ज्योतिष अनुसार जन्म कुंडली के सभी 12 भावों का जीवन पर खास प्रभाव होता है. इसी में से कुछ भाव त्रिषडाय कहलाते हैं जो कष्टदायक माने गए हैं. कुंडली का तीसरा भाव, छठा भाव और ग्यारहवां भाव त्रिषडाय/त्रिषढ़ाय कहलाता है. कुंडली में बारह भावों को अच्छे भावों और बुरे भावों के अंतर्गत समान रूप से बांटा गया है. इन अच्छे और बुरे भावों को आगे विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है. इनमें से एक भाग अनुकूलता को दिखाता है तो दूसरा भाग विपरित परिस्थितियों को दिखाता है.
अनुकूल भाग
केंद्र भाव 1, 4, 7 और 10वें भावों का समूह मिलकर केंद्र बनाता है.
त्रिकोण भाव 1, 5, 9वें भावों का समूह मिलकर त्रिकोण कहलाता है
पंफर भाव 2, 5, 8 और 11वें भावों का समूह मिलकर पंफर बनाता है
अपोक्लिम: तीसरा भाव, 6वां भाव 9वां भाव और 12वां भाव मिलकर अपोक्लिम बनाते हैं
उपचय तीसरा भाव, 6वां भाव और 10वां भाव मिलकर उपचय के रूप में वर्गीकृत हैं
विपरित भाग
त्रिकोण भाव 6वें, 8वें और 12वें भावों का समूह मिलकर त्रिक भाव कहलाता है.
त्रिषदया 3, 6 और 11वें भाव को त्रिषडाय के अंतर्गत रखा गया है.
3, 6 और 11वें भाव का यह समूह तीन बुरे कारकों अर्थात इच्छा, क्रोध और लालच को दर्शाता है. त्रिषदया समूह के ये तीन भाव आध्यात्मिक उन्नति के लिए सबसे महत्वपूर्ण भाव अर्थात क्रमशः 9वें भाव, 12वें भाव और 5वें भाव से बिलकुल विपरीत हैं. 11वां भाव त्रिषदया समूह का सबसे शक्तिशाली भाव है क्योंकि यह समूह का अंतिम सदस्य है,
तीसरा भाव: तीसरा भाव नियम, इच्छा, पड़ोसी, करीबी संबंध, गुप्त अपराध दर्शाता है. इसका साहस पर नियंत्रण है. यह गले, कान, छोटे भाई-बहनों और पिता की मृत्यु से भी संबंधित है. कुंडली में तीसरा भाव संचार, यात्रा, भाई-बहन, मानसिक बुद्धि, आदतें, रुचियां और झुकाव को नियंत्रित करता है. सब कुछ, जैसे कि आप शब्दों और कार्यों के माध्यम से खुद को कैसे व्यक्त करते हैं, इंटरनेट और अपने गैजेट के माध्यम से आभासी संचार, दूसरा भाव इन सभी से संबंधित है.
यह भाव शुरुआती जीवन के माहौल जैसे भाई-बहन, पड़ोसी, प्राथमिक विद्यालय और यहां तक कि दिमाग से भी संबंधित है. साथ ही, वैदिक ज्योतिष के अनुसार, इस भाव में मिथुन राशि है और इसका स्वामी बुध है. जो संचार का ग्रह है. इस प्रकार गपशप, बातचीत और छोटी-छोटी बातें इस भाव का हिस्सा हैं. यह भाव रुचियों का पता लगाने के लिए प्रेरित करते हैं. हमारे पास जो मूल्य हैं, उनके आधार पर ऐसी चीजें होंगी जो हमें करना पसंद होगा. लेकिन साथ ही, जैसे-जैसे हम बड़े होते हैं और विकसित होते हैं, हम नई रुचियों और चीजों की ओर आकर्षित होंगे. तीसरे भाव को काम का भाव माना जाता है.
तीसरे भाव से व्यक्ति अभिव्यक्ति को प्रेरित हता है इसलिए अपने भाई-बहनों के साथ-साथ काम और पढ़ाई के दौरान भी घनिष्ठ संबंध बनाने के लिए जाना जाता है. तीसरा भाव हमारे मानसिक झुकाव और याद रखने की क्षमता को नियंत्रित करता है. तीसरा भाव भाईचारे के लिए है जो छोटे भाई या बहन के लिए विचार को दर्शाता है. यह तीसरा भाव यह भी निर्धारित करता है कि लोगों के साथ कैसे जुड़ते हैं और सूचनाओं का आदान-प्रदान करते हैं. वैदिक ज्योतिष में, तीसरे भाव को सहज भाव कहा जाता है, और इसलिए यह प्यार, बंधन, देखभाल और साझा करने से जुड़ा है. यह सब हमारे परिवार के सदस्यों विशेष रूप से छोटे भाई या बहन, दोस्तों, रिश्तेदारों, बड़े समुदाय या यहाँ तक कि प्राकृतिक परिवेश के साथ भी हो सकता है.
