मीन लग्न में सभी ग्रहों का प्रभाव
मीन लग्न को एक शुभ, कोमल उदार लग्न के रुप में जाना जाता है. मीन लग्न का स्वामी बृहस्पति होता है जो ज्ञान का सूचक है. इस लग्न में जन्मे व्यक्ति का व्यवहार एवं गुणों पर मीन राशि के गुण और बृहस्पति के प्रभाव को स्पष्ट रुप से देखा जा सकता है. इस लग्न में सभी ग्रहों का प्रभाव विशेष रुप में दिखाई दे सकता है. लग्न के अनुरुप भाव की स्थिति और राशि स्थिति के अनुरुप सभी ग्रह अपना असर दिखाने वाले होते हैं. मीन लग्न का प्रभाव व्यक्ति को चिंतनशील बना सकता है, अपने आस पास की चीजों पर नियंत्रण का प्रभाव दे सकता है. सभी कुछ को पाने की चाह ओर लगाता प्रयास करने का गुण भी देता है. ईश्वर के प्रति भक्ति रखते हैं और सामाजिक रीति-रिवाजों का कट्टरता से पालन करने में भी आगे रह सकता है. व्यावहारिक होकर भी संवेदनशील कुछ अधिक हो सकता है. दूरदर्शी होने के साथ साथ गुणवान होते हैं. आशावादी होते हैं लेकिन इनमें निराशावादी स्वभाव भी होता है. चीजों को लेकर अस्थिरता होने का भाव भी होता है.
मीन लग्न में जिसे मीन राशि के रुप में जाना जाता है इसमें नक्षत्रों की स्थिति भी इस के असर पर गहरा प्रभाव डालने वाली होती है. लग्न किस नक्षत्र में उस नक्षत्र के गुण धर्म भी व्यक्ति को प्राप्त हो सकते हैं. इसमें हर नक्षत्र अपना अलग गुण देगा, इसके विपरित इस लग्न के में प्रत्येक ग्रह का असर निम्न रुप से दिखाई दे सकता है : –
मीन लग्न में सूर्य ग्रह का प्रभाव
मीन लग्न के लिए सूर्य की स्थिति मिलेजुले फलों को प्रदान करने वाली होती है. मीन लग्न के लिए सूर्य छठे भाव का स्वामी होता है. छठे भाव को रोग, ऋण, शत्रु, अपमान, चिंता, प्रतिस्पर्धा, स्वास्थ्य परेशानी जैसी चीजों से जोड़ कर देखा जाता है. इस कारण सुर्य इस लग्न के लिए इन सभी चीजों को प्रदान करने वाला ग्रह भी बन जाता है. इसके अलावा शंका, पीड़ा, झूठ जैसी चीजें जीवन को प्रभावित करती हैं. लेकिन सूर्य का प्रभाव व्यक्ति को अधिकार भी देता है, व्यापारी रवैया प्राप्त होता है, वकालत का गुण भी वह पाता है. किसी भी अच्छे बुरे व्यसन से निपटने में इसकी कुशलता सूर्य के द्वारा मिल सकती है. सूर्य के इस स्थान के स्वामित्व के प्रभाव से व्यक्ति में चीजों से लड़ने का साहस भी मिलता है. सूर्य दशा काल में सूर्य के प्रबल एवं खराब प्रभाव के कारण उपरोक्त विषयों का असर पड़ता है लेकिन यदि सूर्य मजबूत होता है तो सफलता प्राप्त होती है,.
मीन लग्न में चंद्र ग्रह का प्रभाव
मीन लग्न में चंद्रमा का प्रभाव काफी शुभस्थ माना गया है. मीन लग्न के लिए चंद्रमा पंचम भाव का स्वामी होता है. पंचम भाव को त्रिकोण स्थान माना गया है इस भाव के प्रभाव के स्वामी होने पर चंद्रमा की शुभता प्राप्त होती है. यह भाव व्यक्ति के जीवन के विभिन्न पक्षों पर असर डालने वाला होता है. इस भाव का स्वामी होकर चंद्रमा भूमि, भवन, वाहन, मित्र, साझेदारी जैसे मसलों के लिए जिम्मेदार होता है. शांति, जल, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, परोपकार, छल, छल, अंतरात्मा की स्थिति के लिए भी चंद्रमा उत्तरदायी बनता है. चंद्रमा जलीय पदार्थ, संचित धन, झूठे आरोप, प्रेम संबंध, प्रेम विवाह आदि विषयों का प्रतिनिधित्व करता है. यहां वह ऎसी चीजों से जोड़ता है जिसके द्वारा व्यक्ति भावनात्मक रुप से अधिक आगे रहता है. व्यक्ति की जन्म कुंडली या उसकी दशा अवधि में चंद्रमा के मजबूत प्रभाव के कारण व्यक्ति को उपरोक्त में शुभ फल मिलते हैं.
