लाल किताब के अनुसार जब कोई ग्रह किसी भाव में अकेला स्थित होता है या किसी और ग्रह से दृष्ट भी नही हो तो वह शुभ प्रभाव वाला होगा. यहां अकेले ग्रह से अर्थ यह है कि उस ग्रह को कोई भी अन्य ग्रह तथा किसी दृष्टि से न देख रह अहो या ऎसा ग्रह अकेला बैठा हो. सामान्यत: अशुभ का अर्थ यहां पर यह है कि जब ग्रह ऎसे घरों में बैठा हो जहां वह नीचस्थ हो या अपने शत्रु ग्रहों के साथ या शत्रु के घर में स्थित हो. साधारणत: शुभ का अर्थ है कि ग्रह अपने घर का स्वामी हो या मित्र के घर में बैठा हो या उच्चस्थ स्थान पर स्थित हो. प्रत्येक ग्रह के अकेले होने पर शुभ और अशुभ प्रभाव होते हैं जो इस प्रकार है.
बृहस्पति -बृहस्पति ग्रह अकेला किसी भी भाव में बैठने पर कभी अशुभ प्रभाव नहीं देता. इसके शुभ फ्लों में कमी क़्आ जाती है. अगर सातवें भाव में अकेला बैठा हुआ हो तो दांपत्य सुख से जुड़े मुद्दे परेशान कर सकते हैं. इसी प्रकार कहीं भी हो अकेला तो उस भाव से संबंधित फलों में कमी लाने वाला होता है.
सूर्य -सूर्य अकेला होगा तो वह स्वयं मेहनत करके अपने लिए खूब सा धन कमाता है और अमीर बनता. जातक में साहस होता है और वव अकेलापन भी पसंद कर सकता है. उसे बहुत अधिक लोगों के साथ की आवश्यकता नहीं पड़ती है.
चंद्र - चंद्र यदि अकेला किसी भाव में बैठा हो तो अपनी दया भावना द्वारा फांसी भी माफ करा सकता है तथा यह कुल का नाश नहीं होने देता. पर साथ ही अकेला चंद्रमा व्यक्ति को मानसिक रुप से थोड़ा कमजोर कर सकता है. व्यक्ति में बहुत अधिक सोचने की प्रवृत्ति हो सकती है. चंद्रमा के अकेले होने पर व्यक्ति भावनात्मक रुप से कमजोर हो सकता है. वह अपनी मर्जी का मालिक भी हो सकता है और कुछ जिद्दी भी होता है.
शुक्र -शुक्र यदि अकेला बैठा है तो कभी अशुभ नहीं होता है. उसके प्रभाव से व्यक्ति में एक प्रकार की चमक आती है. यह व्यक्ति को सौंदर्य का स्वामी ओर शुभता देने में सहयोग करता है. शुक्र के प्रभाव से जातक में कलात्मक प्रवृत्ति जगाने वाला होता है.
मंगल - यह यदि अकेला हो तो कैदी या बकरियों में पले सिंह जैसा होगा. मुख्य रुप से व्यक्ति को अपने साहस और बाहुबल का ज्ञान नहीं हो पाता है. यह स्थिति तीसरे भाव में बैठे मंगल के साथ अधिक देखने में मिल सकती है. व्यक्ति अपने उस गुण को सही से नही जान पाता जिसके द्वारा वह अकेले ही जीवन में सफलताएं भी पा सकता है.
बुध - बुध अकेला होने पर लालची स्वरुप का तथा यहां वहां देश परदेस में व्यर्थ ही घूमने वाला हो सकता है. जातक खुद को बहुत अधिक ज्ञानी और विचारक भी समझता है. बुध का प्रभाव जातक को अहंकारी भी बना सकता है. व्यक्ति का प्रभाव क्षेत्र बहुत लोगों के साथ मेल जोल करने में सक्षम होता है. वह ह्म्समुख और मन-मौजी भी होता है.
शनि -शनि अकेले सूर्य के साथ खाली बुध जैसा काम करता है. शनि के प्रभाव के कारण व्यक्ति में भौतिकता से दूर रहने की प्रवृत्ति अधिक देखने को मिलती है. वह सेवा काम में अधिक देखा जा सकता है. कई बार चीजों के प्रति विरक्ति होने के कारण जातक अकेलेपन में खो भी जाता है.
राहु -यह हर प्रकार से रक्षक हो सकता है लेकिन माली हालत की शर्त नही होगी. राहु के प्रभाव से व्यक्ति अपने कायों को लेकर अधिक भ्रम के कारण काम में सही से आगे नहीं बढ़ जाता है. राहु का मंदा प्र्भाव आपको मानसिक रुप से बर्बाद कर देने जैसा होगा. राहु का शुभ प्रभाव आपको राजा भी बना सकता है. पर आपके मन के विचारों का ज्वार कभी कम नहीं होने देता है.
केतु -यह हर समय राहु के इशारे पर चलने वाला होगा. व्यक्ति धार्मिक रुप से काफी भी कुछ कठोर हो सकता है. राहु-केतु दोनों ही ग्रहण का भी कारण होते हैं. केतु संतोष देता है, यह विरक्ति देने वाला भी होता है.
इसी प्रकार जब किसी ग्रह कि दृष्टि से दूर अकेला बैठा ग्रह निम्न प्रकार के प्रभाव प्रदान करने वाला होता है.
बृहस्पति - यह यदि किसी ग्रह कि दृष्टि के प्रभाव से दूर हो तो सामान्यत: 6, 7, 10 भाव में अशुभ होगा और 1, 5, 8, 9, 11, 12 भाव में शुभ होगा.
सूर्य - सूर्य के लिए 6, 7, 10 अशुभ भाव और 1 से 5, 8, 9, 11, 12 सामान्यत: शुभ भाव रहेंगे.
चंद्रमा - चंद्रमा 6, 8, 10 से 12 अशुभ भाव हैं ओर 1 से 5, 7 9 शुभ भाव वाला रहेंगे.
शुक्र - 1, 6, 9 अशुभ भाव और 2 से 5, 7, 8, 10, 11 12 शुभ भाव रहेंगे.
मंगल - मंगल के लिए 4 और 8 अशुभ भाव है और 1 से 3, 5 से 7, 9 से 12 शुभ भाव हैं.
बुध - बुध 3, 8 से 12 भाव में अशुभ लेकिन हमेशा अशुभ हों यह जरूरी नहीं और 1, 2, 4, 5, 67 भाव शुभ होंगे.
शनि - यह 1, 4, 5, 6 भाव में अशुभ और 2, 3, 7, 12 भाव के लिए शुभ है.
राहु - 1, 2, 5 7 से 12 भाव अशुभ और 3, 4, 6 भाव शुभ होंगे.
केतु - 3 से 6 8 भाव अशुभ और 1, 2, 7, 9 से 12 भाव शुभ हैं.