गजकेसरी योग को लग्न से केन्द्र भाव में भी देखने का विचार है. इसकी शुभता केन्द्र भावों के अतिरिक्त अन्य भावों में बनने वाले योग की तुलना में उतम होती है.
गज केसरी योग निर्माण (Formation of Gaja Kesari Yoga)
- गुरु चन्द्र से केन्द्र में होना चाहिए. या (Jupiter must be in Kendra from Moon)
- गुरु लग्न से केन्द्र में होना चाहिए. (Jupiter must be in Kendra from Ascendant)
इस योग में देवगुरु वृ्हस्पति लग्न से केन्द्र में होने चाहिए या चन्द्र से तथा शुभ ग्रहों से द्र्ष्ट होने चाहिए. इसके साथ ही ऋषि पराशर ने यह भी कहा है कि :-
- 1 गुरु नीच स्थिति में
- 2 शत्रु भाव में
- 3. अस्त नहीं होना चाहिए
अगर गुरु गजकेसरी योग बनाते समय इनमें से किसी स्थिति में हों तो योग कि शुभता अवश्य प्रभावित होती है. इस स्थिति में "गजकेसरी योग' प्रतिमाह जन्म लेने वाले 20% से 33 % व्यक्तियों की कुण्डली में होता है. इसके अतिरिक्त ऋषि पराशर के अनुसार गजकेसरी योग बना रहा गुरु कुण्डली में वक्री या पाप ग्रह से द्र्ष्ट नहीं होना चाहिए. यहां पर ध्यान देने योग्य एक विशेष बात यह है कि इस योग में गुरु का चन्द्र से केन्द्र में होना आवश्यक नहीं है.
शुक्र व बुध से बनने वाला गजकेसरी योग (Gaja Kesari Yoga formed through Venus and Mercury)
एक अन्य मत के अनुसार यह अगर शुक्र, चन्द्र से केन्द्र ( 1,5,7, 10 ) में हों तब भी 'गजकेसरी" योग बनता है. पर व्यवहारिक रुप से यह पाया गया है कि शुक्र व बुध जब चन्द्र से केन्द्र में हों तब इस योग की शुभता में वृ्द्धि होती है. इस योग में चन्द्र का शुक्र व बुध से द्रष्टि संबन्ध भी होना चाहिए.
अगर बुध, गुरु, शुक्र से चन्द्र का योग गजकेसरी योग में शामिल किया जाता है तो गजकेसरी योग को शुभ योगों में जो मान्यता प्राप्त है उसमें कमी आयेगी. कई बार वह निरर्थक भी हो जायेगा. क्योकि इस स्थिति में यह योग नब्बे % व्यक्ति की कुण्डली में बनेगा. ऎसे में यह उतम श्रेणी के शुभ धन योगों में से नहीं रहेगा.
वास्तविक रुप में यह देखा गया है कि शुक्र से चन्द्र केन्द्र में होने पर बनता ही नहीं है. शुक्र कि दोनों राशियां सदैव एक दूसरे से षडाष्टक योग रखती है. इस स्थित में शुक्र की एक राशि केन्द्र में हो भी तो दूसरी राशि हमेशा पाप भाव में होगी. इस स्थिति में गजकेसरी योग भंग हो जाता है तथा योग की शुभता, अशुभता का स्थान ले लेती है.
बुध से बनने वाले गजकेसरी योग में गुरु व बुध पर चन्द्र की द्रष्टि होने की बात कही गई है. ऎसे में चन्द्र को इन दोनों ग्रहों से सप्तम भाव में होना चाहिए. तभी चन्द्र व गुरु एक- दूसरे से केन्द्र में हो सकते है.