शनि देव अपने स्वरुप एवं अपने प्रभाव के कारण सभी के मध्य एक अत्यंत रहस्यमय एवं कठोर देव के रुप में स्थापित हैं शनि देव को सनातन धर्म में एवं ज्योतिष शास्त्र दोनों ही स्थानों पर काफी महत्व प्रदान किया गया है. वैदिक संस्कृति में शनि को नौ ग्रहों में से एक ग्रह के रुप में स्थान प्राप्त है. यदि खगोलीय स्थिति को देखें तो शनि का वैज्ञानिक स्वरुप भी काफी आकर्षक रहा रहा है. शनि को नव ग्रहों में सबसे धीमी गति से चलने वाला ग्रह बताया गया है जिसके कारण इन्हें शनै:शनै: भी कहते हैं अर्थात धीमी गति से चलने वाले शनि देव. 

शनि ग्रह का रंग काला, नीला बताया गया है. कर्म, न्याय और दण्ड प्रदान करने वाले देव हैं. शनि को सकारात्मक रुप से दीर्घायु, अनुशासन, जिम्मेदारी, नेतृत्व, अधिकार, विनम्रता, आध्यात्मिक, तपस्या तथा कर्तव्यनिष्ठा से जोड़ा जाता है तथा नकारात्मक रुप से दुःख, वृद्धावस्था, लम्बी व्याधि, चिंता, कष्ट जैसी स्थितियों का कारक माना गया है. विभिन्न ग्रंथों तथा आचार्यों जैसे कि आर्यभट्ट, वराहमिहिर, ब्रह्मगुप्त इत्यादि आ़चार्यों ने शनि का एक स्वरुप ही वर्णन किया है 

देवता या मनुष्य शनि किसी से नहीं करते भेदभाव 

किसी भी ग्रह में से सबसे अधिक प्रश्न सूचक शब्द शनि के साथ इसी रुप में दिखाई देता है की शनि मित्र हैं या फिर शत्रु क्योंकि शनि के प्रभाव से कोई भी अछूता नहीं रहा है. शनि देव का प्रभाव एवं उनकी कथाओं का वर्णन विस्तार रुप से पुराणों में मिलता है. शनि देव के लिए समस्त देवी देवता, यक्ष, नाग, किन्नर तथा अन्य समस्त प्राणी समान ही हैं क्योंकि शनि देव ने सभी को समान रुप से प्रभावित किया है. शनि के कष्ट से कोई अछूता नहीं रहा है, भगवान शिव हों या श्री विष्णु भगवान या उनके अवतार स्वरुप श्री राम सभी ने शनि के प्रकोप को सहन किया है. शनि देव की स्थिति ही कुछ इस प्रकार रही है जिसके कारण वह कभी शत्रुवत तो कभी मित्रवत प्रतीत होते हैं. 

शनि का एक प्रमुख गुण जो सर्वमान्य है वह कर्मों के अनुरुप फल प्रदान करना रहा है, जिसके चलते सभी को शनि का प्रकोप झेलना पड़ा है. यहां स्वयं शनि देव के पिता सूर्य देव को भी अपने पुत्र के शनि के कारण अंधकार से ग्रसित होना पड़ा था अत: जिसके परिणाम स्वरुप सूर्य एवं शनि के मध्य एक प्रकार की दूरी, अलगाव शत्रुता का भाव भी दृष्टिगोचर होता है. 

पौराणिक आख्यान शनि वर्णन 

ॐ नीलांजनसमाभासं रविपुत्रं यमाग्रजम। छायामार्तण्डसम्भूतं तं नमामि शनैश्चरम् ||

जो नीले पर्व की तरह देदीप्यमान हैं, सूर्य के पुत्र हैं, यम के बड़े भाई हैं. छाया और सूर्य से जन्मे हैं, उन धीमी गति से चलने वाले शनि देव को मेरा नमस्कार है. 

शनि देव से संबंधित कई श्लोक मौजूद हैं जो उनके स्वरुप एवं उनके संबंधों के विषय में बताते हैं. शनि देव को सूर्य एवं छाया के पुत्र कहा गया है. इनके अन्य भाई बहनों में मनु, यमराज, यमुना एवं भद्रा हैं. 

शनि साढ़ेसाती और शनि ढैय्या विचार क्यों देता है अधिक भय

ज्योतिष शास्त्र में शनि देव की सबसे चिंताजनक एवं गंभीर स्थिति शनि साढ़ेसाती तथा शनि ढैय्या के समय से जुड़ी मानी जाती है. शनि का असल प्रभाव इसी समय पर व्यक्ति पर गहराई से दिखाई देता है. 

