राजयोग को उत्तम योग माना गया है. यह बहुत ही दुर्लभ योग होता है जो भाग्यशाली व्यक्तियों की कुण्डली में पाया जाता है या यूं कह सकते हैं कि जिनकी कुण्डली में यह योग बनता है वह भाग्यशाली होते हैं. इस योग के विषय में जैमिनी ज्योतिष की अपनी मान्यताएं हैं. इस ज्योतिष पद्धति से देखिये क्या आपकी कुण्डली में यह योग बन रहा है.
अगर कुण्डली में कोई ग्रह आपके जन्म लग्न को देख रहा हो, होरा लग्न में भी वही ग्रह उस स्थान को देख रहा हो और घटिका लग्न में भी समान स्थिति हो तो कुण्डली में शक्तिशाली राजयोग समझना चाहिए. इस योग के बनने से आर्थिक स्थिति अच्छी रहती है तथा हर तरफ से उन्नति होती है. लोगों से मान-सम्मान मिलता है तथा राजा के समान सुखमय जीवन प्राप्त होता है. इसी तरह अगर राशि कुण्डली, नवमांस कुण्डली, द्रेक्कन कुण्डली , लग्न कुण्डली, सप्तम कुण्डली में भी एक ही ग्रह एक निश्चित स्थान को देख रहा हो तब भी राजयोग बनता है. ध्यान देने वाली बात यह है कि, उत्तम फल की प्राप्ति के लिए कुण्डली में इन सभी कारकों का होना अनिवार्य होता है. इसमे से अगर कोई कारक मौजूद नही है होता है तो पूर्ण फल मिलना कठिन होता है.
अगर नवमांश कुण्डली में लग्न, होरा लग्न और घटिका लग्न पर किसी ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो अथवा सम्बन्ध बन रहा हो तो व्यक्ति की जन्म कुण्डली में राजयोग बनता है. परन्तु उपरोक्त सभी कारकों का होना अनिवार्य होता किसी भी कारक के नही होने से अच्छा प्रभाव नही मिलता है. इसी तरह मंगल, शुक्र और केतु एक दूसरे से तीसरे घर में स्थित हो और परस्पर एक दूसरे से दृष्टि सम्बन्ध बना रहे हों तो जन्म कुण्डली में वैथानिका योग बनता है. यह योग व्यक्ति के जीवन में उन्नति और प्रसिद्धि का कारक होता है.
अगर अमात्यकारक से दूसरा, चौथा और पांचवा घर समान रुप से बली हो और इनमें शुभ ग्रह स्थित हों तो व्यावसायिक दृष्टि से व्यक्ति के लिए बहुत ही शुभ फलदायी होता है. इसी तरह अगर कोई ग्रह अमात्यकारक ग्रह के समान बलवान होकर तीसरे या छठे घर में स्थित हो तथा उनका सम्बन्ध सूर्य, मंगल, शनि, राहु अथवा केतु से बन रहा हो तो यह इस बात का संकेत होता है कि आप अपने कार्य क्षेत्र में उन्नति की ओर अग्रसर होंगे.
शुक्र मंगल और केतु अमात्यकारक ग्रह से दूसरे और चौथे घर में स्थित होने पर सुखमय जीवन प्राप्त होता है. लग्न, सप्तम और नवम भाव बलवान होने से कुशल नेतृत्वकर्ता का गुण विकसीत होता है जातक राजनेता बन सकते हैं. अगर लग्न स्थान में दो ग्रह विराजामन हों तथा वे दोनों ही समान रूप से बलवान हों तो यह भी राजयोग माना जाता है जो वृद्धावस्था में सुख प्रदान करता है.
अगर लग्न स्थान और चौथे घर में समान संख्या में ग्रह स्थित हों तो इससे भी कुण्डली में राजयोग बनता है जिसस जीवन में सफलता और प्रसिद्धि मिलती है. गुरु और चन्द्रमा लग्न और ग्यारहवें घर में स्थित हो अथवा
लग्न और सातवें घर पर किसी शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ रही हो तो राजा के समान सुखमय जीवन प्राप्त होता. राजयोग के विषय में जैमिनी ज्योतिष में बताया गया है कि बुध और गुरु लग्न अथवा ग्यारहवें घर में स्थित हो तो व्यक्ति की कुण्डली में राजयोग बनता है. इस योग के प्रभाव से बचपन का दिन सबसे सुखमय होता है.
अमात्यकारक से दसवें घर में शुक्र व चन्द्र की युति हो और वे अमात्यकारक को देखें तो यह बहुत शुभफलदायी राजयोग होता है. इससे वैभवशाली जीवन प्राप्त होता है. कुण्डली में चन्द्रमा अगर किसी शुभ ग्रह से युति बनाता है तो राजकीय लोगों के साथ कार्य का अवसर मिलता है. शुभ ग्रह 1, 5, 9 अथवा 1,4,7,10 केन्द्र में स्थित हों जनहित में कार्य का अवसर मिलता है.
नवमांश कुण्डली में चन्द्रमा गुरु से चौथे अथवा ग्यारहवें घर में स्थित हो तो राजयोग बनता है. कुण्डली में इस तरह का योग बनने से व्यावसायिक जीवन में अधिकार और शोहरत की प्राप्ति होती है. शुभ ग्रह जन्म राशि और नवमांस कुण्डली के दसवें और ग्यारहवें घर में स्थित हों तो सामान्य तरह का राजयोग बनता है. लेकिन, यह राजयोग भी उन्नत जीवन प्रदान करता है.
अगर लग्न अथवा अमात्यकारक राशि में कोई शुभ ग्रह स्थित हो अथवा उस पर शुभ ग्रह की दृष्टि पड़ रही है तो राजसी जीवन का सुख मिलता है. आत्मकारक की नवमांश राशि लग्न, जन्म और जिस राशि में गुरू स्थित हो वह एक हो तो यह भी उत्तम राजयोग माना जाता है. शुभ ग्रह अरुधा लग्न तथा नवमांश राशि के नौवें घर में बराबर की संख्या में स्थित हो तो व्यक्ति राजनीति के क्षेत्र में अपना भविष्य बना सकता है. आत्मकारक अथवा अरुधा लग्न से कोई ग्रह तीसरे अथवा छठे घर में कोई ग्रह शुभ होकर स्थित हो तो जीवन सुख सुविधाओं से परिपूर्ण होता है.