जैमिनी ज्योतिष शास्त्र ज्योतिष शास्त्र के ग्रंथों में एक प्रमुख भूमिका निभाता है. जैमिनी ज्योतिष महर्षि जैमिनी की देन है. जैमिनि ज्योतिषशास्त्र ऐसा ज्ञान है जो भूत, भविष्य और वर्तमान तीनों कालों को देखने की क्षमता रखता है. व्यक्ति के जीवन में होने वाली प्रत्येक घटनाओं के विषय में ज्योतिषशास्त्र फलकथन करने की योग्यता रखता है. नौकरी हो अथवा व्यवसाय किस क्षेत्र में व्यक्ति को कैसी सफलता मिलेगी यह सब जैमिनी ज्योतिष से ज्ञात किया जा सकता है. जैमिनी ज्योतिष में रचित सूत्रों में ज्योतिषिय फल कथन सरल तथा स्पष्ट शब्दों में किया गया है. यह सभी सूत्र व्यवहारिकता की कसौटी पर खरे उतरे हैं. जो सरल नियम, सिद्धांत तथा पद्धतियाँ इस ग्रँथ में मिलती हैं वह अन्य किसी ग्रँथ में नहीं पाई जाती हैं.

जैमिनी ज्योतिष विचार | Analysis of Jaimini Astrology

जैमिनी ज्योतिष में राशियों के आधार पर फलित कथन व्यक्त करती है. नक्षत्रों का इसमें कोई महत्व नहीं होता है. जैमिनी में एक से अधिक कई दशाओं का उल्लेख मिलता है. जिनमें चर दशा, स्थिर दशा, मण्डूक दशा, नवांश दशा आदि का प्रयोग मुख्य रुप से किया जाता है. इनमें से भी चर दशा का प्रयोग सबसे अधिक किया जाता है. चर दशा, जैमिनी पद्धति की प्रमुख दशा है. इस दशा क्रम में जैमिनी कारक, स्थिर कारक, राशियों की दृष्टियाँ, राशियों का दशाक्रम, दशाक्रम की अवधि, जैमिनी योग, कारकाँश लग्न, पद अथवा आरूढ़ लग्न, उप-पद लग्न आदि के विषयों के बारे में विस्तार से बताया गया है.

जैमिनी दशा फल | Jaimini Dasha phal

जैमिनी ज्योतिष में राहु और केतु को छोड़कर अन्य सभी सातों ग्रहों को उनके अंश, कला तथा विकला के आधार पर अवरोही क्रम में दर्शाया जाता है. इस प्रकार सात कारक हमें प्राप्त होते हैं. जैमिनी ज्योतिष में सभी ग्रहों के अंश, कला तथा विकला आदि की गणना भली-भाँति करनी होती है. सातों ग्रहों को उनके अंशों के आधार अवरोही क्रम में लिखकर यह देखने का प्रयास किया जाता है कि यदि किसी ग्रह के अंश तथा कला बराबर है, तब ग्रह का मान विकला तक देखकर निर्णय करना होता है कि कौन-सा ग्रह किस क्रम में आना चाहिए.

सबसे अधिक अंशों वाले ग्रह को तालिका में सबसे ऊपर लिख देना चाहिए. उसके बाद उससे कम अंश वाले ग्रह को लिखना चाहिए और इसी प्रकार अन्य सभी ग्रहों को भी क्रम से लिखें. सबसे अधिक अंशों वाले ग्रह को आत्मकारक कहा जाता है. उसके बाद वाले ग्रह को अमात्यकारक कहते हैं. अमात्यकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह भ्रातृकारक कहलाता है. भ्रातृकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह मातृकारक कहलाता है. मातृकारक के बाद वाले ग्रह को पुत्रकारक कहते हैं. पुत्रकारक के बाद जिस ग्रह के कम अंश होते हैं वह ज्ञातिकारक कहलाता है. सबसे कम अंश वाला ग्रह दाराकारक कहलाता है. इन सभी कारकों के अनुसार जातक पर पड़ने वाले प्रभावों को विस्तार पूर्वक बताया जा सकता है

जैसे कि व्यापार या व्यवसाय के बारे में जानना है तो हम जैमिनी ज्योतिष की अमात्यकारक स्थिति को देखने का प्रयास करेंगे. यदि कुण्डली में अमात्यकारक लग्न से केन्द्र, त्रिकोण या एकादश भाव में स्थित है तो व्यवसाय में उत्तम स्थिति का संकेत प्राप्त होता है. अमात्यकारक पर जिस ग्रह की दृष्टि होगी उस ग्रह के स्वभाव और गुण के अनुसार फल प्राप्त होता है. अमात्यकारक पर अगर शुभ ग्रहों की दृष्टि है तो व्यापार के लिए शुभ संकेत समझना चाहिए और अगर अशुभ ग्रहों की दृष्टि है तो व्यापार में असफलता और रूकावट का संकेत समझा जाता है.

इसी प्रकार अमात्यकारक के साथ ग्रहों की शुभ युति में व्यापार सफल होता है और कामयाबी मिलती है जबकि अशुभ ग्रहों की युति होने पर व्यापार में सफलता नहीं मिल पाती है.