वज्रमुष्टि योग के विषय में कई ज्योतिषी ग्रंथों में लिखा गया है, इस योग के बारे में कई प्रकार के फलों को भी बताया गया है जिसमें से प्रमुख तो यह है कि स्वास्थ्य में कमी का सामना करना पड़ता है और जातक को मृत्यु तुल्य कष्ट होता है. इस योग को वृश्चिक लग्न और कर्क लग्न में अधिक प्रभावी माना गया है.

चक्रस्य पूर्वभागे पापा: सौम्यास्तथेतरे चैव ।

वृश्चिकलग्ने जाता गतायुषो वज्रमुष्टियोगेस्मिन।।

इस तथ्य के अनुरूप जन्म कुण्डली में पूर्वार्ध के भावों अर्थात 1, 2, 3, 4, 10, 11, 12 भावों में सभी पाप ग्रह स्थित हों और शेष बचे हुए भावों में समस्त शुभ ग्रह स्थित हों तो वृश्चिक लग्न में जन्म होने पर यह वज्रमुष्टि नामक योग बनता है. यह योग जातक के स्वास्थ्य के लिए बहुत खराब माना जाता है.

इसी संदर्भ में बादरायण ने भी कहा है जिसमें उन्होंने कर्क लग्न को प्रमुख मानते हुए यह योग के प्रभावों को परिलक्षित किया है. वहीं एक अन्य ज्योतिषाचार्य के अनुसार लग्न में कमजोर चंद्रमा स्थित हो और पाप ग्रह केन्द्र स्थानों व अष्टम भाव में बैठे हों तो जीवन के प्रति संशय बना रहता है.

पाप ग्रह राशि के अन्तिम नवांश में हों तथा संध्या समय का जन्म हो, चंद्रमा की होरा में जन्म हुआ हो और चंद्रमा व पाप ग्रह चारों केन्द्रों में हों तो मृत्यु तुल्य कष्ट का भय बना रहता है.

वज्रमुष्टि योग के अन्य स्वरूप | Other Forms of Vajra Mushti Yoga

बृहज्जातक होरा शास्त्र में यह दो योग कहे गए हैं जिनमें से एक है कि राशि अन्त में पाप ग्रह हो व चंद्रमा की होरा में संध्या समय में जन्म हुआ हो और दूसरे में चंद्रमा व पाप ग्रह चारों केन्द्रों में किसी भी प्रकार से स्थित हों तो यह स्थिति सेहत के लिए हानिकारक होती है तथा मृत्यु का भय रह सकता है.

एक अन्य मत में कहा गया है कि यदि दो पाप ग्रहों के मध्य में चंद्रमा चौथे, छठे या सातवें भाव में बैठा हो तो किसी भी प्रकार से जातक की रक्षा करना असंभव हो जाता है. कोई भी शक्ति जीवन देने में सहायक नहीं हो पाती है.

जन्म कुण्डली में चंद्रमा पाप ग्रहों के मध्य में 1, 7 या 8वें भाव में स्थित हो और कमजोर शुभ ग्रह उस पर दृष्टि डाल रहे हों और सातवें व आठवें भावों में पाप ग्रह स्थोत हों और उन पर पाप दृष्टि हो तो पहले योग में जातक की मृत्यु व दुसरे योग में माता और संतान दोनों को कष्ट झेलना पड़ता है. यहां शुभ दृष्टि के कारण कुछ राहत मिलती है जो योग को बुरे प्रभाव देने से रोक देती है.

वज्रमुष्टि योग का प्रभाव | Effects of Vajra Mushti Yoga

ग्रहण का दिन चंद्रमा पाप युक्त होकर लग्न में स्थित हो और मंगल आठवें में हो तो सेहत में कमी बनी रहती है माता को भी कष्ट होता है ओर संतान को भी कष्ट झेलना पड़ता है . इन सभी के प्रभाव से एक बात तो स्पष्ट हो ही जाती है कि यह स्थिति किसी भी तरह से जातक के लिए अनुकूल नहीं मानी जा सकती कुछ न कुछ परेशानियां तो उत्पन्न होती ही रहती हैं और कष्ट से पिडा़ अधिक बढ़ जाती है.

मृत्यु तुल्य कष्ट से बचाव नहीं हो पाता है और यदि दशा और गोचर का साथ मिल जाए तो यह स्थिति नियंत्रण से बाहर हो सकती है और किसी न किसी दुर्घटना का अंदेशा बना ही रहता है. जातक की रोग प्रतिरोधक क्षमता प्रभावित होती है और हल्की से बिमारी भी खतरनाक रूप धारण कर सकती हैं.

वज्रमुष्टि योग से बचाव के उपाय

  • इस योग का प्रभाव कुण्डली पर बनने पर इसके बुरे प्रभावों से बचने के लिए नियमित रुप से गायत्रि मंत्र का जाप करना बहुत असरदायक होता है.

  • विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करने से भी इस योग के दुष्प्रभाव कम होते हैं.

  • महामृत्युंजय मंत्र का जाप करने से व्यक्ति के जीवन में आने वाले संकट समाप्त होते हैं.

  • पूर्णिमा तिथि के दिन चंद्रमा का पूजन करें ओर खीर का भोग लगाएं.

  • माता का सम्मान करें और उनसे आशिर्वाद प्राप्त करें.