इस कारण मिलता है नौकरी में प्रमोशन : क्या आपकी कुंडली में भी ये योग ?
वर्तमान समय में व्यक्ति के व्यवसाय का प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण बन चुका है. नौकरी लगने पर भी व्यक्ति उसमें पदोन्नति व सम्मान की चाह रखता ही है. आज हम आपको पदोन्नति के कारकत्व तथा पदोन्नति में होने वाले विलंब के बारे में बताना चाहेंगे.
पदोन्नति के कारकत्व | Karak Elements related to Promotion
आरंभ हम पदोन्नति के लिए आवश्यक कारकत्वों से करेंगे. जन्म कुंडली व चंद्र कुंडली दोनो से दशम भाव का आंकलन किया जाना चाहिए क्योकि दशम भाव का संबंध आजीविका से जोड़ा गया है.
सूर्य सत्ता का कारक होने से कार्यक्षेत्र की उन्नति दिखाता है. सूर्य सत्ता का, उच्चाधिकारों का तथा मान प्रतिष्ठा का कारक माना गया है इसलिए यह मुख्य कारकत्व माना गया है. दशमेश, दशम भाव में स्थित ग्रह का आंकलन किया जाता है.
जन्म कुंडली में दशम भाव तथा दशमेश से संबंध रखने वाले ग्रहो का आंकलन भी किया जाना बहुत जरुरी होता है. जन्म कुंडली में सूर्य के साथ गुरु व शनि पर भी विचार किया जाता है. सूर्य सत्ता व अधिकार तो गुरु से धन, सम्मान तथा प्रतिष्ठा को देखा जाता है. शनि नौकरी का कारक ग्रह है ही और इससे कार्य कुशलता तथा परिश्रम देखा जाता है. इसलिए इन तीनो के बल व शुभाशुभ को देखना जरुरी होता है.
जन्म लग्न, चंद्र तथा सूर्य से षष्ठेश तथा दशमेश की स्थिति का आंकलन किया जाता है. इन दोनो की कुंडली में स्थिति, बल तथा शुभाशुभ का आंकलन जरुरी होता है. इनके बल का आंकलन नवांश तथा दशमांश कुंडली में भी किया जाता है. कुछ विद्वान शनि व गुरु से दशम भाव का आंकलन भी जरुरी मानते हैं.
दूसरे, नवम तथा एकादश भाव का बल व शुभत्व भी आजीविका के लिए देखा जाता है. दूसरा भाव धन का है तो एकादश भाव लाभ का माना गया है और नवम भाव लक्ष्मी स्थान होने के साथ भाग्य भाव भी है. भिन्न-भिन्न लग्नों के कारक ग्रह यदि लग्न, लग्नेश, दशम या दशमेश से संबंध बनाए तो वेतन में वृद्धि तथा पदोन्नति होती है.
पदोन्नति में विलंब के योग | Yogas for Delay in Promotion
इस भाग में हम पदोन्नति में होने वाले विलंब के कारणो पर एक नजर डालने का प्रयास करेंगे. जन्म कुंडली का छठा, नवम, दशम भाव व भावेश यदि पाप ग्रहों के चंगुल में स्थित है तब यह आजीविका में बाधा देते हैं.
जन्म कुंडली में दशमेश अष्टम भाव में स्थित हो तथा षष्ठेश शत्रु ग्रह से युति कर रहा हो तब पदोन्नति होने में विलंब होता है. जन्म कुंडली में यदि षष्ठेश पाप ग्रहो से युत है तो बली दशमेश भी पदोन्नति में कुछ नहीं कर पाता है. कुंडली में शत्रु राशि में स्थित शनि दशम भाव में व अष्टमेश नवम भाव में होने पर पदोन्नति में बाधा आती है.
मानहानि तथा आजीविका के दुर्योग | Yogas related to Defamation
अंतिम भाग में हम आजीविका के क्षेत्र में होने वाली मानहानि तथा दुर्योगो की बात करेंगे. जन्म कुंडली में जब दशमेश पाप ग्रहों से युत होकर लग्न में और लग्न, लग्नेश शुभ ग्रहों से वंचित हों तब मानहानि की संभावना बनती है क्योकि लग्न व्यक्ति का शरीर होता है और दशमेश से आजीविका देखी जाती है. इसलिए लग्न व दशमेश का पाप प्रभाव में होना अशुभ दशा में निराशा दे सकता है.
दशमेश पाप ग्रहों के नवांश में हो और एकादश भाव में पाप ग्रह स्थित हो. एकादश भाव में पाप ग्रह की स्थिति अनैतिक रुप से लाभ पाने की प्रवृति व्यक्ति विशेष को देती है. अगर दशमेश भी पाप नवांश में हो व्यक्ति के द्वारा किया पाप छिपता नहीं है और उसे दंड अवश्य मिलता ही है. दशमेश, अष्टम भाव में अष्टमेश से ही युत भी हो और पाप ग्रहो से दृष्ट भी हो तब बुरी दशा आने पर अवनति व आजीविका के क्षेत्र में कलंक लगता है.