प्राचीनतम विद्याओं में बहुत सी गूढ़ विद्याओ का उल्लेख मिलता है. जिनमें वैदिक ज्योतिष का महत्व सबसे मुख्य माना जाता है. इसके अतिरिक्त कृष्णमूर्ति, लाल किताब, हस्तरेखा, अंक शास्त्र आदि अनेको विद्याएँ हैं जिनके द्वारा हम भविष्य कथन करते हैं. इन्हीं विद्याओं में जैमिनी ज्योतिष का भी अपना महत्व है. जैमिनी ज्योतिष वैदिक ज्योतिष भिन्न होती है. इसमें ग्रहों की दशाएँ ना होकर राशियों की दशाएँ होती है. सभी 12 राशियों का दशाक्रम चलता है. ग्रहो में केवल सात ग्रहों को महत्व दिया गया है. जैमिनी दशा की सबसे बड़ी खूबी यह होती है कि यदि व्यक्ति का जन्म समय सही नही है तब भी उसका फलकथन बिलकुल सही किया जा सकता है.

आज हम आपको जैमिनी ज्योतिष की सामान्य बातों की चर्चा करेगें कि यह किस तरह से काम करती हैं.

जैमिनी ज्योतिष में चर दशा | Char (Moving) Dasha in Jaimini Astrology

जैमिनी ज्योतिष भी जन्म कुंडली आंकने की एक प्राचीन विद्या है. इस पद्धति में बहुत सी दशाओं का वर्णन मिलता है. जैसे जैमिनी चर दशा, मंडूक दशा, जैमिनी स्थिर दशा, नवांश दशा आदि. इनके अलावा भी बहुत सी दशाएँ हैं लेकिन इन्ही का उपयोग ज्यादा किया जाता है.

जैमिनी ज्योतिष में सर्वाधिक लोकप्रिय जैमिनी चर दशा है. अन्य सभी दशाओं से यह दशा ज्यादा प्रचलन में है. जैमिनी ज्योतिष में हर दशा की गणना भिन्न होती है. लेकिन एक बात यह समान है दशा राशियों की ही होती है.

जैमिनी ज्योतिष में सभी दशाओं में राशियों की दशा होती है. इसमें सभी बारह राशियों की दशा क्रमानुसार आती है. जन्म के समय लग्न में जो राशि होती है उसी राशि की सबसे पहली महादशा होती है. दशा के वर्ष निर्धारित करने का तरीका भिन्न होता है उसे आने वाली प्रेजेन्टेशन में विस्तार से बताया जाएगा.

इस पद्धति में राशियाँ का स्थान प्रमुख होता है और ग्रहों की गणना केवल कारकों के रुप में की जाती है. इस जैमिनी पद्धति में राहु/केतु को कारको में कोई भी स्थान नही दिया गया है.

जैमिनी ज्योतिष में कारक | Karak Elements in Jaimini Astrology

आइए अब जैमिनी ज्योतिष में कारको पर एक नजर डालते हैं. जैमिनी ज्योतिष में राहु/केतु को छोड़कर सभी सातों ग्रहों को सात कारको में बांटा गया है. इस पद्धति में कारक स्थिर नही होते हैं, ग्रहों का उनके अंशो के आधार पर कारकों के रुप में वर्गीकृत किया जाता है. कोई सा भी ग्रह किसी भी भाव का कारक बन सकता है़.

सभी सातों ग्रहों को उनके अंशो के आधार पर कारको की श्रेणी में रखा जाता है. सबसे अधिक अंशों वाले ग्रह को आत्मकारक की उपाधि दी जाती है अर्थात जन्म कुंडली में राहु/केतु को छोड़कर अन्य जिस भी ग्रह के अंश सबसे अधिक होगें वह आत्मकारक ग्रह कहलाएगा.

अन्य ग्रह क्रम से अमात्यकारक, भ्रातृकारक, मातृकारक, पुत्रकारक, ज्ञातिकारक और सबसे कम अंश वाले को दाराकारक ग्रह की उपाधि दी जाती है. यदि किसी ग्रह के अंश समान हैं तब उसके कारक का निर्धारण मिनटो के आधार पर किया जाएगा और यदि किसी कुंडली में अंश व मिनट दोनो ही समान हैं तब उसका निर्धारण फिर सेकंड के आधार पर किया जाएगा.

जैमिनी ज्योतिष मे कारको का अर्थ | Meaning of Karak Elements in Jaimini Astrology

जैमिनी ज्योतिष में सभी सातों कारको का अर्थ भिन्न होता है. हर कारक जन्म कुंडली के विशेष भाव का प्रतिनिधित्व करता है. आत्मकारक से लग्न का विश्लेषण करते हैं. जिस तरह से लग्न से व्यक्ति के व्यक्तित्व का पता चलता है ठीक उसी तरह से आत्मकारक ग्रह व्यक्ति के बारे में बताता है कि कैसा होगा, स्वास्थ्य कैसा रहेगा, आत्मविश्वास कैसा होगा आदि बातों को आत्मकारक से देखा जाएगा.

जन्म कुंडली में जिस ग्रह को अमात्यकारक की उपाधि दी गई है उससे व्यवसाय का विश्लेषण किया जाएगा. भ्रातृकारक बने ग्रह से तीसरे भाव से संबंधित कारकों का आंकलन किया जाएगा. मातृकारक ग्रह से चौथे भाव के कारकत्वो का आंकलन किया जाता है.

पुत्रकारक ग्रह से पांचवें भाव के कारकत्व जैसे शिक्षा, संतान व प्रेम संबंधो को देखा जाएगा. ज्ञातिकारक बने ग्रह से छठे भाव से संबंधित बातों का विश्लेषण किया जाएगा जैसे रोग, ऋण, शत्रु, प्रतिस्पर्धाएँ आदि बाते देखी जाएगी और अंत में दाराकारक बने ग्रह से सप्तम भाव से संबंधित बातों को देखा जाता है.

जैमिनी ज्योतिष में सभी कारको को छोटे नाम से भी पुकारा जाता है. जैसे अमात्यकारक को AK, अमात्यकारक को AMK, भ्रातृकारक को BK मातृकारक को MK कहते हैं. पुत्रकारक को PK, ज्ञातिकारक को GK, दाराकारक को DK भी कहा जाता हैं.