कर्क लग्न के लिए मारक ग्रह – मारकेश कौन होता है

कर्क लग्न के लिए मारक ग्रह और कब होता है मारक का असर 

कर्क लग्न के लिए यदि मारक ग्रह की बात की जाए तो कर्क लग्न के दूसरे भाव और सातवें भाव स्थान को मारक स्थान कहा जाएगा. अब कुंडली के दूसरे और सातवें भाव के स्वामी इसके लिए मारकेश की भूमिका निभाने वाले होंगे. मारक का प्रभाव व्यक्ति को जीवन में कष्ट चिंता की स्थिति से अधिक प्रभावित करता है. 

कर्क लग्न के लिए कौन होता है मारकेश ?

कर्क लग्न के लिए द्वितीय भाव में सिंह राशि आती है और सिंह राशि का स्वामी सूर्य होता है. इस कारण से कर्क लग्न के लिए सूर्य दूसरे भाव का स्वामी होकर मारकेश होता है.

कर्क लग्न के लिए सप्तम भाव में मकर राशि आती है और मकर राशि का स्वामी शनि होता है. इस कारण से कर्क लग्न के लिए शनि मारकेश होता है. सूर्य एवं शनि कर्क राशि के लिए मारक स्वामी या मारक ग्रह बन जाते हैं.

मारक भाव में बैठ ग्रह की भूमिका

मारकेष के अलावा भी कुछ अन्य ग्रह भी यहां अपना असर मारक की भांति दे सकते हैं.  यदि कर्क लग्न में दूसरे भाव की सिंह राशि में कोई ग्रह बैठा हुआ हो तो वह मारक जैसे फलों को देने में सक्षम होता है. इसी प्रकार सप्तम भाव में स्थिति मकर राशि में अगर कोई ग्रह बैठा हो तो वे ग्रह भी मारक ग्रह माने जाएंगे. मारक भाव में बैठे सभी ग्रह व इनकी दशाएं भी मारक भावों को सक्रिय करने वाली होती हैं.

मारक ग्रह की प्रकृति 

मारक ग्रह के फल को समझने के लिए ये भी जरूरी होता है की वह कैसी प्रकृत्ति के हैं. मारक ग्रह का शुभ होना सकारात्मक रुप से कुछ सहायक होगा. वहीं अगर ग्रह का अशुभ नकारात्मक फल को देने वाला होगा. अब इस स्थिति में कर्क राशि के लिए चीजें थोड़ी कठोर हो सकती हैं यहां कर्क राशि के लोगों के लिए सूर्य एक क्रुर ग्रह होता है और शनि पाप ग्रह हैं. अब इन दोनों ग्रहों की प्रकृत्ति काफी कठोर होती है. ऎसे में स्थिति की शुभता कुछ कमजोर हो सकती है. अब यहां सूर्य ओर चंद्र का मेल तो मित्रता का है लेकिन शनि और चंद्रमा का संबंध शत्रुता पुर्ण अधिक होता है इसलिए कर्क लग्न के लिए ये मारक ग्रह कुछ बड़ी परेशानी खड़ी करने में भी आगे दिखाई देते हैं. 

अन्य भावों के स्वामी की प्रकृत्ति एवं प्रभाव 

अब, यहाँ एक और समस्या यह है कि शनि न केवल प्राकृतिक पापी और मारक ग्रह है बल्कि शनि उनके लिए सबसे हानिकारक दु:स्थान का स्वामी भी होता है. शनि कर्क लग्न के लिए सप्तम और अष्टम भाव का स्वामी बनता है तो, शनि वास्तव में अपनी दशा अंतरदशा के समय जीवन अनेक स्थानों में कुछ परेशानी पैदा कर रहा है. यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि अष्टम भाव में स्थिति कुंभ राशि का सह-स्वामी एक अन्य अशुभ ग्रह राहु है. इसलिए, हमारे पास यहां से केवल अशुभ ग्रह ही अधिक हैं.

मारक भावों में ग्रहों का गुण 

इसी प्रकार, हमें उन ग्रहों की प्रकृति को देखने की जरूरत भी होती है जो मारक घरों में बैठे होते हैं. जैसे, यदि वे शुभ कारक हैं तो शुभता देने में सहायक बन सकते हैं पर अगर वह अशुभ हैं तो ये ग्रह जितना अधिक पाप स्वभाव रखते हैं, उतनी ही अधिक संभावना है कि उनकी दशाएं व्यक्ति के लिए कठिन हो सकती हैं. व्यक्ति को अपनी इन दशाओं के दौरान भी अधिक सतर्क रहने की आवश्यकता होती है.

