वैवाहिक सुख में कमी के कारण
वैदिक ज्योतिष में बहुत से अच्छे तथा बुरे योगों का उल्लेख मिलता है. इन योगों का फल कब मिलेगा इसका अध्ययन करना बहुत जरुरी है और इनका अध्ययन दशा, गोचर और कुंडली के योगो के आधार पार किया जाता है. किसी भी घटना के लिए कुंडली में सबसे पहले योग होने चाहिए, उसके बाद योगो से संबंधित ग्रह की दशा/अन्तर्दशा और गोचर का होना जरुरी माना गया है. आइए आज इस लेख के माध्यम से अरिष्ट का आंकलन करने का प्रयास करें.
आपके सामने आज जो उदाहरण कुंडली दी जा रही है वह एक महिला की है जिनका वैवाहिक जीवन कभी भी सुखी नहीं रहा. विवाह के बाद से ही इनके पति ने इन्हें हर तरह से परेशान किया, जबकि पति की आर्थिक स्थिति अच्छी होते भी यह पैसे को लेकर हमेशा परेशान रही. पति की ओर से आर्थिक सहायता ना मिलने के कारण यह अपना स्वयं का काम करती थी. इनकी दो संताने हुई लेकिन अपने बच्चो से भी पिता को लगाव नहीं था. अगर यह कुछ भी आवाज उठाती तो पति की मार का सामना करना पड़ता था. पति का अच्छा-खासा बिजनेस था लेकिन इन्हे कभी समझ नहीं आया कि इनका पति इनके साथ दुर्व्यवहार क्यो कर रहा है. विवाह के 16 वर्ष तक यह पति के कष्टों को सहन करती रही.
2007 के अक्तूबर माह में इस महिला को अपने पति के व्यवहार में कुछ बदलाव नजर आए. पति क स्वभाव कुछ नरम था और उसने पत्नी से कहा कि बेटे को मेरे साथ बिजनेस संभालने के लिए कहो हालांकि बच्चा अभी 15 वर्ष का ही था. इन बातों के चार दिन बाद ही एक दिन पति ने अपनी पत्नी से अपने दुर्व्यवहार के लिए क्षमा मांगी कि मैने तुम्हारे साथ बुरा सुलूक किया है. फिर एक-दो दिन बाद ही स्वयं को आग लगाकर आत्महत्या कर ली. महिला जातक को आर्थिक रुप से फायदा तो बहुत हुआ लेकिन उसकी कीमत उसे पति की मौत से चुकानी पड़ी. आज उसके पास सभी कुछ है लेकिन पति का सुख नही है, जो पहले भी नहीं था.
इस महिला की कुंडली में सप्तम से आठवें भाव में मिथुन राशि जो कि वायु तत्व है, उसमें दो अग्नि तत्व ग्रह मंगल व सूर्य की स्थिति, जिन्हें नीच का शनि बारहवें भाव से तीसरी दृष्टि से देख रहा है. शनि मेष राशि में नीच के होते हैं और मेष राशि फिर अग्नि तत्व राशि मानी गई है. वृष लग्न के लिए बृहस्पति दो अशुभ भावों अष्टम व एकादश का स्वामी होता है. इन महिला की कुंडली में बृहस्पति छठे भाव में स्थित होकर नवीं दृष्टि से फिर दूसरे भाव व दूसरे भाव में स्थित ग्रहों को देख रहा है. इनकी कुंडली में चंद्र तथा राहु दसवें भाव में स्थित हैं. चंद्रमा का राहु से पीड़ित होना जीवन भर की मानसिक परेशानियों को दिखाता है. बारहवें भाव में स्थित नीच का शनि शैय्या सुख में कमी दिखा रहा है.
दूसरे भाव से कुटुम्ब का आंकलन किया जाता है और इनकी कुंडली में यह भाव पीड़ित है. चतुर्थ भाव से भी सुख का आंकलन किया जाता है लेकिन इनकी कुंडली में चतुर्थ भाव में केतु स्थित है और चतुर्थेश मंगल के साथ शनि व गुरु से दृष्ट है. इनकी नवांश कुंडली वर्गोत्तम है और वृष लग्न की ही है. सप्तम भाव में शुक्र व शनि एक साथ स्थित हैं. मंगल सप्तमेश होकर बारहवें भाव में स्वराशि के स्थित होकर आठवीं दृष्टि से सप्तम भाव को देख रहे हैं. इस कुंडली में स्थित कुछ बेहतर है तभी महिला ने 16 वर्षो तक पति का साथ निभाया. नवांश कुंडली में बृहस्पति वर्गोत्तम है और छठे भाव से फिर मंगल को सातवीं दृष्टि से देख रहे हैं.
जिस समय महिला के पति ने आत्महत्या की उस समय इनकी कुंडली में शनि/केतु/बुध की दशा थी. शनि की स्थिति का आंकलन हमने पहले ही ऊपर कर दिया है. अब यदि शनि को वृश्चिक लग्न बनाकर देखें तो पति के भाव से यह छठे में अग्नि तत्व राशि में स्थित हैं. अन्तर्दशानाथ केतु सिंह राशि, जो कि अग्नि तत्व राशि है, में स्थित है और केतु स्वयं भी अग्नि तत्व ग्रह है. केतु अपने राशिश के अनुसार फल देते हैं. अगर हम केतु के राशिश सूर्य का आंकलन करें तो वह सप्तम से अष्टम में मंगल के साथ हैं महादशानाथ शनि से दृष्ट हैं. प्रत्यंतर दशानाथ बुध पति के भाव सप्तम से अष्टम में स्थित है. सप्तम भाव से छठे, सातवें व आठवें भाव का संबंध दशाओं में दिख रहा है.
इनकी कुंडली में शनि राजयोगकारी है और शनि ने अपनी दशा के आरंभ के कुछ वर्ष नीचता दिखाने के बाद इन्हें जीवन में सुख तो दिया लेकिन उसकी एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी और उस सुख का अहसास शायद ही इन्हें जीवन में हो. शनि/केतु में ही पति से वियोग हुआ और शनि की महादशा में ही इन्हें विरक्ति भी होने लगी और यह मन की शांति के लिए आध्यात्म की ओर मुड़ गई. एक धार्मिक संस्था की सक्रिय सदस्या बन गई. केतु की अन्तर्दशा में पति की मृत्यु हुई और इसी दशा में इन्होंने अपना घर भी बनाया क्योकि केतु चतुर्थ भाव में स्थित है इसलिए उससे संबंधित फल भी प्रदान किए. सप्तम भाव का स्वामी मंगल जन्म कुंडली के धन भाव में स्थित है जो पति से धन की प्राप्ति दिखा रहा है और दशा आने पर वह हुई भी. पति की मृत्यु के समय बुध का प्रत्यंतर था और बुध इनकी कुंडली में धनेश व पंचमेश है और लग्न में स्थित होकर सप्तम को देख भी रहा है. इन्हें इसी प्रत्यंतर दशा में पति का सारा धन प्राप्त हुआ.
वृष लग्न के लिए शनि योगकारी ग्रह माने जाते हैं क्योकि यह केन्द्र व त्रिकोण के स्वामी हैं. जिन भावों के स्वामी है, उनसे संबंधित फल भी प्रदान कर रहे हैं. इस दशा में ही इन्हें सुख तथा दुख दोनो ही प्राप्त हुए हैं.