जानिये, कब देती हैं ग्रह दशाएं अपना शुभ फल

ग्रह स्थिति में विभिन्न दशाओं का प्रभाव देखा जा सकता है. यह प्रभाव उस दशा की ग्रह स्थिति के अनुरूप ही प्राप्त होता है. यदि दशानाथ शुभ ग्रह हो तब जातक को जीवन में राजयोग का सुख मिलता है परंतु यदि दशानाथ अशुभ ग्रह का हो तो स्थिति इसके विपरित होती है.

संपूर्ण दशा | Sampoorna Dasha

जन्म कुण्डली में जो ग्रह उच्च राशिस्थ या अति बली होते हैं उनकी दशा अन्तर्दशा संपूर्णादशा कहलाती है. इस दशा समय में जातक सुख एवं समृद्धि पाता है. व्यक्ति को स्वास्थ्य सुख, वैभव, भू-संपदा की प्राप्ति होती है.

पूर्णादशा | Poorna Dasha

जो ग्रह स्वराशि में शुभ ग्रह से युक्त या दृष्ट हो तथा जिसका इष्ट फल अधिक हो उसकी उसकी दशा या अन्तर्दशा में पदिन्नति, लाभ व व्यवसाय में सफलता प्रात होने की संभावना बनी रहती है.

शुभ दशा | Shubh Dasha

जो ग्रह मित्र क्षेत्री, मित्र या शुभ ग्रहों से युक्त अथवा दृष्ट एवं वर्गोत्तम या उच्च नवांश में होता है तो उस ग्रह की दशा में जातक को उन्नती एवं प्रगत्ति प्राप्त होती है उसे सुख, वैभव की प्राप्ति होती है.

आरोहिणी दशा | Aarohini Dasha

जो ग्रह अपनी नीच राशि को छोड़कर कुण्डली में अपनी उच्च राशि की ओर बढ़ रहा हो तो उस ग्रह की दशा या अन्तर्दशा आरोहिणी दशा कही जाती है. इस दशा के समय में जातक महत्वकांक्षी बनता है अपनी इच्छाओं को पूर्ण करने हेतु परिश्रम करता है. सुख धन-धान्य की प्राप्ति करता है.

अवरोहिणी दशा | Avrohini Dasha

जन्मांग में जो ग्रह परमोच्च स्थिति त्याग कर अपनी नीच राशि की ओर बढ़ रहा होता है तो इस दशा को अवरोहिणी दशा कहते हैं. इस दशा के दौरान जातक को दुख, कष्ट व क्लेश की स्थितियां झेलनी पड़ती हैं.

अशुभ दशा | Ashubh Dasha

जन्मांग में जो ग्रह नीच राशिस्थ, शत्रु क्षेत्री अथवा नवांश में नीचस्थ या शत्रुक्षेत्री हो तो इस दशा में व्यक्ति को विषम परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. भय, क्लेश, दोष इत्यादि सहन करने पड़ते हैं.

रिक्ता दशा | Rikta Dasha

जो ग्रह अति नीच, षडबल में निर्बल व पीड़ित होता है उसकी दशा रिक्ता अर्थात शुभ प्रभावों से वंचित दशा कहलाती है. यह समय जीवन में उतार-चढ़ाव वाला होता है. सुख-दुख बने रहते हैं.

अनिष्ट दशा | Anisht Dasha

परमनीच, शत्रु या नीच नवांश, पाप ग्रह से युक्त या दृष्ट ग्रह की दशा व अन्तर्दशा अनिष्टकारी होने से अनिष्ट दशा कहलाती है. इस दशा काल में जातक को रोग, कष्ट, संकट जैसी तकलीफें झेलनी पड़ती हैं. धन की हानी या नुकसान झेलना पड़ता है. विद्या, व्यापार में रूकावटें उत्पन्न हो सकती हैं.

कष्ट दशा | Kasht Dasha

सूर्य के अति समीप होने से ग्रह अस्त कहलाते हैं. ऎसी स्थिति में अस्त ग्रह प्राय: शुभ फल देने में असमर्थ होते हैं. यदि शुक्र या मंगल सूर्य से अस्त हों तो दांपत्य जीवन में तनाव की स्थिति देखनी पड़ सकती है. वैवाहिक सुख की हानी होती है.  इसी प्रकार गुरू या चंद्र के अस्त होने पर असफलता, बाधा, असंतोष की स्थित बनी रहती है.

भाग्येश व गुरू संबंध दशा | Dasha related to the Lord of House of Fortune and Jupiter

दशानाथ ग्रह से केन्द्र या त्रिकोण भाव में गुरू या भाग्येश हो अथवा दशानाथ पर गुरू या भाग्येश की दृष्टि हो तो निश्च्य ही दशाकाल में भाग्योदय होता है. पिता का सुख, धर्म-कर्म की प्रगती,सुख वैभव प्राप्त है.