शुक्र का प्रभाव व्यक्ति के जीवन में विवाह पर विशेष भूमिका को दर्शाता है. शुक्र ग्रह को विवाह के कारक रुप में देखा जाता है. वैवाहिक जीवन में मिलने वाले सुखों की प्राप्ति के लिए यह विशेष रहता है. जन्म कुंडली में शुक्र की शुभता दांपत्य जीवन के सुख एवं रिश्तों के संपर्क में मजबूती दिखाने वाली होती है. विवाह मिलान में जब कुडली मिलान होता है तो शुक्र कुंडली के द्वारा भी मिलान किया जाता है. इसमें शुक्र की स्थिति एवं उसके प्रभाव को देख कर दो लोगों के आपसी संबंधों एवं सुख को समझा जा सकता है. शुक्र कुंडली अनुसार इसे बेहतर रुप से जाना जा सकता है.
शुक्र कुंडली विश्लेष्ण
कुडली के हर भाव में शुक्र भी बेहद खास स्थिति में होता है. कुंडली में शुक्र की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है और व्यक्तियों के कुंडली मिलान के लिए यह निश्चित रूप से उपयोगी होता है. इसके लिए हमें कुंडली में शुक्र की भूमिका, महत्व, कुंडली और ज्योतिष में विभिन्न भावों में शुक्र का क्या अर्थ है और विभिन्न भावों में शुक्र का हमारे जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है, यह जानने की आवश्यकता है.
मिलान में कुंडली में शुक्र का महत्व
कुंडली में शुक्र विपरीत लिंग के प्रभाव के बारे में बहुत कुछ बताता है. यह जीवन साथी, पत्नी, बड़ी बहन और बुजुर्ग महिलाओं, यौन सुख, यौवन और वीरता का प्रतिनिधित्व करता है. यह प्रसिद्धि की भी बात करता है. इसके अलावा व्यक्ति में जुनून का गुण भी शुक्र के माध्यम से देखा जाता है. यह यौन सुख को दिखाता है अर्थात प्रेम करने की क्षमता या हद को भी शुक्र के माध्यम से देखा जाता है. कुंडली में शुक्र की स्थिति बताती है कि संबंध कैसा रहेगा. भोग की सीमा या व्यक्ति अपने जीवन का कितना आनंद उठाएगा यह भी इस ग्रह के माध्यम से देखा जाता है. आमतौर पर, विवाह सुख में व्यक्ति कितना भाग्यशाली होगा इसकी गणना अक्सर कुंडली में शुक्र की स्थिति से की जाती है.
कुंडली में शुक्र की स्थिति को विशेष रुप से पढ़ा जा सकता है, और उन सभी कारकों का मूल्यांकन किया जा सकता है जिनके बारे में शुक्र विशेष होता है. कुंडली में शुक्र की स्थिति के माध्यम से. यदि शुक्र बिना किसी नकारात्मक या अशुभ प्रभाव के अच्छी स्थिति में है, तो उपरोक्त सभी कारक जिनके बारे में शुक्र है, वे सर्वोत्तम या इष्टतम परिणाम देता है. जबकि, यदि कुंडली में शुक्र अनुकूल नहीं है या उस पर अशुभ प्रभाव पड़ा है और वे प्रभाव काफी अधिक हैं, तो जो सकारात्मकता उपरोक्त प्रकार की चीजों में कमी प्राप्त होती है, यह विवाह के लिए मुश्किल उत्पन्न कर सकता है. उदाहरण के लिए, यदि हम पत्नी और पत्नी के साथ संबंधों के बारे में बात करते हैं और सकारात्मकता जो एक व्यक्ति अपने जीवनसाथी से आकर्षित करेगा, तो कुंडली में शुक्र की स्थिति का अत्यधिक महत्व है. शुक्र एक छोटा और सुंदर ग्रह होने के कारण सुंदरता और आनंद का ग्रह है.
