ग्रह सदैव चलायमान रहते हैं और इस कारण सौरमण्डल में इनकी स्थिति निरंतर बदलती रहती है. ग्रहों कि यही चलायमान स्थिति गोचर कहलाती है. अष्टकवर्ग पद्धति गोचर अध्ययन की विभिन्न पद्धतियों में से एक है. इसके ज्ञान के लिए सर्वप्रथम ग्रहों की गति को समझना आना चाहिए. सभी ग्रह अलग-अलग समय तक एक राशि में रहते हैं. इसलिए इस बात का ज्ञान होना जरूरी है कि कौन सा ग्रह कितने समय के लिए एक राशि में विचरण करता है.

सभी ग्रहों का गोचर काल इस प्रकार से है सूर्य एक राशि में एक माह तक रहता है, चंद्रमा सवा दो दिन तक, मंगल 45 दिनों तक, बुध अठ्ठाइस दिनों तक, गुरू एक साल तक, शुक्र, तीस दिनों तक, शनि, ढा़ई साल और राहु-केतु डेढ़ साल तक के लिए एक राशि में गोचर करते हैं. गोचर को सामान्यत: चंद्रमा से ग्रहों की स्थिति देखकर बताया जाता है. यहां इस बात को शनि के गोचर से भी समझने कि आवश्यकता है क्योंकि सबसे लम्बे समय तक वहीं एक राशि में रहते हैं और क्या इतना लम्बा रहने पर उनका उक्त राशि पर प्रभाव कैसा रहेगा इस स्थिति में अष्टकवर्ग से सूक्ष्म विधि द्वारा हम इसके फलित तक काफी सटीक पहुंच सकते हैं.

जैसा कि पहले बताया जा चुका है कि सात ग्रह व आठवाँ लग्न होता है अत: इन सभी द्वारा शुभ-अशुभ बिन्दु प्राप्त होते हैं. यदि सातों ग्रह व लग्न सभी एक-एक शुभ बिन्दु किसी भाव को प्रदान करते हैं तो कुल मिलाकर अधिकतम आठ शुभ बिन्दु किसी भाव को प्राप्त हो सकते हैं.  यदि सात शुभ बिन्दु हैं तो शुभफल का सातवां भाग होगा. इसी प्रकार दिए गर अंकों के आधार पर शुभाशुभ का निर्धारण किया जा सकता है. एक अन्य विधि से जन्मकालीन चंद्रमा या लग्न से गोचर का ग्रह 3, 6, 10, 11 में हो या मित्र, स्वराशि, उच्चता में हो अथवा उसमें चार से अधिक बिन्दु हों तो शुभफल में अधिकता आती है.

इसके विपरीत यदि गोचर का ग्रह चंद्रमा से 3, 6, 10, 11 को छो़डकर अन्य स्थानों में हो तथा राशि में शुभ बिन्दुओं की अधिकता भी हो तो भी अशुभ फल ही मिलता है.  यदि ग्रह शत्रु क्षेत्र, नीच का अस्त हो व शुभ बिन्दु भी कम हों तो अशुभ फल की प्रबलता रहती है. भिन्नाष्टक वर्ग में प्रत्येक ग्रह के पास अधिकतम 8 अंक होते हैं और 0 निम्नतम बल होता है तथा 4 अंकों को मध्यम बली कहा जाता है. वहिं सर्वाष्टक वर्ग में ग्रहों के पास अधिकतम 56 अंकों का बल होता है और 28 अंक मध्य बल होता है.

इसी के साथ नक्षत्रों द्वारा गोचर की विवेचना देखनी होती है. जिन्हें नौताराओं के अन्तर्गत रखा गया है. यह नौ ताराएं हैं:- जन्म, सम्पत, विपत, क्षेम, प्रत्यरि, साधक, वध, मित्र, और अतिमित्र. इस प्रका सभी 27 नक्षत्र तीन भागों में विभाजित हो जाते हैं. ग्रहों का कक्ष्याओं में गोचर - अष्टकवर्ग पद्धति में ग्रहों  के गोचर का सूक्ष्म अध्ययन करने के लिए यह भी एक महत्वपूर्ण विधि है. इसी के साथ विभिन्न लग्नों के लिए तात्कालिक शुभ व अशुभ ग्रहों का ज्ञान होना भी आवश्यक होता है. परंतु इसी के साथ यह समझने की भी आवश्यकता होती है कि गोचर के परिणाम जन्म कुण्डली के योगों निर्मित प्रभावों को नकार नहीं सकते हैं.