मारकेश की शक्ति 

अब एक अन्य पक्ष यह भी देखना होता है कि सूर्य-शनि कर्क राशि में कहां पर बैठे हुए हैं. इनकी शक्ति एवं स्थिति का असर भी व्यक्ति को प्रभावित करने वाला होगा. 

सूर्य ग्रह की बात की जाए तो अगर सूर्य यदि स्वयं की राशि में बैठा हो, मित्र राशि में हो, तटस्थ स्थिति में हो, मूल त्रिकोण में हो या उच्च राशि में हो तो ऎसे स्थिति में सूर्य अनुकूल होगा. कुछ सकारात्मकता के साथ मारक दशा से गुजर सकते हैं. यहां तक ​​कि सूर्य की दशा के दौरान विशेष रूप से कैरियर, अधिकार और धन के मामलों में अच्छी प्रतिष्ठा के कारण लाभ प्राप्त हो सकता है. .दूसरी ओर अगर सूर्य शत्रु राशि में हो, कमजोर अवस्था में हो, नीचस्थ हो या पाप कर्तरी योग में स्थित हो तो यह स्थिति ग्रह को कमजोर करने वाली होती है, तो इस दशा समय के दौरान 

दशा से निपटना मुश्किल हो सकता है. इस समय चीजों को अधिक जागरूकता और सावधानी की आवश्यकता होती है.

उदाहरण के लिए, यदि सूर्य  सातवें भाव में मकर राशि में है तो सूर्य दोनों मारक घरों को सक्रिय करने वाला होगा. सूर्य शत्रु राशि में होने के कारण इस दशा के दौरान चुनौतियां ला सकता है. इसका मतलब है कि उन्हें स्वास्थ्य के मामलों के बारे में अतिरिक्त सावधानी बरतने की जरूरत है. इस दशा के माध्यम से सुरक्षित रूप से पार करने के लिए मारक दशा शुरू होने से पहले ही ध्यान रखना चाहिए.

अब इसी तरह के शनि के साथ भी फिर से यह आवश्यक है कि वह स्वयं की राशि में हो, मित्र राशि में हो, मूल त्रिकोण राशि में हो या उच्च राशि में हो तो यह कुछ स्थिति सहायक हो सकती है. अब अगर शनि जो पहले से ही सबसे अधिक पापी ग्रह है, व्यक्ति के लिए एक बड़ी परेशानी हो सकता है जब शनि शत्रु राशि में, नीच अवस्था में हो या नीचस्थ राशि में हो या अन्य पापी के साथ बैठा हो या पाप करतारी योग में हो तब शनि को सक्रिय करने वाली दशाओं के दौरान व्यक्ति को बहुत सतर्क रहने की जरूरत होती है.

मारक घरों में बैठे ग्रह की शक्ति 

मारक घरों में स्थित ग्रहों की शक्ति को समझने की आवश्यकता है. अच्छी स्थिति में ग्रह का होना व्यक्ति को मारक दशा के असर से बचाने में सहायक हो सकता है. अगर ग्रह खराब है तो मारक दशा के समय अतिरिक्त ध्यान रखने की जरूरत होती है. उदाहरण के लिए, दूसरे भाव सिंह राशि में चंद्रमा ज्यादा चिंता का विषय नहीं बनता है, लेकिन यदि बृहस्पति सातवें घर में मकर में नीच का होकर दशा देने खराब फलों को दे सकता है. 

दशा मारक को कैसे सक्रिय करती है 

कर्क लग्न के लिए मारक भाव की सक्रियता सूर्य दशा, शनि दशा में हो सकती है. इसके अलावा जो ग्रह दूसरे घर में सिंह राशि में या सातवें घर में मकर राशि में है हो तो उनकी भी ग्रह की दशा के दौरान सक्रिय हो सकते हैं . इसके साथ ही, राशि, नक्षत्र के स्वामी की दशा जिसमें सूर्य या शनि स्थित हैं, तो वह मारक दशा को सक्रिय करेगा. उदाहरण के लिए, यदि सूर्य तुला राशि में चित्रा में है तो शुक्र दशा या मंगल दशा भी सूर्य और मारक घरों को सक्रिय कर सकती है. इसी तरह, मारक घरों में ग्रहों के लिए, उनकी राशि, नक्षत्र स्वामी दशा मारक परिणाम ला सकती है. इसके बाद आखिर में, महादशा, अंतर्दशा, प्रत्यंतर दशा को भी देखना होगा. 

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