ज्योतिष में चिकित्सा विज्ञान पर कई शोध किए गए हैं जिनके द्वारा जन्म कुण्डली से इस बात को जानने में बहुत सहायता मिलती है कि व्यक्ति को कौन सा रोग अधिक प्रभावित कर सकता है. इसी के साथ नक्षत्रों का भी रोग विचार करने में महत्वपूर्ण स्थान होता है जिसमें रोग की अवधि और उसके ठीक होने के समय को भी जाना जा सकता है.

जन्म कुंडली में अगर रोग के आरंभ होने के समय अश्विनी नक्षत्र चल रहा हो तो बीमारी के एक सप्ताह या दो माह तक बने रहने की संभावना रहती है. इस स्थिति में जातक को स्वास्थ्य लाभ या तो जल्द से या फिर काफी देरी से मिल सकता है इसलिए इस समय परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए व्यक्ति अपने पर पूर्ण ध्यान देने की आवश्यकता होती है.

  • यदि जातक की बीमारी आरंभ होने के समय पर भरणी नक्षत्र हो तो जातक की बिमारी एक या दो दिन में समाप्त हो जाती है अथवा उसे मृत्यु तुल्य कष्ट झेलना पड़ सकता है. इस स्थिति में जातक को अपने स्वास्थ्य का विशेष ध्यान रखना चाहिए.
  • व्यक्ति का रोग यदि कृतिका नक्षत्र के समय आरंभ हो रहा हो तो स्वास्थ्य लाभ पाने में व्यक्ति को दो सप्ताह या दो माह से अधिक का समय लग सकता है. स्वास्थ्य लाभ के लिए व्यक्ति को नक्षत्र संबंधी उपाय भी करने चाहिए जिससे की उसे कुछ राहत प्राप्त हो सके और संकट से मुक्ति का मार्ग प्राप्त हो सके.
  • यदि किसी व्यक्ति की बीमारी रोहिणी नक्षत्र के समय आरंभ हुई हो तो उसकी बीमारी को ठीक होने में एक सप्ताह का समय लग सकता है जातक को जल्द ही स्वास्थ्य लाभ प्राप्त होता है वह रोग से लड़ने कि क्षमता को जागृत पाता है और उसे अधिक परेशानी नहीं उठानी पड़ती है. यह स्थिति व्यक्ति के लिए अनुकूल ही रहती है.
  • इसी प्रकार यदि व्यक्ति का स्वास्थ्य आर्द्रा नक्षत्र के समय खराब हुआ हो तो रोग एक माह के समय तक रह सकता है स्वास्थ्य लाभ मिलने में दिक्कत आती है. जातक को स्वास्थ्य लाभ में देरी होने से अपना अधिक ध्यान रखना चाहिए और समय समय पर डाक्टरी जांच कराते रहना चाहिए.
  • यदि किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य पुनर्वसु नक्षत्र के आरंभ होने के साथ ही खराब हुआ हो तो उस जातक को जल्द ही स्वास्थ्य लाभ मिलता है. इस नक्षत्र के अधिक खराब प्रभाव नहीं झेलने पड़ते और सेहत के लिए यह बहुत कष्टकारी नहीं होता है और व्यक्ति को शीघ्र राहत मिलती है.
  • व्यक्ति को यदि बीमारी पुष्य नक्षत्र के समय पर आरंभ हुई हो तो जातक के स्वास्थ्य में जल्द से सुधार होता है. इस नक्षत्र के प्रभाव स्वरूप व्यक्ति को अधिक कष्ट की अनुभूति नहीं होती है और वह सेहत का लाभ उठाने में सफल होता है चार से पांच दिन के भीतर रोग नियंत्रण में आने लगता है और बीमारी से छुटकारा प्राप्त होता है.
  • अगर किसी व्यक्ति की बीमारी आश्लेषा नक्षत्र के समय पर आरंभ हुई हो या इस समय पर उसे अपने रोग का बोध हुआ हो तो जातक को कष्ट की अनुभूती हो सकती है और सेहत में सुधार के लिए अधिक समय लग सकता है.
  • मघा नक्षत्र के समय पर आरंभ हुई बीमारी मृत्यु तुल्य कष्ट देने वाली हो सकती है और कई प्रकार से स्वास्थ्य संबंधी दिक्कतें परेशान कर सकती है साथ ही अन्य रोग भी उभर सकने का भय बना रह सकता है.
  • यदि किसी व्यक्ति का रोग पूर्वाफाल्गुनी नक्षत्र के समय पर उभर कर सामने आता है और इसी समय उसे बीमारी ने अपनी चपेट में ले लिया हो उसके रोग के दूर होने में एक सप्ताह तक का समय आराम से लग सकता है. किंतु व्यक्ति को यदि कोई गंभीर बीमारी हो तो उसे मृत्यु तुल्य कष्ट झेलना पड़ सकता है.

“नक्षत्र द्वारा रोग मुक्ति का निर्धारण - भाग 2”