कुण्डली में भाव परिवर्तन का महत्व | Importance of Interchange of Planets in Kundali

कुण्डली में ग्रहों की स्थिति और उनकी युति कई प्रकार के प्रभावों को सामने लाती है. जातक पर उनका अनेक प्रकार से प्रभाव देखा जा सकता है जीवन में आने वाले उतार-चढावों में ग्रहों की स्थिति व संबंध बहुत प्रभाव डालने वाले होते हैं. कुण्डली में बनने वाला परिवर्तन योग के बारे मे ज्योतिष शास्त्रों मे बहुत कुछ लिखा गया है. परिवर्तन का अर्थ इस बात से समझा जा सकता है कि ग्रहों का एक दूसरे की राशि में स्थित होना होता है.

वृश्चिक कर्क और मीन राशि के लिये अशुभ माना जाता है यही नही जब यह योग जोखिम और कार्य की पूरक राशियों मे अपना परिवर्तन योग सामने लाता है तो जातक के जीवन में कशमकश और मेहनत का दौर बना ही रहता है. ऎसे में एक निराशा भी उसे घेर सकती है जो उसके लिए काफी थका देने वाली ओर परेशान कर देने वाली होती है.

परिवर्तन योगों में राशि स्वामी परिवर्तन, भाव स्वामी परिवर्तन, नक्षत्र स्वामी परिवर्तन योग इत्यादि परिवर्तनों को महत्वपुर्ण स्थान प्राप्त है. इसी के साथ इनके जीवन में सभी प्रकार के लक्षणों को समझने के लिए इन्हें समझना आवश्यक है. मुख्य परिवर्तन योग माने जाते है. जहां एक ओर यह योग मेष सिंह और धनु राशि के स्वामियों की आपसी परिवर्तन करने से अच्छे राजयोग मे बदल सकता है. उसी प्रकार कुछ ऎसी भी स्थान हैं जहां इनका परिवर्तन अनुकूल नहीं हो पाता है.

शनि मंगल का परिवर्तन योग पराक्रम और लाभ के विचार को दर्शाता है जातक अपने आपको परिश्रमी बनाता है और अपनी स्थिति को उन्नत करने की चाह रखता है. कुम्भ लगन का स्वामी शनि के साथ मंगल जो दशम का स्वामी है परिवरतन योग बनने पर कार्य में हर प्रकार की युति संगती का प्रयोग करने की ओर उन्मुखता लिए हो सकता है.
जातक, इनका परिवर्तन कार्य के प्रति तकनीक और उत्तेजना का मिलन लेकर आता है. जातक को अपने काम में कई प्रकार के आक्षेप भी सहन करने पड़ सकते हैं. इसके अलावा जातक की कुंडली को सूक्ष्म विवेचन से देखने पर अन्य बातों को पुर्ण रूप से समझने पर ही किसी नतीजे पर पहुंचा जा सकता है.

जब दो ग्रह एक दूसरे की राशि में चले जाते हैं तो इस स्थिति से राजयोग का निर्माण भी होता है. अगर केन्द्र या त्रिकोण के स्वामियों में शुभ ग्रहों का भाव परिवर्तन हो रहा हो तो यह जातक को अच्छे फल देने की ओर अग्रसर रहते हैं. परंतु यह स्थित उलट भी हो सकती है और इसके अच्छे प्रभावों में कमी आ सकती है जैसे कि यदि कोई ग्रह अस्त हो या नीच राशि में स्थित ग्रह भाव परिवर्तन में शामिल हो रहा हो तो साधारत: बुरे फल देने की ओर उद्धत रहते हैं.

यहां हम एक उदाहरण कुण्डली के माध्यम से भाव परिवर्तन योग को समझने का प्रयास करेंगे. मिथुन लग्न की कुण्डली ले रहे हैं लग्न में वक्री शनि और केतु स्थित हैं, पंचम भाव में तुला राशि का चंद्रमा स्थित है, सप्तम भाव में धनु के राहु, अष्टम भाव में मकर राशि के सूर्य, गुरू, बुध, वक्री शुक्र स्थित हैं और एकादशभाव में मेष के मंगल स्थित हैं.

इस कुण्डली में लग्नेश और चतुर्थेश बुध का भाग्येश व अष्टमेश शनि के साथ परस्पर भाव परिवर्तन हो रहा है. इस कुण्डली में शनि नवमेश हैं जिस कारण पिता का प्रतिनिधित्व करते हैं. यहां लग्नेश अस्त हो रहा है जो सूर्य के साथ आठवें भाव में स्थित है जो पिता का कारक माना जाता है.

यह एक अनुकूल परिवर्तन योग नहीं माना जा सकता है इस के कारण जातक को अपने पिता से दूरी की स्थिति को झेलना पड़ सकता है तथा भाई बहनों से भी अलगाव की स्थित बनी रह सकती है. इस प्रकार से जब हम भावों के समझते हैं तो देखते हैं कि यदि कोई अशुभ भाव का संबंध इस परिवर्तन योग में आ रहा हो तो उक्त ग्रहों से मिलने वाले फलों में कमी बनी रहती है पर यदि किसी शुभ स्थान का परिवर्तन मिले तो जातक को अच्छे फलों की प्राप्ति अवश्य होती है.