मीन लग्न में मंगल का प्रभाव
मीन लग्न के लिए मंगल की स्थिति द्वितीय भाव और नवम भाव के स्वामी रुप में होती है. व्यक्ति के लिए मंगल उसके धन के साथ साथ उसके भाग्य पर भी असर डालने वाला होता है. इसके अलावा दूसरे भाव का स्वामी होकर व्यक्ति के परिवार, आर्थिक मसलों, संब्म्धों, नेत्र, नाक, कंठ, कान, उसकी बोलचाल के रुख को प्रभावित करने वाला होता है. कुटुम्ब पर मंगल गहरा असर डालता है. वहीं नवम भाव का स्वामी होकर धर्म, गुण, भाग्य, गुरु, ब्राह्मण, देवता, तीर्थ, भक्ति, मनोवृत्ति, भाग्य पर मंगल अपना असर डालता है. यह पितृ सुख, तीर्थ, दान को दर्शाने वाला ग्रह बन जाता है. व्यक्ति अपने जीवन के इन पक्षों में काफी मजबूती के साथ विचार रखने वाला होता है. कुण्डली में मंगल की दशा काल में मंगल के प्रबल एवं शुभ प्रभाव मिलते हैं लेकिन साथ ही इसके कुछ खराब फल भी देखने को मिल सकते हैं यदि मंगल निर्बल होता है तो खराब फल और संघर्ष अधिक मिलता है.
मीन लग्न में शुक्र का प्रभाव
मीन लग्न के लिए शुक्र काफी महत्वपूर्ण हो जाता है. इस ग्रह का असर अनुकूल नहीं माना गया है इस लग्न के लिए. मीन लग्न के लिए शुक्र तीसरे और आठवें भाव का स्वामी होता है. इन दो भाव स्थान का स्वामी होकर खराब परिणाम देने के लिए अधिक जाना जाता है. तीसरे का स्वामी होने के कारण यह व्यक्ति अपने साहस के लिए इस पर निर्भर होता है, भाई-बहनों, पदार्थों के सेवन, क्रोध, भ्रम, लेखन, कम्प्यूटर, लेखा-जोखा,पुरुषार्थ, शौर्य का प्रतीक बनकर शुक्र अपना असर दिखाता है. शुक्र एक शुभ ग्रह है इस कारण इन खराब भावों का स्वामी होकर अपने शुभ फलों को अनुकूल रुप से नहीं दे पाता है. इसके अलावा आठवें भाव का स्वामी होकर रोग का कारण, जीवन आयु, मृत्यु का कारण, मानसिक चिंता, समुद्री यात्रा, नास्तिक विचार धारा, ससुराल, दुर्भाग्य, दरिद्रता, आलस्य, छिपी हुई जगह, जेल यात्रा, अस्पताल, गंभीर ऑपरेशन, झाड़-फूंक, जादू-टोना, जीवन में होने वाले उतार-चढ़ावों को दर्शाता है. कुण्डली में शुक्र की दशा में व्यक्ति को अकस्मात होने वाले फल अधिक मिल सकते हैं.
मीन लग्न में बुध का प्रभाव
मीन लग्न के लिए बुध का स्था अनुकूलता वाला होता है. बुध चतुर्थ भाव का स्वामी होकर शुभ फल देने में सहायक बन जाता है. व्यक्ति को माता, भूमि, भवन, वाहन इत्यादि के सुख की प्राप्ति बुध के द्वारा ही संभव हो पाती है. इसके अलावा बुध सातवें भाव का स्वामी बनकर विवाह,, साझेदारी, जनता, स्थायी संपत्ति, दया, परोपकार जैसी चीजों के लिए भी विशेष बन जाता है. पबुध की स्थिति कुंडली में व्यक्ति को उन सुखों का उपभोग दिलाने वाली होती है जिसके लिए व्यक्ति संघर्ष अधिक करता है. व्यक्ति की कुंडली बुध की दशा अवधि में बुध के शुभ प्रभाव के कारण व्यक्ति को शुभ फल प्राप्त होते हैं. लेकिन यदि निर्बल हुआ बुध तब कमजोर फल दिखाई देते हैं.
