एकादशी तिथि
एकादशी को ग्यारस भी कहा जाता है. एक चन्द्र मास मे 30 दिन होते है. साथ ही एक चन्द्र मास दो पक्षों से मिलकर बना होता है. दोनों ही पक्षों की ग्यारहवीं तिथि एकादशी तिथि कहलाती है. सभी तिथियों की तुलना में एकादशी तिथि का विशेष महत्व होता है.
एकादशी तिथि व्रत महत्व
चन्द्र मास के दोनों पक्षों में पडने वाली एकादशियों का व्रत पालन करना विशेष रुप से कल्याणकारी माना गया है. एकादशी तिथि के दिन भगवान श्री विष्णु जी का पूजन किया जाता है. एकादशी तिथि के दिन स्वर्ण दान, भूमि दान, अन्नदान, गौ दान, कन्यादान आदि करने से 1000 अश्वमेधादि यज्ञ करने के समान पुन्य प्राप्त होता है. एकादशी तिथि नन्दा तिथियों में से एक है.
एकादशी तिथि के संदर्भ में कुछ पौराणिक आख्यान भी मौजूद हैं. इनमें हमें एकादशी तिथि के महत्व एवं उसकी कथा के संदर्भ में बहुत सी बातें पता चलती हैं. एकादशी तिथि के विषय में भागवत में भी विचार मिलता है.एकादशी तिथि का व्रत करने पर व्यक्ति मोक्ष को पाता है. एकादशी तिथि के दिन तामसिक भोजन, मांस, मदिरा व चावल का सेवन नही करना चाहिए. प्रत्येक मास की एकादशी के दिन व्रत का पालन करने से जीवन के कष्टों एवं व्यवधानों से मुक्ति मिलती है.
एकादशी तिथि वार योग
एकादशी तिथि किसी पक्ष में सोमवार के दिन होने पर क्रकच योग तथा दग्ध योग बनाती है. ये दोनो योग शुभ कार्यों में वर्जित माने जाते है. यह माना जाता है. कि एकादशी तिथि गुरु ग्रह की जन्म तिथि है. एक वर्ष में 24 एकादशियां आती है. जिस वर्ष में अधिक मास होता है, उस वर्ष में 26 एकादशी
एकादशी तिथि में जन्मा जातक
एकादशी तिथि में जन्मा जातक उदार हृदय का होता है. वह दूसरों प्रति प्रेम भाव और सहयोग रखेगा. जातक में चालाकी की सक्षमता होती है. आर्थिक रुप से संपन्न होता है. गुरु और वरिष्ठ लोगों के प्रति सदभाव की भावना रखने वाला होता है. धार्मिक कार्यों को करने वाला और आध्यात्मिक पक्ष से मजबूत होते हैं. कला क्षेत्र में रुचि रखने वाले होते हैं. संतान का सुख पाने वाले और न्याय के मार्ग पर चलने वाले होते हैं.
व्यक्ति में कूटनिति की कला भी होती है. कार्य को किस प्रकार आगे बढ़ना है इस बात को अच्छी तरह से जानने वाले होते हैं. अपने साथ सब का हित हो इस बात को लेकर चलने वाले होते हैं.
एकादशी तिथि में किए जाने वाले काम
कुछ महत्वपूर्ण एकादशी
बारह माह के दौरान आने वाली कुछ एकादशी को विशेष महत्व प्राप्त है. इन एकादशी में कुछ का नाम यहां दिया जा रहा है जो इस प्रकार से हैं.
पुत्रदा एकादशी -
यह एकादशी पौष माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को मनाई जाती है. संतान प्राप्ति के लिए इस एकाद्शी का बहुत मह्त्व होता है. इस एकादशी का व्रत संतान प्राप्ति और उसके संतान के सुखद भविष्य की कामना के लिए किया जाता है.
निर्जला एकादशी -
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी निर्जला एकादशी के नाम से जानी जाती है. यह एकादशी बहुत ही शुभ मानी जाती है. इस एकादशी का व्रत को करने से व्यक्ति को लम्बी आयु का वरदान मिलता है. मोक्ष और शुभ फलों की प्राप्ति होती है. इस व्रत को करने के लिए निर्जल और निराहार रह कर किया जाता है.
हरिशयन एकादशी -
इस एकादशी का महत्व विष्णु भगवान के सोने के साथ ही आरंभ होता है. इस एकादशी के साथ ही चतुर्मास का आरंभ हो जाता है. इस दिन से भगवान विष्णु शयन अवस्था को अपनाते है. इसी कारण ये एकादशी हरिशयन एकादशी कहलाती है.
हरिप्रबोधनी एकादशी -
विष्णु भगवान के चार माह के के उपरांत भगवान जब उठते हैं तो उस दिन को हरिप्रबोधनी एकादशी के नाम से जाना जाता है. इस दिन से सभी शुभ विवाह इत्यादि मांगलिक कार्यों का आयोजन शुरु हो जाता है.