सूर्य और शनि से बबने वाले योगों का असर कष्ट और परेशानी को अधिक देने वाला होता है. जब भी इन दो विरोधी ग्रहों का योग किसी भी तरह से हो रहा हो तब तब परिस्थितियां बेहद पेचीदा दिखाई देने लगती हैं. अब इसी में एक योग है सूर्य शनि समसप्तक योग. ज्योतिष में इस योग तब बनता है जब भी सूर्य शनि आमने सामने आते हैं. इसे हम इस तरह से समझ सकते हैं की जब सूर्य किसी राशि में हो तब उसके सामने वाली राशि में शनि विराजमान हो तो इस स्थिति को समसप्तक योग कहा जाता है.
क्या होता है समसप्तक योग ?
वैसे तो ग्रहों का विपरीत स्थिति में होना एक मजबूत योग माना जाता है. जब दो ग्रह विपरीत स्थिति में होते हैं तो समसप्तक योग बनता है. इसमें दोनों के मध्य का अंतर 180 डिग्री का कोण होता है.यह ज्योतिष अनुसार दूसरा सबसे शक्तिशाली दृष्टि प्रभाव होता है. यह योग जैसा दिखता है लेकिन अंतर यह है कि विरोध में होने की स्थिति अतिशयोक्ति का कारण बन जाती है क्योंकि यह युति योग की तरह एक साथ ग्रह की स्थिति नहीं होता है बल्कि उससे अलग काफी प्रबल होता है. इसलिए समसप्तक योग में शामिल ग्रहों के बीच एक गतिशील और उच्च ऊर्जा बनी रहती है, लेकिन अगर शुभता की कमी हो तब ऎसे में यह दो राशियों और ग्रहों के बीच तनाव, संघर्ष या टकराव का संकेत हो सकता है. अगर सही तरीके से समझा जाए तो इसे रचनात्मक और ऊर्जावान शक्ति स्रोत के रूप में इस्तेमाल कर सकता है.
सूर्य-शनि समसप्तक योग का महत्व
सूर्य और शनि जब बिल्कुल परस्पर आमने सामने होते हैं तब इस योग का निर्माण होता है. ज्योतिष शास्त्र में ये दोनों परस्पर विरोधी ग्रह हैं और जब समसप्तक योग बनाते हैं तो चिंताओं को बढ़ा देते हैं. यह योग धन, स्वास्थ्य और महत्वपूर्ण ऊर्जा की हानि के रूप में परिणाम दे सकता है. यहां कोई शुभ ग्रहों की उपस्थिति कुछ हद तक बुरे प्रभावों को कम कर सकती है लेकिन अगर ऎसा नहीं है तब तनाव अधिक रहता है. ज्योतिष में सूर्य और शनि का समसप्तक योग अर्थव्यवस्था और उद्योग पर नकारात्मक प्रभाव डालता है. यहां तक कि यात्रा और आतिथ्य उद्योग भी सूर्य-शनि समसप्तक योग से प्रभावित होते हैं.
समसप्तक योग का सकारात्मक प्रभाव सामाजिक कल्याण और धर्मार्थ संगठनों पर पड़ता है. इस योग का पिता पर बुरा प्रभाव पड़ता है, खासकर उनके स्वास्थ्य पर. लेकिन यह तब और भी बुरा हो जाता है जब यह योग नवम या दशम भाव में बनता है. यह रिश्तों के बीच दरार पैदा करता है. व्यक्ति में अभिव्यक्ति और भावनाओं की कमी होती है. ऐसे योग वाले व्यक्ति मेहनती होते हैं, लेकिन वास्तविक परिणाम तब मिलते हैं जब जातक 30 वर्ष की आयु पार कर जाता है. अच्छे प्रशासक और अनुशासित माने जाते हैं.
सूर्य और शनि का समसप्तक योग प्रभाव
सूर्य और शनि का यह योग विशेष असर दिखाता है. ऐसा माना जाता है कि जब भी सूर्य और शनि एक दूसरे के इतने विरोध में होते हैं, तो वे हमारे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में गहरा बदलाव और परिवर्तन लाते हैं. सूर्य-शनि के यह योग साल में एक बार बनता है और एक महत्वपूर्ण ज्योतिषीय घटना का समय होता है. यह योग तब होती है जब सूर्य और शनि राशि चक्र केांअमने सामने होते हैं यह एक दुर्लभ घटना है, जब सूर्य और शनि आमने सामने होते हैं. वैदिक ज्योतिष में सूर्य और शनि समसप्तक योग दिलचस्प लेकिन अक्सर खराब भयावह घटनाक्रम को देने वाला होता है.
