विवाह के समय का निर्धारण करने में कुण्डली में बन रहे योग विशेष भूमिका निभाते है. किसी व्यक्ति को वैवाहिक जीवन में कितना सुख मिलेगा यह सब कुण्डली के योगों पर निर्भर करता है. शुभ ग्रह, शुभ भावों के स्वामी होकर जब शुभ भावों में स्थित हों तथा अशुभ ग्रह निर्बल होकर अशुभ भावों के स्वामी होकर, अशुभ भावों में स्थित हों तो व्यक्ति को अनुकुल फल देते हैं. कुण्डली के योग विवाह को किस प्रकार प्रभावित करते है.
शुक्र के प्रभाव स्वरूप | Effects of Venus
शुक्र को विवाह का मुख्य कारक माना जाता है. यही प्रेम संबंधों की आधारशिला को दर्शाता है और कुण्डली में शुक्र के प्रधान होने पर वैवाहिक जीवन सुखमय गुजरता है. विवाह जल्दी होता है तथा प्रेम विवाह भी हो सकता है.
चंद्रमा के प्रभाव स्वरुप | Effects of Moon
कुण्डली में चंद्रमा के बली होने पर वैवाहिक जीवन में कुछ परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है. प्रेम संबंधों में असफलता भी प्राप्त हो सकती है तथा दुख का सामना करना पड़ता है.
मंगल के प्रभाव स्वरुप | Effects of Mars
इसके प्रभाव के कारण जातक प्रेम विवाह के लिए उत्साहित देखा जा सकता है. विवाह के मामले में भाग्य साथ देता है. जीवन में वैवाहिक सुख प्राप्त होता है.
बुध के प्रभाव स्वरुप | Effects of Mercury
कुण्डली में बुध के बली होने पर व्यक्ति का वैवाहिक जीवन अच्छा गुजरता है. जातक सामाजिक मान मर्यादाओं का पालन करते हुए संबंधों में मजबूती बनाने का प्रयास करता है. परिवार की आज्ञा अनुरूप विवाह करने की चाह रखता है.
सूर्य के प्रभाव स्वरुप | Effects of Sun
सूर्य प्रधान होने पर व्यक्ति अपनी मन मुताबिक सोच समझकर विवाह का विचार करता है. इसके प्रभाव स्वरुप जातक में सुखी वैवाहिक जीवन जीने की इच्छा रहती है. इस कारण जातक विवाह संबंधों को मधुर बनाने में दक्ष होता है.
शनि के प्रभाव स्वरूप | Effects of Saturn
शनि से प्रभावित होने के कारण विवाह और प्रेम के प्रति निरसता का भाव रहता है. अधिकतर शनि प्रधान लोगों का विवाह देर से होता है. और इनके प्रेम संबंधों में ठहराव नहीं रह पाता. विवाह को लेकर चिड़्चिडा़पन देखा जा सकता है.
गुरू के प्रभाव स्वरूप | Effects of Jupiter
गुरू के प्रभाव स्वरूप विवाह जल्दी होता है. व्यक्ति प्रेम और रोमांस के मामलों में महत्वकांक्षी होता है. इनका वैवाहिक जीवन सुखी और समृद्धशाली होता है.
विवाह संबंधित अन्य योग | Other Yogas related to marriage
- कुण्डली में ग्रहों के अच्छे योग होने पर जल्दी विवाह की उम्मीद रहती है जबकि विवाह से सम्बन्धित भाव एवं ग्रह पर अशुभ ग्रहों का प्रभाव होने पर शादी देर से हो सकती है.
- कुण्डली में शुक्र सप्तम भाव में स्वगृही हो, द्वितीय भाव में लग्न द्वारा दृष्ट हों तो व्यक्ति का विवाह यौवनावस्था में होने के योग बनते है.
- जब किसी व्यक्ति की कुण्डली में गुरु सप्तम भाव में स्थित हों तथा किसी शुभ ग्रह से दृ्ष्टि संम्बन्ध बना रहे हों अथवा सप्तम में उच्च का हों तो विवाह जल्द होने की संभावना बनती है.
- इसके अलावा सप्तमेश और लग्नेश दोनों जब निकट भावों में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह जल्द होने की संभावना बनती है.
- लग्नेश व सप्तमेश का आपस में स्थान या दृष्टि संबन्ध शुभ ग्रहों से बने तो विवाह जल्द होने की संभावना बनती है.