छठा भाव: यह भाव दुर्घटना, क्रोध, रोग, शत्रु, मानसिक क्लेश, दुख, अपमान, दुर्भाग्य और चोरी की गई संपत्ति का प्रतीक है. ग्यारहवां भाव: यह ग्यारहवां भाव लाभ, लालच, बड़े भाई, मित्र, अधिग्रहण, दुख से मुक्ति को दर्शाता है. प्रत्येक लग्न के लिए, एक ग्रह, भाव के स्वामी के आधार पर कार्यात्मक रूप से लाभकारी, कार्यात्मक रूप से अशुभ या कार्यात्मक रूप से तटस्थ हो जाता है. मंगल, शनि, राहु और केतु प्राकृतिक रूप से अशुभ हैं, सूर्य को बुरा माना जाता है, क्षीण चंद्रमा और अस्त बुध भी अशुभ हैं. बृहस्पति और शुक्र प्राकृतिक रूप से शुभ हैं. 6वें, 8वें और 12वें भाव के स्वामी कार्यात्मक रूप से अशुभ हैं.
छठा भाव त्रिकभाव, त्रिषडाय और उपचय में शामिल होता है. इसे सबसे जटिल भाव माना जाता है, ये व्यक्ति को बाधा और निराशा देते हैं. यह भाव मुख्य रूप से रोग, बीमारी, प्रतिस्पर्धा, कर्मचारी, अधीनस्थ या नौकरों को दर्शाता है. साथ ही, कर्ज, दुश्मनी, स्वच्छता, स्वच्छता, लड़ाई की भावना, दुर्घटनाएँ और दुर्भाग्य का पता चलता है. पराशर जी कहते हैं कि यह षड रिपु भाव है. इसका अर्थ है कि व्यक्ति अपने जीवनकाल में छह प्रकार के शत्रुओं का सामना कर सकता है. इसमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार और मत्स्य शामिल हैं. यह प्रारब्ध भाव या सेवाओं का भाव कहा जाता है. जीवन के वर्षों के साथ-साथ ये बेहतर परिणाम भी देते हैं. इस भाव के कारक स्वामी बुध और शनि हैं. बुध सूचना, संचार, व्यावसायिक कौशल और नेटवर्किंग की कला को दर्शाता है. शनि कड़ी मेहनत और जिम्मेदारियों का प्रतिनिधित्व करता है और इन पर काम करते हुए व्यक्ति कड़ी मेहनत, धैर्य, नियमों का पालन और जीवन की सीमाओं को स्वीकार करने का पाठ सीखता है.
त्रिषडाय के स्वामी क्यों होते हैं अशुभ
त्रिषडायेश यानी तीसरे भाव, 6वें और 11वें भाव के स्वामी को भी अशुभ माना जाता है. एक ग्रह जो एक साथ त्रिक और त्रिषय भाव का स्वामी बनता है, उसे सबसे मजबूत कार्यात्मक अशुभ कहा जाएगा. इसके अलावा, जब कोई शुभ ग्रह केंद्र का स्वामी बन जाता है तो वह केंद्राधिपति दोष के कारण शुभ परिणाम देने की अपनी शक्ति खो देता है जबकि एक पाप ग्रह कार्यात्मक रूप से शुभ हो जाता है. यदि कोई शुभ ग्रह त्रिक भावों (छठे भाव, आठवें भाव या बारहवें भाव) का स्वामी न होकर केंद्र में स्थित हो तो यह शुभ होता है और इस स्थिति में वह शुभ ग्रह शुभ परिणाम देता है.
ग्यारहवें भाव के बारे में एक बात याद रखने योग्य है कि यह उपचय समूह, लाभ और पूर्ति के भाव का भी हिस्सा है, इसलिए इस भाव में स्थित ग्रह के लिए शुभ माना जाता है. स्वास्थ्य के लिए भी एकादश भाव का स्वामी अच्छा नहीं होता है.
जब कोई शुभ ग्रह त्रिक या त्रिषडाय भावों का स्वामी बन जाता है या इस समूह में स्थित होता है तो वह अपने प्राकृतिक शुभ परिणाम देने की शक्ति खो देता है. जबकि जब कोई पाप ग्रह त्रिक और त्रषडाय भावों का स्वामी बन जाता है या इसमें स्थित होता है तो उसे अपनी प्राकृतिक अशुभ शक्ति भी खोनी पड़ती है और शुभ परिणाम देने पड़ते हैं.