वैदिक ज्योतिष में शरीर के अंगों के विषय में अनेकों विचारधाराओं को बताया गया जिसमें जातक के रंग-रूप, आचार-विचार, व्यवहार, उसकी भावनात्मक स्थिति इत्यादि बातों को बोध कराने में वैदिक ज्योतिषाचार्यों नें बहुत से तथ्यों का प्रतिपादन किया. इस सभी के अनुरूप व्यक्ति के व्यक्तित्व की विचारधारा एवं उसकी आकृति को समझने में बहुत सहायता प्राप्त होती है. जन्म कुण्डली के अतिरिक्त वर्ग कुण्डली द्वारा भी जातक के बाहरी रूप को समझने में बहुत मदद मिलती है. यहां हम द्रेष्काण कुण्डली के बारे में बात करेंगे जिसके द्वारा काफी हद तक व्यक्ति के शरीर के वर्ण, काया स्वरूप इत्यादि का विचार किया जा सकता है.

उदितं तत्क्षणं लग्नाद् वाममंगमथाबलम् ।

सव्यार्धादितरत्तस्य नोद्गतं सबलं च तत् ।।

उक्त शब्दों इसका अर्थ है कि वर्तमान लग्न से पीछे की छ: राशियां उदित कही जाती है और यह वाम अंग की प्रतिनिधि मानी गई हैं. इसी प्रकार लग्न से आगे की राशियां अनुदित अर्थात जो उदित न हुई हों तथा दक्षिण कही जाती हैं. इनमें से वामांग निर्बल व दक्षिणांग को सबल माना गया है.

इसके अतिरिक्त एक अन्य उदाहरण में श्लोक द्वारा शरीर के विभिन्न अंगों की व्याख्या कि गई है जिसके अनुसार:-

मूर्धालोचनकर्णगन्धवहनं गण्डौ हनुश्चाननं,

ग्रीवास्कन्धभुजं तु पाश्वर्ह्रदयक्रोडानि नाभि:पुन:।

बस्तिर्लिगंगुदे च मुष्कयुगलं चोरूद्वयं जानुनी,

जंघे पादयुगं विलग्नभवनत्र्यंशैश्च त्रेधा क्रमात् ।।

इस श्लोक के अर्थ अनुसार यदि प्रथम द्रेष्काण हो अर्थात 0 से 10 अंशों के मध्य द्रेष्काण स्थित हो तो:-

  • प्रथम भाव से सिर का विचार करना चाहिए.
  • द्वितीय और द्वादश भाव से नेत्रों का विचार करना चाहिए.
  • तृतीय और एकादश भाव से कान का विचार किया जाता है.
  • चतुर्थ और दशम भाव से नासिका का विचार होता है.
  • पंचम और नवम भाव से गाल का विचार किया जाता है.
  • षष्ठ और अष्टम भाव से ठुड्डी का विचार करना चाहिए.
  • सप्तम भाव प्रथम का विपरित है इसलिए यहां से मुख का विचार करना चाहिए.

यदि दूसरा द्रेष्काण हो अर्थात 10 से 20 अंशों तक के मध्य में स्थित हो तो:-
प्रथम भाव से गर्दन का विचार करना चाहिए.

  • द्वितीय और द्वादश भाव से कन्धे का विचार करना चाहिए.
  • तृतीय और एकादश भाव से भुजा का विचार किया जाता है.
  • चतुर्थ और दशम भाव से बगलें(कांख) का विचार होता है.
  • पंचम और नवम भाव से ह्रदय का विचार किया जाता है.
  • षष्ठ और अष्टम भाव से पेट का विचार किया जाता है.
  • सप्तम भाव से नाभि का विचार किया जाता है.

यदि तीसरा द्रेष्काण हो अर्थात 20 से 30 अंशों के मध्य में स्थित हो तो :-

  • प्रथम भाव से बस्ति का विचार करना चाहिए.
  • द्वितीय और द्वादश भाव से लिंग व गुदा का विचार करना चाहिए.
  • तृतीय और एकादश भाव से अण्डकोष का विचार किया जाता है.
  • चतुर्थ और दशम भाव से जांघ का विचार होता है.
  • पंचम और नवम भाव से घुटने का विचार किया जाता है.
  • षष्ठ और अष्टम भाव से पिण्डली का विचार किया जाता है.
  • सप्तम भाव से पैरों का विचार किया जाता है.

इस प्रकार द्रेष्काण के प्रमुख भाग निम्न प्रकार से व्यक्ति के शरीर के अंगों का निर्धारण करने में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करते हैं. जातक के नेत्र कैसे हैं वह छोटे हैं या बडे़ हैं उनका आकर्षण कैसा है उनका रंग कैसा है, जातक के कान बडे़ हैं या छोटे, दिखने में कैसे प्रतीत होते हैं. इसी प्रकार जातक की नाक कैसी है, लम्बी है या छोटी किस आकृति में है इत्यादि बातों को उक्त भावों से देखने पर समझा जा सकता है.

गालों का विचार करते हुए उनकी रंगत व गोल पन या सपाटता को देखा जा सकता है. जातक की ग्रीवा लम्बी है या छोटी. किस प्रकार की उसकी आकृति है. कंधे मजबूत हैं या कमजोर, चौडे हैं या झुके हुए. बोझ सहने की क्षमता रखते हैं या नहीं इत्यादि बातें इस भाव से समझी जा सकती हैं. जातक की बाजुओं में कैसा बल है वह अपने कार्यों को करने में सफल रहेगा या नहीं उसे किसी अन्य की सहायता न लेनी पडे़ ऎसे अनेकों विचारों का प्रतिपादन हम द्रेष्काण द्वारा कर सकते हैं.

जातक के बाहुबल और साहस में द्रेष्काण में आनेवाली राशियों और ग्रहों का बहुत प्रभाव रहता है. जातक के अंगों में कोई दोष इत्यादि तो व्याप्त नहीं है, वह भी इस द्रेष्काण की स्थिति द्वारा समझने में सहायता मिलती है. जन्म कुण्डली से बाहरी रूप में एक खाका तैयार हो जाता है जिसे द्रेष्काण की सहायता से सूक्ष्मता से समझने में सहायता मिलती है.

द्रेष्काण में सभी अंगों की स्थापना की जाती है. जिस प्रकार अंगों को द्रेष्काण की सहायता से समझा जा सकता है उसी प्रकार से लग्न कुण्डली में अंग कल्पित करके उनसे तिल इत्यादि चिन्हों को भी समझा जा सकता है. द्रेष्काण के भावों के स्वामित्व एवं ग्रहों की स्थिति के आधार पर शरीर के अंगों को समझने में बहुत सहायता प्रप्त होती है, यदि इनका सू़क्ष्मता के साथ अध्ययन किया जाए तो जातक की बनावट एवं उसकी शारीरिक संरचना को समझा जा सकता है.