मीन लग्न में गुरु का प्रभाव
मीन लग्न के लिए बृहस्पति शुभ ग्रह होता है. मीन लग्न के लिए बृहस्पति लग्न भाव और दशम भाव का स्वामी होता है. इन दोनों भावों के स्वामित्व को पाकर बृहस्पति व्यक्ति के जीवन की प्रमुख रुपरेखा को दर्शाने वाला ग्रह बन जाता है. इस भाव के प्रभाव द्वारा व्यक्ति को अपने जीवन के अनेक अच्छे और खराब फल देखने को मिल सकते हैं. व्यक्ति के राज्य, प्रतिष्ठा, कर्म, पिता, संप्रभुता, व्यवसाय, अधिकार, हवन, कर्मकांड, ऐश्वर्य भोग, प्रसिद्धि, नेतृत्व, विदेश यात्रा, पैतृक संपत्ति आदि का प्रतिनिधित्व बृहस्पति ही करता है. बृहस्पति यदि शुभ होगा तो व्यक्तित्व में निखार के साथ साथ मजबूती प्राप्त होती है. कुण्डली में बृहस्पति के प्रभाव या उनकी दशा काल में शुभ फल प्राप्त होते हैं जबकि निर्बल होकर गुरु के अशुभ प्रभाव में होने पर अशुभ फल मिलते हैं.
मीन लग्न में शनि का प्रभाव
मीन लग्न के लिए शनि ग्यारहवें भाव और बारहवें भाव का स्वामी होता है. शनि की स्थिति इस लग्न के लिए धन और धन के खर्च की होती है. एकादश भाव का स्वामी होने के कारण शनि का प्रभाव इच्छाओं, लाभ, स्वार्थ, जैसे विषयों पर रहता है इसके अलावा सामाजिक रुप से व्यक्ति के प्रभाव को भी यह दर्शाने वाली होती है. इसके अलावा जीवन में होने वाले व्ययों के लिए भी शनि महत्वपूर्ण होगा. नींद, यात्रा, हानि, दान, व्यय, दंड, मोक्ष, विदेश यात्रा, भोग, ऐश्वर्य, वासना, व्यभिचार, व्यर्थ की चीजों का प्रतिनिधित्व शनि को प्राप्त होगा. विदेश यात्रा आदि के लिए भी शनि की स्थिति महत्वपूर्ण होगी. व्यक्ति की कुण्डली में शनि दशा काल में शनि के प्रबल प्रभाव पड़ेंगे जो जीवन को कई तरह से प्रभावि करने वाले होंगे.
मीन लग्न में राहु ओर केतु का प्रभाव
राहु केतु को किसी भी राशि का स्वामित्व प्राप्त नहीं है अत: ऎसे में यह ग्रह जिस भी भाव में जिस राशि में बैठते हैं वैसा फल ही देते हैं. मीन लग्न में राहु जिस भाव में जिस भी ग्रह के साथ होगा उसके परिणाम बदलाव लिए होंगे. इसी प्रकार उसके सामने बैठा केतु भी भाव राशि ग्रह स्थिति के अनुसार अपना असर दिखाने वाला होगा. यदि कुंडली में उचित स्थान पर यह दोनों होंगे तो सकारात्मक प्रभाव देंगे लेकिन इसके विपरित होने पर इन दोनों के द्वारा कई तरह के नकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं. कुछ विचारकों के अनुसार राहु को मीन लग्न में सप्तम भाव पर अधिक असर डालने का उत्तरदायित्व प्राप्त होता है जिसके कारण यह इस भाव के कारक तत्वों पर असर डालता है उसी प्रकार केतु लग्न का दायित्व पाता है. इस तरह से इन दोनों की भूमिका इन भावों को लेकर भी विशेष बन जाती है.