नीच भंग को ज्योतिष में किसी ग्रह की कमजोर स्थिति का प्रबल होने का संकेत बनता है. यह ग्रहों की उनकी राशि भाव स्थिति के अनुसार अपना असर दिखाता है. जब पंचधा मैत्री, नैसर्गिक मैत्री, तत्कालित मैत्री का उपयोग करते हैं तो किसी राशि में ग्रह की निम्नलिखित संभावित स्थितियाँ होती हैं. ग्रह के नीच भंग का निवारण कैसे हो सकता है और कौन कर सकता है तो इसके लिए कुंडली में मौजूद ग्रह की स्थिति को देखना जरुरी होता है.
जब हम सूर्य के नीच भंग योग की बत करते हैं तो पहले सूर्य का नीचस्थ स्थिति का होना और उसके बाद इस स्थिति का समाप्त हो जाना यह दोनों बातें यहां काम करती हैं. जिस राशि पर सूर्य स्थित है उसका स्वामी शुक्र होता है. सूर्य में राशि में स्थित हो, वहां उच्च का हो जाता है. जिस राशि पर सूर्य उच्च होता है, उसका स्वामी मंगल होता है.
वैदिक ज्योतिष के अनुसार नीच भंग राजयोग एक प्रबल राजयोग है जो व्यक्ति को सक्षम और सक्षम बनाता है और अपने कर्मों के माध्यम से व्यक्ति जीवन में आने वाली सभी प्रकार की चुनौतियों को पीछे छोड़कर जीवन में सफलता की राह पर आगे बढ़ता है. जैसा कि नाम से पता चलता है, नीच भंग राजयोग के लिए पहली आवश्यक शर्त कुंडली में ग्रह का नीच होना है. यह बहुत ही प्रभावशाली राजयोग माना जाता है, जब कुंडली में छठा भाव आठवां भाव और भारहवें भाव के स्वामी एक ही भाव में स्थित हों तो यह राजयोग बनता है. ऐसा व्यक्ति राजनीति और प्रशासन में उच्च पदों पर आसीन होता है. नीचभंग राजयोग जिस ग्रह से बनता है उस ग्रह के क्षेत्र में व्यक्ति शासन करता है.
यदि यह स्थिति सूर्य द्वारा निर्मित हो तो ऐसे व्यक्ति की लोकप्रियता बहुत अधिक होती है. इस योग के कारण अत्यंत सामान्य परिवार में जन्मा बच्चा भी विश्व प्रसिद्ध व्यक्ति बन सकता है. किसी की कुंडली में राजयोग का बनना बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है क्योंकि किसी भी कुंडली में राजयोग जितने मजबूत होते हैं, व्यक्ति का जीवन स्तर उतना ही बेहतर होता है और उसे जीवन में प्रसिद्धि और भाग्य मिलता है. महान सफलता, प्रसिद्धि, लक्ष्मी सब कुछ प्रदान करती है. यदि हम नीच भंग राजयोग के फल की बात करें तो इस योग में जन्म लेने से आपको कई प्रकार के सुख मिलते हैं और कुछ परेशानियों का सामना करने के बाद आप जीवन में निश्चित रूप से प्रगति करते हैं. नीच भंग राज योग के कारण आपके जीवन में धीरे-धीरे सफलता मिलने लगती है और आप बहुत मजबूत स्थिति में खड़े हो जाते हैं. यदि जन्म कुंडली में नीच भंग राज योग बनाने वाले ग्रह की महादशा या अंतर्दशा सही समय पर आती है तो व्यक्ति को फल देने में देर नहीं लगती है.
सूर्य का राशि प्रभाव और नीच भंग स्थिति
सूर्य का नीच भंग राजयोग वायु तत्व राशियां मिथुन, तुला और कुंभ राशियों में संभव होता है. मिथुन राशि का स्वामी बुध, सूर्य के समतुल्य है, तुला राशि का स्वामी शुक्र, सूर्य का शत्रु है और कुंभ राशि का स्वामी शनि भी सूर्य का शत्रु है. तुला राशि में नीच का सूर्य लग्न में हो तो व्यक्ति सामाजिक गुणों से संपन्न होता है. इस स्थान पर सूर्य विशेष रूप से अपना कोई भी गुण देने में असमर्थ होता है. तुला एक परिवर्तनशील राशि है, इसलिए लोग घूमने-फिरने के शौकीन होते हैं लेकिन उनकी चिंताएं बढ़ती रहती हैं. छोटे-बड़े सभी को समान दृष्टि से देखा जाता है. लोकप्रिय भी बनाता है.
