दिसंबर-जनवरी) के शुक्ल पक्ष में आती है. यह एक ऐसा व्रत है जिसे पति-पत्नी दोनों रखते हैं.
श्रावण पुत्रदा एकादशी की कथा और महत्व
हम समझ गए हैं कि श्रावण पुत्रदा एकादशी क्या है. अब हम आगे बढ़ेंगे और व्रत कथा या शुभ एकादशी की कहानी के बारे में जानेंगे. क्या हुआ था? इस दिन का क्या महत्व है? हम इसके बारे में आगे सब कुछ जानेंगे. चलिए शुरू करते हैं.
श्रावण पुत्रदा एकादशी लोमेश ऋषी और महिजीत कथा
श्रावण एकादशी के संदर्भ में लोमेश ऋषी और राजा महिजीत की कथा प्रचलित हैं इस कथा के अनुसार अपनी शक्ति और धन के बावजूद, राजा महीजित को संतान नहीं हुई और उन्होंने कई संतों और ऋषियों से मदद मांगी, लेकिन उन्हें कोई सफलता नहीं मिली. अंत में, ऋषि लोमेश ने दिव्य दर्शन के माध्यम से बताया कि राजा व्यापारी के रूप में अपने पिछले जन्म के पाप के कारण निःसंतान था. पूर्व जन्म में राजा व्यापारी था और उसने स्वार्थवश एक गाय और उसके बछड़े को डराकर तालाब का पानी नहीं पीने दिया स्वयं सारा पानी पी लिया था. इस कृत्य के कारण उसे अगले जन्म में निःसंतान होने का श्राप मिलता है, लेकिन उसके अन्य अच्छे कर्मों ने उसे राजा के रूप में पुनर्जन्म की प्राप्ति भी होती है किंतु संतान हीनता का दुख भी मिलता है. ऋषी लोमेश की बातों को सुनकर उसने इस श्राप से मुक्ति का उपाय पूजा तब लोमेश ऋषी ने राजा को श्रावण पुत्रदा एकादशी के व्रत करने की बात कही.
ऋषि की बातों को सुनकर राजा और रानी को भगवान विष्णु की पूजा करने के लिए श्रावण एकादशी पर व्रत रखा. एकादशी का पालन किया, प्रार्थना की, उपवास किया, मंत्रों का जाप किया और दान किया. परिणामस्वरूप, उन्हें एक तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई जो उनके राज्य का उत्तराधिकारी बना.
जन्म कुंडली का पंचम भाव होता है प्रबल
श्रावण पुत्रदा एकादशी के दिन किए गए व्रत पूजन अनुष्ठानों से संतान भाव को प्रबलता मिलती है. यह एक शक्तिशाली पंचम भाव को दिखाता है और इस एकादशी का व्रतअनुष्ठा किया जाता है, तो यह संतान प्राप्ति की इच्छा को पूरा करता है. श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत आमतौर पर पति और पत्नी दोनों ही रख सकते हैं. इस दिन व्रत रखने से पिछले पाप भी दूर होते हैं और भक्त को मोक्ष प्राप्त करने के लिए अच्छे कर्म करने का अवसर मिलता है.
श्रावण पुत्रदा एकादशी देता है जन्म कुंडली के संतान योग को शुभता मिलती है. श्रावण पुत्रदा एकादशी का व्रत उन के लिए बहुत फायदेमंद है जो संतान के रूप में पुत्र चाहते हैं. यह भक्तों की इच्छाओं को पूरा करता है, और यह उन दंपत्तियों के लिए अत्यधिक शुभदायक और अनुकूल है जो गर्भधारण करने में परेशानी का सामना कर रहे हैं. या संतान होने में किसी न किसी कारण से देरी का असर झेल रहे हैं. यह व्यक्ति के पिछले पाप कर्मों को भी दूर कर देता है. पितर दोषों की शांति भी इस के द्वारा संभव होती है.