Articles in Category Hindu Rituals

लक्ष्मी स्वरुप श्री यंत्र | Shri Yantra For Goddess Lakshmi

श्रीयंत्र में लक्ष्मी जी वास माना गया है. सभी यंत्रों में श्रेष्ठ स्थान पाने के कारण इसे यंत्रराज भी कहते हैं. पौराणिक कथा के अनुसार एक बार लक्ष्मी जी पृथ्वी से बैकुंठ धाम चली जाती हैं, इससे पृथ्वी

श्रीचण्डी ध्वज स्तोत्रम् महत्व | Significance of Shri Chandi Dhwaj Stotram

देवी के अनेक रुपों में एक रुप चण्डी का भी है. देवी काली के समान ही देवी चण्डी भी प्राय: उग्र रूप में पूजी जाती हैं, अपने भयावह रुप में मां दुर्गा चण्डी अथवा चण्डिका नाम से जानी जाती हैं. नवरात्रों

संकटनाशनगणेशस्तोत्रम् | Sankat Nashan Ganesha Stotram

संकटनाशनगणेशस्तोत्रम भगवान गनपति जी का अत्यंत प्रभावि स्त्रोत है. इसके स्मरण मात्र से सभी संकटों का नाश होता है. यदि प्रतिदिन इस स्त्रोत का पाठ किया जाए तो व्यक्ति को सभी परेशानियों से निजात मिलने

नामकरण संस्कार करने की सही शास्त्रोक्त विधि

नाम के इस व्यवहारिक महत्व को हमारे धर्म गुरुओं ने वर्षों पहले ही समझ लिया था. उसी मह्त्ता के आधार पर नामकरण संस्कार को आधार मिला तथा नामकरण की धार्मिक प्रक्रिया शुरु हुई. भारतीय ज्योतिष में नामकरण को

हल योग और उसका आप पर प्रभाव

हल योग अपने नाम के अनुसार ही दिखाई भी देता है. हल जो भूमि को खोदकर उसमें से जीवन का रस प्रदान करता है और उसी को पाकर ही जीव अपने जीवन को बनाए रखने में सफल होता है यही हल योग जब कुण्डली में निर्मित

उत्तरायण और दक्षिणायन | Uttarayan and Dakshinayan

हिंदु पंचांग के अनुसार एक वर्ष में दो अयन होते हैं. अर्थात एक साल में दो बार सूर्य की स्थिति में परिवर्तन होता है और यही परिवर्तन या अयन ‘उत्तरायण और दक्षिणायन’ कहा जाता है. कालगणना के अनुसार जब

ज्योतिष में मंत्र व उपासना का महत्व | Importance of Mantras and Worship in Astrology

ज्योतिष शास्त्र में मंत्र व उपासना के महत्व को विस्तारपूर्वक बताया गया है. मंत्रों का जाप और उपासना द्वारा जीव सभी दुखों से मुक्ति पाने की क्षमता पाता है. हमारे शास्त्रों में इन्हीं मंत्रोउच्चारणों

विवाह में त्रिबल शुद्धि | Tribal in a Marriage

भारतीय संस्कृति के अनुसार विवाह दाम्पत्य जीवन का श्रेष्ठ स्वरुप है. इसलिए कहा गया है “धन्यो गृहस्थाश्रमः” अर्थात यह समाज को अनुकूल व्यवस्था प्रदान करने तथा नई पीढ़ी को योग्य एवं श्रेष्ठ बनाने हेतु

भद्रा क्या है और ज्योतिष में उसका महत्व है. इस लेख में जानिये

एक हिन्दु तिथि में दो करण होते हैं. जब विष्टि नामक करण आता है तब उसे ही भद्रा कहते हैं. माह के एक पक्ष में भद्रा की चार बार पुनरावृति होती है. जैसे शुक्ल पक्ष की अष्टमी व पूर्णिमा तिथि के पूर्वार्द्ध