वैदिक ज्योतिष में किसी बात के निर्धारण के लिए सबसे पहले कुंडली के योगो को देखा जाता है. फिर उस बात से संबंधित दशा/अन्तर्दशा का विश्लेषण किया जाता है. अंत में गोचर के ग्रहों को देखा जाता है कि वह कब हरी झंडी दिखाएंगे. आज हम एक महिला की कुंडली के माध्यम से इन सभी बातो को संतान प्राप्ति के माध्यम से समझने का प्रयास करेगें. एक महिला जातक की कुंडली में संतान प्राप्ति के योग फिर दशा और अंत में गोचर का अध्ययन किया जाएगा.

जन्म कुंडली | Janma Kundali

इस महिला जातक की कुंडली का कन्या लग्न है और मिथुन राशि है. विवाह के एक वर्ष के भीतर इन्हें अपनी प्रथम संतान के रुप में पुत्री की प्राप्ति हुई और फिर इन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई. इनका विवाह मई माह के प्रथम सप्ताह में 1997 में संपन्न हुआ और फरवरी 1998 में प्रथम संतान का जन्म हुआ. सबसे पहले हम इस कुंडली में संतान प्राप्ति के योग देखते हैं कि वह है तो कैसे हैं. कन्या लग्न की कुंडली में लग्न में ही बुध, मंगल तथा सूर्य स्थित है. चतुर्थ भाव में बृहस्पति अपनी मूल त्रिकोण राशि में राहु के साथ हैं. शनि पंचमेश होकर नवम भाव में स्थित है. दशम भाव में चंद्रमा तथा केतु हैं. एकादश भाव में शुक्र स्थित है.

शनि इनकी कुण्डली में पंचमेश होकर नवम भाव में स्थित है और उन पर किसी का भी कोई पाप प्रभाव या किसी भी ग्रह की दृष्टि नही है और किसी तरह का कोई भी संबंध अन्य ग्रह से नहीं बन रहा है अर्थात पंचमेश बली है और अत्यधिक शुभ तथा बली भाव में स्थित है. पंचम भाव पर एक शुभ ग्रह शुक्र की दृष्टि भी आ रही है जो एकादश भाव में है. शुक्र भाग्येश होकर इस भाव को दृष्ट कर रहे हैं. पंचम भाव तथा पंचमेश बली हैं. कारक ग्रह बृहस्पति राहु/केतु अक्ष पर स्थित है लेकिन बृहस्पति पर एक शुभ ग्रह चंद्रमा की दृष्टि भी आ रही है जो एकादशेश भी हैं. बृहस्पति अपनी मूल त्रिकोण राशि में स्थित है. राहु तथा बृहस्पति भले ही युति में है लेकिन अंशो में काफी दूरी है. राहु 29 अंश का है तो बृहस्पति 9 अंश का है. वैसे भी कहा गया है कि राहु जिस भाव तथा भावेश से संबंध बनाते हैं उनके अनुसार फल प्रदान करते हैं. यहाँ राहु ने बृहस्पति के गुणों को अपना लिया है और केन्द्र मे स्थित होने से अपनी अशुभता भूलकर तटस्थ हो गया है.

नवांश कुंडली | Navansh Kundali

नवांश कुंडली को अगर देखें तो मकर लग्न की कुंडली बनती है अर्थात जन्म कुंडली का पंचम भाव ही लग्न बन गया है. नवांश कुंडली का पंचमेश शुक्र बनता है और वह तीसरे भाव में अपनी उच्च राशि में स्थित है. जन्म कुण्डली का पंचमेश शनि यहाँ भी अपनी मित्र राशि में भाग्य भाव में ही स्थित है.

सप्ताँश कुंडली | Saptansh Kundali

सप्ताँश कुंडली का लग्न मीन है और इसका स्वामी बृहस्पति एकादश भाव में स्थित है. सप्ताँश कुंडली के लग्न तथा लग्नेश का अध्ययन किया जाता है. बृहस्पति अपनी राशि में है लेकिन एकादश भाव में नीच का ग्रह भी शुभ फल प्रदान करता हैं. इसलिए लाभ में गया लग्नेश शुभ ही है.

दशा | Dasha

जिस समय संतान की प्राप्ति हुई उस समय बृहस्पति/बुध की दशा थी. उससे पहले बृहस्पति/शनि में गर्भ धारण हो गया था. आइए अब महादशानाथ को जन्म कुंडली और वर्ग कुण्डली, सप्ताँश में देखते हैं. महादशानाथ बृहस्पति संतान प्राप्ति के नैसर्गिक कारक ग्रह हैं जो जन्म कुंडली में अपनी मूल त्रिकोण राशि में स्थित है. गर्भ धारण के समय बृहस्पति में शनि की अन्तर्दशा थी जो अक्तूबर 1997 तक रही. शनि जन्म कुंडली के पंचमेश है और पंचम से पंचम अर्थात नवम भाव में स्थित है. इसका अर्थ यह हुआ कि दशा ने प्रॉमिस दिया और विवाह के तुरंत बाद ही गर्भ ठहर भी गया. सप्तांश कुण्डली के लग्नेश बृहस्पति ही हैं और वह एकादश भाव में स्थित होकर पंचम को देख रहे हैं. अन्तर्दशानाथ शनि हैं जो सप्तांश कुंडली में तीसरे भाव में स्थित है और बृहस्पति से दृष्ट भी हैं और शनि स्वयं सप्ताँश कुंडली के पंचम भाव को भी देख रहे हैं.

संतान के जन्म के समय बृहस्पति/बुध/बुध की दशा थी. बृहस्पति का वर्णन हम कर चुके हैं. अब बुध को देखते हैं. बुध जन्म कुंडली के लग्नेश है और लग्नेश की दशा में कुंडली के किसी भाव के फल मिलने की संभावना होती है. सप्ताँश कुंडली में बुध पंचम भाव में ही स्थित है और संतान के कारक बृहस्पति से दृष्ट हैं.

गोचर | Transits

जन्म कुंडली में कोई भी काम बृहस्पति तथा शनि के दोहरे गोचर के बिना नहीं होता है. संतान प्राप्ति में भी गोचर के गुरु व शनि का दोहरा गोचर पंचम भाव व पंचमेश पर होने पर ही संतान प्राप्त होगी यदि दशा भी संतान प्राप्ति की चल रही हो तो. यदि बच्चे के जन्म से नौ माह पहले का शनि व बृहस्पति का गोचर देखें तो शनि मीन राशि में स्थित थे और बृहस्पति मकर राशि में स्थित थे. शनि मीन राशि से पंचमेश शनि को देख रहे हैं और बृहस्पति पंचम भाव में ही स्थित है और पंचमेश शनि को भी देख रहे हैं. यहाँ दोहरा गोचर अपने पूरे फल प्रदान कर रहा है.

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि दशा और गोचर जब किसी एक भाव से संबंधित होता है तब उस भाव से संबंधित फल मिलते हैं बशर्ते कि कुंडली में योग भी होने चाहिए.