गुरु का मकर, कुम्भ और मीन राशि में होने पर ये होगा असर
मकरगत गुरू का योगफल | Jupiter Aspecting Capricorn
मकरगत गुरू के होने पर गुरू अपनी निर्बल स्थिति में होता इस स्थिति में गुरू के फल को पूर्ण रूप से बली नहीं माना जाता है. यहां गुरू की स्थिति के कारण जातक को पूर्ण रूप की प्राप्ति में बाधा आ सकता है. वह किसी न किसी रूप से परेशान कर सकता है. जातक के जीवन में होने वाली परेशानीयों को हल करने में व्यक्ति को बहुत मुशकिलें आ सकती हैं कोई न कोई स्थिति इस ओर से भी उठ खडी़ हो सकती है.
जातक अपने प्रभाव को बनाने के लिए अधिक परिश्रम से दूर ही रह सकता है. अपने प्रयासों में उसे कई बार उलझी स्थिति का सामना करना पड़ सकता है. जीवन में होने वाले उतार-चढा़वों से वह घबरा सकता है. कलेशों से परेशान रह सकता है. संतान की ओर से भी परेशानी बनी रह सकती है. मूर्खता पूर्ण लिए गए निर्णय भी उसके लिए परेशानी का सबब बन सकते हैं.
जातक दूसरों की चाकरी में लगा रहने वाला हो सकता है. उसमें दया भाव भी कम हो सकता है बन्धु प्रेम से रहित धर्म कर्म के प्रति अधिक सजग न रहने वाला हो सकता है. जातक के साहस में कमी रहती है वह मजबूत फैसले नहीं ले पाता है. प्रवासी जीवन जीने वाला बनता है और शरीर से कमजोर हो सकता है. मन से काफी विचलित रहने वाला और विषाद युक्त हो सकता है.
कुम्भगत गुरू का योगफल | Jupiter Aspecting Aquarius
कुम्भगत गुरू के होने पर जातक बातों में लगा रहने वाला और चुगलखोर हो सकता है. परिस्थितियों में स्वयं को आगे बढा़ लेने की योग्यता रखता है. आचरण से कुछ विपरित कर्म करने वाला भी हो सकता है. इससे प्रभावित होने पर जातक के चरित्र में कई प्रकार के उतार-चढा़व देखे जा सकते हैं. उसके कर्म में कुछ कठोरता मौजूद हो सकती है. कहीं न कहीं यह कठोरता उसे स्वभावगत स्थरता देने वाली भी बन सकती है. जातक को दुष्ट भी कहा जा सकता है क्योंकि उसके द्वारा किए गए यह कठोर कर्म कई प्रकार से दुष्टता की स्थिति का आधार भी बन सकते हैं.
व्यक्ति में काम को लेकर अधिक उत्साह नहीं होता वह कोई भी छोटा मोटा काम काज करने में भी अपने को संतुष्ट पाता है अधिकांशत: वह अपने इस व्यवहार के कारण नीच कर्म को करने की ओर भी प्रवृत्त हो सकता है. अधिक जुटा लेने की चाहत भी रहती है. वह सभी कुछ पाना चाहता है और समस्त वस्तुओं का उपभोग भी चाहता है.
कुम्भ में गूरू की स्थिति शनि के प्रभाव से भी प्रभावित होती है. यहां जातक में न्याय की प्रबलता देखी जा सकती है वह किसी भी प्रकार के प्रपंचों को समझने में सक्षम होता है. उसकी बौद्धिकता के कारण ही उसे कई प्रकार के तथ्यों की समझ भी अच्छी होती है. जातक में घमंड की अधिकता देखी जा सकती है उसमें अहंवाद का भाव होता है. इस बात में उसकी ज्ञानशीलता और एकात्मता का बोध होता है. वह स्वयं को बेहतर व नेतृत्व करने में सामर्थ्यवान समझता है.
मीनगत गुरू का फल | Jupiter Aspecting Pisces
मीन में स्थित होने पर गुरू स्वराशि युक्त होता है और स्वबल की प्राप्ति में सक्षम होता है. इस स्थिति के कारण जातक में ज्ञान की अधिकता होती है. वह चंचल स्वरूप का किंतु स्थिरता का बोध लिए होता है. जातक की वेद शास्त्रों में अभिरूची बनी रहती है. इसमें गुरू की स्थिति अत्यधिक धार्मिकता की स्थिति का बोध कराने में भी सहायक बनती है. यह एक शुद्ध व सात्विक स्थिति की परिचायक होती है. जातक में सात्विक गुणों की प्रधानता रहती है और वह अपने कर्म व विचारों द्वारा कई प्रकार से आत्मिकता का बोध कराने में सहायक होता है.
व्यक्ति को राजसम्मान की प्राप्ति होती है. उसे आदरणीय स्थान प्राप्त होता है श्रष्ठ जनों की संगत पाता है. अपने कार्यों में धार्मिकता को स्थान देता है. धर्म कर्म में भी रूझान रखने वाला होता है. इस स्थिति के होने के बावजूद भी जातक में घमंड का भाव भी होता है. वह आलस्य से युक्त हो सकता है. नीतिवान और शिक्षा से युक्त भी होता है. उसमें कभी कभी क्रोध भी देखा जा सकता है वह अपनी बातों को प्रधान सत्य की भांति देखता है.
व्यक्ति अत्यंत भाग्यशाली होता है. शारीरिक तौर पर स्वस्थ और सुन्दर होता है. स्वभाव से दयालु और विनम्र रहता है. धर्म के प्रति आस्थावान और आत्मविश्वास से परिपूर्ण रहता है. इसके प्रभाव से पिता एवं संतान से सुख प्राप्त होता है. गृहस्थ जीवन सुखमय होता है.
"गुरूगत स्थिति का योगफल - भाग 1"
"गुरूगत स्थिति का योगफल - भाग 2"