बारह राशियों में शनि की साढे़साती और ढैय्या का प्रभाव कब और कैसे पड़ता है इस बात को समझना आवश्यक होता है. सौरमंण्डल में मौजूद नव ग्रहों के मध्य शनि ग्रह, पृथ्वी से सबसे अधिक दूरी पर मौजूद होते हुए संचरण करते हैं. शनि एक राशि में ढ़ाई वर्ष के काल तक गोचरस्थ होते हैं. शनि की गति में वक्री और मार्गी स्थिति के प्रभाव होने के कारण यह ढ़ाई वर्ष का समय कम और ज्यादा हो सकता है. किंतु खगोलीय गणना अनुसार शनि संपूर्ण राशि चक्र का भ्रमण 29 वर्ष 5 माह 17 दिन ओर 5 घंटों में पूरा करते हैं. 

द्वादशे जन्मगे राशौ द्वितीयै च शनैश्चर: ।

सार्धानि सप्तवर्षाणि तदा दुखै: युतो भवेत्।।

गोचर में जब शनि किसी राशि में प्रवेश करते हैं तब उस राशि से 12वीं राशि को आने वाले ढ़ाई वर्ष के लिए परेशानी तथा कष्ट की स्थिति झेलनी पड़ती है. अर्थात पहली जिस राशि में शनि ने प्रवेश किया हो उसे पांच वर्ष तक और अपनी से दूसरी राशि को लगभग साढ़ेसात वर्ष तक संघर्षशील परिस्थितियों का सामना करना होगा. शनि के जन्म चंद्र राशि से पहली राशि में उपस्थिति होने से लेकर उसके बारहवीं राशि पर होने की क्रिया साढ़ेसाती होती है. 

शनि ढैय्या 

गोचर में जब शनि चंद्र राशि से चतुर्थ अथवा अष्टम स्थान पर गोचर करता है तो शनि ढैय्या का समय आरंभ होता है. यह समय ढ़ाई वर्ष का होता है. शनि देव को ग्रंथों में संकट, दुर्भाग्य, लम्बी व्याधियों, चिंताओं, कठोर परिश्रम, सेवा भाव से संबंधित माना गया है. शनि देव का प्रभाव जीवन में कई तरह से कष्ट एवं समस्याओं की स्थिति भी देखाई देती है. 

“ढैय्या प्रददाति वै रविसुतो: राशे चतुर्थाष्टमे।

व्याधिं बन्धु विरोधं विदेशगमनं, कलेशं च चिंताधिकम्।।”

इस प्रकार यह समय चिंता, परेशानी, मानसिक तनाव, रोग, हानि, कष्ट इत्यादि प्रकार से असर डालने वाला होता है. इसी के साथ यह भी समझने की आवश्यकता है की यह समय यदि हम अपनी जिम्मेदारियों को उचित रुप से निर्वाह करने में सक्षम होते हैं तो इसके सकारात्मक असर भी हमे मिलते हैं.

शनि देव हम सभी को हमारे कर्म अनुसार ही फल प्रदान करते हैं और इस तथ्य को भागवत में भी दर्शाया गया है की अपने कर्मों का फल हमें अवश्य भोगना पड़ता है. कर्मों के बंधन से सृष्टि में कोई मुक्त नहीं हो सकता है. अत: शनि देव मित्र ही हैं वह हमें चाहे कठिन समय दिखाते हैं किंतु यही हमारे धैर्य एवं साहस की परिक्षा होती है.

शनि देव की दशा महा दशा एवं इनका साढ़ेसाती असर जीवन में कायाकल्प को दिखाता है. शनि जब भी व्यक्ति को प्रभावित करते हैं तब जीवन को जीना विशेष मुश्किल सा दिखाई देता है. चुनौतियों से अधिक प्रभावित होना पड़ सकता है. असफलताएं, विफलता, लगातार किए जाने वाले प्रयास, तंत्रिका तंत्र से जुड़े रोग भी इस समय पर उभर सकते हैं. किंतु समझने की आवश्यकता है की ये समय परिश्रम और कमर्ठता का समय होता है. शनि देव संघर्ष वाली स्थितियों को उत्पन्न करते हुए व्यक्ति को जीने का मार्ग सिखाने वाले सच्चे मार्गदर्शक होते हैं.