अष्टकवर्ग में इन्दु लग्न का उपयोग | Use of Indu Lagna in Ashtakavarga
अष्टकवर्ग में इन्दु लग्न द्वारा जातक के आर्थिक स्तर का पता लगाया जाता है. सर्वाष्टकवर्ग का प्रयोग कुण्डली में भाव और भावेश के बल का पता लगाने के लिए किया जाता है. सामान्यत: कुण्डली में लग्न समेत समस्त भावों का विश्लेषण करते हुए इस सबके एक दूसरे के साथ संबंधों द्वारा बनने वाले धन योगों की व्याख्या की जाती है. किंतु इन्दु लग्न से आर्थिक सम्पन्नता का पता लगाने के लिए इससे दूसरे और ग्यारहवें भाव और उसके भावेशों की स्थिति देखनी चाहिए. सर्वाष्टकवर्ग में अगर इन भावों से प्राप्त बिन्दुओं को भी शामिल करते हैं तो धन एवं समृद्धि के स्तर को समझने में सहायता मिल सकेगी.
लग्न और चतुर्थ भाव में यदि 33 बिन्दु हों तथा इनके स्वामी भाव परिवर्तन की स्थिति में हों तो इस स्थिति में जातक को धन की प्राप्ति बनती है.
दसवें भाव और बारहवें भावों की अपेक्षा एकादश भाव में अधिक बिन्दु होने पर यह स्थिति अनुकूल मानी जाती है इसमें जातक को आर्थिक स्थिति में संतोष का अनुभव होता है. इसी के साथ साथ यदि लग्न में बारहवें भाव से ज्यादा बिन्दु हों तो जातक को भौतिक सुखों की प्राप्ति होती है और वह अपनी सामाजिक स्थिति में मजबूती पाता है.
लग्न, नवम, दशम और एकादश भावों में 30 या इससे अधिक बिन्दु हों तो ऎसा जातक जीवन के सभी क्षेत्रों में आर्थिक लाभ की प्राप्ति करता है जीवन पर्यंत धन की प्राप्ति होती है. यदि लग्न, नवम, दशम और एकादश भावों में 25 से कम बिन्दु हों व पाप ग्रह त्रिकोण भावों में स्थित हों तो जातक को धन की भारी किल्लत उठानी पड़ती है. आर्थिक क्षेत्र में उसें परेशानियों का सामना करना ही पड़ता है.
लग्न, द्वितीय, चतुर्थ, नवम, दशम और एकादश भावों में बिन्दुओं का योग यदि 164 से ज्यदा बनता हो तो ऎसा जातक धन से युक्त होता है. अपनी सुख सुविधाओं के प्रति खर्च भी करता है. इसके अतिरिक्त यदि 6, 8 और 12वें भाव के बिन्दुओं का योग 76 से कम बनता है तो जातक को के कर्चे सीमित रहते हैं या कह सकते हैं कि खर्चों से अधिक मुनाफा मिलता है.
दूसरे भाव में यदि बारहवें भाव से ज्यादा बिन्दु हों तो जातक अपने धन को कम खर्च करता है. अपने सुख के लिए भी अधिक पैसों का उपयोग नहीं करता है. उसकी प्रवृत्ति धन का संचय करने की ओर अधिक होती है.
बारहवें भाव में एकादश भाव से अधिक बिन्दु होने पर जातक के खर्चे अधिक रहते हैं. साथ ही साथ यह भी होता है कि वह विदेशों से भी धन लाभ करता है. पर इन सभी व्याख्याओं में कुछ बातों का ध्यान रखना बेहद जरूरी है कि इन सभी में हमें पराशर जी के सिद्धांतों का भी पालन करना चाहिए जिससे की पूर्ण रूप से फलों की प्राप्ति संभव हो सके. कई ज्योतिषी आर्थिक स्थिति का पता लगाने के लिए दूसरे भाव और एकादश भाव से भी इन्दु लग्न की गणना करते हैं. इस गणना में लग्न से दुसरे और चंद्रमा से दूसरे भाव में नवमेंशों अर्थात लग्न और चंद्रमा के दशमेशों की कलाओं का योग करके संख्या प्राप्त की जाती है.