ज्योतिष में कई प्रकार की विवेचना से आप यह जान सकते हैं कि सेहत में होने वाले बदलाव किस प्रकार आपको प्रभावित कर सकते हैं ओर आपके साथी को कौन सी स्वास्थ्य से संबंधित परेशानी आपके तनाव क अकारण बन सकती है इसी में जैमनी ज्योतिष का आंकलन करके यह जाना जा सकता है कि आप का स्वास्थ्य किस तरह से बुरे प्रभाव में आ सकता है.

जैमनी ज्योतिष विधि में बताया गया है कि जिस पुरूष की कुण्डली में शुक्र और केतु उपपद से दूसरे घर में स्थित हो अथवा उनके बीच दृष्टि सम्बन्ध बन रहा हो तो उनके जीवन साथी को गर्भाशय से स्म्बन्धित रोग होने की संभावना रहती है. बुध और केतु उपपद से दूसरे घर में होने पर अथवा उनके बीच दृष्टि सम्बन्ध होने पर जीवनसाथी को हड्डियों से सम्बन्धित रोग की आशंका बनती है.

सूर्य, शनि और राहु उपपद से दूसरे घर में होने पर अथवा इनके बीच दृष्टि सम्बन्ध बनने पर जीवनसाथी को स्वास्थ्य सम्बन्धी परेशानियों का सामना करना होता है. उपपद से दूसरे घर में शनि और मंगल के बीच दृष्टि सम्बन्ध होने पर तथा दूसरे घर में मिथुन, मेष, कन्या या वृश्चिक राशि होने पर जीवनसाथी को कफ से सम्बन्धित गंभीर रोग होने की संभावना होती है.

दूसरे घर में मंगल अथवा बुध की राशि हो और उस पर गुरू एवं शनि की दृष्टि हो तो जीवनसाथी को कान सम्बन्धी रोग होता है. इसी प्रकार दूसरे घर में मंगल अथवा बुध की राशि हो और उस पर गुरू एवं राहु की दृष्टि हो तो जीवनसाथी को दांतों में तकलीफ होती है. उपपद से दूसरे घर में कन्या या तुला राशि पर शनि और राहु की दृष्टि होने से जीवनसाथी को ड्रॉप्सी नामक रोग होने की आशंका रहती है. जैमिनी ज्योतिष में यह भी कहा गया है कि दूसरे घर में उपपद लग्न हो अथवा आत्मकारक तो वैवाहिक जीवन में मुश्किल हालातों का सामना करना होता है.

जिस स्त्री की नवमांस कुण्डली में बुध और लग्न से गुरू त्रिकोण में होता है वह अपने पति के प्रति समर्पित होती है तथा वैवाहिक जीवन की मर्यादाओं का पालन करती है. यह स्थिति तब भी बनती है जब शुक्र लग्न में होता है. वह स्त्री बुद्धिमान एवं नम्र होती है जिनकी नवमांश कुण्डली में चन्द्रमा वृष राशि में होता है तथा बुध एवं शुक्र चौथे घर में होता है.

नवमांश कुण्डली में केतु लग्न में बैठा हो अथवा त्रिकोण में तो स्त्री में नेक गुणों की कमी का संकेत मिलता है. नवमांश कुण्डली में शनि का लग्न अथवा त्रिकोण में होना भी शुभ लक्षण नहीं माना जाता है क्योंकि इससे स्त्री में सौन्दर्य एवं स्त्री जन्य गुणों की कमी पायी जाती है. नवमांश में केतु का लग्न या त्रिकोण में होना स्त्री में बदले की भावना को उजागर करता है. स्त्री की कुण्डली में लग्न स्थान पर मंगल की दृष्टि होने से स्त्री क्रोधी स्वभाव की होती है.

जैमिनी ज्योतिष में कष्ट के कारण

जैमिनी पद्धति के अनुसार कारकांश को इस प्रकार समझें - जैमिनी में आत्मकारक ग्रह नवांश कुंडली में जिस राशि में बैठा होगा उस राशि को यदि हम लग्न मान लें तो वह कारकांश लग्न कहलाती है. इसी प्रकार अन्य ग्रहों की स्थिति के अनुरुप कारकांश का निर्धारण होता है. कारकांश कुण्डली से भी रोग का पता लगाए जाने में सहायता प्राप्त होती है.

  • स्वास्थ्य के लिए जैमिनी ज्योतिष में रोग के कई कारण होते हैं. केतु अगर आत्मकारक पर दृष्टि दे रहा हो तो व्यक्ति को किसी चोर के कारण कष्ट हो सकता है.

  • केतु अगर पुत्रकारक ग्रह के साथ बैठा हुआ हो. बुध और शुनि से दृष्ट हो तो ये स्थिति नपुंसकता का कारण बनती है.

  • ज्ञाति कारक का संबंध अगर आत्मकारक से हो तो इस स्थिति में जातक कि रोग प्रतिरोधक क्षमता में कमी पाता है. जातक को मानसिक कष्ट अधिक रहता है.

  • आत्मकारक से तीसरे भाव में चंद्रमा हो या दृष्ट हो रहा हो तो यह कष्टदायक होता है, व्यक्ति को कफ जन्य रोग हो सकते हैं.

  • जैमिनी ज्योतिष में जब बहुत से ग्रह तीसरे भाव से संबंध बना रहे हों तो अचानक से बीमारी होने का डर जीवन में सदैव बना रहता है. रोग आसानी से पकड़ नहीं आता है.

  • लग्न से अथवा आत्म कारक से तीसरे भाव में सूर्य स्थित हो या दृष्ट हो, तो ऎसे में अग्नि या किसी हथियार के वार से कष्ट होता है.