- अगर किसी स्त्री की कुण्डली में चन्द्र उच्च अंश पर स्थित हो तो स्त्री व उसके जीवनसाथी की आयु में अन्तर अधिक होने की संभावना बनती है.
- जब लग्नेश कुण्डली में बलशाली होकर स्थित हो और लग्नेश द्वितीय भाव में स्थित हो तो ऎसे व्यक्ति का विवाह शीघ्र होने के योग बनते हैं. इस योग के व्यक्ति का विवाह सुखमय रहने की संभावनाएं बनती है.
- अगर सप्तमेश वक्री हो तथा मंगल षष्ठ भाव में हो तो ऎसे व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बनती है. सप्तमेश के वक्री होने के कारण वैवाहिक जीवन की शुभता में भी कमी हो सकती है.
- कुण्डली में चन्द्र अगर सप्तम भाव में अकेला या शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो ऎसे व्यक्ति का जीवनसाथी सुन्दर व यह योग विवाह के मध्य की बाधाओं में कमी करता है.
- कुण्डली में सप्तमेश छठे, आठवें और बारहवें भाव, लग्न भाव या सप्तम भाव में स्थित हो तो व्यक्ति का विवाह देर से होने के योग बनते है.
- यदि लग्न, सप्तम भाव, लग्नेश और शुक्र चर स्थान में स्थित हों तथा चन्द्रमा चर राशि में स्थित हों तो ऎसे व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने के योग बनते है.
- इसके अतिरिक्त जब शनि और शुक्र लग्न से चतुर्थ भाव में हों तथा चन्द्रमा छठे, आठवें या बारहवें भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह तीस वर्ष के बाद होने की संभावना बनती है.
- किसी व्यक्ति की कुण्डली में राहु और शुक्र जब प्रथम भाव में हों तथा मंगल सप्तम भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह 28 से 30 वर्ष की आयु में होने की संभावनाएं बनती है.
- अगर शुक्र कर्क, वृश्चिक, मकर में से किसी राशि में सप्तम भाव में स्थित हों तथा चन्द्रमा व शनि एक साथ प्रथम, द्वितीय, सप्तम या एकादश भाव में हों तो व्यक्ति का विवाह वर्ष के बाद होने कि संभावना बनती है.
- कुण्डली में सप्तमेश बलहीन हो तथा शनि व मंगल एक साथ प्रथम, द्वितीय, सप्तम या एकादश में हों तो व्यक्ति का विवाह देर से होने के योग बनते हैं.
- इसके अतिरिक्त मंगल या शुक्र एक साथ पंचम या सप्तम भाव में स्थित हो एवं दोनो को गुरु देख रहे हों, तो व्यक्ति का विवाह वयस्क आयु में होने की संभावना बनती है.
- विवाह के लिये सप्तम भाव, सप्तमेश और शुक्र का विचार किया जाता है. ये तीनों शुभ स्थिति में हों तो विवाह शीघ्र होता है तथा वैवाहिक जीवन भी सुखमय रहने की संभावनाएं बनती है.
- जब जन्म कुण्डली में अष्टमेश पंचम में हों व्यक्ति का विवाह विलम्ब से होने की संभावना बनती है. अष्टम भाव व इस भाव के स्वामी का संबन्ध जिन भावों से बनता है. उन भावों के फलों की प्राप्ति में बाधाएं आने की संभावना रहती है.
- इसके अलावा जब जन्म कुण्डली में सूर्य व चन्द्र शनि से पूर्ण दृष्टि संबन्ध रखते हों तब भी व्यक्ति का विवाह देर से होने के योग बनते है. इस योग में सूर्य व चन्द्र दोनों में से कोई सप्तम भाव का स्वामी हो या फिर सप्तम भाव में स्थित हों तभी इस प्रकार की संभावना बनती है.
- शुक्र केन्द्र में स्थित हों और शनि शुक्र से सप्तम भाव में स्थित हों तो व्यक्ति का विवाह वयस्क आयु में प्रवेश के बाद ही होने की संभावना बनती है.
- इन योगों में ग्रहों की स्थिति के अनुसार विवाह समय में परिवर्तन हो सकता है. अगर सप्तमेश उच्च हो, बलवान हो, शुभ ग्रहों के प्रभाव में हो तथा अशुभ ग्रहों के पाप प्रभाव से मुक्त हो तो विवाह की आयु में परिवर्तन होना संभव है.