कैसा होता है चंद्रमा महादशा में सूर्य अंतर्दशा फल आईये जानें

चंद्रमा की महादशा दस वर्ष की होती है. चंद्रमा की महादशा में जातक को इससे संबंधित फलों की प्राप्ति होती है. जन्म कुण्डली में चंद्रमा की स्थिति हम यहां अवलोकन नहीं कर रहे अपितु उसकी महादश के फलों की बात करते हुए यह कह सकते हैं कि चंद्रमा की महादशा में जातक का व्यवहार शांत रहता है वह यदि कभी उग्र रहने वाला हो तो जातक इस दशा में शांत होने लगता है.

चंद्रमा शांत, सौम्य ग्रह है और सूर्य जोरदार व आक्रामक होता है, चंद्रमा के साथ सूर्य का संयोजन चंद्रमा के लिए शक्ति को प्रतिबिंबित करने वाला होता है. यह मिलन एक संतुलित गठन लाता है. एक साथ मिलकर यह मिल-जुले फल देने वाले होते हैं. ज्योतिष में चंद्र का प्रमुख स्थान है, इसी का प्रभाव हमारे मन पर भी होता है हमारा मन कृष्ण पक्ष के जैसे घटता है व शुक्ल पक्ष के जैसे बढ़ता है.

चंद्रमा में सूर्य की अंतर्दशा होने पर जातक को उच्च ज्ञान के साथ सामाजिक और व्यावसायिक लाभ मिलता है उच्च स्थिति और धन की आमद होती है. चंद्रमा महादशा में सूर्य की अन्तर्दशा की यह अवधि जातक को दूसरों से सम्मानित कराती है साथ ही प्रेम की प्राप्ति भी कराने में सहायक होती है. व्यक्ति धार्मिक पथ में चलने वाला होता है. इसी के कारण ही समुद्र में ज्वारभाटा उत्पन्न होता है. चंद्रमा सूर्य से ही प्रकाश पाता है और सभी को प्रकाशित करता है.

इन्हें जल तत्व का देव कहा जाता है, इनको सर्वमय कहा गया है तथा यह सोलह कलाओं से युक्त हैं. शुभ चंद्र जातक को धनवान और दयालु बनाता है, सुख और शांति देता है. घर संबंधी शुभ फल मिलते हैं. चंद्र देवता को बीज, औषधि, जल तथा ब्राह्मणों का आधिपत्य प्राप्त है. मानसिक रोगों का कारण भी चंद्र को माना गया है क्योंकि यह सबसे अधिक मन पर ही प्रभाव डालते हैं.

चंद्रमा में सूर्य दशा अवधि में कुछ शुभ घटनाओं, खुशी में वृद्धि होगी इसके अलावा जातक के जो भी कोई नुकसान हुए हों वह इस समय में दूर हो सकेंगे. व्यक्ति को सांप, चोरों, सरकार से समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है और विदेश यात्रा के दौरान मुसीबतों से भी सामना हो सकता हो.

अत: कुण्डली में उसकी स्थिति का आंकलन न करते हुए यदि हम उसके स्वभाविक रूप को समझने का प्रयास करें तो हमें पता चलता है कि यह शांत, कोमल ग्रह हैं. ग्रहों में रानी का स्थान पाता है, इन दोनों की दशाओं का योग होने पर प्रभाव अनुकूल अधिक रहते हैं और सामंजस्य की ओर भी इशारा करते हैं.

इन दोनों ग्रहों में सात्विकता का भाव देखा जाता है. इन दोनों दशाओं का काफी कुछ शुभ प्रभाव देने वाला बनता है. जातक को शत्रुओं की ओर से शांति व समझौते करने का मौका मिलता है, धन लाभ होता है, मन में शांति व सकुन का एहसास होता है, कुछ घर से संबंधी सुखों की ओर व्यक्ति को जाने का मार्ग मिलता है.

इसमें उसे आकस्मिक लाभ ,यश , कीर्ति एवं विदेश यात्राओं से लाभ प्राप्त मिलता है. धर्म के प्रति श्रद्धा उत्पन्न होती है, माता की ओर से पिता की ओर से कुछ अच्छे संकेत मिलते हैं. प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता बढती है, उच्च अधिकारियों से सम्मान प्राप्त होता है तथा प्रशासनिक लोगों से मेल मिलाप करने के अवसर प्राप्त होते है.

पर यदि हम उसके कुछ अशुभ स्थानों में होने या कमजोर होने की बात करते हैं तो इन प्रभावों में कहीं न कहीं कमी भी देखी जाती है व्यक्ति को मन की चेतना में तेजी आने से जातक काफी चंचल व अपने में रहने वाला तथा अपने नेतृत्व को दर्शाने की चाह भी रख सकता है. इस कारण से कुछ कमियां भी सूर्य की अंतर्दशा भुक्ति में देखने को मिल सकती है इन सभी बातों का सामान्य रूप से अध्ययन करने के लिए काफी हद तक हमें कुण्डली में ग्रहों की स्थिति को भी समझना होता है जिससे हम पूर्ण निष्कर्ष को समझ सकें.

पुराणों के अनुसार सागर मंथन से जो रत्न निकले थे उनमें से एक चंद्रमा भी थे जिन्हें भगवान शंकर ने अपने सिर पर धारण कर लिया था. इसलिए इनकी शांति के लिए शिव भगवान की पूजा अच्छी मानी जाती है जिससे इन्हें मजबूती प्राप्त होती है. चावल, सफेद वस्त्र, श्वेत पुष्प, चीनी, शंख, दही और मोती का दान करना भी अच्छा होता है.