प्रश्न कुण्डली में हर भाव के दो महव होते हैं जिनका बाहरी और आंतरिक रूप से अलग-अलग महत्व होता है. भाव के यह दोनों रूप उसके महत्व को समझाने के लिए काफी व्यापक रूप से काम में आते हैं. वराहमिहीर जी ने अपने ग्रंथ बृहतजातक
जैसा कि पहले चर्चा कर चूके हैं कि प्रश्न कुण्डली में भाव सबसे महत्वपूर्ण कारकों में से एक होता है. सामान्यत: प्रश्न कुण्डली के भाव जन्म कुण्डली की ही भांति होते हैं और इनका अध्ययन भी जन्म कुण्डली के भावों की भांति ही