पराशर सिद्धान्त - ज्योतिष का इतिहास
नारद और वशिष्ठ के फलित ज्योतिष सिद्धान्तों के संबन्ध में आचार्य पराशर रहे है. आचार्य पराशर को ज्योतिष के इतिहास की नींव कहना कुछ गलत न होगा. यह भी कहा जाता है, कि कलयुग में पराशर के समान कोई ज्योतिष शास्त्री नहीं हुआ. ज्योतिष शास्त्रों का अध्ययन करने वालों के लिए इनके द्वारा लिखे ज्योतिष शास्त्र ज्ञान गंगा के समान है. इनके द्वारा लिखे गए ज्योतिष शास्त्र, जिज्ञासा शान्त करते है. तथा व्यवहारिक सिद्धान्तों के निकट होते है.
इसी संदर्भ में एक प्राचीन किवदंती है, कि एक बार महर्षि मैत्रेय ने आचार्य पराशर से विनती की कि, ज्योतिष के तीन अंग है. इसमें होरा, गणित, और संहिता में होरा सबसे अधिक मह्त्वपूर्ण है. होरा शास्त्र की रचना महर्षि पराशर के द्वारा हुई है. अपने ज्योतिष गुणों के कारण आज यह ज्योतिष का सर्वाधिक प्रसिद्ध शास्त्र बन गया है.
आचार्य पराशर के जन्म समय और विवरण की कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है. कौटिल्य शास्त्र में भी महर्षि पराशर का वर्णन आता है. पराशर का नाम प्राचीन काल के शास्त्रियों में प्रसिद्ध रहे है. पराशर के द्वारा लिखे बृ्हतपराशरहोरा शास्त्र 17 अध्यायों में लिखा गया है.
पराशर का ज्योतिष में योगदान
इन अध्यायों में राशिस्वरुप, ग्रहगुणस्वरुप, लग्न विश्लेषण, षोडशवर्ग, राशिदृ्ष्टि, अरिष्ट,अरिष्टभंग, भावविवेचन, द्वादश भावों का फल निर्देश, अप्रकाशग्रह, ग्रहस्फूट, कारक,कारकांशफल,विविधयोग, रवियोग, राजयोग, दारिद्रयोग,आयुर्दाय, मारकयोग, दशाफल, विशेष नक्षत्र, कालचक्र, ग्रहों कि अन्तर्दशा, अष्टकवर्ग, त्रिकोणदशा, पिण्डसाधन, ग्रहशान्ति आदि का वर्णन किया गया है.
निम्न महत्वपूर्ण सिद्धांत सूत्र
फलित ज्योतिष के क्षेत्र में पराशर द्वारा दिए गए सिद्धांतों को बहुत उपयोग किया जाता है. पराशर द्वारा दिए गए सिद्धांतो को कुछ सूत्रों के रुप में बनाया गया है. संस्कृत श्लोक के रुप में निर्मित यह सूत्र कुण्डली विश्लेशण में बहुत महत्वपूर्ण सहायक होते हैं. वृहदपाराशर होराशास्त्र पर दिए गए नियमों को का निष्कर्ष एक बहुत ही संक्षिप्त रुप से हमें उनके दिए हुए इन सूत्रों में प्राप्त हो जाता है.