सूर्य शनि का यह योग सीमाओं को निर्धारित करने, ज़िम्मेदारियों को प्राथमिकता देने, लक्ष्यों पर विचार करने, प्रतिबद्धताओं का मूल्यांकन करने और जीवन में लक्ष्यों को सुव्यवस्थित करने के लिए आवश्यक समय होता है. यह समय किसी व्यक्ति के लिए सीमाओं का सामना करने, चुनौतियों का सामना करने और व्यक्तिगत ज़िम्मेदारी लेने का अवसर होता है. इस प्रकार, यह घटना सम्मान और चुनौती दोनों हो सकती है, क्योंकि यह हमें मूल्यवान सबक और विकास के अवसर प्रदान करता है.
वैदिक ज्योतिष के अनुसार, सूर्य और शनि को कट्टर दुश्मन माना जाता है. सूर्य को पिता माना जाता है जबकि शनि को पुत्र माना जाता है. सूर्य अधिकार का प्रतीक है जबकि उसी समय, शनि वास्तविकता, अनुशासन और जीवन की सीमाओं को दर्शाता है और कर्म का प्रतिनिधित्व करता है. ऐसा माना जाता है कि जिन लोगों की जन्म कुंडली में यह योग होता है, वे अपनी उम्र से बहुत पहले परिपक्व हो जाते हैं.
ज्योतिष के अनुसार, सूर्य किसी व्यक्ति की पहचान और जीवन शक्ति का प्रतिनिधित्व करता है. अहंकार, रचनात्मकता और आत्म-अभिव्यक्ति का प्रतीक है. इस बीच, शनि अनुशासन, संरचना और जिम्मेदारी का प्रतिनिधित्व करता है और इसलिए इसे राशि चक्र का कार्यपालक कहा जाता है. जब इन दो ग्रहों की ऊर्जा आमने सामने से मिलती है, तो वे व्यक्तिगत विकास और परिवर्तन का एक अलग रंग दिखाती है.
कुंडली में सूर्य शनि समसप्तक योग
सूर्य शनि का यह समसप्तक योग गोचर एवं जन्म कुंडली में निर्मित होने पर अपने कई तरह के परिणाम देता है. इस योग में शनि जो करता है वह यह है कि यह पिता के पक्ष को दूर कर देता है. यह समय पिता द्वारा प्रदान किया जाने वाला वह समर्थन छीन लेता है और व्यक्ति को जीवन के शुरुआती दौर में खुद संघर्ष करने देता है. ऐसा जरूरी नहीं है कि पिता के साथ कड़वे संबंधों के कारण ऐसा हुआ हो, यह पिता के स्वास्थ्य की चिंता, असमय मृत्यु जैसा भी हो सकता है, या फिर संतान ने ऐसा नया काम चुन लिया हो जिसमें पिता को भूमिका या कोई विशेषज्ञता नहीं है और वह संतान की मदद नहीं कर सकता.
इस समसप्तक योग में सूर्य का अहंकार और दृढ़ संकल्प इतना बड़ा है कि यह जातक को परिस्थितियों के सामने आत्मसमर्पण करने की अनुमति नहीं देता है और उसे अपनी स्थिति को ऊपर उठाने और दुनिया में अपनी पहचान बनाने के लिए बार-बार कड़ी मेहनत करने के लिए मजबूर करता है. तो मूल रूप से यह व्यक्ति को कम उम्र में बहुत परिपक्व और मेहनती बनाता है और किसी के समर्थन के बिना अकेले समस्याओं से निपटने की प्रवृत्ति देता है और यही कारण है कि यह सफलता में देरी भी करता है. और 30 की उम्र के बाद शनि व्यक्ति से अपनी पकड़ ढीली कर देता है और व्यक्ति को जीवन के शुरुआती दौर में सीखे गए कौशल का उपयोग करने देता है.
सूर्य शनि समसप्तक योग में एक बात जो हमेशा सामने आती है वह है पिता के साथ संबंध को लेकर यह स्थिति पिता के साथ संबंधों में कड़वाहट देता है लेकिन बहुत स्पष्ट रूप से पिता के साथ संबंध तभी खराब होंगे जब सूर्य त्रिक भाव में हो या राह, केतु, मंगल द्वारा पीड़ित हो. पर इसके अलावा अगर पिता के साथ संबंध अच्छे भी हों तो एक बात तो यह है कि पिता के साथ रिश्ते में दूरी किसी अन्य रुप में देखने को मिल जाएगी. जरूरी नहीं कि यह कटु संबंधों के कारण हो, बल्कि पिता की व्यावसायिक मजबूरियों के कारण उसे परिवार से दूर रहना पड़ता है या हो सकता है कि व्यक्ति किसी दूसरे स्थान में काम करता हो और पिता किसी दूसरे स्थान में रहता हो.