वराहमिहिर- ज्योतिष का इतिहास | Varahamihira - History of Astrology | Varahamihira Scriptures (Varahamihira Books Name) | Rishi Atri
वराहमिहिर ज्योतिष लोक के सबसे प्रसिद्ध ज्योतिष शास्त्रियों में से रहे है. वराहमिहिर के प्रयासों ने ही ज्योतिष को एक विज्ञान का रुप दिया. ज्योतिष के क्षेत्र में इनके योगदान की सराहना जितनी की जाएं, वह कम है. ज्योतिष की प्राचीन प्रसिद्ध नगरी उज्जैनी में रहकर इन्होने अनेक ज्योतिश ग्रन्थों की रचना की. इनके पिता भी अपने समय के प्रसिद्ध ज्योतिषी थें. ज्योतिष की प्रथम शिक्षा इन्होनें अपने पिता से ही प्राप्त की.
इनके द्वारा लिखे गए कुछ शास्त्रों का नाम निम्न है.
वराहमिहिर रचित शास्त्र | Varahamihira Scriptures
पंचसिद्धान्तिका, बृ्हत्संहिता, बृ्हज्जातक, लघुजातक, विवाह पटल, योगयात्रा, समास संहिता आदि इनके प्रमुख शास्त्रों में से कुछ एक है. इनके द्वारा लिखी गई रचनाओं की तुलना अन्य किसी शास्त्र से नहीं की जा सकती है. फलित ज्योतिष में इनका योगदान अविश्वरणीय़ है.
वराहमिहिर ने विक्रमाद्वित्य के नौ रत्नों में से ये एक रत्न थें. उसी समय के ज्योतिषी आर्यभट्ट के साथ मिलकर भी इन्होने ज्योतिष के फलित नियमों का प्रतिपादन किया. आर्यभट्ट इनके गुरु थें. और ज्योतिष की अनेक नियम इन्होने आर्यभट्ट से सीखें. आर्यभट्ट के मुख्य रुप से गणित विषय पर काम किया था, इसलिए इन्होनें ज्योतिष शास्त्रों में गणितीय गणना आर्यभट्ट से सिखी.
वराहमिहिर ने अपने नियमों से उस समय ही न्य़ूटन के सिद्धान्त “गुरुत्वाकर्षण नियम” का प्रतिपादन कर दिया था. वे जानते थे कि पृ्थ्वी की वस्तुओं को कोई आकर्षण शक्ति अपनी ओर खींचती है. जिसे बाद में गुरुत्वाकर्षण का नाम दिया गया.
वराहमिहिर ने चार प्रकार के माहों का उल्लेख् किया.
जिसमें, सौर माह, चन्द्र माह, वर्षीय माह और पाक्षिक माह थे. वराहमिहिर का कुल योगदान फलित ज्योतिष के अलावा, खगोल ज्योतिष, और वृ्क्षायुर्वेद विषयों पर रहा.
ऋषि अत्रि
ज्योतिष के इतिहास से जुडे 18 ऋषियों में से एक थे ऋषि अत्रि. एक मान्यता के अनुसार ऋषि अत्रि का जन्म ब्रह्मा जी के द्वारा हुआ था. भगवान श्री कृ्ष्ण ऋषि अत्रि के वंशज माने जाते है. कई पीढीयों के बाद ऋषि अत्रि के कुल में ही भगवान श्री कृ्ष्ण का जन्म हुआ था. यह भी कहा जाता है,कि ब्रह्मा जी के सात मानस पुत्र उत्पन्न हुए थे, उसमें ऋषि पुलस्त्य, ऋषि पुलह, ऋषि वशिष्ठ, ऋषि कौशिक, ऋषि मारिचि, ऋषि क्रतु, ऋषि नारद है. इन महाऋषियों के ज्योतिष के प्राद्रुभाव में महत्वपूर्ण योगदान रहा है.
ब्रह्मा जी के यही सात पुत्र आकाश में सप्तर्षि के रुप में विद्यमान है. इस संबन्ध में एक पौराणिक कथा प्रचलित है. तारामंडल का प्रयोग दिन, तिथि, कुण्डली निर्माण, त्यौहार और मुहूर्त आदि कार्यो के लिए किया जाता है. व इन सभी का उपयोग भारत की कृ्षि के क्षेत्र में प्राचीन काल से होता रहा है.
ज्योतिष के इतिहास के ऋषि अत्रि का नाम जुडा होने के साथ साथ, देवी अनुसूया और रायायण से भी ऋषि अत्रि जुडे हुए है. आयुर्वेद और प्राचीन चिकित्सा क्षेत्र सदैव ऋषि का आभारी रहेगा. (Simonsezit) इन्हें आयुर्वेद में अनेक योगों का निर्माण किया. पुराणों के अनुसार ऋषि अत्रि का जन्म ब्रह्मा जी के नेत्रों से हुआ माना जाता है.
ऋषि अत्रि ने ज्योतिष में चिकित्सा ज्योतिष पर कार्य किया, इनके द्वारा लिखे गये. सिद्दान्त आज चिकित्सा ज्योतिष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है.