वर्षफल में दशा विचार के लिए कुछ सिद्धांतों को समझते हुए वर्षफल कुण्डली को जानने में सहायता मिलती है. यदि दशा में भाव और ग्रहों की स्थिति अनुकूल हो तो फल भी अच्छे प्राप्त होते हैं और जातक को जीवन में सुख एवं संतोष की प्राप्ति होती है.

लग्न दशा | Ascendant’s Dasha

लग्न दशा मिलने में एक सामान्य सिद्धांत का सदैव लागू होता है कि यह दशा जातक के लिए अनुकूल मानी गई है लेकिन यदि इसे सुक्ष्म स्तर पर जांचने का प्रयास करें तो हम जान सकेंगे कि यहां यदि लग्न बलिष्ठ स्थिति में हो तो बहुत अच्छे फल देने में तत्पर रहता है. जातक का स्वास्थ्य अच्छा रहता है और जीवन में स्फूर्ति व रोमांच बना रहता है. समाज में अपनी प्रतिष्ठा में अनुकूलता पाता है उसे समाज में सम्मान की प्राप्ति होती है.

लोगों में उसकी महत्ता को आगे तक जाने में मदद मिलती है. परिवार और कार्य सभी ओर से प्रशंसा प्राप्त होती है. वहीं जब लग्न कुछ कमजोर होता है और वह निर्बल होता है तो इसके विपरित स्थितियां सामने आने लगती हैं. मानसिक चिंताओं से व्यक्ति घिरा रहने लगता है. धन की बचत करने की चिंता रह सकती है व कुछ मनमुटाव जीवन में उभरने लगते हैं. लग्नेश के बल का अनुमान द्रेष्कोण में उसकी स्थिति के द्वारा ही किया जाता है जिससे सही स्थिति का पता लगाया जा सके.

लग्न यदि चर राशि से युक्त होने पर पहले द्रेष्कोण का शुभ फल मिलता है, दूसरे में मध्यम और तीसरे में खराब फल मिलते हैं. लग्न अगर स्थिर राशि से युक्त हो तो पहले द्रेष्काण होने पर अशुभ फल मिलते हैं, दूसरे द्रेष्काण में शुभ फल मिलते हैं और तीसरे में मध्यम फलों की प्राप्ति होती है. वहीं अगर लग्न द्विस्वभाव राशि से युक्त हो तो पहला द्रेष्काण में खराब फल मिलते हैं दूसरे में मिलेजुले फल और तीसरे में शुभ फलों की प्राप्ति होती है.

लग्न या लग्नेश शुभ ग्रहों से दृष्ट हो तो भी प्रभावों में शुभता देखने को मिल सकती है और यदि लग्न और लग्नेश अशुभ ग्रहों से दृष्ट हो रहा हो तो फलों में न्यूनता आ जाती है और सामान्यत: परेशानियां बनी ही रहती हैं.

सूर्य दशा | Sun’s Dasha

सूर्य की स्थिति के अनुरूप जातक को फलों की प्राप्ति होती है. सूर्य के मजबूत या अच्छी स्थिति में होने पर जातक को सरकार और राज्य की ओर से आगे बढ़ने के अवसर मिलते हैं. धर्म कर्म के कार्यों में व्यक्ति उत्साह से भाग लेता है. सात्विकता का पालन करने की चेष्ठा भी रखता है. सामाजिक जीवन में अपना एक विशेष स्थान होता है.

वहीं दूसरी ओर कमजोर सूर्य की दशा झगडे़, विवाद, नेत्र रोग, पित्त संबंधि विकार प्रदान करती है. तीसरे, छठे, आठवें ओर एकादश भाव में सूर्य अनुकूल फल देने वाला रहता है यदि वह कमजोर भी हो तो भी इन स्थानों में जातक को अनुकूल फल देने में सक्षम होता है.

चंद्रमा दशा | Moon’s Dasha

चंद्रमा एक सौम्य ग्रह जो शीतला से पूर्ण व सौम्यता देता है. इसकी दशा में जातक अच्छे व्यवहार व शांत स्वभाव से युक्त होगा, जातक को सौंदर्य पूर्वक रहने की चाह भरता है. संपत्ति से युक्त करता है. शयन सुख और अच्छे वस्त्रों की प्राप्ति करने में मददगार होता है.

कमजोर होने पर मित्रों से तनाव की स्थिति, मन में भय की स्थिति व चंचलता देता है, असंतोष का भाव लाता है. धन की हानि और भोजन में अरूचि जगाता है, मन से असंतुष्ट रहने वाला होता है. सुखों में कमी आने लगती है.

मंगल दशा | Mars’ Dasha

मंगल की दशा मजबूत होने पर जतक में साहस और निर्भयता आती है, जातक अपने परिश्रम के द्वारा अपने को सफलता की ओर ले जाता है. व्यक्ति अपने शत्रुओं पर विजय पाता है. नेतृत्व करने में आगे रहता है, भू संपत्ति में समृद्धि मिलती है.

कमजोर स्थिति में व्यक्ति को भय की स्थिति परेशान करती है, जातक को रक्त संबंधि विकार हो सकते हैं क्रोध की अधिकता व चिड़चिडा़पन बना रह सकता है. चोई का भय ओर अजनबियों से हानि होती है. 3, 6 और 11 भाव में अनुकूल फलों की प्राप्ति होती है.