क्या आप व्यवसाय में सफल होंगे? ज्योतिष द्वारा जानिये
यदि सूर्य लगन तथा लग्नेश पर अपना अधिक प्रभाव रखता हो या दशम में स्थित हो या दशमेश का नवांशपति हो तो जातक स्वर्ण का व्यवसाय, डाक्टर या हकीम वैद्यक, औषधि विक्रेता, मंत्री या सलाहकार जैसे कार्यों को कर सकता है. सूर्य द्वितीय भाव में हो और द्वितीयेश एवं लाभेश का लग्न से संब्म्ध हो तो व्यक्ति बैंक का कर्मचारी बनता है.
यदि चंद्रमा आजीविका कारक हो तो व्यक्ति कृषि, जलीय पदार्थों के क्रय-विक्रेय, वस्त्र संबंधि व्यापार या आभूषणों का व्यवसाय करता है.
यदि कुण्डली में मंगल आजीविका कारक हो तो व्यक्ति धातुओं का क्रय विक्रेय, अस्त्र-शस्त्र निर्माण, इंजीनियरिंग, सेना विभाग जैसे कार्यों में कार्यरत होता है.
यदि कुण्डली में बुध आजीविका कारक हो तो जातक लेखन, शिक्षण ज्योतिष, शिल्प इत्यादि कार्यों के व्यवसाय में कार्यरत हो सकता है.
कुण्डली में यदि गुरू आजीविका कारक हो तो व्यक्ति वेद पाठन अध्यापक, धर्म संस्थानों या न्यायाधीश जैसे कार्यों को करने वाला होगा.
कुण्डली में शुक्र आजीविका कारक हो तो व्यक्ति आभूषण विक्रेता, दुग्ध व्यवसाय करने वाला, होटल इत्यादि में कार्यरत, संगीत एवं नृत्य संबंधी कलाओं से आजीविका कमाने वाला हो सकता है.
विषम राशि यदि लग्न में हैं तब व्यक्ति साहस तथा पराक्रम के बल पर सफलता पाता है. ऎसे जातक में नेतृत्व, अधिकार तथा आदेश देने की प्रवृति होती है.यह जातक इसी प्रकार के व्यवसाय में सफलता हासिल करते हैं.
सम राशि लग्न में आती है तब जातक धीर तथा गंभीर होता है. यह सेवाकार्य करना पसन्द करते हैं. यह कर्त्तव्य पालन को अधिक महत्व देते हैं. ऎसा व्यक्ति अनुगामी या सहायक के रुप मे काम करना अधिक पसन्द करता है.
इसी प्रकार यदि लग्न में चर राशि होती है तो जातक घूमने-फिरने वाले कार्य अधिक करता है. वह पर्यटन, भ्रमण अथवा फेरी लगाने के कामों से अपनी आजीविका चलाता है. व्यक्ति किसी परिवहन सेवा से भी जुड़ सकता है. वह परिवहन सेवा से जुड़कर बहुत अधिक यात्राएँ कर सकता है. जातक कोई भी कार्य करें बिना भ्रमण के उसका कार्य पूरा नहीं होगा.
यदि लग्न में स्थिर राशि है तब जातक एक ही स्थान पर टिककर कार्य करता है. वह अपने कार्य में एकाग्रचित्त रहता है. व्यक्ति को एकान्त की आवश्यकता नहीं पड़ती है. वह पूरी निष्ठा से तन्मय होकर काम करता है. जो भी कार्य करता है वह स्थिर रहते हैं. उसे स्थिर कार्य करना पसन्द होता है.
लग्न में द्वि-स्वभाव राशि है तो व्यक्ति के आजीविका के साधन कभी स्थिर होते हैं तो कभी चर होते हैं. जातक का मन स्थिर नहीं रहता है. उसे कभी भ्रमण करना अच्छा लगता है तो कभी टिककर कार्य करना पसन्द होता है.