कुण्डली में मारकेश का अध्ययन | Study of Markesh in Kundli

जन्म कुण्डली द्वारा मारकेश का विचार करने के लिए कुण्डली के दूसरे भाव, सातवें भाव, बारहवें भाव, अष्टम भाव आदि को समझना आवश्यक होता है. जन्म कुण्डली के आठवें भाव से आयु का विचार किया जाता है. लघु पाराशरी के अनुसार से तीसरे स्थान को भी आयु स्थान कहा गया है क्योंकि यह आठवें से आठवा भाव है (अष्टम स्थान से जो अष्टम स्थान अर्थात लग्न से तृतीय स्थान आयु स्थान है) और सप्तम तथा द्वितीय स्थान को मृत्यु स्थान या मारक स्थान कहते हैं इसमें से दूसरा भाव प्रबल मारक कहलाता है. बारहवां भाव व्यय भाव कहा जाता है, व्यय का अर्थ है खर्च होना, हानि होना क्योंकि कोई भी रोग शरीर की शक्ति अथवा जीवन शक्ति को कमजोर करने वाला होता है,इसलिये बारहवें भाव से रोगों का विचार किया जाता है. इस कारण इसका विचार करना भी जरूरी होता है.

मारकेश की दशा में व्यक्ति को सावधान रहना जरूरी होता है क्योंकि इस समय जातक को अनेक प्रकार की मानसिक, शारीरिक परेशनियां हो सकती हैं. इस दशा समय में दुर्घटना, बीमारी, तनाव, अपयश जैसी दिक्कतें परेशान कर सकती हैं. जातक के जीवन में मारक ग्रहों की दशा, अंतर्दशा या प्रत्यत्तर दशा आती ही हैं. लेकिन इससे डरने की आवश्यकता नहीं बल्कि स्वयं पर नियंत्रण व सहनशक्ति तथा ध्यान से कार्य को करने की ओर उन्मुख रहना चाहिए.

यदि अष्टमेश, लग्नेश भी हो तो पाप ग्रह नहीं रहता. मंगल और शुक्र आठवें भाव के स्वामी होने पर भी पाप ग्रह नहीं होते, सप्तम स्थान मारक, केंद्र स्थान है। अत: गुरु या शुक्र आदि सप्तम स्थान के स्वामी हों तो वह प्रबल मारक हो जाते हैं। इनसे कम बुध और चंद्र सबसे कम मारक होता है. तीनों मारक स्थानों में द्वितीयेश के साथ वाला पाप ग्रह सप्तमेश के साथ वाले पाप ग्रह से अधिक मारक होता है. द्वादशेश और उसके साथ वाले पापग्रह षष्ठेश एवं एकादशेश भी कभी-कभी मारकेश हो जाते हैं. मारकेश के द्वितीय भाव सप्तम भाव की अपेक्षा अधिक प्रभावशाली हैं और इसके स्वामी से भी ज्यादा उसके साथ रहने वाले पाप ग्रहों का भी निर्णय विचार पूर्वक करना जरूरी होता है.

विभिन्न लग्नों के भिन्न भिन्न मारकेश होते हैं यहां एक बात और समझने की है कि सूर्य व चंद्रमा को मारकेश का दोष नहीं लगता है. मेष लग्न के लिये शुक्र मारकेश होकर भी मारकेश का कार्य नहीं करता किंतु शनि और शुक्र मिलकर उसके साथ घातक हो जाते हैं. वृष लगन के लिये गुरु , मिथुन लगन वाले जातकों के लिये मंगल और गुरु अशुभ है, कर्क लगन के लिये शुक्र, सिंह लगन के लिये शनि और बुध, कन्या लगन के लिये मंगल, तुला लगन के लिए मंगल, गुरु और सूर्य, वृश्चिक लगन के लिए बुध, धनु लग्न का मारक शनि, शुक्र, मकर लगन के लिये मंगल, कुंभ लगन के लिये गुरु, मंगल, मीन लगन के लिये मंगल, शनि मारकेश का काम करता है. छठे आठवें बारहवें भाव मे स्थित राहु केतु भी मारक ग्रह का काम करते है.

यह आवश्यक नहीं की मारकेश ही मृत्यु का कारण बनेगा अपितु वह मृत्यु तुल्य कष्ट देने वाला हो सकता है अन्यथ और इसके साथ स्थित ग्रह जातक की मृत्यु का कारण बन सकता है. मारकेश ग्रह के बलाबल का भी विचार कर लेना चाहिए. कभी-कभी मारकेश न होने पर भी अन्य ग्रहों की दशाएं भी मारक हो जाती हैं. इसी प्रकार से मारकेश के संदर्भ चंद्र लग्न से भी विचार करना आवश्यक होता है. यह विचार राशि अर्थात जहां चंद्रमा स्थित हो उस भाव को भी लग्न मानकर किया जाता है. उपर्युक्त मारक स्थानों के स्वामी अर्थात उन स्थानों में पड़े हुए क्रमांक वाली राशियों के अधिपति ग्रह मारकेश कहे जाते हैं.