व्यक्ति अपनी बुद्धि, सोच और ज्ञान से लोगों को समान रूप से आकर्षित करता है. तुला का सूर्य अच्छी राह दिखाता है ताकि कोई उन्हें बदनाम न कर दे. महिलाओं से पूर्ण सहयोग नहीं मिल पाता है. तुला लग्न में बुध और शुक्र हैं, बृहस्पति सूर्य को देख रहा है और नवांश में सूर्य उच्च का होता है तब यहां सूर्य नकारात्मक परिणाम नहीं देता. व्यक्ति समाज में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रख पाने में सक्षम होता है. वह लोगों को दिशा दिखाता है. अपनी ताकत और कुशलता से वह हर तरह का काम बिना झुके और मिले ही कर लेने में सक्षम होता है. बुध और शुक्र पर नैसर्गिक शुभ ग्रह बृहस्पति की दृष्टि के कारण वे एक उदार नेता भी थे और जनता के कल्याण के लिए कार्य करते रहे. अन्याय करने की प्रवृत्ति कभी नहीं रहती है.
तुला राशि में नीच भंग सूर्य का प्रभाव
लग्न में सूर्य नीच राशि तुला में है लेकिन वहीं शनि स्थिति है तो ऎसे में नीच भ्म्ग कि स्थिति बनती है. जन्म सूर्य के उगते समय नीच के सूर्य पर बृहस्पति की दृष्टि के कारण होने पर इसे शुभता मिलती है. चारों केन्द्रों में चार ग्रह होने से भी नीच भंग में सहयोग मिलता है.शुभ बृहस्पति की दृष्टि सूर्य पर होने से व्यक्ति कुछ ही समय में अच्छे धन को पाने में सक्षम होता है. वहीं चंद्र लग्न से गुरु की दृष्टि फिर से सूर्य पर होने से यह अनुकूल बनती है. गुरु से संबंध निरंतर बना रहता है. इसका तात्पर्य यह है कि यदि सूर्य वायु तत्व तुला राशि में नीच राशि में हो तो भी कभी-कभी व्यक्ति को नीच का फल नहीं मिलता है. इस प्रकार के संबंध जैसे नीच भंग राजयोग, धनादि योग और कई प्रकार के राजयोग बनते हैं. अत: इसे नीच सूर्य कहकर नीच सूर्य मानना उचित नहीं है.
नीच का सूर्य एकादश भाव में भाग्येश होकर बैठता है. गुरु नीच उच्च होकर नीच को भंग करने में समर्थ होता है. कर्क राशि में बृहस्पति उच्च का होने के कारण इसका स्वामी लग्न से, चंद्र लग्न से केंद्र में तथा बृहस्पति की दृष्टि के अंतर्गत स्थित सूर्य का होना विशेष होगा. बृहस्पति शनि की दृष्टि के अंतर्गत स्थित होता है तथा सूर्य शनि लग्न से केंद्र में स्थित होता है. चन्द्र लग्न से केन्द्र में तथा चन्द्र लग्न से धन स्थान में होने पर भी नीच भंग को बल मिलता है. सूर्य जहां उच्च का है वहां का स्वामी मंगल नीच का होकर भी सूर्य की नीच भंग करता है. इसी प्रकार कई प्रकार से जब बृहस्पति सूर्य का प्रभाव पड़ता है तो व्यक्ति को कई राजयोग प्राप्त होते हैं. सिर्फ नीच ग्रह के नीच स्थिति में होने से व्यक्ति कमजोर नहीं हो जाता. नीचस्थ सूर्य पर शनि की दृष्टि है, लेकिन एक महिला की कुंडली में यदि सप्तमेश लग्न हो तो उसके पति का भाग्य बहुत प्रबल होता है. क्योंकि जहां सूर्य उच्च का होता है, वहां का स्वामी मंगल बृहस्पति से दृष्ट होने पर शुभ होता है. सूर्य नीच का होने के कारण राशि का स्वामी शुक्र सूर्य के साथ होने पर भी सूर्य का नीच भंग होता है.