किसी भी रोग के होने की संभावना को एक कुशल ज्योतिषी अपने पूर्वानुमान से बता सकता है लेकिन इसके लिए कुंडली में मौजूद बहुत सी बातों का मिलना जरुरी है. पाठको को किसी एक बात को लेकर किसी भी प्रकार का भ्रम नहीं पालना चाहिए. आज इस लेख के माध्यम से आपको कैंसर रोग होने के योगों के विषय में बताया जाएगा. इस रोग के होने में ग्रहों के साथ भाव भी पीड़ित होना चाहिए. फिर दशा/अन्तर्दशा का आंकलन किया जाना चाहिए, उसके बाद अंत में गोचर देखा जाना चाहिए.
कैंसर एक लम्बी अवधि तक होने वाला रोग हैं. इसलिए छ्ठे भाव व अष्टम भाव का संबंध बनना आवश्यक है क्योकि छठा भाव रोग और आठवाँ भाव लम्बी अवधि तक होने वाले रोग हैं. शनि और राहु लम्बे समय तक चलने वाले रोगो की सूचना देते हैं. इसलिए इन दोनो ग्रहों की भूमिका भी कैंसर रोग के होने में मुख्य होती है. कैंसर रोग का संबंध राहु, पीड़ित चंद्रमा, पीड़ित बृहस्पति या शनि से होता है और यह मेष, वृष, कर्क, तुला और, मकर राशियों से संबंधित होता है. किसी व्यक्ति की कुण्डली में चंद्रमा जब षष्ठेश या अष्टमेश होकर पीड़ित होता है और साथ ही दशा भी प्रतिकूल चल रही हो तब व्यक्ति को कैंसर रोग होने की संभावना बनती है.
जन्म कुंडली में जब एक भाव पर ही अधिकतर पाप ग्रहों का प्रभाव होता है, विशेषकर शनि, राहु व मंगल से तब उस संबंधित भाव वाले अंग में कैंसर होने की संभावना बनती है. जन्म कुंडली में यदि नेप्च्यून व यूरेनस आमने-सामने हो तब इसे अत्यधिक अशुभ माना जाता है और यह बहुत ही घातक परिणाम देने वाले सिद्ध हो सकते हैं. यदि जन्म कुंडली में दशानाथ पीड़ित होता है तब इस रोग के होने की संभावना अधिक होती है.
कैंसर रोग जिस दशा में होता है, उसके बाद आने वाली दशाओं का आंकलन किया जाना चाहिए. यदि यह दशाएँ शुभ ग्रहों की है या अनुकूल ग्रह की है या योगकारक ग्रह की दशा आती है तब रोग का पता आरंभ में ही चल जाता है और उपचार भी हो जाता है. रोग होने की स्थिति में जन्म कुंडली के साथ नवांश कुंडली, षष्टियाँश कुंडली और अष्टमांश कुंडली का भी भली-भाँति विश्लेषण करना चाहिए उसके बाद किसी नतीजे पर पहुंचना चाहिए.
राहु को कैंसर का कारक माना गया है लेकिन शनि व मंगल भी यह रोग देते हैं. गुरु को वृद्धि का कारक ग्रह माना जाता है और कैंसर शरीर के किसी अंग में अवांछित वृद्धि से ही होता है और साथ ही यदि यह षष्ठेश या अष्टमेश होकर पीड़ित है तब कैंसर की संभावना बनती है.
कैंसर रोग होने के योग | Yogas For Cancer Disease
- यदि जन्म कुंडली में मंगल, चंद्रमा और षष्ठेश की युति हो और साथ में सूर्य भी शामिल है तब व्यक्ति को कैंसर रोग होने की संभावना बनती है.
- चंद्रमा व शनि छठे भाव में स्थिति है तब व्यक्ति को पचपन वर्ष की उम्र पार करने के बाद रक्त कैंसर हो सकता है.
- जन्म कुंडली में बृहस्पति, शनि व केतु की युति कैंसर का कारण बनती है.
- आश्लेषा नक्षत्र, लग्न या छठे भाव से संबंधित होने पर और मंगल से पीड़ित होने पर कैंसर होने की संभावना बनती है.
- डॉ वी.बी. रमन के मत से छठे भाव का स्वामी पाप ग्रह होकर लग्न में स्थित हो या आठवें भाव में स्थित हो या दसवें भाव में स्थित हो तब कैंसर रोग होने की संभावना बनती है.
- शनि छठे भाव में राहु के नक्षत्र में स्थित हो और पीड़ित हो तब कैंसर रोग की संभावना बनती है.
- शनि और मंगल की युति छठे भाव में आर्द्रा या स्वाति नक्षत्र में हो रही हो.
त्वचा का कैंसर | Yogas For Skin Cancer
- मंगल और राहु छठे या आठवें भाव को पीड़ित कर रहे हों तब त्वचा का कैंसर हो सकता है.
- छ्ठे भाव में मेष राशि हो या स्वाति या शतभिषा नक्षत्र पड़ रहा हो और शनि छठे भाव को पीड़ित कर रहा हो तब त्वचा कैंसर का रोग हो सकता है.
पेट का कैंसर | Yogas For Stomach Cancer
- जन्म कुंडली में राहु या केतु लग्न में षष्ठेश के साथ हो.
- छठा भाव पीड़ित हो और राहु या केतु, आठवें या दसवें भाव में स्थित हो.