शुक्र का 6-8-12 भाव में होना विवाह के सुख में बाधा
शुक्र की स्थिति कुंडली के कुछ विशेष भावों में होना अनुकूल नहीं माना गया है. शुक्र पारंपरिक रूप से रोमांस का अग्रदूत है और सभी चीजों में प्रेम आकर्षण को भर देने के लिए जिम्मेदार होता है. शुक्र की स्थिति के अशुभ और लाभकारी दोनों परिणाम देने वाली हो सकती है लेकिन जब विवाह मिलान में शुक्र की स्थिति को देखा जाता है तो इसकी छठे भाव, आठवें भाव और बारहवें भाव की स्थिति विशेष होती है यह ऎसा स्थान है जहां शुक्र के परिणाम अलग फल देने वाले होते हैं. अलग-अलग घरों में शुक्र हमारे रिश्ते में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है: चाहे वह वैवाहिक जीवन हो या जीवन के किसी भी मोर्चे पर अन्य मानवीय रिश्ते की बात हो लेकिन वैवाहिक जीवन के लिए इसका इन भावों में होना शुभता को कमजोर कर देने वाला भी होता है.
शुक्र के छठे भाव में होना शुक्र की कोमलता के लिए अनुकूल नहीम होता है. यहां शुक्र की क्षमता विकार के रुप में अधिक प्रभावित कर सकती है. व्यक्ति अपने जीवन साथी के साथ विवादों में फंस सकता है. प्रेम संबंधों की कमी एवं उनसे दूरी का दर्द भी झेल सकता है. यहां स्थित शुक्र का प्रभाव व्यक्ति को जीवन साथी के रोग के प्रभाव से पिड़ा दे सकता है.
आठवें भाव में शुक्र की स्थिति व्यक्ति को अपने रिश्तों में संतोषजनक परिणाम नहीं दे पाती है. व्यक्ति को यह स्थिति आलसी और गैर जिम्मेदार बना सकती है. प्रेम जीवन भी सुख से वंचित रहेगा. व्यक्ति डार्क एनर्जी और डार्क मिस्ट्री की ओर सबसे ज्यादा आकर्षित होते हैं. जिसमें रहस्य, कामुकता भरी हो वहां उसका ध्यान अधिक होगा. आठवें भाव में शुक्र वाले लोग बहुत ही आकर्षक होने का एक भारी प्रभाव देते हैं. आठवें भाव में शुक्र का होना यौन संबंधों में सुख की कमी दे सकता है. व्यक्ति अनैतिक कार्यों में फंस सकता है. रिश्तों में असंतोष बना रह सकता है. एक से अधिक रिश्ते जीवन पर अपना असर डालते हैं. वैवाहिक जीवन के लिए यह स्थिति अधिक अनुकूल नहीं रह पाती है.
शुक्र के बारहवें भाव की स्थिति भी वैवाहिक जीवन के सुखों को कमजोर कर देने वाली होती है. यहां स्थित श्युक्र का प्रभाव व्यक्ति को आपसी संबंधों का अलगाव एवं अन्य रिश्तों की ओर आकर्षण देने वाला होता है. यहां शुक्र नीचस्थ हो तब अतिरिक्त संबंधों को देने वाला हो सकता है.
शुक्र कुंडली में शुक्र के कमजोर होने की स्थिति
शुक्र यदि कुंडली में नीचस्थ हो, वक्री हो या अस्त हो अथवा राहु केतु शनि के द्वारा प्रभावित हो रहा होगा तब भी वैवाहिक जीवन के आनंद को कमजोर कर देने वाला हो सकता है. वैवाहिक जीवन में मिलने वाली चीजों का अभाव उसके जीवन पर असर डालता है. यह स्थिति चीजों के प्रति अरुचि एवं अनिच्छा को दिखाने वाली भी होती है. यह असंतुष्ट संबंधों को दिखाने वाला होता है. वैवाहिक जीवन में शुक्र की कुंडली पर विचार करते हुए इन बातों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है. यदि कुंडली में शुक्र कमजोर होगा तो उसके उपाय द्वारा ही सकारात्मक फलों को प्राप्त कर पाना संभव हो सकता है.