संतानहीनता के योग | Yogas for No Children
संतान प्राप्ति के लिए वैदिक ज्योतिष में पंचम भाव का आंकलन किया जाता है. पंचम भाव जितना अधिक शुभ प्रभाव में रहेगा उतना ही संतान प्राप्ति जल्दी होती है. इसी प्रकार पंचमेश को भी देखा जाता है. पंचम भाव व पंचमेश पर शुभ ग्रह का प्रभाव होने पर शुभ होता है और अशुभ प्रभाव होने पर संतान प्राप्ति में विलंब होता है. इसके साथ ही वर्ग कुंडलियों का भी अध्ययन बहुत जरुरी है. नवांश कुंडली का पंचम भाव व पंचमेश भी देखा जाता है. सप्ताँश कुंडली का विश्लेषण संतान प्राप्ति के लिए किया जाता है. सप्ताँश कुंडली का लग्न लग्नेश, पंचम भाव व पंचमेश और जन्म कुंडली के पंचम भाव व पंचमेश की सप्ताँश कुण्डली में स्थिति को देखेगें. संतान प्राप्ति के लिए बीज स्फूट व क्षेत्र स्फूट को भी देखा जाएगा.
संतान प्राप्ति के लिए जितने बिन्दुओ को देखा जाता है उन सभी के बारे में ऊपर बता दिया गया है. अब हम एक उदाहरण कुंडली के माध्यम से एक-एक बिन्दु को आपके सामने विस्तार से बताने का प्रयास करेगें. जिन महिला की कुंडली आपके सामने प्रस्तुत की जाएगी उन्हें संतान प्राप्ति नही हुई. सभी तरह का ईलाज और भगवान की भक्ति के बाद भी वह नि:संतान रही. विवाह के काफी वर्ष बाद उन्होने एक लड़की को पैदा होते ही गोद भी लिया लेकिन जब वह बच्ची बड़ी होने लगी तब पता चला कि उसकी दोनो टांगे बेकार हैं वह कभी चल नहीं पाएगी और साथ ही उसका एक हाथ(दायां) भी बेकार है जो काम नहीं करता है. भाग्य का ही खेल है कि बच्चा गोद लेने पर भी वह दुखी रही या इसे पूर्व जन्म के कर्म कहेंगे कि वह संतान सुख से वंचित ही रही.
जन्म कुंडली | Janam Kundali
जन्म कुंडली का लग्न व लग्नेश कमजोर हैं. लग्न में राहु स्थित है और लग्नेश बुध अपनी स्वराशि में चतुर्थ भाव में स्थित है लेकिन सूर्य के साथ परम अस्त है. सूर्य 28 अंश व 03 मिनट के है और बुध 27 अंश व 19 मिनट के हैं. पंचम भाव में शुक्र की राशि तुला आती है और शुक्र तीसरे भाव में अपनी शत्रु राशि सिंह में स्थित हैं. सिंह राशि में शुक्र को शुभ नही माना गया है क्योकि यह परम शत्रु की राशि में स्थित हैं. पंचमेश शुक्र पर नैसर्गिक अशुभ ग्रह शनि की दृष्टि भी आ रही है जो भाग्येश होने के साथ इस कुंडली के अष्टमेश भी है. मंगल इस कुंडली के लिए अशुभ है और छठे भाव के स्वामी होकर दूसरे भाव में अपनी नीच राशि में स्थित हैं, यहाँ से मंगल अपनी चौथी दृष्टि से पंचम भाव को देख रहे हैं. पंचम भाव व भावेश पर शनि तथा मंगल दोनो का एक साथ प्रभाव पड़ रहा है.
बृहस्पति को संतान प्राप्ति का नैसर्गिक कारक ग्रह माना जाता है. इन महिला की कुंडली में बृहस्पति बारहवें भाव में वक्री अवस्था में स्थित हैं. यदि शुभ ग्रह वक्री हो तब वह अपनी शुभता खो देते हैं. चंद्रमा भी इनकी कुंडली में अष्टम भाव में स्थित है और नीच के मंगल से दृष्ट है. चंद्रमा भी पीड़ित अवस्था में स्थित हो गया है. लग्न, लग्नेश, चंद्रमा तीनों के ही कमजोर होने से जातिका के भीतर वैसे ही कमी हो जाती है और रज का कारक मंगल भी नीच राशि में होने से परेशानी अधिक बढ़ गई हैं. पंचम से पंचम भाव का आंकल्न करें तो वह नवम भाव है और इस भाव में शनि अपनी राशि में तो स्थित है लेकिन वक्री अवस्था में होकर कमजोर हो गए हैं. इस कुंडली में एक समस्या यह भी है कि पंचमेश शुक्र अपने ही नक्षत्र में स्थित है और इसे अनुकूल स्थिति नहीं माना गया है. कोई भी ग्रह यदि अपने ही नक्षत्र में स्थित हो तो उस भाव से संबंधित संबंधी से परेशानी होती है.
नवांश कुण्डली | Navamsha Kundali
सप्तांश कुंडली | Spartans Kundli
चंद्र कुंडली | Chandra Kundli
क्षेत्र स्फूट | Kshetra Sphuta
महिला की कुंडली में संतान प्राप्ति के लिए क्षेत्र स्फूट को देखा जाता है. क्षेत्र स्फूट प्राप्त करने के लिए चंद्रमा, मंगल तथा बृहस्पति के भोगांश का जोड़ राशि तथा अंशो सहित किया जाता है. इन महिला की जन्म कुंडली में क्षेत्र स्फूट लग्न में मिथुन राशि में आता है. महिला की कुंडली में विषम राशि में क्षेत्र स्फूट को शुभ नहीं माना जाता है. यहाँ यह मिथुन राशि में है जो कि विषम राशि मानी जाती है और यह राहु/केतु अक्ष पर भी स्थित है. नवांश कुंडली में क्षेत्र स्फूट सम राशि वृश्चिक में बनता है लेकिन छठे भाव में और सप्तांश कुंडली में भी सम राशि कर्क में बन रहा है लेकिन कर्क राशि आठवें भाव में स्थित है, जिसे शुभ नहीं माना जाता है.
निष्कर्ष | Conclusion
जन्म कुंडली, नवांश कुंडली, सप्तांश कुंडली तथा चंद्र कुंडली सभी से पंचम भाव तथा पंचमेश से संबंधित बाधाएँ दिखाई दे रही है. इन सभी कुंडलियों में जितना अशुभ प्रभाव पड़ेगा उतनी अधिक संतान संबंधी परेशानी होगी.